ठेका मज़दूरों के बदतर हालात

जगवि‍न्द्र सिंह, कैथल

आई.आई.टी कैथल जहाँ पर पाँच सफाईकर्मी और माली कर्मचारि‍यों की आवश्यकता है वहाँ सि‍र्फ दो कर्मचारी ही कार्य कर रहे हैं। कर्मचारि‍यों की कमी के कारण जो कर्मचारी वहाँ काम करते है उनपर काम का अधि‍क दबाव बन जाता है। जहाँ पांच आदमि‍यों का काम अकेले दो व्यक्ति‍यों को ही करना पड़ता है। एक तो उनको सि‍र्फ़ 5500 रूपए महीने के हि‍साब से काम पर रखा गया है, ऊपर से ठेकेदार उन गरीब मजदूरों का धड़ल्ले से शोषण करता है और फि‍र उन्हें पूरा हक भी नहीं दि‍या जाता और काम भी अधि‍क लि‍या जाता है। ये पूरी धाँधली ‘स्वच्छ भारत अभि‍यान’ की पोल खोल रही है। असल में ये पूँजीवादी व्यवस्था मेहनतकश आबादी का खून नि‍चोड़कर उनके खून-पसीने की कमाई से अपनी ति‍जोरि‍यों भरने में लगी है। बेरोज़गारी लगातार बढ़ रही है, लेकि‍न सरकार पदों में पक्की भर्तियाँ नहीं हो रही हैं, बल्कि‍ पदों पर ठेका मजदूरों के सस्ते श्रम की लूट जारी है। सरकार और ये ऊपर बैठे पूँजीपति‍ गरीब मेहनतकश को लूटने, दबाने और कुचलने में लगे है। अगर कोई कर्मचारी अपना काम करने के बाद और अधि‍क काम करने से मना करे तो उसे काम से नि‍काल देने की धमकी दी जाती है और काम से भी नि‍काल दि‍या जाता है। मेहनत का लूट पूरे जोरों से चल रहा है। ऐसे में ‘’जनता को आपस में लड़ने से रोकने के लि‍ए’’ वर्गीय चेतना की जरूरत है। गरीब मेहनतकशों को चाहि‍ए कि वो एक हो जाएं। दुनि‍या के सारे गरीबों के, चाहे वो कि‍सी भी जाति, नस्ल, धर्म या देश के हों, अधि‍कार एक ही हैं। इसलि‍ए हमें सभी दीवारें गि‍राकर एकजुट होना होगा। हम नि‍कल पड़े हैं साथी पर्वत का सीना चीरकर रास्ता बनाने के लि‍ए। हाँ हम नि‍कल पड़े है साथी अमीरी-गरीबी का भेद मि‍टाने के लि‍ए। हम नि‍कल पड़े है साथी पूँजीवाद को मि‍टाने के लि‍ए हाँ हम नि‍कल पड़े है साथी दि‍लों में संकल्प लि‍ए लड़ने के लि‍ए कि‍ जब तक ये शोषण की व्यवस्था का नाश ना हो जाए।
हाँ हम नि‍कल पड़े है
गुलामी की जंजीरें तोड़कर
आजादी पाने के लि‍ए
हम नि‍कल पड़े है साथी
उनके लि‍ए जो दि‍न-रात
मेहनत के बाद भी अपने
बच्चों का पेट नहीं भर पाते
हाँ हम नि‍कल पड़े हैं
क्रान्ति‍ का बि‍गुल बजाने के लि‍ए
हम नि‍कल पड़े हैं समाजवाद की
ध्वज फहराने के लि‍ए
हाँ हम नि‍कल पड़े हैं
क्रान्ति‍ लाने के लि‍ए

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2016


 

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