बरगदवां, गोरखपुर में मज़दूर नयी चेतना और जुझारूपन के साथ एक बार फिर संघर्ष की राह पर
मज़दूरों के दमन के लिए बदनाम दो कारख़ानों के मज़दूरों ने मालिकान को झुकाकर माँगें मनवायीं

बिगुल संवाददाता

गोरखपुर के बरगदवां औद्योगिक क्षेत्र में मिल-मालिकों व प्रबन्धन द्वारा सारे श्रम कानूनों को ताक पर रखकर काम करवाने और मज़दूरों के साथ आये दिन गाली-गलौज, मारपीट और अमानवीय व्यवहार के ख़िलाफ़ दो फैक्ट्रियों, अंकुर उद्योग प्राइवेट लिमिटेड व वी.एन.डायर्स प्रोसेसर्स (प्रा.) लिमिटेड, में क्रमशः 18 जून व 1 जुलाई को मज़दूर हड़ताल पर चले गए और अपनी जुझारू एकजुटता के दम पर उन्होंने जीत हासिल की।

2016-07-04-VN-dyers-strike-GKP-2वास्तव में पिछले लम्बे समय से इन दोनों फैक्ट्रियों में लगभग सभी श्रम कानूनों को ताक पर रखकर काम कराया जा रहा था। न्यूनतम वेतन, ई.एस.आई., ई.पी.ऍफ़. जैसे बुनियादी श्रम क़ानून भी लागू नहीं थे। 75% मज़दूरों के पास कोई पहचान पत्र नहीं था जिससे कि वे साबित कर सकें कि वो इसी कारखाने में काम करते हैं। कारखाने में इतने उच्च तापमान पर काम कराया जाता था कि मज़दूर बेहोश हो कर गिर जाते थे, एग्जॉस्ट इसलिए नहीं चलाया जाता था ताकि बिजली खर्च न हो।

ओवरटाइम का सिंगल रेट ही दिया जाता था। कारखाने में कोई दुर्घटना होने पर मज़दूरों को अस्पताल पहुँचाने के बजाय उनके कमरों पर छोड़ दिया जाता था। कुशल मज़दूरों को भी अकुशल का ही वेतन दिया जाता था। कोई भी मज़दूर अगर इसके ख़‍िलाफ़ आवाज़ उठाता था तो उसे तत्काल बाहर कर दिया जाता था। मज़दूरों के साथ मारपीट, जबरन ओवरटाइम कराना, टॉयलेट जाने तक पर भी गाली-गलौज करना एक आम बात हो चुकी थी।

इस वजह से मज़दूरों में फैक्ट्री प्रबन्धन व मालिकों के ख़‍िलाफ़ बहुत असंतोष और गुस्सा था और यह गुस्सा तब फट पड़ा जब अंकुर उद्योग प्रा. लिमिटेड में काम करने वाले एक मज़दूर की फैक्ट्री के टाइम कीपर ने बर्बर तरीके से पिटाई की । कारखाने में बहुत से मज़दूर 40-45 किमी. दूर से रोज आ-जा कर काम करते हैं। रात में 10 बजे काम से छूटने के बाद इन मज़दूरों को कारखाने से थोड़ी दूर नकहा रेलवे स्टेशन से 10 बजकर 10 मिनट पर ट्रेन पकड़नी होती है, इसलिए मज़दूर काम से छूटते ही ट्रेन पकड़ने के लिए दौड़ पड़ते हैं, क्योंकि उसके बाद उन्हें वापस जाने के लिए ट्रेन या कोई अन्य साधन रात में नहीं मिलता है। 17 जून को काम से छूटने के बाद उस मज़दूर ने कारखाने से बाहर आकर दौड़ने के बजाय कारखाने के कैम्पस के भीतर से ही दौड़ना शुरू कर दिया । इस वजह से कारखाने के टाइम कीपर ने उसे गेट पर रोक कर उसकी पिटाई कर दी। इस घटना के बाद मज़दूरों का गुस्सा फूट पड़ा और वे हड़ताल पर चले गए।

2016-07-04-VN-dyers-strike-GKP-719 जून को बिगुल मज़दूर दस्ता व टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन के नेतृत्त्व में अंकुर उद्योग प्रा. लिमिटेड के मज़दूरों की सभा की गयी और उनकी समस्याओं का ज्ञापन तैयार किया गया। 20 जून को लगभग 600 मज़दूरों ने बरगदवां औद्योगिक क्षेत्र से गोरखपुर के उपश्रमायुक्त कार्यालय तक जुलूस निकाल कर उपश्रमायुक्त को ज्ञापन सौंपा। 26 जून को उपश्रमायुक्त कार्यालय पर मज़दूर प्रतिनिधियों व कारखाना प्रबन्धन के बीच वार्ता हुई, जिसमें मज़दूरों के भारी दबाव की वजह से मज़दूरों की सभी मांगों को कारखाने के मालिक को मानना पड़ा।

अंकुर उद्योग प्राइवेट लिमिटेड के मज़दूरों की मांगें-

  1. दोषी टाइमकीपर को फैक्ट्री से निकाला जाय।
  2. सभी मज़दूरों को ऐसा पहचान पत्र मुहैया कराया जाय जिसपर कि फैक्ट्री का नाम व पद अंकित हो।
  3. महँगाई भत्ता जितना आता है उतना पूरा दिया जाय। वेतन देने की एक निश्चित तारीख तय की जाय।
  4. 90 दिनों का कार्यदिवस पूरा होने पर ई.एस.आई./ई.पी.ऍफ़. लागू किया जाय।
  5. मशीन लगातार चलने से जब कोई पार्ट टूटता है तो उक्त मशीन पर काम करने वाले मज़दूर को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। यह बंद किया जाय।
  6. जो मज़दूर मशीन पर काम कर रहे हैं और कुशल श्रेणी योग्य हैं, उन्हें कुशल श्रेणी में रखा जाय।
  7. फैक्ट्री में पीने योग्य पानी मुहैया कराया जाय।

इसी तरह वी. एन. डायर्स प्रोसेसर्स (प्रा.) लिमिटेड कारखाने में 30 जून की रात कारखाने में बिजली कट जाने के बाद मज़दूरों को रात 2 बजे फैक्ट्री प्रबन्धन द्वारा काम से वापस भेजा जाने लगा, जबकि बाहर बारिश हो रही थी। इस कारखाने में भी बहुत से मजूदर 40-45 किमी दूर से रोजाना आ-जा कर काम करते हैं। मज़दूरों ने कहा कि रात 2 बजे बारिश में हम लोग घर कैसे जायेंगे? लेकिन फैक्ट्री प्रबन्धन ने कारखाने में पीने के पानी और टॉयलेट के पानी की सप्लाई बन्द कर दिया व मज़दूरों को जबरदस्ती गेट से बाहर किया जाने लगा। प्रबन्धन के इस व्यवहार के ख़‍िलाफ़ मज़दूर एकजुट हो गए व बाहर न जाने पर अड़ गए। सुबह होने पर रात की शिफ्ट के सभी मज़दूरों ने सुबह 6 बजे की ड्यूटी पर जा रहे मज़दूरों को रोककर सारी घटना बतायी। इसके बाद सभी मज़दूरों ने प्रबन्धन के इस तानाशाहीपूर्ण रवैये के विरोध में काम पर न जाने का फैसला किया।

2016-07-04-VN-dyers-strike-GKP-4बिगुल मज़दूर दस्ता और टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन के नेतृत्व में वी.एन. डायर्स प्रोसेसर्स (प्रा.) लिमिटेड के मज़दूरों की 2 जुलाई को सभा कर अपना ज्ञापन तैयार किया और 3 जुलाई को अपना ज्ञापन उपश्रमायुक्त को सौंपा। वी.एन. डायर्स प्रोसेसर्स (प्रा.) प्राइवेट लिमिटेड कारखाने के प्रबन्धन और मज़दूर प्रतिनिधियों के बीच 6 जुलाई को उपश्रमायुक्त कार्यालय पर 11 बजे से 5 बजे तक लम्बी वार्ता चली। जिसमें कारखाने का जी.एम. झूठ पर झूठ बोलते हुए सारी बातों से इंकार कर रहा था लेकिन मज़दूरों को डटा हुआ देखकर कारखाना प्रबन्धन को मज़दूरों की सभी मांगों को मानना पडा।

वी.एन. डायर्स के मज़दूरों द्वारा उपश्रमायुक्त को सौंपी गयी माँगें –

  1. ऐसा पहचान-पत्र मुहैया कराया जाय जिस पर फैक्ट्री का नाम व पद अंकित हो।
  2. ई.एस.आई./ई.पी.ऍफ़. की सुविधा सभी मज़दूरों को मिले।
  3. कुशल कारीगर के मशीन पर काम कर रहे मज़दूरों को कुशल मज़दूर का वेतन दिया जाय।
  4. दो साल से भी ज्‍़यादा समय से काम कर रहे मज़दूरों को अभी भी ट्रेनी मज़दूरका ही वेतन दिया जाता है, इसे दुरुस्त कर काम के हिसाब से वेतन लागू किया जाय।
  5. ओवरटाइम एक तो जबरन कराया जाता है, दूसरे ओवरटाइम का सिंगल रेट दिया जाता है। अतः हमारी माँग है कि ओवरटाइम को मज़दूर की इच्छा से और डबल रेट पर लागू किया जाय।
  6. इमरजेंसी छुट्टी कम-से-कम पाँच दिनों की मिले।
  7. फैक्ट्री में उच्च तापमान पर काम कराया जाता है, और बिजली बचाने के लिए एग्जॉस्ट भी नहीं चलाया जाता है। हमारी माँग है कि नियमानुसार उचित टेम्परेचर तक ही काम कराया जाय और एग्जॉस्ट चलवाया जाय।
  8. नए मज़दूरों को ले-ऑफ केवल दो घण्टे का दिया जाता है। इस पर तत्काल कार्यवाही करते हुए ले-ऑफ सबको पूरा दिया जाय।
  9. पीने के साफ़ पानी और शौचालय की सफ़ाई का प्रबन्ध किया जाय।
  10. सफ़ाई करने के लिए लगाए गए मज़दूरों से कई काम करवाए जाते हैं। अतः यह तय होना चाहिये कि वे सफ़ाई करेंगे या अन्य काम।
  11. किसी भी मज़दूर का गेट बिना वजह के बन्द नहीं किया जाना चाहिए वरना हम सभी मज़दूर आन्दोलन के लिए बाध्य होंगे।
  12. काम के दौरान कोई भी दुर्घटना होने पर मज़दूरों को अस्पताल ले जाने की बजाय उनके घर या कमरे पर पहुँचा दिया जाता है, और उनके इलाज का कोई भी प्रबन्ध फैक्ट्री प्रबन्धन द्वारा नहीं कराया जाता है। इस समस्या पर तत्काल कार्रवाई की जाय।

पुलिस-प्रशासन, पूँजीपतियों व श्रम विभाग की भूमिका

श्रम क़ानूनों को लागू करवाने और मानवीय व्यवहार की वैध माँग को लेकर मज़दूर ज्योंही अपनी लड़ाई लोकतांत्रिक तरीके से शुरू करते हैं, वैसे ही पुलिस-प्रशासन, पूँजीपतियों व श्रम विभाग का गँठजोड़ एकदम नंगे रूप में साफ़-साफ़ दिखाई पड़ने लगता है। हड़ताल के दौरान बरगदवां औद्योगिक क्षेत्र के पास स्थित चिलुआताल थाने की पुलिस मज़दूरों के कमरों पर पर जाकर मज़दूरों को काम पर जाने के लिए धमका रही थी। सभा-स्थल से लेकर उपश्रमायुक्त कार्यालय तक लगातार मज़दूरों को आतंकित करने के लिए पूछ-ताछ की जाती रही। इस पूरे आन्दोलन में एल.आई.यू. डिपार्टमेंट का सी.ओ. सीधे दिलचस्पी ले रहा था। उसने अपने दो एजेंटों को लगातार निगरानी के लिए लगा रखा था। जब वह अपने एजेंटों की सूचना से संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ता अंगद को बुलवाकर 2 घंटे तक पूछताछ की। उपश्रमायुक्त कार्यालय पर वार्ता के दौरान सहश्रमायुक्त कारखाने में श्रम कानूनों को लागू करवाने की बजाय किसी तरह से मामले को समझौता कराकर निपटा देने जैसा व्यवहार कर रहा था। वार्ता के दौरान कारखाने के जी.एम. व पी.एम. झूठ पर झूठ बोले जा रहे थे, लेकिन सहश्रमायुक्त मज़दूरों को ही दोषी ठहराने के लिये कोई बहाना खोज रहा था। उदाहरण के तौर पर सहश्रमायुक्त का यह कहना था कि यह हड़ताल ग़ैरक़ानूनी है क्योंकि मज़दूरों को 15 दिन पहले हड़ताल की नोटिस कारखाने के मालिक को देनी चाहिए। इस बात से आसानी से समझा जा सकता है कि जो कारखाना-मालिक सभी श्रम कानूनों को ताक पर रखकर मज़दूरों का शोषण करते हैं, श्रम विभाग की नज़र में वह ग़ैरक़ानूनी नहीं है लेकिन मज़दूरों के इस शोषण के ख़िलाफ़ अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते ही ग़ैरक़ानूनी करार दे दिया जाता है। बिगुल मज़दूर  दस्ता के कार्यकर्ताओं को वह तमाम हवाले देकर वार्तालाप से बाहर रखने की पूरी कोशिश कर रहा था। कुछ विश्वस्त सूत्रों से जानकारी मिली कि श्रम विभाग के कुछ बड़े अधिकारी आपस में बात कर रहे थे कि बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं को एक बार सबक सिखाना ज़रूरी है। बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं से बातचीत के दौरान भी अप्रत्यक्ष तौर पर धमकी दी जा रही थी और पिछले आन्दोलन का ज़िक्र किया जा रहा था कि अपना काम करो, ज़्यादा नेतागिरी के चक्कर में न पड़ो, पिछली बार बिगुल के कार्यकर्ताओं को इसी वजह से जिलाबदर कर दिया गया था। बात एकदम स्पष्ट है कि पुलिस-प्रशासन, श्रम विभाग सभी पूँजीपतियों के इशारे पर चलते हैं। मज़दूर वर्ग इनसे किसी तरह की कोई उम्मीद नहीं कर सकता। मज़दूर वर्ग को अगर श्रम कानून लागू करवाने जैसी बुनियादी अधिकार भी हासिल करना है तो उनकी क्रान्तिकारी एकता और संगठन ही बुनियादी शर्त है।

बरगदवां के औद्योगिक इलाके में मज़दूरों के संघर्ष का इतिहास

वास्तव में बरगदवां में बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं के व्यापक प्रचार, श्रम कानूनों के बारे में मज़दूरों को जानकारी देने आदि के चलते 2009 से मज़दूरों में जागृति बढ़ी और वे अपने अधिकारों के प्रति सचेत और संगठित हुए। बिगुल मज़दूर दस्ता के सहयोग से टेक्सटाइल मज़दूरों की पेशा आधारित ‘टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन’ बनायी गयी। जून 2009 में बिगुल मज़दूर दस्ता व टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन ने श्रम कानूनों को लागू करवाने के लिए आन्दोलन शुरू किया। मज़दूरों के व्यापक दबाव के चलते वे मालिकों से अनेक श्रम कानूनों को लागू करवाने में सफल रहे और इस आन्दोलन का पूरे गोरखपुर के औद्योगिक इलाके पर असर पड़ा और कई अन्य कारखानों में भी मालिकों को श्रम कानूनों को लागू करना पड़ा।

लगातार मज़दूरों में अपने हकों के प्रति बढ़ती जागरूकता और एकजुटता को देखते हुए इलाके के सभी पूँजीपति, प्रशासनिक अधिकारी, सदर सांसद योगी आदित्यनाथ, पुलिस-प्रशासन और मीडिया बिगुल मज़दूर दस्ता के बारे में कुत्सा प्रचार व आन्दोलन को येन-केन प्रकारेण कुचलने के लिए एकजुट हो गए। पूँजीपति मज़दूरों को सबक सिखाने के लिए बहाने ढूंढ रहे थे। 1 मई के अवसर पर करीब 1500 मज़दूर माँगपत्रक आन्दोलन में शामिल होने के लिए दिल्ली गए। मज़दूरों ने मालिकों को मई दिवस के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए नोटिस दिया लेकिन दिल्ली से लौटने पर मालिकों ने कारखानों का गेट बन्द कर दिया। मालिकों द्वारा लाये गए भाड़े के गुण्डों द्वारा 3 मई 2011 को मज़दूरों पर गोली चलाई गयी जिसमें 18 मज़दूर घायल हुए। एक मज़दूर के रीढ़ की हड्डी में गोली फँस जाने की वजह से लगभग 4 साल इलाज चला। इस घटना के बाद पूंजीपतियों, नेताओं के दबाव में पुलिस प्रशासन ने बिगुल मज़दूर दस्ता व टेक्सटाइल वर्कर्स यूनियन के नेतृत्वकारी लोगों को जिलाबदर करने और फर्जी मुक़दमों में फँसाने की साज़‍िश रची।

नेतृत्वकारी लोगों को फ़र्जी मुक़दमों में फँसाने, जिलाबदर करवाने के पीछे पूँजीपतियों की यह सोच थी कि इससे मज़दूरों का आन्दोलन बिखर जायेगा। पूँजीपतियों की यह चाल एक हद तक क़ामयाब भी रही क्योंकि उसके बाद पूँजीपतियों ने मज़दूरों की जिन माँगों को माना था, धीरे-धीरे करके उनमें से कई को लागू करना बन्द कर दिया। तमाम तरह के तीन-तिकड़मों के ज़रिये मज़दूरों में फूट डालने की कोशिश की गयी। पुराने मज़दूरों को धीरे-धीरे निकाल कर नए मज़दूरों को नयी शर्तों पर काम करने के लिए भर्ती करना शुरू किया गया। इस तरह मालिकों ने मज़दूरों को लगभग उनकी पुरानी स्थिति तक पहुँचा दिया। लेकिन मज़दूरों के बीच जुझारू संघर्ष की जो चेतना फ़ैली थी, उसको वो ख़त्म नहीं कर सके और एक बार फिर मज़दूरों ने एकजुट होकर अपने अधिकारों को हासिल किया।

मज़दूर वर्ग को यह बात समझ लेनी चाहिए कि जब तक पूंजीवादी व्यवस्था रहेगी, तब तक मज़दूरों के श्रम की लूट जारी रहेगी। मज़दूरों की मेहनत को लूटकर मुनाफ़ा बटोरने में पूँजीपतियों के बीच भयंकर गलाकाटू प्रतियोगिता इस व्यवस्था का आम नियम है। चूंकि मज़दूरों के श्रम की लागत (मज़दूरों का वेतन) जितनी कम होगी उतना ही पूँजीपतियों का मुनाफ़ा ज़्यादा होगा। पूँजीपति मज़दूरों को उनके श्रम के बदले कम पैसा देने के लिए कई हथकण्डे अपनाते हैं जिनमे एक हथकंडा सभी श्रम क़ानूनों का खुला उल्लंघन भी है। हर पार्टी की सरकार पूँजीपतियों के हित में काम करती है इसलिए दिखाने के लिए जो श्रम क़ानून बने हैं उन्हें भी पूँजीपति, नेता और प्रशासनिक मशीनरी की मिलीभगत कभी अमल में नहीं आने देती। इसलिए पूँजीपति मज़दूरों के संगठित दबाव में जिन श्रम कानूनों को लागू करने के लिए बाध्य होते हैं। उन्हें फिर से छीन लेने की कोशिश में लगे रहते हैं। मज़दूर वर्ग की आपसी एकजुटता में कमी आते ही वह पुनः पुरानी स्थिति बहाल कर लेता है। इस समय पूँजीवादी व्यवस्था अपने ही द्वारा पैदा किये गए मन्दी के भंवर जाल में फंसी है। पूंजीपति वर्ग मज़दूरों के श्रम की लूट से होने वाले मुनाफे में किसी तरह से कमी नहीं होने देना चाहता। इसलिए  एक ओर सरकार आम जनता को मिलने वाली सुविधाओं में कटौती करती जा रही है, दूसरी ओर बचे-खुचे श्रम कानूनों  को भी ख़त्म करती जा रही है। भारत में नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद यह काम बहुत तेज़ी से किया जा रहा है। यह भी तय है कि सत्ता में कोई भी पार्टी या बगुला भगत आये, वह इन्हीं कामों को अंजाम देगा। सरकारी नीतियों की वजह से आज मज़दूर वर्ग दोहरी मार खा रहा है। मज़दूर वर्ग के आंदोलनों को तोड़ने के लिए जहाँ एक तरफ भाजपा धर्म के नाम पर आपस में लड़ाने की साजिश कर रही है वहीं दूसरी ओर आन्दोलनों के दमन तंत्र को भी चाक-चौबंद कर रही है। इसके अलावा पूँजीपतियों का हित साधने वाली तमाम चुनावी पार्टियों की धंधेबाज ट्रेड यूनियनें (जैसे–बी.एम.एस., एच.एम.एस., इंटक, एटक, सीटू, ऐक्टू आदि) मज़दूरों को केवल दुअन्नी-चवन्नी की लड़ाई में उलझाये रखती हैं। वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए बरगदवां के मज़दूरों को इनसे सबक निकालने होंगे।

पहला सबक यह है कि अपनी क्रान्तिकारी एकजुटता को बनाए रखा जाय और व्यापक किया जाय। क्योंकि आज के समय में मज़दूर वर्ग का नब्बे फीसदी से अधिक हिस्सा असंगठित  क्षेत्रों में कार्य कर रहा है। छोटे-छोटे कारखानों में मज़दूर बिखरे हुए हैं। इसलिए मज़दूर वर्ग मालिकों को तभी झुका सकता है, और बड़ी माँग पूरी करवा सकता है, पूँजीपतियों की प्रतिनिधि सरकार को घेर सकता है, जब वह पेशा आधारित-इलाका आधारित यूनियनों के निर्माण की तरफ़ आगे बढ़े। मज़दूर वर्ग को थोड़ा-सा हासिल होने पर संतुष्ट हो जाने की ख़तरनाक बीमारी को त्यागना होगा क्योंकि ठहराव का फ़ायदा उठाकर मालिक वर्ग फिर उन अधिकारों को छीन लेता है। फिर मज़दूर वर्ग उन्हीं खोये अधिकारों के लिए लड़ता है… यह लड़ाई इसी तरह गोल दायरे में घूमती रहती है। होना यह चाहिए कि जितना हासिल हो, उससे आगे की लड़ाई के लिए मज़दूर वर्ग तैयार हो और इस पूंजीवादी व्यवस्था को ध्वस्त करके मज़दूर राज की स्थापना करे।

दूसरा सबक यह है कि मज़दूर वर्ग को अपने बीच से क्रान्तिकारी मज़दूर उत्तराधिकारी तैयार करने होंगे, जो देश-दुनिया में पूंजीवादी लूट में होने वाले बदलाव, पूंजीवादी व्यवस्था के चरित्र, श्रम कानून तथा व्यवस्था परिवर्तन के क्रान्तिकारी रास्ते से परिचित हों। ताकि नेतृत्व के अभाव में मज़दूर वर्ग का संघर्ष थोड़े भी वक़्त के लिए ठहर न पाए। इसके लिए ज़रूरी है कि मज़दूर वर्ग क्रान्तिकारी राजनीति को जाने-समझे, नियमित रूप से अध्ययन-चक्र, बहस-चक्र आयोजित करे, मज़दूर पुस्तकालयों का निर्माण करे और केवल आर्थिक लडाइयों को ही नहीं, बल्कि राजनीतिक संघर्ष के लिए आगे बढे। केवल अपने उत्पीड़न के ख़ि‍लाफ़ ही नहीं बल्कि छात्रों-युवाओं, स्त्रियों, दलितों, अल्पसंख्यकों के प्रति होने वाले किसी भी उत्पीड़न के ख़ि‍लाफ आगे आये और उनके आन्दोलनों में भागीदारी करे।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2016


 

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