पूँजीवाद का एक और घिनौना पहलू
सिर पर छत की ख़ातिर नैतिकता की नीलामी के लिए मजबूर लोग

बलजीत

इंग्लैंड की एक वैबसाइट द्वारा किये गये सर्वेक्षण में 28% लोगों ने माना कि वे सिर पर छत की खातिर अपने मकान मालिक या पार्टनर के साथ बिना मर्ज़ी के यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर हैं। इस सर्वेक्षण में 2,040 लोगों ने हिस्सा लिया और 28% लोगों ने माना कि वे आर्थिक तंगी के कारण मकान का किराया नहीं दे सकते, इस कारण उनको अपने साथी, दोस्त, मकान मालिक के साथ यौन संबंधों में रहना पङता है। एक और सर्वेक्षण के अनुसार बेघरों के लिए काम करने वाली संस्था होमलैस चैरिटी ने एक रिपोर्ट जारी की कि होमलैस सर्विस इस्तेमाल करने वाले लोगों की ओर से रिपोर्ट की गयी कि वह बेघरी के डर से असहमत यौन संबंध में रहते हैं। इस रिपोर्ट में ना सिर्फ औरतें बल्कि मर्द भी शामिल हैं।

”हमें एक-दूसरे से प्रेम नहीं है, लेकिन लगता है कि जब तक कर्ज़ नहीं चुक जाता तब तक ऐसे ही रहना होगा।”

सर्वेक्षण के दौरान एक आदमी की ओर से कहे गये ये शब्द दर्शाते हैं कि बेघरी के डर से लोगों को हालात के आगे घुटने टेकने पड़ रहे हैं। जैसे-जैसे पूँजीवाद संकट में फँसता जा रहा है, वैसे-वैसे आम लोग इसकी पैदा की गयी गंदगी में और भी गहरे डूब रहे हैं। आम लोग अपनी प्राथमिक ज़रूरतें पूरी करने में असमर्थ हैं। रिश्ते खोखले हो रहे हैं। एक ओर तो लोगों के दिमागों में पोर्नोग्राफी तथा और बुराइयाँ पूँजीवाद द्वारा लगातार भरी जाती हैं, दूसरी ओर बेरोज़गारी से तंग और अपनी प्राथमिक ज़रूरतों की पूर्ति में असमर्थ लोग इस जाल में फँसते जा रहे हैं। पूँजीवाद के संकट ने अमीर देशों में भी लाखों लोगों को खाली जेबों सहित सङकों पर ला फेंका है। बेघर लोगों के पास दो रास्ते ही बचे हैं या तो वह सड़क पर सोयें या फिर अपराधों की दुनिया में फँस जायेंं।

वर्ष 2011 में इंग्लैंड में जारी किये गए आँकड़ों के अनुसार 1,07,060 लोग बेघर थे जो पिछले वर्षों के दौरान 10% की दर से बढ़ते जा रहे हैं। वर्ष 2011 में स्नैपशॉट ने एक सर्वेक्षण किया कि लगभग 2200 लोग सर्दियों की रातों में लंदन की गलियों में सोने के लिए मजबूर थे जो कि वर्ष 2010 के मुकाबले 23% अधिक थे। इनमें से बङी गिनती में 16 से 25 वर्ष के नौजवान थे। कुल बेघरों में से 57% अपने पार्टनर द्वारा मारपीट और यौन हिंसा का शिकार रह चुके हैं। इनमें से 20% 18 से 25 वर्ष के हैं और इसका 44% अर्थात् लगभग आधे बेरोज़गार हैं और बाकी अपना गुज़ारा करने लायक कमाई नहीं कर पा रहे।

 सन् 2000 के एक और सर्वेक्षण के अनुसार 42% औरतों ने बताया कि उनके साथी द्वारा उनके बच्चों के साथ यौन संबंध बनाए जाते थे, 63% औरतों ने बताया कि उनको बेघर होने से पहले सिर पर छत के लिए अपने साथी द्वारा यौन संबंधों, मारपीट और यौन हिंसा का शिकार होना पङता था। कुछ बेघर औरतों में से 13% कम से कम एक या दो बार बलात्कार का शिकार रह चुकी हैं। ना सिर्फ औरतें बल्कि आदमी भी इसका शिकार हैं। पीड़ि‍त मर्दों और औरतों पर किए गए सर्वेक्षण में ऐसे तथ्य सामने आए कि वह किसी शारीरिक या मानसिक बीमारी के शिकार हो चुके हैं। इनमें से 45% से ज़्यादा आत्महत्या की कोशिश, 47% डिपरैशन, 45% नशे आदि के शिकार हैं।

एक ओर शारीरिक और मानसिक हिंसा सह चुके लोग सड़कों पर आ रहे हैं और दूसरी ओर सड़क पर रह रहे बेघर लोग जिस्मफरोशी जैसी बुराइयों को गले लगाने के लिए मजबूर हैं। बेघरों में से 11% औरतें यौन पार्टनरशिप के लिए समझौता कर लेती हैं। यह आंकड़ा 14% की दर से बढ़ रहा है। यह तो सिर्फ आंकड़ों की बात है, इसके बिना यह छुपी हुई बेघरी और हिंसा अलग है। औरतें बेघर होने के डर से और अपने परिवार का खर्चा चलाने के लिए वेश्यावृति करने को मजबूर हैं। कई बार मकान का किराया ना दे सकने पर मकान मालिक द्वारा शारीरिक शोषण किया जाता है और मजबूरी के कारण चुप चाप सह लेती हैं।

इतना ही नहीं इंग्लैंड में एक सर्वेक्षण में आश्चर्यजनक आंकड़े सामने आये हैं जिनके अनुसार:

– हर 4 में से 1 या ज़्यादा अर्थात् 28% औरतों और 14% मर्द यह मानते हैं कि सिर पर छत खातिर असहमत यौन संबंधों में रह रहे हैं।

– 19% औरतों और 3% मर्दों ने शिकायत की कि उनको सड़क पर सोने के दौरान कई बार सैक्स वर्क करने के ऑफर आए।

– 28% लोग इस कारण छोटे-मोटे अपराध या समाज विरोधी काम करते हैं जिससे पुलिस उनको हिरासत में ले ले और वह सर्दी की रातें जेल के अंदर गुज़ार सकें।

– 20% गिरफ़्तार लोग ज़मानत से कतराते हैं क्योंकि उनके पास घर नहीं है।

-18% लोगों ने माना कि वह जानबूझ कर खुद को ज़ख्मी करके अस्पताल में भर्ती रहते हैं।

पूँजीवाद के आदर्श और भारतीय पूँजीवादी बुद्धिजीवियों के मॉडल इंग्लैंड जैसे विकसित देशों के पास भी इन समस्याओं का कोई ठोस हल नहीं तो भारत जैसे विकासशील देशों के लिए तो यह सपना देखना भी आसमान छूने वाली बात है। पूँजीवादी व्यवस्था के अन्दर इन समस्याओं का हल असंभव है, क्योंकि पूँजीवाद ही इन बुराइयों का जन्मदाता है।

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त-सितम्‍बर 2016


 

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