लुधियाना में ‘स्त्री मज़दूर संगठन’ की शुरुआत

2 अक्टूबर 2016 को मज़दूर पुस्तकालय, लुधियाना में स्त्रियों की एक मीटिंग हुई। इस मीटिंग में समाज में स्त्रियों की बुरी हालत के बारे में और इस हालत को बदलने के लिए स्त्रियों को जागरूक व संगठित करने की ज़रूरत के बारे में बातचीत की गयी। मज़दूर स्त्रियों की हालत और भी बुरी है। घर और बाहर दोनों जगहों पर स्त्री मज़दूरों को बेहद भयंकर हालातों का सामना करना पड़ता है। मर्दों के बराबर या अधिक काम करने के बावजूद भी उन्हें पुरुष मज़दूरों से कम वेतन मिलता है। उनके लिए कारखानों व अन्य कार्यस्थलों पर आवश्यक सहूलतों की भी कमी है। वे अपने अधिकारों के लिए जागरूक भी नहीं हैं। जिसके चलते वे रोज़मर्रा अनेकों मुसीबतों का सामना करती हैं। जहाँ एक तरफ उनके श्रम की लूट होती है और उन्हें छेड़छाड़, गन्दी शब्दावली व गाली गालौज भी सहना पड़ता है। उन्हें बलात्कार जैसे अपराधों का बड़े स्तर पर सामना करना पड़ रहा है। पुरुष प्रधान मानसिकता ने उन्हें दूसरे दर्जे की नागरिक, पुरुषों की गुलाम बनाकर रखा हुआ है। हर रोज़ स्त्री विरोधी अपराध बढ़ते जा रहे हैं। फिल्मों, नाटकों, गीतों, विज्ञापनों आदि में स्त्रियों को वस्तु के रूप में पेश किया जाता है।

स्त्रियों को पूँजीवादी लूट के ख़ि‍लाफ़ लड़ना होगा। लूट आधारित समाज की पुरुष प्रधान मानसिकता से लड़ना होगा। स्त्री होने के कारण उनके साथ क़दम क़दम पर होने वाली धक्कीशाही के ख़ि‍लाफ़ जागरूक और संगठित होना होगा। यह ठीक है कि मज़दूर स्त्रियों को पुरुष मज़दूरों के कंधे से कंधा जोड़कर पूँजीवादी लूट के ख़ि‍लाफ़ लड़ना है। लेकिन मज़दूर स्त्रियों को उनके अधिकारों के लिए ज़रूरी तौर पर जागरूक और संगठित करने के लिए मज़दूर स्त्रियों के अलग संगठन बनाने होंगे।

इस विचार चर्चा के बाद लुधियाना में ‘स्त्री मज़दूर संगठन’ की शुरूआत का फ़ैसला किया गया। संयोजक का कार्यभार साथी बलजीत को सौंपा गया।

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2016


 

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