बलोचिस्तान के साथ हमदर्दी के पीछे छुपे अन्ध राष्ट्रवाद के इरादे

रोशन

जब से कश्मीर में हिंसा की ताज़ा घटनाएँ शुरू हुई हैं, तब से पाकिस्तान कश्मीर मसले पर लगातार बोलता रहा है। इसके साथ ही भारत सरकार भी ‘पाकिस्तान-पाकिस्तान’ के तोता रटन्त द्वारा कश्मीर में अपनी ओर से किये जुल्मों पर पर्दा डालने की पूरी कोशिश करती रही है। अन्ध राष्ट्रवाद की इस राजनीति में उस समय नया मोड़ आया जब मोदी ने पाकिस्तान पर जवाबी हमला करते हुए बलोचिस्तान का मसला छेड़ा। 15 अगस्त को लाल कि़ले के बाद मोदी ने भी बलोचिस्तान पर बयान दिया। इस बयान में बलोचिस्तान, मकबूजा कश्मीर और गिलगिट में लोगों के चल रहे विरोध और उनके ऊपर पाकिस्तानी हुकूमत द्वारा किये जा रहे जुल्मों की बात की और इसको अन्तरराष्ट्रीय मुद्दा बनाने की बात कही। चैनलों ने इतिहासकारी और खोजबीन करके पाकिस्तान की ओर से बलोचिस्तान में किये जा रहे ज़ुल्मों की तफ़सीलों के ढेर लगा दिये। ‘देशभक्त’ लेखकों ने अख़बारों के पन्ने पाकिस्तान की ओर से बलोचिस्तान पर धोखे के साथ क़ब्ज़ा करने और बलोचिस्तान पर हो जुल्म के साथ भर दिये। अनेकों मामलों में तथ्यों के पक्ष सही होने के बावजूद ये रिपोर्टें सच्चाई सामने लाने के लिए नहीं बल्कि सच्चाई पर पर्दा डालने का काम करती रही हैं। भारतीय हुक्मरानों द्वारा बलोचिस्तान का राग छेड़ने के पीछे असल मक़सद क्या है – हम यहाँ उसकी चर्चा करेंगे।

पहले संक्षेप में बलोचिस्तान के इतिहास पर भी चर्चा ज़रूरी है। बलोचिस्तान, पाकिस्तान के कुल इलाक़े का 43 फ़ीसदी हिस्सा है और 1,47,000 वर्ग मील इलाक़े में फैला हुआ है। आबादी के हिसाब के अनुसार पाकिस्तान की कुल आबादी में से सिर्फ़ 5 फ़ीसदी लोग ही यहाँ के निवासी हैं। 1947 में बर्तानवी गुलामी से मुक्ति के समय बलोचिस्तान एक अलग रियासत थी। आज़ादी से महज़ दस दिन पहले 4 अगस्त, 1947 को मुहम्मद अली जिनाह ने यह हामी भरी थी कि “कालात (अब बलोचिस्तान) 5 अगस्त, 1947 को आज़ाद हो जायेगा और उसका सन 1838 वाला रुतबा दे दिया जायेगा और पड़ोसियों के साथ दोस्ताना सम्बन्ध बनाये जायेंगे।” पर बाद में 27 मार्च 1948 को बलोचिस्तान पर हल्ला बोलकर पूरे खित्ते को पाकिस्तान ने अपने क़ब्ज़े में ले लिया। बलोचिस्तान की आवाम तब से लगातार 1948, 1958-59, 1962-63, और 1973-74 से अपने हक़ों की रक्षा और ख़ुदमुख्त़ारी के लिए पाकिस्तान के साथ युद्ध लड़ती आ रही है। सबसे अधिक ख़ूनी संघर्ष, जो अब भी जारी है, 2003 में शुरू हुआ था। पाकिस्तानी फ़ौज की ओर से वहाँ पर क़त्लेआम, ज़बर, गिरफ़्तारियाँ और लापता किये जाने की काफ़ी लम्बी गाथाएँ हैं।

बलोचिस्तान के इतिहास के अनुसार तो मोदी की टिप्पणी या मीडिया की बयानबाज़ी सही है पर इसका मकसद अलग है। इसका मकसद पाकिस्तान की ओर से किये गये ज़ुल्मों की चर्चा छेड़कर अपनी ओर से कश्मीर पर किये जा रहे ज़ुल्मों को ढँकने की कोशिश करना है। असल में भारत और पाकिस्तान में कोई ज़्यादा फ़र्क़ नहीं है। बलोचिस्तान और कश्मीर की कहानी में काफ़ी मेल है। पाकिस्तान जो कुछ बलोचिस्तान में कर रहा है वही भारत कश्मीर में कर रहा है। भारत बलोचिस्तान पर हो रहे ज़ुल्मों के ि‍ख़लाफ़ बोलता है पर अपनी ओर से किये जा रहे कश्मीर पर ज़बर को जायज़ बताता है। इसी तर्ज़ पर पाकिस्तान कश्मीर में भारतीय हुकूमत की ओर से किये जा रहे ज़ुल्म के ि‍ख़लाफ़ बोलता है पर ख़ुद अपनी ओर से बलोचिस्तान में किये जा रहे जुल्म को जायज़ मानता है। भारतीय मीडिया के लिए बलोचिस्तान में आज़ादी के नारे सही हैं पर कश्मीर (भारत) में लगे नारे ‘देशद्रोह’ हैं और बिल्कुल यही बात पाकिस्तान के लिए भी सच है। इस तरह मोदी सरकार और देशभक्त मीडिया की ओर से बलोचिस्तान के बारे में बोलने का मतलब है कश्मीर में अपनी ओर से किये जा रहे गुनाहों पर पर्दा डालना, बिल्कुल उसी तरह जैसे पाकिस्तान कश्मीर पर हो रहे ज़बर के ि‍ख़लाफ़ शोर मचाकर अपनी ओर से बलोचिस्तान, मकबूजा कश्मीर और गिलगिट में किये कुकर्मों को ढँकना चाहता है। दोनों देशों के हुक्मरान एक-दूसरे की ओर से किये जा रहे ज़बर को ढँकते हुए अपनी ओर से किये जा रहे ज़बर की जवाबदेही से बचना चाहते हैं।

भारत और पाकिस्तान में एक साँझा पक्ष यह है कि दोनों देश अपने आप में कोई राष्ट्र नहीं हैं बल्कि भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयतओं के समूह हैं। दोनों देशों में लोगों को आपस में बाँधकर रखने वाली साँझी देश स्तरीय राजनीतिक व्यवस्था है। यह राजनीतिक व्यवस्था मुट्ठी भर लुटेरों के हाथ, बहुसंख्यक आबादी की लूट, ज़बर का ही साधन है, फिर भी यह राजनीतिक व्यवस्था अपने देश के लोगों में एक अन्धा राष्ट्रवाद पैदा करके एक सहमति हासिल करने की कोशिश में रहता है। पर यह राष्ट्रवाद एकता में से पैदा नहीं होता बल्कि दूसरे देश के प्रति नफ़रत में से पैदा होता है। “हिन्दुस्तान ज़िन्दाबाद” का नारा किसी एकता, साँझ में से उतना ज़ज़्बा हासिल नहीं करता जितना पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे में से हासिल करता है। यह बात पाकिस्तान के बारे में भी सच है। इस तरह दोनों देशों के हुक्मरान एक-दूसरे के साथ नफ़रत जगाकर एक मरीयल कि़स्म का अन्धा राष्ट्र बनाने में कामयाब रहे हैं। इसी राष्ट्रवाद के पर्दे के पीछे भारत कश्मीर और पूर्वी भारत के राष्ट्रों को दबाये रखने में अपने लोगों की सहमति हासिल करता है। इसी तरह भारत विरोधी नफ़रत के साथ पाकिस्तान के हुक्मरान बलोचिस्तान, मकबूजा कश्मीर और गिलगिट में किये जा रहे ज़बर के लिए बाक़ी देशों से सहमति हासिल करता है। इसी कारण भारत कश्मीर में जो कुछ भी होता है उसको पाकिस्तानी दख़लअन्दाज़ी के सिर मड़ देता है और पाकिस्तान बलोचिस्तान की घटनाओं को भारतीय हिमायत के सिर मड़ देता है। अगर “पाकिस्तान मुर्दाबाद” का नारा ना हो तो हिन्दुस्तान के लोगों के मनों की खोखली एकता, राष्ट्रवाद बिखर जायेगा, बिल्कुल उसी तरह जैसे “भारत मुर्दाबाद” के नारे के बिना पाकिस्तान का राष्ट्रवाद भी बिखर जायेगा। इस तरह भारत और पाकिस्तान के बीच का तनाव दोनों देशों के हुक्मरानों के लिए फ़ायदेमन्द साबित हो रहा है।

दूसरा नुक्ता जिस पर बात किये जाने की ज़रूरत है, वह है, जिस तरह ये दोनों देश एक-दूसरे के अन्दरूनी संकट को साज़िशों, अलगाववादियों की मदद द्वारा बढ़ावा देते हैं। पाकिस्तान कश्मीर मसले में अन्दर से कैसे कुछ अलगाववादी ग्रूपों को आर्थिक, हथियारों और प्रशिक्षण के रूप में मदद कर रहा है, उसकी अकसर ही चर्चा चलती रहती है। 1980-1991 के आतंकवाद के शिखर वाले दौर में पाकिस्तान ने कश्मीर में अलगाववादियों को हथियारों का प्रशिक्षण देने के लिए सरहद के साथ कैम्प लगाये हुए हैं। पर बिल्कुल इसी तर्ज़ पर जो काम भारत कर रहा है उसकी चर्चा नाममात्र ही होती है।

भारत पाकिस्तान में आतंकवादियों और विद्रोही राष्ट्रीयतों की मदद द्वारा पाकिस्तान के अन्दरूनी संकट को और तीखा करके उसको कमज़ोर करने की नीति पर चल रहा है। इस नीति पर 30 मई 2014 को प्रधानमन्त्री मोदी का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने अजीत दोवाल ख़ासतौर पर चल रहा है। इस नीति पर वह 2004 से चल रहा है जब वह आईबी में था। इस सम्बन्ध में अंग्रेज़ी मैगज़ीन ‘फ़्रण्टलाइन’ (13 नवम्बर 2015) में ए.जी. नूरानी के छपे एक लेख (द दोवाल डोकट्रिन) में से कुछ हिस्सों का अनुवाद कर रहे हैं।

फ़रवरी 2014 में दोवाल ने कहा : “पाकिस्तान वह पड़ोसी है जो लगातार हमें ज़ख्म देता है। अगर हमारी घरेलू हालत बहुत कमज़ोर हो गयी तो हम इसकाे कैसे हल करेंगे। हमें एक हल ढूँढ़ना पड़ेगा जो लम्बे समय के लिए, टिकाऊ और सम्भव हो। दूसरा है समस्या को परिभाषित करना। इसके लिए हमें समझना होगा कि आतंकवाद क्या है। आमतौर पर जब हम आतंकवाद के बारे में बात करते हैं तो यह कहा जाता है कि यह मूर्खाना, अमानवीय है आदि। हाँ यह है, पर ये दाव-पेंच के मसले हैं। असल में आतंकवादी विचारधारात्मक या राजनीतिक उच्चता हासिल करने का एक दाव-पेंच है।

“तो पाकिस्तान के साथ निपटने की क्या राह है? हम अपने दुश्मन के साथ तीन तरीक़ों से निपटेंगे। पहला है कि रक्षात्मक… मतलब किसी को अन्दर आने से रोकना। दूसरा है रक्षात्मक हमला। अपने आप को बचाने के लिए हम उस जगह जाते हैं जहाँ हमला हो रहा है। हम अब रक्षात्मक पोजीशन में हैं। आख़ि‍री है हमला पुजीशन। जब हम रक्षात्मक हमले की पुजीशन में आ गये तो हम पाकिस्तान की कमज़ोरियों पर काम करेंगे। ये आर्थिक हो सकती हैं, अन्दरूनी हो सकती हैं, राजनीतिक हो सकती हैं।

“मैं ज़्यादा विस्तार में नहीं बताऊँगा पर हमें रक्षात्मक पुजीशन से आगे बढ़ना होगा।…“पाकिस्तान की कमज़ोरियाँ हमसे कई गुणा बड़ी हैं। एक बार उन्होंने जान लिया कि भारत रक्षात्मक पुजीशन से रक्षात्मक हमले पर आ गया है तो वह समझ लेंगे कि हम उनके बस की बात नहीं।” फिर वह पंक्ति आती है जो काफ़ी चर्चा में रही है, “आप एक मुम्बई (पर हमला) कर सकते हो पर आप बलोचिस्तान हार सकते हो।” यह आँखें खोलने वाला खुलासा है। यह दोवाल के सिद्धान्त का पूरी स्पष्टता के साथ केन्द्रीय तथ्य है।

आगे, “हमें पाकिस्तान की ज़रूरत नहीं। पर अगर पाकिस्तान आतंकवाद को अपनी सत्ता की नीति के एक औज़ार के रूप में नहीं त्यागता तो उसको तालीबान के साथ लड़ने दो। दूसरा मसला आतंकवादियों के प्रति व्यवहार का है। तीसरा मसला उनको हथियार, पैसा, मानवीय ताक़त देने से रोकने का है। … अगर उनका 500 करोड़ का बज़ट है तो हम 1800 कर सकते हैं। वह भाड़े के सिपाही हैं। क्या आप सोचते हो कि वह महान जरनैल हैं। नहीं, इसलिए हमें गुप्त क़दम उठाने चाहिए। हम एक बड़ा देश हैं इसलिए हम उनको पैसे की ताक़त के साथ जीतेंगे। इसलिए हमें मुस्लिम यूनियनों में काम करना चाहिए, उनकी भी यही इच्छा है। अन्त में, आओ एक अहम क़दम उठायें। उच्च तकनीक की ओर बढ़ें और उत्तर में जासूसी द्वारा की जाने वाली कारवाईयों की तैयारी करें।”

उचित प्रतिहमले द्वारा ही भारत मुम्बई जैसे किसी और हमले का जवाब नहीं दे सकता है। पर दोवाल के पाकिस्तान का बलोचिस्तान हार जाने की बात करने का युद्ध के बिना और क्या मतलब है? दो ताज़ा घटनाओं की चर्चा यहाँ करना प्रासंगिक है। ‘द इण्डियन एक्सप्रेस’ (23 सितम्बर, 2015) ने बताया कि भारतीय फ़ौज ने ‘तकनीकी सेवा डिवीजन’ (टीएसडी – भारतीय फ़ौज का ख़ूफि़या विंग) सम्बन्धी कुछ दस्तावेज़ फ़ौज मुखी वी के सिंह का कार्यकाल ख़त्म होने से पहले तबाह कर दिये थे। सुशान्त सिंह लिखते हैं, “रिपोर्टों के अनुसार जाँच (जो उसकी कार्यकाल ख़त्म होने के बाद शुरू हुई थी) से पता लगा है कि टीएसडी ने दावा किया कि उसने पराये देश में कम-से-कम आठ ख़ूफि़या आॅपरेशन चलाये हैं। टीएसडी ने यह भी दावा किया है कि अक्टूबर और नवम्बर 2011 में इसने पड़ोसी मुल्क़ के राज्य में अलगाववादी मुखी को भर्ती करने के लिए सीक्रेट सर्विस फ़ण्डों में से पैसे दिये हैं। इस अन्दाजे़ का मज़बूत आधार है कि “विदेशी मुल्क़” पाकिस्तान और “राज्य” बलोचिस्तान था।

यह बात अक्टूबर, 2015 में ज़ाहिर हुई जब बीएलओ (बलोचिस्तान लिबरेशन आॅर्गनाइज़ेशन) के नुमाइन्देे ने दिल्ली प्रेस काॅन्फ्रं़ेस में शिरक़त की और जलावतन किये आगू का बयान पढ़कर सुनाया। उसकी प्रेस काॅन्फ्रंे़स की रिपोर्ट दिलचस्प है जो (‘द हिन्दू’ अख़बार के) दो पत्रकारों, कलोल भट्टाचार्य और सुहासनी हैदर, द्वारा मिली है। वह लिखते हैं :

“पाकिस्तान के क़ब्ज़े के बीच कश्मीर में कथित मानवीय हक़ों की उल्लंघना की बात करने के पीछे, भारत बलोचिस्तान के मामले में सख़्त कदम लेने की तैयारी कर रहा है, यह दक्षिणी ब्लाॅक की पाकिस्तान के बारे में अतीत की नीति से प्रमुख रूप में दूर हटना था।

“इस नई नीति की बात 4 अक्टूबर 2015 को तब उजागर हुई जब बीएलओ (बलोचिस्तान लिबरेशन आॅर्गनाइज़ेशन) के नुमाइन्देे बालाच पारदिलाई ने एक सभा को सम्बोधित किया और बीएलओ के जलावतन किये आगू नवाबजादा हाइबियार मरी का बयान पढ़ा।

“पाकिस्तान के विरुद्ध बलोचिस्तान की आज़ादी के लिए लड़ने वाली बीएलओ ने ‘द हिन्दू’ को दिल्ली में अपने नुमाइन्देे के बारे में बताया। यह पारदिलाई था जो 2009 से दिल्ली में रह रहा था और जिसके साथ नवाबजादा मरी की ओर से एक प्रेस काॅन्फ्रंे़स करके उसका बयान जारी करने के लिए सम्पर्क किया था।

“भले नई नीति के बारे में कुछ भी नहीं बताया गया, पर अधिकारियों ने ‘द हिन्दू’ को बताया कि जब भारत जम्मू कश्मीर के मसले को लेकर पाकिस्तान की ओर से दोष लगाये जाने का सामना करेगा तो पाकिस्तान के क़ब्ज़े में कश्मीर और बलोचिस्तान का ज़्यादा से ज़्यादा प्रयोग किया जायेगा।…

“पारदिलाई ने ‘द हिन्दू’ को बताया कि वह दिल्ली में सुरक्षित महसूस कर रहा है और उसको आर.एस.एन. सिंह की अगवाई वाले भाजपा के एक हिस्से और भगत सिंह क्रान्ति सेना के तजिन्दर सिंह की मदद मिल रही है।” (‘द हिन्दू’, 8 अक्टूबर, 2015)

इससे साफ़ होता है कि भारत काफ़ी समय से ही बलोचिस्तान पर साजिशी ढंग से काम कर रहा है जिसमें पाकिस्तान पर हमले की नीति से बीएलओ के बागि़यों की मदद करना है। इसी का नतीजा मोदी का 15 अगस्त को दिया भाषण है। अजीत दोवाल की बनायी जिस नीति पर चलकर भारत पाकिस्तान के बीच के अलगाववादी ग्रूपों, आंतकवादियों को इस्तेमाल करके पाकिस्तान को कमज़ोर करना चाहता है वह नीति अमेरिका से उधारी ली गयी है। इसी नीति पर चलते हुए अमेरिका ने मध्यपूर्व, लीबिया, इराक़, मिस्त्र आदि में राज्य पल्ट करवाये हैं, अफ़गानिस्तान में मुज़ाहिदीनों को सीआईए द्वारा ट्रेनिंग देकर आम लोगों का ख़ून बहाने में लगाया गया है और अब इस नीति द्वारा ही सीरिया युद्ध में अमेरिका द्वारा असद विरोधी सीरियाई विद्रोहियों को हथियार, पैसा, ट्रेनिंग देकर मदद की जा रही है। इस नीति पर चलकर भारत भी पाकिस्तान के विरुद्ध एक युद्ध थोप रहा है जिसका परिणामस्वरूप अनेकों बेगुनाह आम लोगों का ख़ून बहेगा। असल में भारत और पाकिस्तान दोनों इसी नीति पर चल रहे हैं जिसके साथ कश्मीर, बलोचिस्तान, गिलगिट जैसे अशान्त इलाक़ों के बिना बाक़ी हिस्से के लोग भी प्रभावित हो रहे हैं।

भारत और कश्मीरी लोगों की आत्मनिर्णय का वादा पूरा किये जाने की माँग और बलोचिस्तानी लोगों की आज़ादी की माँगें हक़ की माँगें हैं जिनका समर्थन किया जाना चाहिए। पर इस समर्थन का तरीक़ा वह नहीं है जिस तरह भारत बलोचिस्तान के लड़ाकों या पाकिस्तान कश्मीर के बीच के अलगाववादी का कर रहा है। यह मदद इन इलाक़ों के मसले को हल करने की जगह और उलझा रही है जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों आम लोगों की जान जा रही है और करोड़ों की ज़िन्दगी बर्बाद हो रही है। अगर दोनों देशों का मक़सद सचमुच ही लोगों की मदद करना होता तो दोनों देश अपने क़ब्ज़े के इलाक़े के लोगों की मदद करने और उनके हक़ देने और शान्ति के लिए योग्य क़दम उठाते।

पूरे मसले से एक बात तो स्पष्ट है कि भारत और पाकिस्तान दोनों देश अन्ध राष्ट्रवाद और दूसरे के विरुद्ध नफ़रत को भड़काकर दो कामों के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। पहला, दोनों की ओर से अपने देश में आज़ादी के लिए लड़ रहे राष्ट्रों पर किये जा रहे जुल्म पर पर्दा डालने के लिए। दूसरा, एक-दूसरे के अन्दर हालात तनावपूर्ण बनाने और ख़ूनी लड़ाइयाँ और युद्ध भड़काने के लिए। इस सब का भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के आम मेहनतकश लोगों को ही नुक़सान हो रहा है, दोनों देशों के हुक्मरान वर्गों को फ़ायदा हो रहा है। इसके साथ दोनों देशों के हुक्मरान अपने ज़ुर्मों को दूसरे देश के सिर मड़कर ना सिर्फ़ अपने आप को बेकसूर साबित करने की कोशिश कर रहे हैं बल्कि दोनों देशों के श्रमिक लोगों के बीच नफ़रत की दीवारें भी बना रहे हैं। इस मामले में भारत और पाकिस्तान के हुक्मरान एक हैं। इससे लड़ने के लिए भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच अन्धे, खोखले राष्ट्रवाद की पोल खोलना बेहद ज़रूरी है और उनको राष्ट्रीय एकता की जगह वर्गीय एकता के आधार पर एकजुट किये जाने की ज़रूरत है।

 

 

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2017


 

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