कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर कार्यक्रम

8 मार्च को अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस के अवसर पर कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में स्त्री मुक्ति लीग की ओर से एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के कला संकाय के प्रथम वर्ष के छात्रों ने अपनी पेंटिंग्स के माध्यम से आज समाज में स्त्रियों की दोयम दर्जे की नागरिकता, उनके सपने और मुक्ति के लिए उनकी लालसा को दिखाया। सभा की शुरुआत “हॉकी खेलती लड़कियाँ” कविता के पाठ से की गयी। आज देशभर की आधी आबादी दोहरी गुलामी का शिकार है। कहीं वो दहेज के लिए जलाई जा रही है, कहीं कारख़ानों में खप रही है तो कहीं दफ़्तरों में, तो कहीं चूल्हे में ख़ुद को झोंक देने के ि‍लए मजबूर है। अपने वजूद से बेख़बर पितृसत्ता और पूँजीवाद की गुलामी के लिए पिस रही है। साल दर साल महिला विरोधी अपराध की घटनाओं की तादाद बढ़ती जा रही है। ख़ासकर आज का दौर अगर देखा जाये जब हर ओर फासीवादी हमले हो रहे है तो महिलाएँ, अल्पसंख्यक, दलित और मज़दूर वर्ग इसका पहले शिकार हो रहे हैं। यह कोई अप्रत्याशित बात नहीं है कि आवाज़ उठाने पर दिल्ली विश्वविद्यालय की एक छात्रा को फासीवादियों द्वारा बलात्कार की धमकी दी जा रही है। सभा में अपनी बात रखते हुए नौजवान भारत सभा के रमेश ने कहा कि स्त्रियों की मुक्ति का सवाल इस व्यवस्था को बदलने के सवाल से जुड़ा है और इसके लिए ‍ लड़ने की ज़िम्मेदारी हर इंसाफ़पसन्द, युवा और नागरिक पर है। कोई भी शोषण मुक्त समाज बनाने का प्रोजेक्ट बिना स्त्रियों की भागीदारी के पूरा नहीं हो सकता। साथी अजय ने सावित्रीबाई फुले के संघर्ष के बारे में बात रखते हुए उनकी 120वीं पुण्यतिथि, 10 मार्च, पर उन्हें याद किया। देश का पहला महिला स्कूल खोलने वाली और ताउम्र औरतों और दलितों के हक़ के लिए लड़ने वाली इस महिला के बारे में कोई मीडिया बात नहीं करता। जिस मीडिया ने अन्तरराष्ट्रीय स्त्री दिवस पर तमाम तरह के उत्पाद बेचे, उसने उस महिला का ज़िक्र तक नहीं किया जिसने लड़कियों को पढ़ाने की ख़ातिर समाज के ज़ुल्म सहे। इसके अलावा विश्वविद्यालय छात्र निर्मल और यश ने भी अपनी बात रखी। कविता, आशुतोष, रोबिन ने कविता पाठ भी किया। कार्यक्रम का अन्त नारो के साथ, एक बराबरी का समाज बनाने के संकल्प के साथ हुआ।

 

 

मज़दूर बिगुल, मार्च 2017


 

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