आइसिन ऑटोमोटिव, रोहतक के मज़दूरों का जुझारू संघर्ष जारी 
ज़ोर है कितना दमन में तेरे, देख लिया है, देखेंगे!

 बिगुल संवाददाता

विगत 3 मई से जारी आइसिन कम्पनी के मज़दूरों के संघर्ष को यह रिपोर्ट लिखे जाने तक 45 दिन हो चुके हैं। किन्तु कम्पनी प्रबन्धन, श्रम विभाग, स्थानीय प्रशासन से लेकर हरियाणा की भाजपा सरकार के कानों पर जूँ तक नहीं रेंग रही है। अपनी जायज माँगों के साथ संघर्षरत आइसिन मज़दूरों का जुझारू संघर्ष आइसिन ऑटोमोटिव हरियाणा मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में तमाम तरह के दमन, जेल, केस-मुकदमों के बाद भी जारी है। ज्ञात हो आइसिन ऑटोमोटिव हरियाणा प्राइवेट लिमिटेड नामक कम्पनी जोकि एक जापानी मालिकाने वाली कम्पनी है, आईएमटी रोहतक, हरियाणा में स्थित है। यह कम्पनी ऑटोमोबाइल सेक्टर की एक वेण्डर कम्पनी है जोकि ख़ासतौर पर मारुती, होण्डा, टोयोटा इत्यादि कम्पनियों हेतु ऑटो पार्ट जैसेकि डोर लोक, इनडोर-आउटडोर हैण्डल इत्यादि बनाने का काम करती है। अत्यधिक कार्यभार (वर्कलोड), बेहद कम मज़दूरी, मैनेजमेण्ट द्वारा गाली-गलौच और बुरा व्यवहार, श्रम क़ानूनों का हनन, स्त्री श्रमिकों के साथ छेड़छाड़ की घटनाएँ आदि वे मुद्दे थे, जिन्होंने आइसिन के मज़दूरों को एकजुट होने की ज़रूरत का अहसास कराया। मज़दूरों ने धीरे-धीरे आपसी संवाद स्थापित किया और ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 के तहत श्रम विभाग में यूनियन पंजीकरण की फ़ाइल लगा दी। थोड़ा ही समय हुआ था कि ख़ुद श्रम विभाग के द्वारा मैनेजमेण्ट के कानों तक यह ख़बर पहुँचाई गयी और बड़े ही शातिराना अन्दाज में मैनेजमेण्ट श्रम विभाग से साँठ-गाँठ करके पंजीकरण फ़ाइल को रद्द कराने में जुट गयी। इसी प्रक्रिया में 3 मई को कम्पनी ने 20 श्रमिकों को निकालने और अनुशासन के नाम पर एक अण्डरटेकिंग फ़ॉर्म नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर दिया। यही नहीं उस दिन कम्पनी ने श्रमिकों के लिए हर रोज़ जाने वाली गाड़ी तक नहीं भेजी। जैसे-तैसे श्रमिक कम्पनी गेट तक पहुँचे तो उन्हें कम्पनी के तानाशाहीपूर्ण रवैये का पता चला। कम्पनी में कार्यरत स्थाई, ट्रेनी और कैजुअल समेत क़रीब 700 श्रमिकों ने कम्पनी के इस नाजायज़ रुख़ को मानने से इंकार कर दिया और कम्पनी गेट पर ही अपने संघर्ष का खूँटा गाड़कर धरने पर बैठ गये। मैनेजमेण्ट ने कोर्ट से पहले ही 7 नेतृत्वकारी श्रमिकों के लिए 400 मीटर का ‘स्टे ऑर्डर’ ले लिया था जिसके कारण उन्हें आईएमटी के मुख्य द्वार पर ही बैठना पड़ा।

श्रमिकों के धरने पर बैठते ही श्रम विभाग, स्थानीय प्रशासन और सरकार तक के नुमाइन्दे हरक़त में आ गये। सभी के सभी कम्पनी मैनेजमेण्ट की भाषा बोलने लगे। मज़दूरों को तरह-तरह से डराने-धमकाने और दबाने के प्रयास किये जाने लगे। अपने जायज अधिकारों के लिए धरनारत श्रमिकों के लिए बार-बार गुहार लगाये जाने के बाद भी प्रशासन की तरफ़ से मई-जून की तपती गर्मी में भी टेण्ट-तम्बू लगाने तक की अनुमति नहीं दी गयी, इतना ही नहीं महिला श्रमिकों तक के लिए मोबाइल शौचालय का प्रबन्ध नहीं किया गया, जबकि धरनास्थल के एकदम नज़दीक पुलिस और कम्पनी बाउंसरों के लिए कूलर की ठण्डी हवा के साथ टेण्ट तुरन्त लग गया तथा कम्पनी के अन्दर मोबाइल शौचालय भी नगर पालिका के द्वारा तुरन्त खड़े कर दिये गये।
आइसिन ऑटोमोटिव हरियाणा मज़दूर यूनियन के प्रधान जसबीर सिंह महासचिव अनिल और अन्य नेतृत्वकारी साथियों — उमेश, गोपाल, रणजीत, कैलाश, सोनू प्रजापति, मनजीत तथा अन्य मज़दूर साथियों ने बताया कि श्रम विभाग की मध्यस्थता में प्रबन्धन से बार-बार श्रमिक पक्ष की वार्त्ता हुई, लेकिन समझौते की बजाय श्रम विभाग और कम्पनी प्रबन्धन के द्वारा गुमराह ही किया जाता रहा। संघर्ष के दौरान इस बात का भली-भाँति आभास हो गया है कि देश का श्रम विभाग, प्रशासन और सरकार तक एक जापानी कम्पनी प्रबन्धन के अधीन काम कर रहे हैं। स्थानीय विधायक, सांसद से लेकर मुख्यमन्त्री, राज्यपाल, प्रधानमन्त्री, राष्ट्रपति आदि तमाम नेताओं-मन्त्रियों को लिखने, गुहार लगाने के बाद भी कहीं भी सुनवाई नहीं हुई। जैसे कि यहाँ पर देश के संविधान की नहीं, बल्कि जापानी मालिक की अधिक चलती हो। कहीं से भी न्याय नहीं मिलने के कारण श्रमिकों ने दो बार सांकेतिक भूख हड़ताल की और तीन दिन तक क्रमिक भूख हड़ताल भी की, किन्तु किसी के भी कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी। 30 मई को श्रमिकों ने कम्पनी गेट पर आमरण अनशन की शुरुआत भी की जो कि 2 दिन ही चलने दिया गया क्योंकि अगले ही दिन यानी 31 मई को कम्पनी को कोर्ट से सभी श्रमिकों को चहारदीवारी से निश्चित दूरी पर दूर रखने का स्टे ऑर्डर मिल गया। पिछले 29 दिन तक प्रबन्धन द्वारा की जा रही ज़्यादतियों के प्रति अन्धा-बहरा बना बैठा प्रशासन तुरन्त हरक़त में आ गया। 29वें दिन पुलिस द्वारा मारपीट और लाठीचार्ज करके परिवारजनों, मज़दूर कार्यकर्ताओं समेत 425 को गिरफ़्तार कर लिया गया। सभी को संगीन धाराएँ लगाकर रोहतक की सुनारिया जेल व झज्जर जेल में ठूँस दिया गया। जेल जाने वालों में बिगुल मज़दूर दस्ता तथा ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन के मज़दूर कार्यकर्ता भी शामिल थे। जेल जाने के बाद भी मज़दूरों ने अपना हौसला नहीं खोया तथा बाहर आकर संघर्ष को और भी तेज़ करने का ऐलान किया। श्रमिकों के जेल में रहते हुए रोहतक शहर और राजधानी दिल्ली के जन्तर-मन्तर पर विभिन्न जन संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किये। जनदबाव के कारण सभी 425 गिरफ़्तारों को निजी मुचलके पर जमानत पर रिहा करना पड़ा। 6 जून तक सभी श्रमिक जेल से बाहर आ गये और अगले ही दिन रोहतक शहर में विभिन्न जन संगठनों के साथ मिलकर विशाल प्रदर्शन का आयोजन किया गया। 7 जून को ही प्रदेश-भर में आइसिन के मज़दूरों के समर्थन में हरियाणा राज्य-भर के जनसंगठनों ने विरोध प्रदर्शन किये। 9 जून को आइसिन के श्रमिक पुनः आईएमटी पहुँचे तथा कोर्ट द्वारा दिये गये स्टे के कारण कम्पनी से थोड़ी दूरी पर आर्इएमटी, रोहतक के मुख्य द्वार पर बैठ गये। यह रिपोर्ट लिखे जाने तक आइसिन के मज़दूरों का संघर्ष अनथक रूप से अब भी जारी है। तमाम कठिनाइयों का मुक़ाबला मज़दूर एकजुट होकर कर रहे हैं। मैनेजमेण्ट के तमाम हथकण्डे, पुलिस दमन, प्रशासन की बेरुखी मज़दूरों के हौसले का बाल भी बाँका नहीं कर पाये हैं। कम्पनी मैनेजमेण्ट अब भी अपने अड़ियल रुख़ पर क़ायम है तथा समझौते की टेबिल पर नहीं आ रही है, किन्तु मज़दूर भी हार मानने को क़तई तैयार नहीं हैं।
आन्दोलन में शुरू से ही बिगुल मज़दूर दस्ता व ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन के साथी लगातार मौजूद हैं। हर क़दम पर न केवल मज़दूरों के संघर्ष में भागीदारी जारी है, बल्कि सकर्मक हस्तक्षेप भी हो रहा है। आगे हम विस्तार से आइसिन के मज़दूरों के आन्दोलन में मौजूद विभिन्न प्रवृत्तियों और रुझानों पर विस्तारपूर्वक अपनी बात रखेंगे। यदि ऑटोमोबाइल उद्योग के व्यापक परिप्रेक्ष्य में आइसिन मज़दूरों के संघर्ष को देखा जाये तो यह बात आसानी से समझ में आ सकती है कि मज़दूरों की व्यापक सेक्टरगत एकता के बग़ैर एक कम्पनी/फ़ैक्टरी के स्तर पर मज़दूरों के द्वारा अपने संघर्ष में जीत हासिल करना ख़ासा मुश्किल काम है। फ़ैक्टरी के स्तर पर व्यापक एकजुटता के बावजूद भी मालिक वर्ग को आसानी से नहीं झुकाया जा सकता। इसका एक प्रमुख कारण तो यही है कि पूँजीपति वर्ग ने आज उत्पादन को एक फ़ैक्टरी में करने कि बजाय बिखरा दिया है। एक ही प्रकार का माल विभिन्न यानी एक से ज़्यादा वेण्डर कम्पनियाँ उपलब्ध करा देती हैं या फ़िर एक ही मालिक की कई-कई वेण्डर कम्पनियाँ अलग-अलग जगह पर चलती हैं। जैसेकि आइसिन कम्पनी ही वैश्विक स्तर पर काम करती है तथा पूरी दुनिया में 190 से भी ज़्यादा कम्पनियाँ चलाती है। इसी कारण से मज़दूर अपने संघर्ष के दौरान मालिक के मुनाफ़े के चक्के को जाम नहीं कर पाते। दूसरा मालिक वर्ग आपस में अपने “बुरे वक़्त” में एक-दूसरे का साथ भी दे देते हैं जैसे आइसिन के मालिक और कम्पनी की मैनेजमेण्ट का साथ मारुती और मिण्डा कम्पनी की मैनेजमेण्ट समेत अन्यों ने मदद करके दिया। किन्तु मज़दूर वर्ग एक-दूसरे के संघर्ष में मुस्तैदी के साथ मदद नहीं कर पा रहे हैं या कहिए इस स्तर तक अभी वर्ग चेतना का विकास नहीं हो सका है। क्योंकि हीरो, मारुती, होण्डा, अस्ति, श्रीराम पिस्टन, ओमैक्स, मार्क एक्झोस्त आदि-आदि तमाम कम्पनियों के संघर्षों के माँगपत्रों की विभिन्न माँगें साझा होने के बावजूद इनका संघर्ष साझा नहीं हो सका। बेशक इन कम्पनियों के संघर्ष अलग-अलग समय में उठे हों, परन्तु यह बात आज ऑटोमोबाइल सेक्टर में काम करने वाला हरेक कामगार समझता है कि अत्यधिक वर्कलोड, स्थाई, ट्रेनी, कैजुअल, ठेका के नाम पर मज़दूरों का बँटवारा और शोषण, श्रम क़ानूनों का खुला उल्लंघन, मज़दूरों को निचोड़ डालने की मालिक की चाहत पूरे ऑटोमोबाइल सेक्टर की तमाम कम्पनियों की आम परिघटना बन चुकी है। तीसरा उदारीकरण-निजीकरण के मौजूदा दौर में श्रम विभाग, स्थानीय प्रशासन से लेकर सरकार तक मालिक और पूँजीपति वर्ग के सामने दण्डवत खड़े रहते हैं। इन्हीं सब कारणों से व्यापक सेक्टरगत एकता के बिना आज काम नहीं चल सकता। पहले जहाँ एक ही छत के नीचे पूरा उत्पाद बनता था तथा ‘असेम्बलिंग’ भी वहीं होती थी, वहीं आज पूरा उत्पाद एक जगह बनने की बजाय टुकड़ों-टुकड़ों में बनता है तथा ‘असेम्बलिंग’ भी कहीं और होती है। इसीलिए आज सेक्टरगत यूनियनें हमारे संघर्ष को ज़्यादा कारगर ढंग से लड़ पायेंगी तथा इसका मतलब यह भी क़तई नहीं है कि हम फ़ैक्टरी के आधार पर यूनियन नहीं बनायें, बल्कि ज़रूर बनायें, बल्कि दोनों ही प्रक्रियाओं पर ही साथ-साथ ध्यान दें, क्योंकि आगे चलकर सेक्टरगत यूनियन हमारे स्थानीय संघर्षों में मददगार ही साबित होंगी। फ़ैक्टरीगत यूनियनों के साथ-साथ गुड़गाँव, मानेसर, धारूहेड़ा, बावल, खुशखेड़ा, भिवाड़ी, टपुकड़ा, अलवर से लेकर बहादुरगढ़, रोहतक आदि तक की ऑटोमोबाइल की पूरी पट्टी की एक सेक्टरगत व इलाक़ाई यूनियनों को खड़ा कराना आज वक़्त की ज़रूरत है। आइसिन के मज़दूरों का आन्दोलन अभी चल ही रहा है तो उनके संघर्ष का परिणाम तो अभी आना बाक़ी है किन्तु इतना अवश्य है कि आइसिन के मज़दूरों ने 45 दिन के अपने संघर्ष में जाति-धर्म की बेड़ियों को तोड़कर मज़दूर वर्ग की वर्गीय एकजुटता का परिचय तो दिया ही है साथ ही स्थाई, ट्रेनी और कैजुअल के बँटवारे को ठोकर मारकर डेढ़ महीने तक साझा संघर्ष चलाकर अन्य मज़दूर भाइयों के सामने एक मिसाल ज़रूर क़ायम की है।
आइसिन के मज़दूरों पर हुए लाठीचार्ज और दमन के ख़िलाफ़ विभिन्न जनसंगठनों का जन्तर-मन्तर पर विरोध प्रदर्शन
1 जून को दिल्ली के जन्तर मन्तर पर हरियाणा के आइसिन मज़दूरों पर हुए बर्बर लाठीचार्ज और गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। 3 मई से अपने जायज़ अधिकारों के लिए संघर्षरत आइसिन मज़दूरों पर पुलिस ने संघर्ष के 29वें दिन 31 मई की शाम 4 बजे के क़रीब बर्बर लाठीचार्ज किया और तक़रीबन 450 मज़दूरों व मज़दूर कार्यकर्ताओं, जिनमें क़रीब 40 स्त्री मज़दूर भी शामिल थीं, को गिरफ़्तार कर लिया। सभी पुरुष मज़दूरों पर आईपीसी की 323, 186, 114, 341, 342, 332, 353 और 284 जैसी धाराएँ लगायी गयी हैं। सभी मज़दूरों को रोहतक की सुनारियाँ और झज्जर जेल में रखा गया है।
बिगुल मज़दूर दस्ता की तरफ़ से बात रखते हुए शिवानी ने कहा कि मोदी सरकार का मज़दूर विरोधी चेहरा तो पहले से सबके सामने है और आइसिन के मज़दूरों के साथ हो रहा दमन उसी का एक और उदाहरण है। जो मोदी जी देश में हर साल 1 करोड़ नये रोज़गार बनाने की बात कहते थे, आज उन्हीं की सरकार लोगों से उनके रोज़गार छीन रही है और उनके हक़ों से उन्हें महरूम कर रही है। प्रदर्शनकारियों ने अपनी माँगों का एक ज्ञापन हरियाणा के मुख्यमन्त्री मनोहर लाल खट्टर को भी सौंपा। प्रदर्शनकारियों की माँगें थीं :
1. सभी गिरफ़्तार मज़दूरों व मज़दूर कार्यकर्ताओं पर लगी धाराएँ वापिस ली जायें और उन्हें जल्द से जल्द रिहा किया जाये।
2. सभी हिरासत में बन्द महिला मज़दूरों को भी जल्द से जल्द रिहा किया जाये।
3. मज़दूरों की सभी जायज़ माँगों को संज्ञान में लेते हुए उन पर बिना किसी विलम्ब के कार्यवाही की जाये।
4. सभी निकाले गये मज़दूरों को काम पर बहाल किया जाये।
5. लाठीचार्ज में लिप्त सभी पुलिस कर्मियों और प्रशासन के अधिकारियों के ख़िलाफ़ सख़्त कार्यवाही की जाये।
प्रदर्शन में बिगुल मज़दूर दस्ता के साथ, ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन, नौजवान भारत सभा, दिल्ली इस्पात उद्योग मज़दूर यूनियन और दिशा छात्र संगठन ने शिरकत की।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2017


 

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