मालिक का भाई मरे या कोई और, उसे कमाने से मतलब है

विष्णु, वज़ीरपुर, ठण्डा रोला मज़दूर

दिल्ली के वज़ीरपुर इलाक़े में पिछले 2-3 महीने से मन्दी चल रही है। नोटबन्दी के बाद भी इस तरह से काम मन्दा हो गया था। अख़बार में पढ़ा है – जीएसटी लागू हुआ है। मालिक कह रहे हैं कि वे बर्बाद हो रहे हैं। कुछ मालिकों ने अपनी फ़ैक्टरियाँ बन्द कर दी हैं। जो लोग गाँव गये थे, वे गाँव में ही रुक क्योंकि यहाँ काम नहीं है और मालिक किसी भी बात पर हिसाब दे देता है। पर फ़ैक्टरियाँ चल भी रही हैं। पहले 12 घण्टे काम होता था तो अब 8 घण्टे काम होता है। मालिक तो अब भी कमा रहा है। मज़दूर की तो नौकरी जाती है पर मालिक का मुनाफ़ा चलता रहता है। मेरी फ़ैक्टरी के मालिक पर जीएसटी का ज़्यादा असर नहीं लगता है। ये तो ख़ूब 12 घण्टे हम जुतवाता है। यह बिल्कुल पैसे का भूखा है। पिछले हफ़्ते मालिक के भाई की मौत हो गयी थी। इलाक़े के सारे मालिक फ़ैक्टरी पर इकठ्ठा थे। मालिक ने फ़ैक्टरी बन्द करने को कहा और हमने राहत की साँस ली पर उसने कहा कि कहीं मत जाना फ़ैक्टरी में ही रहना। एक घण्टे के भीतर ही मालिक कुछ पीले रंग का द्रव्य लेकर आया और उसे फ़ैक्टरी के गेट पर छिड़का और हमें बोला फटाफट काम शुरू करो। मालिक का भाई मरे या कोई और, इसे कमाने से मतलब है। हम मज़दूरों को तो ये जानवर समझता है। वज़ीरपुर में लम्बे समय से मन्दी चल रही है पर बर्बाद तो हम मज़दूर ही होते हैं। मालिक कोठी में रहता है, गाडी में आता है और रोज़ फ़ैक्टरी के अन्दर बनाये हुए एसी कमरे में बैठकर दारु पीता रहता है। पिछले 10 सालों में फ़ैक्टरी से इन लोगों ने ज़बरदस्त मुनाफ़ा कमाया है। पर जब मज़दूर अपना हक़ माँगता है तो मन्दी का रोना रोता है। मोदी हो या केजरीवाल सब मालिकों के ही सगे हैं। इनकी जमात को बस पैसा दीखता है।

मज़दूर बिगुल, जुलाई 2017


 

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