इलाहाबाद में स्वास्थ्यकर्मियों का आन्दोलन

 बिगुल संवाददाता

उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के ढाई दशक बीतने के बाद पूरे देश में कर्मचारियों, मज़दूरों और छात्रों पर इन नीतियों ने कहर बरपाना शुरू कर दिया है। अभी हाल ही में इलाहाबाद में स्वास्थ्य कर्मियों ने एक दिवसीय हड़ताल करके मुख्य चिकित्सा अधिकारी का घेराव किया। यह हड़ताल अधिकारियों के भ्रष्टाचार, कर्मचारियों की कमी से बढ़ते वर्क लोड, बिना किसी कारण के वेतन में कटौती, लम्बे समय से भत्तों आदि का भुगतान न होने जैसे मुद्दों को लेकर थीं। घेराव की सूचना पाने पर मुख्य चिकित्सा अधिकारी उस दिन कार्यालय पहुंचे ही नहीं, लेकिन उसके बावजूद स्वास्थ्य कर्मी वहीं डटे रहे। स्वास्थ्यकर्मियों की एकजुटता को देखते हुए मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने उनकी सभी माँगें लिखित रूप से मान लीं। बिगुल मज़दूर दस्ता और दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ता स्वास्थ्य कर्मियों की मांगों के समर्थन में धरना स्थल पर पहुंचे तथा उनकी सभा में बिगुल मज़दूर दस्ता के प्रसेन ने बात रखी। प्रसेन ने कहा कि तात्कालिक मुद्दों पर कर्मचारियों के आन्दोलन तो होते रहते हैं, लेकिन जनविरोधी नीतियों के खिलाफ देशव्यापी आन्दोलन की कोई रणनीति नहीं बनाई जाती। इसके अलावा तात्कालिक मुद्दों पर होने वाले आन्दोलन भी बिखरे होने के चलते किसी नतीजे की तरफ नहीं पहुंचते। इन आन्दोलनों का नेतृत्व भी काफी हद तक चुनावी पार्टियों की ट्रेड-यूनियनों, संशोधनवादियों व सुधारवादियों के हाथों में है। इस वजह से तमाम आन्दालनों के बावजूद भी कर्मचारी लगातार अपने हकों-अधिकारों को खोते जा रहे हैं। अब यह अनिवार्य हो गया है कि उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के खिलाफ मजदूरों, छात्रों और कर्मचारियों का एक संगठित देशव्यापी प्रतिरोध खड़ा किया जाय। बिगुल मज़दूर दस्ता और दिशा छात्र संगठन के कार्यकर्ताओं ने धरना स्थल पर हड़ताल के समर्थन में क्रान्तिकारी गीत गाये।

निर्धारित मानकों के हिसाब से 5000 की आबादी पर कम से कम एक महिला तथा एक पुरुष स्वास्थ्य कर्मी की नियुक्ति होनी चाहिए, लेकिन एक स्वास्थ्य कर्मी को 15000 की आबादी पर अकेले काम करने के लिए बाध्य किया जा रहा है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की कमर तोड़कर वास्तव में यह व्यवस्था देश की बदहाल स्थिति में जी रही देश की बड़ी आबादी को बेमौत मार रही है। अभी गोरखपुर के बी।आर।डी। मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत से लेकर फर्रुखाबाद में होने वाली मौतें उदारीकरण-निजीकरण द्वारा की गयी हत्याओं एक उदाहरण भर हैं। ऐसे में आज इन कर्मचारियों, मज़दूरों, छात्रों के आन्दोलनों को आपस में पिरोकर एक उदारीकरण-निजीकरण की नीतियों के ख़िलाफ़ देशव्यापी आन्दोलन की दिशा में बढ़ने की ज़रूरत है।

 

मज़दूर बिगुल,सितम्‍बर 2017


 

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