लुधियाना में 9 वर्ष की बच्ची के अपहरण व क़त्ल के ख़िलाफ़ मेहनतकशों का जुझारू संघर्ष

 बिगुल संवाददाता

बिहार के दरभंगा जि़ले से कुछ महीने पहले लुधियाना आकर रहने लगे जीतन राम के परिवार को पता नहीं था कि वो जिस शहर में रोज़ी-रोटी कमाने और अच्छी ज़िन्दगी का सपना लेकर आया है, उस शहर में उसके साथ कितना भयानक होने वाला है।

जीतन राम परिवार सहित लुधियाना आने से पहले दरभंगा शहर में रिक्शा चलाता था। तीन बेटियों और एक बेटे के विवाह के लिए उठाये गये क़र्ज़े का बोझ उतारने के लिए रिक्शा चलाकर कमाई पूरी नहीं पड़ रही थी। इसलिए उसने सोचा कि लुधियाना जाकर मज़दूरी की जाये। यहाँ आकर वह राज मिस्त्री के साथ दिहाड़ी करने लगा। उसकी पत्नी और एक 12 वर्ष की बेटी कारख़ाने में मज़दूरी करने लगी। सबसे छोटी 9 वर्षीय बेटी गीता उर्फ़ रानी को किराये के कमरे में अकेले छोड़कर जाना इस ग़रीब परिवार की मजबूरी थी। नज़दीक ही एक मध्यवर्गीय परिवार की प्रिया नाम की औरत ग़रीब मज़दूरों के बच्चों को घर का काम करवाने के लिए कभी लालच देकर, कभी ज़बरदस्ती अपने घर ले जाती थी। दिसम्बर के शुरू में ही वह रानी को अपने घर लेकर जाने लगी। पता लगने पर माता-पिता ने रानी को जाने से मना भी किया। लेकिन माता-पिता और बहन के काम पर चले जाने के बाद प्रिया आकर रानी को ले जाती थी।

16 दिसम्बर को रानी घर वापिस नहीं आयी। माता-पिता ने प्रिया के घर जाकर पता किया तो प्रिया ने दरवाज़ा खोले बिना ही कहा कि उसको उसने 5 बजे किसी काम से भेजा था लेकिन वह वापस नहीं आयी। माता-पिता और मुहल्ला निवासियों ने जब प्रिया के घर की तलाशी ली तो बच्ची की चप्पल और कपड़े घर में मिले। अनेक सुरागों के कारण माता-पिता और मुहल्ला निवासियों को काफ़ी हद तक यक़ीन हो गया था कि रानी के ग़ायब होने में प्रिया और उसके पति रंजीत कुमार का हाथ है। पुलिस को शिकायत की गयी। रिपोर्ट लिखाने के समय प्रिया और रंजीत भी वहाँ पहुँच गये। पुलिस ने जीतन राम को अलग बिठाकर प्रिया और रंजीत की हाज़िरी में झूठा बयान लिखा और भोले-भाले और अनपढ़ जीतन राम के धोखे से हस्ताक्षर करवा लिये। जीतन राम को भ्रम था कि उसने जो कहा है पुलिस ने वही लिखा है। लेकिन पुलिस ने एफ़आईआर में लिखा कि रानी साढ़े तीन बजे खेलने गयी थी और वापिस नहीं आयी। सिर्फ़़ गुमशुदगी की धारा लगायी गयी। प्रिया और रंजीत का इसमें नाम नहीं डाला गया और उनके ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की गयी। जीतन राम द्वारा बार-बार पुलिस चौकी के चक्कर काटने के बाद एक बार पुलिस ने प्रिया के घर की तलाशी लेने का ड्रामा किया। तलाशी के दौरान उस घर में से रानी का तौलिया मिला। इसके बावजूद भी पुलिस ने प्रिया और उसके पति के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की। एक पुलिस मुलाज़िम ने पीड़ित परिवार को पैसे लेकर चुप हो जाने और समझौते करने के लिए कहा। पुलिस की आरोपियों के साथ मिलीभगत स्पष्ट थी।

24 दिसम्बर की रात साढ़े ग्यारह बजे पुलिस ने रानी के माता-पिता को उनके कमरे से पाँच सौ मीटर दूरी पर एक सुनसान जगह पर पड़ी एक बच्ची की लाश की शिनाख़्त के लिए बुलाया। यह रानी की लाश थी। लाश देखकर पता लग रहा था कि कई दिन पहले ही उस बच्ची का क़त्ल किया जा चुका है। कई दिनों की लाश होने के कारण काफ़ी बुरी हालत में थी। बदबू मार रही थी। अगले दिन शाम को हुए पोस्टमार्टम में पता लगा कि रानी की मौत गला दबाने के कारण हुई है। अगर पुलिस की आरोपियों के साथ मिलीभुगत न होती, पीड़ित पक्ष के बयान सही ढंग से लिखकर सही ढंग से कार्रवाई की होती, जाँच की होती, तो शायद रानी ज़िन्दा होती।

असल में पुलिस को लाश दिन के चार बजे ही मिल चुकी थी। लेकिन उस दिन रविवार होने के कारण पुलिस ने रानी की लाश मिलने की बात देर रात तक छिपाकर रखी। पुलिस को डर था कि यह बात दिन समय पता लग गयी तो बड़े जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा। उस समय कुछ गलियाँ छोड़कर ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड-2014 की पीड़िता शहनाज़ की तीसरी बरसी पर श्रद्धांजलि समागम चल रहा था। श्रद्धांजलि समागम में रानी के अगवा हो जाने और पुलिस द्वारा आरोपियों के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई न करने के मुद्दे पर ज़ोर देकर बात की जा रही थी और लोगों को इस मामले में संघर्ष के लिए तैयार रहने के लिए आह्वान किया गया था। रानी के माता-पिता भी श्रद्धांजलि समागम में हाज़िर थे। ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी द्वारा शनिवार को भी इलाक़े में गली-गली प्रचार करके रानी के अगवा हो जाने के मसले पर संघर्ष शुरू करने का आह्वान किया था। इसलिए पुलिस जानती थी कि अगर दिन के समय में ही रानी की लाश मिलने की बात लोगों तक पहुँच जाती है तो कितने बड़े जनाक्रोश का सामना करना पड़ेगा।

ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी में शामिल कारख़ाना मज़दूर यूनियन और टेक्सटाइल हौज़री कामगार यूनियन की अगुवाई में 25 दिसम्बर की सुबह साढ़े 7 बजे से ही लोग इकट्ठा होने लगे। दो घण्टों में ही संख्या दो-ढाई हज़ार तक पहुँच गयी। बहुत सारे दुकानदार भी दुकानें बन्द करके प्रदर्शन में शामिल हो गये। लोगों ने साथ वाली सड़क जाम कर दी और यह ऐलान किया गया कि अगर प्रिया और उसके पति के ख़िलाफ़ एफ़आईआर दर्ज नहीं होती और उनको गिरफ़्तार नहीं किया जाता तो न सिर्फ़़ धरना जारी रहेगा बल्कि अगर ज़रूरत पड़ी तो जीटी रोड जाम किया जायेगा। मज़दूरों-मेहनतकशों के रोष के आगे झुकते हुए एडीसी पुलिस ने मौक़े पर पहुँचकर माँगें मानने का ऐलान किया। एडीसीपी ने बताया कि आरोपियों को गिरफ़्तार किया जा चुका है। पुलिस ने धरनास्थल पर ही रानी के पिता के बयान दर्ज़ किये। प्रिया और रंजीत के नाम एफ़आईआर में जोड़े गये।

सही ढंग से जाँच-पड़ताल, दोषियों को सख़्त सज़ा, पीड़ित परिवार को 10 लाख रुपये मुआवज़ा, दोषी पुलिस मुलाज़िमों के ख़िलाफ़ सख़्त से सख़्त कार्रवाई, समाज में औरतों की सुरक्षा आदि के लिए संघर्ष आगे बढ़ाने के लिए दुर्गा कालोनी अगवा व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी में कारख़ाना मज़दूर यूनियन के लखविन्दर, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के राजविन्दर, नौजवान भारत सभा की बिन्नी, पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन (ललकार) के सतपाल, मुहल्ले में से दिनकर कुमार पाण्डे, आशुतोष शाही, रमाशंकर साहू को शामिल किया गया। अगले दिन 26 दिसम्बर को डीसी और पुलिस कमिश्नर दफ़्तरों पर प्रदर्शन करके माँग-पत्र सौंपा गया।

इन धरने-प्रदर्शनों के दौरान वक्ताओं ने कहा कि औरतों समेत सारे मज़दूरों-मेहनतकश लोगों के साथ बढ़ रहे अपराधों के असल दोषी लुटेरे हुक्मरान हैं, सरकारें हैं, पुलिस प्रशासन हैं। उन्होंने कहा कि जनता को एकजुट होकर अपराधियों, पुलिस, प्रशासन और राजनीतिक नापाक गँठजोड़ के ख़िलाफ़ संघर्ष करने के लिए आगे आना होगा। सभी वक्ताओं ने रानी की मौत पर शोक प्रकट करते हुए कहा कि औरतों की सुरक्षा के लिए एक ज़ोरदार और व्यापक लहर की ज़रूरत है। डीसी और पुलिस कमिश्नर दफ़्तरों पर प्रदर्शन को डेमोक्रेटिक लायर्ज़ ऐसोसिएशन के एडवोकेट हरप्रीत सिंह जीरख, मज़दूर अधिकार संघर्ष अभियान के सुरेन्दर, नौजवान भारत सभा के अरुण, मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्स यूनियन के हरजिन्दर सिंह आदि ने भी सम्बोधित किया।

मज़दूर बिगुल, जनवरी 2018


 

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