राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन घोटाला
भ्रष्टतन्त्र का एक और कीर्तिमान

लखविन्दर

देश के ग़रीबों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ बेरोकटोक जारी है। ग़रीब जनता काम और रिहायश की बदतर परिस्थितियों, पौष्टिक भोजन और आराम की कमी के कारण स्वास्थ्य सम्बन्धी गम्भीर समस्याओं का सामना कर रही है। इलाज़ की उचित सुविधाओं तक पहुँच न होने के कारण उनकी स्थिति और गम्भीर हो गयी है। मुनाफ़ाख़ोर पूँजीवादी व्यवस्था से और कोई उम्मीद भी नहीं की जा सकती। जो व्यवस्था ख़ुद ही असाध्य रोगों से ग्रस्त हो वह जनता के रोग कैसे दूर सकती है? लेकिन पूँजीवादी सरकारें जनता में व्यवस्था के प्रति झूठी उम्मीदें पैदा करने की कोशिशें करती रहती हैं। एक ओर उदारीकरण और निजीकरण के दौर में स्वास्थ्य और चिकित्सा को भी बाज़ार में बिकाऊ माल बना दिया गया है, सरकारी अस्पतालों की हालत दिन-ब-दिन ख़राब होती जा रही है। दूसरी ओर, जनता के ग़ुस्से पर पानी के छींटे डालने के लिए कुछ कल्याणकारी योजनाएँ चला दी जाती हैं। 2005 में देश के अठारह राज्यों में शुरू हुआ राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एन.आर.एच.एम) ऐसी ही एक ”महत्वाकांक्षी” योजना थी। लेकिन अफ़सोस, सरकार की यह महत्वाकांक्षा इस व्यवस्था के ही एक असाध्य रोग – भ्रष्टाचार – की बलि चढ़ गयी।

दावा किया किया गया कि केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य मन्त्रालय द्वारा संचालित एन.आर.एच.एम. से ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं की पहुँच को बेहतर बनाया जायेगा। इसके लिए ”आशा”, ”जननी सुरक्षा योजना”, बच्चों के टीकाकरण, ग़रीबों को दवाओं की आपूर्ति, स्वास्थ्य के प्रति लोगों को जागरूक बनाने जैसी कई योजनाएँ लायी गयीं। साफ़-सफ़ाई और नाली-पानी की व्यवस्था को बेहतर बनाने के बड़े-बड़े दावे किये गये। कई बड़े पूँजीवादी अर्थशास्त्रियों ने इसे अब तक की सबसे महत्वाकांक्षी ग्रामीण स्वास्थ्य पहल कहा। मुख्यत: अठारह राज्यों – उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, ओडीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हिमाचल प्रदेश, झारखण्ड, जम्मू-कश्मीर, अरुणाचल प्रदेश, असम, नगालैण्ड, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, सिक्किम और त्रिपुरा में शुरू की गयी इस योजना के ख़र्च का 85 प्रतिशत केन्द्र और 15 प्रतिशत राज्य सरकार उठाते हैं।

सबसे बड़ा कार्यक्रम उत्तर प्रदेश में लिया गया। बाक़ी राज्यों में भी एन.आर.एच.एम. भ्रष्टाचार से अछूता नहीं है, लेकिन उत्तर प्रदेश में तो यह मिशन महाघोटाले का शिकार हो चुका है। 2005 से 2011 के बीच यहाँ के लिए 8,657 करोड़ रुपये जारी हुए। उत्तर प्रदेश के दो मुख्य स्वास्थ्य अधिकारियों यानि चीफ मेडिकल अफ़सरों की लखनऊ में हुई हत्याओं के बाद इस धन में हुआ घोटाला रोशनी में आया। घोटाले की असल तस्वीर तो अभी सामने आनी बाक़ी है लेकिन प्राथमिक जाँच-पड़ताल में यह बात सामने आयी है कि जारी हुए कुल 8,657 करोड़ में से 5,700 करोड़ रुपये का सीधा-सीधा घोटाला हुआ है। यानि जो पैसा ग़रीबों के दवा-इलाज़, रोगों की रोकथाम के लिए जारी हुआ था वह राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों, डॉक्टरों, ठेकेदारों और कम्पनियों की जेब में चला गया। इन्होंने जनता का पैसा फ़र्ज़ी बिल बनाकर आपस में बाँट लिया। एन.आर.एच.एम. के तहत मोबाइल मेडिकल गाड़ियों, अस्पतालों के निर्माण, पेयजल, कचरे की सफ़ाई और दूसरे कामों का ठेका देने में भारी गड़बड़ियाँ की गयीं। कई निर्माण एजेंसियों के साथ कोई औपचारिक करार तक नहीं किया गया लेकिन सैकड़ों करोड़ रुपये का पहले ही भुगतान कर दिया गया। स्वास्थ्य और इलाज़ के बारे में जागरूकता के लिए प्रस्तुत किए गए कार्यक्रमों के तहत प्रचार-प्रसार तथा स्वास्थ्य सुविधाएँ पहुँचाने में वाहनों का फ़र्ज़ी उपयोग दर्शाकर फ़र्ज़ी भुगतान, वास्तविक कार्यबल से अधिक कार्यबल दर्शाकर दवाओं तथा अन्य स्वास्थ्य सम्बन्धी उपकरणों के फ़र्ज़ी भुगतान, चिकित्सालयों में जेनेरेटर के डीज़ल के फ़र्ज़ी भुगतान, जननी सुरक्षा योजना के अन्तर्गत फ़र्ज़ी भुगतान आदि से हज़ारों करोड़ रुपए राजनेताओं, सरकारी अधिकारियों, डॉक्टरों, ठेकेदारों आदि की जेब में चला गया। अगर यह पैसा वास्तव में सही ढंग से ख़र्च किया जाता तो जनता को कुछ फ़ायदा तो हासिल होता ही। लेकिन जब एक तरफ़ लोग मस्तिष्क ज्वर, टीबी, मलेरिया, डेंगू, जैसी बीमारियों से मर रहे थे तो दूसरी तरफ ये भ्रष्टाचारी अय्याशी के लिए जनता का पैसा हड़प कर रहे थे।

उत्तर प्रदेश के चुनावों में सभी पार्टियों ने इस मुद्दे को भुनाया है। सभी विपक्षी पार्टियाँ इस घोटाले और हत्याओं के पीछे बहुजन समाज पार्टी को ज़िम्मेवार कह रही हैं, वहीं बसपा सारे आरोप कांग्रेस और सपा पर थोप रही है। लेकिन कहने की ज़रूरत नहीं है कि इस हमाम में ये सभी नंगे हैं। यह घोटाला किसी एक पूँजीवादी पार्टी के नेताओं का अपराध नहीं है बल्कि अब भण्डाफोड़ हो जाने के बाद एक दूसरे पर गालियाँ बरसा रही इन सभी पार्टियों के नेता तथा इनसे जुड़े ठेकेदार गिरोह इस ख़ूनी घोटाले से किसी न किसी रूप में जुड़े रहे हैं।

घोटाले की जाँच सीबीआई कर रही है। ऐसी तमाम जाँचों की तरह इसकी रिपोर्ट भी फ़ाइलों में दब जायेगी और कुछ छुटभैये जेल चले जायेंगे। असली अपराधी आज़ाद घूमते रहेंगे। जब से यह जाँच शुरू हुई है तब से अब तक इस घोटाले से सम्बन्धित सात हत्याएँ हो चुकी हैं। यह घोटाला और इससे जुड़ी हत्याओं का घटनाक्रम मौजूदा व्यवस्था में ग़रीब जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़, भ्रष्टाचार और अपराधीकरण का एक जीता-जागता उदाहरण है।

 

मज़दूर बिगुलमार्च 2012

 


 

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