दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के ठेका कर्मचारियों की हड़ताल : एक रिपोर्ट

बिगुल संवाददाता

देश की राजधानी दिल्ली में दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) के ठेका (अनुबन्धित) कर्मचारी समान काम-समान वेतन व अन्य श्रम-क़ानूनी माँगों को लेकर 22 अक्टूबर 2018 से डीटीसी कॉण्ट्रैक्चुअल एम्लाइज यूनियन के बनैर तले पहले एक दिन की और फिर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर बैठे थे। यह हड़ताल लगभग 15 दिन चली थी। रिपोर्ट लिखे जाने तक हड़ताल के दौरान नौकरी से निकाले गये लगभग 100 से 150 कर्मचारी अभी-भी अपनी माँगों को लेकर संघर्षरत हैं।

हड़ताल पर जाने के तात्कालिक कारण

डीटीसी विभाग में ठेके (अनुबन्ध) पर काम करने वाले ड्राइवर (4000) और कण्डक्टर (8000) को मिलाकर 12,000 कर्मचारी हैं। हालाँकि लम्बे समय से डीटीसी के ये ठेका कर्मचारी बुनियादी श्रम अधिकार भी न मिलने के कारण परेशान थे। इस साल के अगस्त माह में जब दिल्ली हाईकोर्ट का दिल्ली सरकार द्वारा बढ़ायी गयी न्यूनतम मज़दूरी पर रोक लगा दी गयी थी; जिसके कारण कर्मचारियों के वेतन में लगभग 4 से 5 हज़ार रुपये कम हो गये थे। वेतन कम होने के बाद इन कर्मचारियों की बैठक हुई और फ़ैसला किया गया वेतन कम होने, समान काम-समान वेतन व अन्य माँगों को लेकर कर्मचारी 22 अक्टूबर को एक दिन की हड़ताल करेंगे। इस एक दिन की हड़ताल में कर्मचारियों के साथ एक्टू (चुनावबाज़ संशोधनवादी कम्युनिस्ट पार्टी सीपीआई (माले-लिबरेशन) का मज़दूर फ्रण्ट) की भागीदारी भी थी। 22 अक्टूबर की शाम को ही दिल्ली सरकार ने इस हड़ताल की अगुवाई कर रहे 8 कर्मचारियों को नौकरी से बर्ख़ास्त कर दिया था। ऐसे में इन कर्मचारियों ने फ़ैसला लिया कि बर्ख़ास्त कर्मचारियों को वापस लेने व अन्य माँगों को लेकर अब अनिश्चितकालीन हड़ताल की जायेगी। कर्मचारियों के इस फ़ैसले से एक्टू सहमत नहीं था; उनका कहना था कि बस एक दिन की प्रतीकात्मक हड़ताल से ही सरकार पर दबाव बनाया जा सकता है। ऐसे में डीटीसी कर्मचारियों ने सीटू को अपनी अनिश्चितकालीन हड़ताल से पूरी तरह अलग करने का फ़ैसला किया।

हड़ताल के दौरान का घटनाक्रम

डीटीसी के मुख्यालय कार्यालय इन्द्रप्रस्थ डिपो पर अनिश्चितकालीन हड़ताल के धरने पर बैठे डीटीसी के ठेका कर्मचारियों से दिल्ली की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था कापफी हद प्रभावित हो गयी थी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली सरकार द्वारा बढ़ी हुई न्यूनतम मज़दूरी को ही लागू करने के फ़ैसले के बाद इन कर्मचारियों का वेतन में हो रही कटौती तो रुक गयी; पर इन कर्मचारियों की अन्य माँगों पर दिल्ली सरकार चुप्पी ही साधे रही। हड़ताल के सातवें दिन ”आम आदमी की रहनुमा” बनने वाली केजरीवाल सरकार ने इन हड़ताली कर्मचारियों ‘एस्मा’ लगाकर कर्मचारियों की आवाज़ को दबाने और डराने की कोशिश की। हालाँकि ‘एस्मा’ लगने के बावजूद भी कर्मचारी हड़ताल पर डटे रहे और सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक महिला कर्मचारी सहित पाँच कर्मचारी डीटीसी मुख्य कार्यालय के धरनास्थल पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठ गये। चार दिन बाद यूनियन की सहमति से भूख हड़ताल ख़त्म की गयी। दिल्ली सरकार के खि़लाफ़ हो रही इस हड़ताल से राजनीतिक फ़ायदा लेने के लिए भाजपा के दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी ने उनकी पार्टी की ओर से इस हड़ताल का समर्थन देने का ढोंग किया और धरनास्थल पर कर्मचारियों से उन्होंने कहा कि वे कर्मचारियों के साथ उनकी समस्या को लेकर दिल्ली उप राज्यपाल से मिलने जायेंगे; पर उस दिन के बाद से वह कही नज़र नहीं आये। जिस समय मनोज तिवारी और उनकी पार्टी (भाजपा) दिल्ली में केजरीवाल सरकार द्वारा डीटीसी को हटाकर निजी बसों (कल्स्टर बस) को बढ़ावा देने का विरोध करने की नौटंकी कर रहे थे; उसी दौरान ही भाजपा शासित खट्टर सरकार द्वारा हरियाणा की परिवहन व्यवस्था का निजीकरण किये जाने के खि़लाफ़ हरियाणा रोडवेज़ बस कर्मचारियों की हड़ताल भी चल रही थी।

इस हड़ताल से दिल्ली की सार्वजनिक बस सेवा प्रभावित न हो ऐसे में दिल्ली सरकार द्वारा डीटीसी के अन्य कर्मचारियों (जैसे टिकट चैकर, कार्यालय में बैठने वाले कर्मचारी, फीटर आदि) से बसों में कण्डक्टर का काम कराया जा रहा था। इस हड़ताल के सन्दर्भ में दिल्ली के श्रम मन्त्री गोपाल राय व दिल्ली के परिवहन मन्त्री कैलाश गहलोत मीडिया में यही बयान देकर पल्ला झाड़ते रहे कि यह हड़ताल भाजपा द्वारा प्रायोजित है। 22 अक्टूबर से चल रही यह हड़ताल (बिना किसी ठोस योजना के) आखि़रकार 15 दिन बाद 5 नवम्बर को टूट गयी और आधे से ज़्यादा कर्मचारी वापस काम पर चले गये।

हड़ताल के सकारात्मक पहलू

इस हड़ताल में डीटीसी के सभी ठेका कर्मचारियों ने मिलकर दिल्ली सरकार द्वारा डीटीसी को हटाकर प्राइवेट बसों को बढ़ावा देने की नीति का विरोध किया। हड़ताल के दौरान दलाल ट्रेड यूनियन ‘एक्टू’ की असलियत सामने आयी और ठेका कर्मचारियों द्वारा एक्टू का विरोध हुआ और इन्हें हड़ताल से भगा दिया गया। दिल्ली सरकार द्वारा एस्मा लगने के बाद भी कर्मचारी नहीं डरे थे।

हड़ताल के नकारात्मक पहलू

डीटीसी में कार्यरत 12000 ठेका कर्मचारियों (कण्डक्टर व ड्राइवर) में से लगभग 11000 हड़ताल पर थे और लगभग 4 से 5 हज़ार कर्मचारी हड़ताल स्थल पर भी आते थे। इतने कर्मचारियों के साथ भी यूनियन दिल्ली सरकार पर कोई दबाव नहीं बना पायी। हड़ताल टूटने का मुख्य कारण डीटीसी की ठेका यूनियन के नेतृत्व द्वारा हड़ताल को नियमित चलाने की सही योजना न बना पाना था; 10 से 11 दिन हड़ताल चलने के बाद कर्मचारियों को लगने लगा था कि सरकार पर कोई दबाव नहीं बना रहा है। देशभर में निजीकरण और ठेकाकरण को बढ़ावा देने वाली भाजपा पार्टी के नेताओं का हड़ताल स्थल आना और डीटीसी कर्मचारियों द्वारा ज़िन्दाबाद के नारे लगाना व मीडिया में ‘डीटीसी की हड़ताल को भाजपा का पूर्ण समर्थन’ ख़बरों से इस हड़ताल को नुक़सान हुआ। डीटीसी ठेका कर्मचारियों की यूनियन पर अर्थवाद हावी रहा; समान काम-समान वेतन की माँग को ही मुख्य माँग बनाकर ही हड़ताल चलती रही; इसी कारण कभी भी कर्मचारी दिल्ली सरकार पर राजनीतिक दबाव बना ही नहीं पाये। दिल्ली के मुख्यमन्त्री केजरीवाल का चुनाव से पहले वायदा था कि सभी ठेका कर्मचारियों को स्थाई किया जायेगा; डीटीसी के ठेका कर्मचारियों को केजरीवाल के इसी वायदे को मुख्य रूप से लेकर दिल्ली सरकार पर दबाव बनाना चाहिए था। कुल मिलाकर डीटीसी के ठेका कर्मचारियों की यह हड़ताल असफल ही रही।

इस हड़ताल को नौजवान भारत सभा के सदस्यों ने भी सक्रिय समर्थन दिया। हड़ताल स्थल पर नियमित रूप से जाकर हड़ताल के समर्थन में नारे व क्रान्तिकारी गीतों की प्रस्तुति की गयी। नौभास द्वारा हड़ताल के समर्थन में एक पर्चा भी निकाला गया। कर्मचारियों द्वारा दिल्ली के परिवहन मन्त्री के घेराव में नौभास के सदस्यों की भागीदारी रही।

मज़दूर बिगुल, दिसम्‍बर 2018


 

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