गुड़गॉंव ऑटोमोबाइल पट्टी में जगह-जगह मज़दूरों का संघर्ष जारी है!

शाम मूर्ति

कंसाई नेरोलेक (बावल) में काम से हटाये गये मज़दूरों का संघर्ष और मैनेजमेंट की घटिया चालें

कंसाई नैरोलेक पेंट्स लिमिटेड के बावल (ज़ि‍ला रेवाड़ी, हरियाणा) प्लाण्ट के करीब 250 ठेका मज़दूरों को श्रम विभाग के समक्ष लिखि‍त समझौते के बावजूद कम्पनी में अभी तक काम पर वापस नहीं लिया जा रहा है। कम्पनी बदले की भावना से एक के बाद एक नया बहाना गढ़ के हड़ताल में शामिल अधिकांश ठेका मज़दूरों समेत अन्य ठेका मज़दूरों को काम पर वापस नहीं ले रही है।
कंसाई नेरोलेक पेंट्स लिमिटेड बिनौला प्लाण्ट के स्टोर में कच्चे माल की देखरेख करने वाले ठेका एजेंसी सीएफए व बीपी सर्विसेज़ के क़रीब 60 ठेका मज़दूर पिछली 11 सितम्बर को वेतन बढ़ोतरी, जैकेट, हाज़िरी संबंधी माँगों को लेकर हड़ताल पर चले गये थे। लेकिन उसी दिन बी ‘शिफ्ट’ में दोबारा प्लाण्ट में काम भी शुरू कर दिया था। लेकिन अगले दिन सुबह मॉंगें न माने जाने पर ठेका मज़दूरों (ऑपरेटर) ने फिर से काम बन्द कर दिया था। इस पर कम्पनी की स्वतंत्र पंजीकृत यूनियन ठेका मज़दूरों के समर्थन आ गई और प्रबन्धन से बात करने की कोशिश की। लेकिन प्रबन्धन ने बदले की भावना से अगले दिन तमाम ठेका मज़दूरों व परमानेंट मज़दूरों को बाहर करके गैर-क़ानूनी तरीक़े से बिना नोटिस दिये लॉक-आउट कर दिया। कम्पनी प्रबन्धन ने ऐसा करके एक तीर से दो निशाने लगाये। एक तो ठेका मज़दूरों की माँगों को लागू करने के बजाय ठेका मज़दूरों को बाहर का रास्ता दिखा दिया, दूसरा समर्थन में आयी मज़दूर यूनियन के समझौता पत्र को टालने में फिर से कामयाब हो गये। यूनियन के प्रधान और संगठन सचिव को निलम्बित कर दिया गया है।

श्रम विभाग के समझौता अधिकारी के समक्ष लिखित समझौता होने के बावजूद अच्छे व्यवहार का निर्वाह पत्र (‘गुड कंडक्ट अंडरटेकिंग’) फार्म भरवाने पर कम्पनी अड़ गयी जिसका समझौता पत्र में कोई ज़ि‍क्र नहीं था, इसे सभी मज़दूरों ने एक सुर से नकार दिया था। लेकिन कम्पनी अपनी मनमर्जी के ‘गुड कंडक्ट अंडरटेकिंग’ पर अड़ी रही। उस पर हस्ताक्षर करने पर ही मज़दूरों को अन्दर लिया गया। श्रम विभाग कह रहा है कि लिखित समझौते का पालन करते हुए सभी ठेका मज़दूरों को काम पर रखवाया जायेगा। लेकिन कम्पनी तरह-तरह के बहाने बनाते हुए मज़दूरों को अन्दर नहीं ले रही है। मज़दूरों पर खाने-खर्चे का बोझ बढ़ रहा है लेकिन कम्पनी अपने तानाशाही व बदले की भावना के रवैये पर अड़ी हुई है। मज़दूरों ने बताया कि जब सभी मज़दूर बाहर थे तो कम्पनी ने चालाकी से नये व ग़ैर-अनुभवी ठेका मज़दूरों को काम पर रख लिया था, जिसकी वजह से कम्पनी में कोई भी हादसा हो सकता है, और दो बार सेफ्टी आलार्म भी बज चुका है और कई नये ठेका वर्कर ज़बर्दस्ती काम पर रोकने के कारण काम छोड़ चुके हैं। कुछ को तो दीवार कूद कर भागना पड़ा था।

ठेका मज़दूरों के प्रति ऐसा ही रवैया शिवम ऑटोटेक लिमिटेड, बावल (गुड़गाँव), डाईकिन एयरकंडिशनिंग कम्पनी (नीमराना, राजस्थान), ऑमैक्स (धारुहेड़ा), मारुति (मानेसर) आदि कम्पनियों के प्रबन्धन रहा है। देखा यही गया है कि कम्पनियाँ ऐसे संघर्ष की स्थिति में ठेका मज़दूरों को वापस नहीं लेतीं। ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री काण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन जो संघर्ष में शामिल रही है, उसका मानना है कि ऐसी बुरी स्थिति में ठेका व स्थायी मज़दूरों को अपनी एकता बनाये रखनी होगी और निराशा के बजाय संघर्ष के लिए तैयार रहना होगा। मज़दूर चाहे इस कम्पनी में काम करे या अन्य किसी कम्पनी में, मालिकों/प्रबन्धन की तानाशाही के चलते श्रम क़ानूनों का उल्‍लंघन, ठेका प्रथा के ख़ि‍लाफ़ निणार्यक संघर्ष की तैयारी आज से ही करनी होगी। आज इस कम्पनी तो कल दूसरी कम्पनी में यही समस्याएँ, इसका मुकाबला ऑटो सेक्टर की सेक्टरगत (पेशा आधारित) यूनियन और इलाक़ाई एकता के दम पर किया जा सकता है। दूसरा, नेरोलेक के विभिन्न प्लाण्टों के मज़दूरों को तालमेल बना कर रखना होगा और आसपास के इलाक़े के आम मेहनतकश और जागरूक व इंसाफ़पसन्द आबादी को भी साथ लेना होगा। इलाके व सेक्टर के तमाम मालिक, प्रबन्धन, ठेकेदार तथा उनके साथ खड़े होने वाली राजनीतिक, प्रशासनिक ताकतें मज़दूरों के ख़ि‍लाफ़ एकजुट हैं। हमें भी अपनी एकता को मज़बूत बनाना होगा। इसके बिना हम मालिकों को मोलभाव में झुका नहीं सकते। इसके लिए हमें संघर्ष के दोनों रूपों यानी ज़मीनी संघर्ष और क़ानूनी संघर्ष के लिए तैयार रहना चाहिए।
शिवम ऑटो टेक लिमिटड में लि‍खित समझौते को लागू करवाने के लिए संघर्ष जारी है!

पिछली 21 अगस्त से शिवम ऑटो टेक लिमिटड (एस.ए.टी.एल) के मज़दूर अपनी माँगों को लेकर लेकर दिल्ली-जयपुर हाईवे एनएच-8 पर स्थित औद्योगिक क्षेत्र, बिनौला में धरने-प्रदर्शन पर बैठे हुए थे जिसकी रिपोर्ट बिगुल के पिछले अंक में दी गयी थी। फरवरी-मार्च में प्रशासन ने मज़दूरों को निलम्बित कर दिया था और उनके मानेसर, रोहतक, हरिद्वार, बंगलौर तक तबादले करने शुरू कर दिये गये थे।
एस.ए.टी.एल के मज़दूरों की माँग थी कि लम्बित माँगों पर समझौता वार्ता जल्द से जल्द करायी जाये। बदले की भावना से ग़ैर-क़ानूनी तरीके से गलत व्‍यवहार का दोष लगाकर निलम्बित किए गए 45 मज़दूरों को वेतन सहित काम पर वापस लिया जाये जिसमें 5 कार्यिकारिणी सदस्‍य भी शामिल थे तथा तीसरा मज़दूरों का तबादला रद्द किया जाये।

एस.ए.टी.एल यूनियन के महासचिव मुकेश यादव ने बताया कि त्रि-पक्षीय लिखित समझौता हो गया और मॉंगें भी मान ली गयीं लेकिन तीन हफ़्ते बीतने के बावजूद इसे लागू नहीं किया गया। बात-बात पर मज़दूरों को परेशान और उनके साथ गाली-गलौच किया जा रहा है। दूसरी तरफ श्रम विभाग हर बार कोई बहाना करके यूनियन की बात को सुन ही नही रहा है और न ही लिखित समझौते को लागू करवाने के लिए कम्पनी पर दबाव बना रहा है। महासचित ने स्पष्ट किया कि अगर कम्पनी अपने रवैये पर अड़ी रही तो जल्द से जल्द अन्य यूनियनों से मिलकर संघर्ष को तेज़ कर दिया जायेगा।

ऑटोमोबाइल इण्‍डस्‍ट्री काण्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन शिवम ऑटो टेक मज़दूरों के साथ लगातार सम्पर्क में है और मज़दूरों को सतर्क रहने के लिए कहा है क्योंकि पिछले कई सालों के अनुभव ने यह बताया है कि कम्पनी प्रबन्धन लिखित समझौते को लागू नहीं करने तथा नया समझौता करने में देरी करने के लिए कई तरह की तिकड़में करता है। और मज़दूरों को नौकरी का डर, ट्रांस्फ़र का डर पैदा करके या उकसावे की कार्यवाही करके यूनियन बॉडी को सस्पेंड करने की घिनौनी चाले चलने में भी नहीं चूकती हैं। ऐसे में सावधानी के साथ और तैयारी के साथ हमें व्यापक एकता को बनाकर रखना होगा और हर चाल को पहले से समझना होगा।

मज़दूर बिगुल, अक्तूबर 2019


 

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