शिरोकी टेक्निको प्राइवेट लिमि‍टेड के निकाले गये ठेका मज़दूरों का संघर्ष जारी

शिरोकी टेक्निको प्राइवेट लिमि‍टेड, बावल, ज़ि‍ला रेवाड़ी (हरियाणा) के मज़दूर कोर्ट के आदेश के कारण फ़ैक्टरी गेट से 300 मीटर दूर धरना दे रहे हैं और संघर्ष को आगे बढ़ाने की तैयारी में लगे हैं। कम्पनी ने मज़दूरों की माँगों पर लिखित समझौता किया था, पर उन्हें लागू करने के बजाय उल्टा मज़दूरों के अधिकारों व जायज़ माँगों पर हमला कर दिया। दिवाली के बाद एकाएक तानाशाहाना ढंग से घोषणा कर दी कि कम्पनी में ठेका मज़दूरों के ठेकेदारों का ठेका ख़त्‍म कर दिया गया है और सबका गेटबन्द कर छँटनी की घोषणा कर दी।

धरना स्थल पर विभिन्‍न चुनावबाज़ पार्टियों के नेता भी हाज़िरी लगाने पहुँचे। बावल इलाके के कांग्रेसी विधायक चिरंजीव राव भी आये और दो दिन के अन्दर मज़दूरों को कम्पनी के भीतर करवाने का वायदा करके चल दिये। इसके अलावा स्‍वराज इण्‍डिया और आप पार्टी के नेता भी आये। केन्‍द्रीय ट्रेड यूनियनों के नेता भी आये।

शुरू से ही संघर्षरत मज़दूरों के साथ रही ऑटोमोबाइल इण्‍डस्‍ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन (AICWU) के कार्यकर्ताओं ने लगातार मज़दूरों के बीच इस बात पर ज़ोर दिया कि पूँजीपतियों के चन्‍दे से चुनाव लड़ने वाली पार्टियों के चुनावी घोषणापत्र में न तो ठेका प्रथा को ख़त्‍म करने की कोई बात है और न ही ज़मीन पर इसको लेकर किसी तरह का संघर्ष और आन्‍दोलन है, इसलिए इनके भरोसे न रहकर ऑटो सेक्‍टर के ठेका और परमानेण्ट मज़दूरों को अपने इलाक़े के दूसरे मज़दूरों को साथ लेकर साझा मुद्दों पर साझा संघर्ष पर ही भरोसा करना चाहिए। ऐसी लड़ाई एक सेक्‍टरगत/पेशागत यूनियन के तहत ही लड़ी जा सकती है। आज श्रम विभाग, प्रशासन, सरकारें, बिकाऊ मीडिया सभी फ़ैक्टरी मालिकों के लिए काम करते हैं, हमें अपनी सामूहिक एकता पर भरोसा करना चाहिए। हमें अपने आन्दोलन को जल्द से जल्द व्यापक बनाने के प्रयास करने चाहिए।

पिछले दिनों एक तरफ़ ठेका मज़दूरों को मदर कम्पनी और वेण्‍डर कम्पनी जब चाहे तब निकाल रही है, दूसरी तरफ़ परमानेंट मज़दूरों की यूनियनें और फ़ेडरेशन परमानेंट मज़दूरों की छँटनी रोकने, ज़बरन रिटायरमेंट (वीआरएस) को रोकने में या अधिकांश मामलों में समझौतों को करवाने और/या लागू करवाने में कामयाब नहीं हो पा रही हैं। सामूहिक मोलभाव (बारगेनिंग) की ताक़त कम हुई है जिसके चलते मज़दूर कारख़ाना मालिकों और सरकारों की तानाशाही को टक्‍कर नहीं दे पा रहे हैं।

आज इस बात को समझने की ज़रूरत है कि फ़ैक्टरी आधारित परमानेंट मज़दूरों की यूनियन में ठेका मज़दूरों की सदस्‍यता और बराबर की भागेदारी न होने के कारण ठेका और परमानेंट के साझा संघर्षों में ठेका मज़दूर के मुद्दे कहीं पीछे छूट जाते हैं, और अधिकांश मामलों में ठेका मज़दूरों को काम से निकाल दिया जाता है। आज ज़रूरत है कि ठेका और परमानेंट मज़दूरों की साझी पेशागत (सेक्‍टरगत) यूनियन हो, जिसमें ठेका मज़दूरों को यूनियन में सदस्‍यता से लेकर चुनने और चुने जाने का परमानेंट मज़दूरों के बराबर का हक़ हो। जिससे ठेका मज़दूरों के मुद्दे और बराबर की भागीदारी सुनिश्चित की जा सके। इसलिए ठेका मज़दूरों को अपने संघर्ष का ठेका किसी और को देने के बजाय आज सेक्‍टरगत यूनियन में जल्‍द से जल्‍द एकजुट होना होगा। आज इस सेक्टरगत यूनियन में ठेका और परमानेंट मज़दूर दोनों बराबर के सदस्‍य होंगे और एकजुट होकर अपने संघर्ष को सही मायने में आगे बढ़ा पायेंगे। यही आज के वक़्त की ज़रूरत है।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2019


 

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