इस मज़दूर की मौत का ज़िम्मेदार कौन है?

पिछले 13 अक्टूबर को धारूहेड़ा औद्योगिक क्षेत्र स्थित पीएमआई कम्पनी के एक मज़दूर मुकेश कुमार की मृत्यु हो गयी। मज़दूरों के लिए बने रिहायशी लॉज से रात के वक़्त पहली मंज़िल से गिरकर उसकी मौत हुई। 27 साल का मुकेश ग्राम चर्हुआ, ज़िला मुजफ़्फ़रपुर, बिहार का रहने वाला था। उसके पीछे एक ढाई साल की बच्ची और गर्भवती पत्नी है। कारख़ानेदार ने मज़दूरों के रहने के लिए कारख़ाना कैम्पस के साथ ही एक रिहायशी लॉज बनवा रखा है, ताकि दिन-रात चाहे जब मज़दूरों से काम करवाया जा सके। इस कारख़ाने में काम करने वाले क़रीब 700 मज़दूरों में आधे मज़दूर वहीं बने लॉज में रहते हैं। एक कमरे में 4 से 8 मज़दूरों को ठूँसकर रखा जाता है। कुल 63 कमरों में 300 से अधिक श्रमिक रहते हैं।

यह हाल केवल इसी कम्पनी का हो, ऐसी बात नहीं है। गुड़गाँव और उसके आसपास लाखों मज़दूर ऐसे ही हालात में रहते हैं। खस्ताहाल, बदइन्तज़ामी से भरे लॉज कई बीमारियों के साथ-साथ ऐसे हादसों के लिए भी ज़िम्मेदार हैं, जिसमें मुकेश की जान गयी। जिस जगह से मुकेश नीचे गिरा, वहाँ कमरे के बाहर आने-जाने के लिए केवल एक फुट का पतला-सा गलियारा है, जिसमें कोई रेलिंग नहीं है। इस लॉज में टॉयलेट, बाथरूम, गलियारा, सीढ़ियाँ सब टूटी-फूटी हैं और गन्दगी तथा फिसलन बहुत ज़्यादा है। आये दिन मज़दूर वहाँ दुर्घटनाओं व बीमारियों के शिकार होते रहते हैं। लेकिन अपनी नौकरी और रहने की जगह के छूटने के डर से वे चुप रहने के लिए मजबूर होते हैं।

पीएमआई कम्पनी टाटा व अन्य कम्पनियों की बसों व ट्रकों की बॉडी बनाती है। यहाँ मज़दूर दसियों साल से ठेके पर काम कर रहे हैं। उन्हें न तो पक्का किया जाता है और न ही उनके लिए पीएफ़, ईएसआई, पेंशन जैसीकिसी सामाजिक सुरक्षा का प्रबन्ध है और न ही कोई पहचान कार्ड है जिससे वह साबित कर सकें कि वह कम्पनी में सालों से काम कर रहे हैं। कारख़ाने के अन्दर सुरक्षा के ख़राब इन्तज़ाम के कारण अक्सर हादसे होते रहते हैं, जिसमें अंग-भंग होने से लेकर जान तक चली जाती है। इस कारख़ाने में श्रम क़ानूनों का दिनदिहाड़े घोर उल्लंघन चल रहा है और प्रशासन आँखें मूँदे हुए है। ऐसे हादसों के बाद मज़दूरों को डरा-धमकाकर बात दबा दी जाती है। किन्तु इस बार ऑटोमोबाइल इण्डस्ट्री कॉन्ट्रैक्ट वर्कर्स यूनियन व अन्य कारख़ानों के मज़दूरों के दबाव में कारख़ाना प्रबन्धन मुआवज़ा देने के लिए तैयार हुआ।

ऑटो सेक्टर के मज़दूरों के साथ हर जगह इसी तरह का अमानवीय सलूक किया जा रहा है। इसलिए बिना वक़्त गँवाये मज़दूरों को अपनी यूनियन मज़बूत कर इन अन्यायों के ख़िलाफ़ संघर्ष छेड़ना होगा। यही आज हमारे अस्तित्व की शर्त है वरना हम इसकी क़ीमत अपनी जान गँवाकर चुकाते रहेंगे।

कारख़ाना परिसर या रिहायशी जगहों पर होने वाली मौतें हादसा नहीं बल्कि मुनाफ़े की हवस में की गयी हत्याएँ हैं। इन मौतों के लिए ज़िम्मेदार न सिर्फ़ वह कम्पनी, मालिकान व प्रबन्धन है जहाँ मज़दूर काम करता है, बल्कि पूरी पूँजीवादी व्यवस्था है जिसमें मज़दूर बस मालिकों के लिए मुनाफ़ा पैदा करने वाली मशीन के कल-पुरज़े मात्र बना दिये जाते हैं।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2019


 

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