बहाली के मुद्दे पर हरियाणा के 1983 पीटीआई शिक्षक संघर्ष की राह पर

– बिगुल संवाददाता

यह रिपोर्ट लिखे जाने तक दिनांक 8 सितम्बर को पीटीआई शिक्षकों के धरने को 85 दिन हो चुके हैं। भाजपा-जजपा सरकार इन शिक्षकों को लगातार बरगलाने पर लगी है लेकिन शिक्षक भी हार मानने को तैयार नहीं हैं। नित-नये ढंग से पीटीआई शिक्षक अपनी एकजुटता का इज़हार कर रहे हैं। विभिन्न कर्मचारी यूनियन और जन संगठन भी शिक्षक आन्दोलन का समर्थन कर रहे हैं।
विगत 28 मई को सर्वोच्च न्यायालय ने एक आदेश जारी किया था जिसके अनुसार शारीरिक शिक्षकों की 2010 की भर्ती को रद्द कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट अपने फ़ैसले में यह बात साफ़ कहता है कि भर्ती की प्रक्रिया में दिक़्क़तें थीं लेकिन पीटीआई शिक्षकों की कोई ग़लती नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया कि इन 1,983 शिक्षकों को अगले 3 दिन में हटा दिया जाये। सरकार ने बिना ढंग से कोर्ट में ज़िरह किये 1 जून को 1,983 शारीरिक शिक्षकों को नौकरी से हटा दिया।
इस मुद्दे पर पीटीआई अध्यापकों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट में हरियाणा सरकार ने सही ढंग से पीटीआई पक्ष की पैरवी ही नहीं की। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय में यह कहीं नहीं कहा गया है कि शिक्षकों ने धांधली के ज़रिये नौकरी प्राप्त की है। बल्कि आयोग के भर्ती के तरीक़े पर सवाल उठाते हुए भर्ती को रद्द किया है। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि इन अध्यापकों को निकालकर आप मैन पावर कहाँ से लाओगे? इस पर भी सरकार ने गोल-मोल जवाब देते हुए 1983 पीटीआई की ज़रूरत को ही नकार दिया।
पीड़ित अध्यापक कहते हैं कि अब ये कहाँ का न्याय है कि करे कोई और भुगते कोई। 10 साल अपनी सेवाएँ देने के बदले सरकार ने इन्हें बेरोज़गार कर दिया है और कोरोना जैसी महामारी के संकट में सड़क पर उतरने के लिए मजबूर कर दिया है। कई शिक्षक जिनकी मौत हो चुकी है उनके निर्भरों को पेंशन मिल रही है, अब नौकरी जाने के बाद उक्त निर्भर भी सड़क पर आ जायेंगे। शिक्षकों का कहना है कि भर्ती कांग्रेस की भूपेन्दर सिंह हुड्डा सरकार के कार्यकाल में हुई थी इसलिए इस पर राजनीति की जा रही है। कर्मचारी मुख्यमंत्री व तमाम मंत्रियों-उच्चाधिकारियों से भी न्याय की गुहार लगाते हुए कई बार मिल चुके हैं लेकिन इन सबका रुख़ इस मुद्दे के प्रति सकारात्मक नहीं है। मुख्यमंत्री बेतुके बयान दे रहे हैं, उनका कहना है कि अगर आप में योग्यता है तो नयी भर्ती की परीक्षा दीजिए और रोज़गार बचा लीजिए। कभी सरकार कहती है कि वह पीटीआई शिक्षकों को अतिथि अध्यापकों की तर्ज़ पर सहयोजित करने के लिए तैयार है। असल में कोर्ट के सामने सरकार के द्वारा कर्मचारियों के पक्ष की ढंग से पैरवी नहीं की गयी है। ख़ुद खट्टर सरकार के राज में तो सीधे तौर पर भर्तियों में अनियमिताएँ पायी गयी हैं। नायाब तहसीलदार का तो पेपर ही लीक हो गया था। पेपर लीक करवाने वाले जेल में हैं परन्तु खट्टर साहब ने भर्ती को कैंसिल नहीं किया। इतनी धांधली होने के बावजूद भी भर्तियों में पारदर्शिता का ढोंग किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने पीटीआई भर्ती को जिन दो तर्कों पर कैंसिल किया है उनमें से एक यह है कि भर्ती की प्रक्रिया किस आधार पर होगी व किस चीज़ को कितनी वेटेज मिलेगी यह साफ़ नहीं था। खट्टर सरकार के कार्यकाल में भी बहुत सारी भर्तियों में यही कमी रही है लेकिन खट्टर सरकार अपनी इस कमी पर कोई बात नहीं कर रही है।
भर्ती प्रक्रियाओं को सरल-पारदर्शी बनाकर समयबद्धता के साथ निबटाया जाना चाहिए। लेकिन हमारे यहाँ एक भर्ती पूरी होने में ही वर्षों निकल जाते हैं। फिर अगर कोई धाँधली होती है तो न्यायालय इतनी धीमी प्रक्रिया से फ़ैसले लेते हैं कि उसमें भी सालों लग जाते हैं। बहुत बार आयोग और अफ़सरशाही की ग़लती का शिकार कर्मचारियों को बना दिया जाता है।
फ़िलहाल रिपोर्ट लिखे जाने तक नौकरी बहाली के लिए 1983 पीटीआई शिक्षकों का आन्दोलन पुरज़ोर तरीक़े से जारी है।

मज़दूर बिगुल, अप्रैल-सितम्बर 2020


 

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