मुफ़्त पानी और बिजली से वंचित दिल्ली की बहुसंख्यक मज़दूर आबादी

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल पिछले दिनों कभी गोआ, कभी पंजाब तो कभी उत्तराखण्ड जाकर प्रचार कर रहे हैं कि अगर हमारी ‘आम आदमी पार्टी’ की सरकार बनी तो 300 यूनिट तक बिजली सभी लोगों को मुफ़्त दी जायेगी। भाजपा और संघ परिवार का कच्छा पहन चुके केजरीवाल दावा करते हैं कि दिल्ली में लगभग 70 फ़ीसदी लोगों का बिजली का बिल ज़ीरो आता है और दिल्ली की 93 फ़ीसदी कॉलोनियों में पानी की लाइन बिछा दी गयी है और इन सभी इलाक़ों में अधिकतर लोगों को पीने का पानी मुफ़्त मिल रहा है। केजरीवाल का दावा है कि दिल्ली की बहुसंख्यक आबादी को उनकी सरकार बनने के बाद से बिजली और पानी मुफ़्त मिलता है।
केजरीवाल के इन दावों को सुनकर यह तो साफ़ है कि अपने बड़े भाई मोदी की तरह जुमलेबाज़ी और झूठे दावे करने में केजरीवाल भी कम नहीं है। असलियत यह है कि दिल्ली की मज़दूर व किरायेदार आबादी के लिए मुफ़्त पानी और बिजली आज भी एक हवाई बात है। दिल्ली की बहुसंख्यक मज़दूर/किरायेदार आबादी को न साफ़ पीने का पानी मुफ़्त में मिलता है और न ही उसके लिए बिजली मुफ़्त है। ख़ासकर दिल्ली की आम मेहनतकश आबादी के करावलनगर, खजूरी, सोनिया विहार, मुस्तफ़ाबाद, सीलमपुर और बवाना, वज़ीरपुर, शाहाबाद डेरी जैसे कई और इलाक़ों में बहुसंख्यक आबादी के लिए मुफ़्त बिजली-पानी की बात बस एक जुमला है। इन इलाक़ों में केजरीवाल सरकार के लगभग 8 साल होने के बाद आज भी पीने के पानी की लाइन घर-घर नहीं पहुँची है। यहाँ रहने वाली मध्यम वर्ग की कुछ आबादी तो अपने घरों में पानी साफ़ करने की आर.ओ. मशीन लगा लेती है और ज़मीन के पानी को साफ़ करके इस्तेमाल करती है। लेकिन मज़दूर और आम मेहनतकश आबादी या तो गलियों में लगे सरकारी नल से पानी लाती है, जो पूरे इलाक़े में नाममात्र ही बचे हैं और जो बचे हैं उनमें भी पानी कभी-कभी ही आता है, और जब आता भी है तो पानी आम तौर पर गन्दा होता है, पीने लायक़ नहीं होता है।
उत्तर-पूर्वी दिल्ली के श्रीराम कॉलोनी खजूरी इलाक़े में ये नलके भी नाली से सटाकर लगाये गये हैं जहाँ कूड़ा भी पड़ा रहता है। ग़रीब लोग मजबूरी में यहीं से पीने का पानी भरते हैं। कुछ इलाक़ों में सरकारी पानी के टैंकर आते हैं पर यह टैंकर भी आबादी के अनुपात में बेहद कम संख्या में आते हैं। इनसे पानी भरने के लिए 2 से 3 घण्टा लग जाता है। ये टैंकर नियमित भी नहीं आते हैं। कोरोना महामारी के शुरू होने से लेकर अब तक भी इन टैंकरों की संख्या सरकार द्वारा नहीं बढ़ायी गयी जिसके चलते टैंकर के आने पर बहुत ज़्यादा भीड़ एकत्रित हो जाती है और मजबूरी के चलते शारीरिक दूरी बन ही नहीं पाती है। ऐसे में इन इलाक़ों में कोरोना महामारी फैलने का डर ज़्यादा बना रहता है, पर केजरीवाल सरकार सब जानते हुए इसे अनदेखा करती है।
इन इलाक़ों में पानी की बोतल (20 लीटर) बेचने का व्यापार पिछले कुछ सालों में बहुत ज़्यादा बढ़ गया है। हर चौथी या पाँचवी गली में एक प्लाण्ट लगा है जहाँ से मज़दूर आबादी अपने ख़ाली बर्तन या कैन में पानी पैसा देकर भरती है या फिर पानी की बोतल ही घर पर मँगा लेती है। खजूरी इलाक़े में ही लगभग 25 से 30 प्लाण्ट लगे हैं जहाँ से पानी की बोतलें (प्रति बोतल 20 रुपये) घर-घर बेची जाती हैं। फ़िलहाल इस इलाक़े की 80 फ़ीसदी आबादी इन बोतलों को ख़रीदकर ही पानी पीती है। ‘बिगुल मज़दूर दस्ता’ की जाँच-पड़ताल में पाया गया कि इस इलाक़े की बहुसंख्यक मज़दूर आबादी का 1 बोतल लेने पर हर माह सिर्फ़ पानी पर ख़र्चा 600 रुपये होता है और जिस मज़दूर परिवार को 2 या 3 बोतल रोज़ाना ख़रीदनी पड़ती हैं उनका 1200 से1800 रुपये तक हर माह पानी पर ख़र्च होता है! सरकार के प्रश्रय और उदासीनता के कारण पानी बेचने के धन्धे से पानी माफ़िया दिल्ली में मालामाल हो रहा है। इनमें से कई तो ख़ुद आम आदमी पार्टी के नेता व सदस्य हैं और कई उसको नियमित पर्याप्त चन्दा भी देते हैं। अगर सरकार ने हर इलाक़े में पानी की समुचित व्यवस्था कर दी और घर-घर साफ़ पानी पहुँचा दिया, तो इस पानी माफ़िया पूँजीपति वर्ग का क्या होगा?
बहरहाल, दिल्ली के अधिकतर मज़दूर इलाक़ों का भी कमोबेश हाल यही है। कोरोना काल में जब बहुत से मज़दूरों का काम छूट गया या वेतन कम हो गया है, ऐसे में पीने के पानी पर इतना ख़र्च एक भारी बोझ है। पीने का साफ़ पानी सभी को मुफ़्त मिलना किसी भी नागरिक का बुनियादी अधिकार है। दिल्ली की आबादी 2 करोड़ है, इस हिसाब से दिल्ली को 609 एमजीडी (मिलियन गैलन प्रतिदिन) पीने का पानी चाहिए। दिल्ली पानी की आपूर्ति के लिए हरियाणा राज्य पर भी निर्भर होती है। केजरीवाल सरकार का आरोप है, जितना पानी हरियाणा को दिल्ली भेजना होता है, उतना नहीं भेजा जाता है। हालाँकि हरियाणा सरकार दिल्ली सरकार की इस बात को ख़ारिज करती है। ख़ैर, पूँजीपतियों के तलवे चाटने वाली दोनों सरकारों की खींचतान में पिसती है दिल्ली की ग़रीब जनता जिस तक पीने का पानी तक नहीं पहुँच पाता है। एक बार मान भी लें कि हरियाणा सरकार दिल्ली को पर्याप्त पानी नहीं देती, तब ऐसे में केजरीवाल हमेशा सभी दिल्ली वालों को मुफ़्त पानी देना का राग क्यों अलापता रहता है? एक ख़बर के मुताबिक़ दिल्ली जल बोर्ड के पास 10 साल पहले 30 हज़ार से अधिक कर्मचारी थे, जो पाइपलाइन की देखरेख से जुड़े थे। आज इनकी संख्या 15 हज़ार से भी कम हो गयी है। बीते 10 सालों से नयी नियुक्ति बन्द है। आधे से भी कम कर्मचारियों से काम चलाया जा रहा है। केजरीवाल सरकार इन कर्मचारियों की भर्ती नहीं कर रही है।
जहाँ तक 24 घण्टे मुफ़्त बिजली देना का वायदा है, तो उसकी भी असलियत यही है कि दिल्ली में किरायेदार ग़रीब आबादी के लिए बिजली मुफ़्त नहीं है। बल्कि इस किरायेदार आबादी को तो बिजली के सरकारी रेट से ज़्यादा देना पड़ता है, इस समय दिल्ली में सरकारी रेट 3 रुपये प्रति यूनिट है, जिसमें 200 यूनिट तक मुफ़्त हैं। मकानमालिक एक किरायेदार के कमरे पर एक सबमीटर (छोटा मीटर) लगा देता है और इस पर 7 से 9 रुपये तक प्रति यूनिट लेता है। इस तरह किरायेदार का हर माह बिजली का बिल औसतन 500 से 800 बन जाता है, जबकि केजरीवाल सरकार कहती है कि किरायेदार सबमीटर न लगवाकर अलग से सरकारी मीटर ही लगवा सकते हैं। इसके लिए मकान मालिक के ज़मीन के काग़ज़ व आधार कार्ड लगेगा। अब यह तो कोई भी समझ सकता है कि आमतौर पर कोई भी मकानमालिक अपने ज़मीन के काग़ज़ किरायेदार को बिजली का नया मीटर लगाने के लिए नहीं देगा। असल में केजरीवाल सरकार भी मोदी सरकार की तरह घोर मज़दूर-विरोधी ही है। दिल्ली में रहने वाली बहुसंख्यक मज़दूर आबादी के लिए तो आम आदमी पार्टी की केजरीवाल सरकार भी कांग्रेस और भाजपा की सरकारों जैसी ही लुटेरी है, बस फ़र्क़ यह है कि कोई पूँजीपतियों की सेवा करने का काम ज़्यादा तेज़ी और मज़दूर-विरोधी तरीक़े से करता है, तो कोई थोड़ा धीमे रफ़्तार से। लेकिन सेवा ये सभी पूँजीवादी चुनावी पार्टियाँ पूँजीपतियों की ही करती हैं क्योंकि ये उन्हीं के दिये धन पर पलती हैं।

मज़दूर बिगुल, सितम्बर 2021


 

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