क्यूबा में साम्राज्यवादी दख़ल का विरोध करो!

– सनी

जुलाई से ही क्यूबा में विपक्ष के नेताओं के आह्वान पर हज़ारों लोगों के सड़कों पर उतरने की ख़बरें आ रही हैं। बिजली कटौती, खाद्य सामग्री का महँगा होना व कोरोना के नये संस्करण के चलते बीमारी का फैलना प्रमुख कारण थे जिनके ख़िलाफ़ आम जनता में रोष है। परन्तु जब इसके साथ ही अमेरिका के सारे मीडिया चैनल और अख़बार ‘क्यूबा की मदद करो’ और इन आन्दोलनों को ‘जनवाद की बहाली’ बताने का आन्दोलन बताने लगते हैं तो समझ में आता है कि दाल में कुछ काला है! जब भी साम्राज्यवादी हत्यारा अमेरिका कहीं जनवाद बहाली और मानवता के नाते हस्तक्षेप करने की बात करने लगे तो हिरोशिमा, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान से लेकर अफ़्रीका और लातिन अमेरिका, कोरिया और उन दर्जनों मुल्कों के उन लोगों के चेहरे सामने आ जाते हैं जिनकी हत्या साम्राज्यवादी अमेरिका कर चुका है। अफ़ग़ानिस्तान को तबाही के कगार पर पहुँचाकर अमेरिका अफ़ग़ानिस्तान से सैन्य ख़र्चे के नुक़सान न उठा पाने की क्षमता के चलते भाग खड़ा हुआ है। वहीं क्यूबा में मानवीय हस्तक्षेप की बात करने वाली साम्राज्यवादी अमेरिकी सरकार ने क्यूबाई क्रान्ति के बाद से ही क्यूबा पर कई प्रतिबन्ध थोपे हुए हैं और वहाँ की लोकप्रिय जनपक्षधर सत्ता को गिराने की भी दर्जनों गुप्त व खुली कोशिशें की हैं। क्यूबा का गला घोंटकर अमेरिका ऐसी परिस्थिति पैदा करना चाहता है कि वह क्यूबाई सरकार को उखाड़ सके। हालाँकि पिछले साठ सालों में उसे सफलता नहीं मिली है।
आर्थिक घेराबन्दी के चलते ही क्यूबा की अर्थव्यस्था आज संकट से जूझ रही है। दूसरी ओर, क्यूबा का विपक्षी नेता अमेरिकापरस्त है। यह लातिन अमेरिका में अमेरिकी प्रयोगों की ही याद दिलाता है। लगभग 60 सालों से अमेरिका को उसके ही पिछवाड़े में चुनौती देता क्यूबा चुभता रहा है। निश्चित ही क्यूबा समाजवादी देश नहीं है और बल्कि समाजवाद के प्रति रुझान रखने वाली नीतियों वाला राजकीय पूँजीवाद का कल्याणकारी मॉडल है, जो कि साम्राज्यवाद-विरोधी है और क्यूबाई जनता के बीच अमेरिका साम्राज्यवाद के विरुद्ध बेपनाह नफ़रत के बूते टिका हुआ है। लेकिन अपने आन्तरिक अन्तरविरोधों और साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था के डगमगाने और साम्राज्यवादी दबाव के कारण वह इस समय संकट में है।

क्यूबा में बढ़ती महँगाई और बढ़ती असमानता

क्यूबा में कोविड के कारण गहराये आर्थिक संकट का गहरा असर पड़ा है। अमेरिका की आर्थिक पाबन्दियों को झेल रहा क्यूबा कोविड काल में अर्थव्यवस्था को लगे धक्के में लड़खड़ा गया। पर्यटन का सेक्टर क्यूबा में बड़ा सेक्टर है परन्तु कोविड के कारण यह पूरी तरह से बन्द है। आवश्यक वस्तुओं के दाम आसमान छू रहे हैं। वहीं एक आबादी इस सबके बावजूद अमेरिका में परिवारों द्वारा भेजे गये डॉलरों की वजह से बेहतर स्थिति में है। प्रदर्शनों में ऐसे अमेरिकी आयातित डॉलरों से क्यूबा की एक आबादी द्वारा बनाये “डॉलर स्टोर” भी निशाने पर आये जो कि सामाजिक असमानता के ख़िलाफ़ जनता का ग़ुस्सा ज़ाहिर करता है। महँगाई, बेरोज़गारी और हर दिन 6-6 घण्टे बिजली की कटौती के कारण ही जनता के एक हिस्से में रोष व्याप्त था।
सेन एण्टानियो दे लोस बानोस से शुरू हुए प्रदर्शन हवाना से लेकर अन्य शहरों में फैल गये। इन प्रदर्शनों के पीछे कोविड काल में पैदा हुई समस्याओं को क्यूबा के राष्ट्रपति ने स्वीकार किया है। 1994 में आर्थिक संकट के कारण क्यूबा में जनता ने व्यापक प्रदर्शन किये थे जिन्हें फ़िदेल कास्त्रो ने जनता के बीच उतरकर क़ाबू किया था। अमेरिका-परस्त विपक्षी नेता लूइस मैनूएल ओतेरा के नेतृत्व में भी कई लोग सड़कों पर उतर पड़े। कई गर्वनरों ने क्यूबा में सैन्य हस्तक्षेप के लिए माहौल बनाया। क्यूबा में मौजूदा आन्दोलन और उसमें अमेरिका-परस्त राजनीतिक शक्तियों के दख़ल को समझने के लिए हमें क्यूबा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से परिचित होना बेहतर होगा।
लातिन अमेरिका में क्यूबा सबसे अन्त में आज़ाद हुआ था और उसके बाद भी अमेरिकापरस्त सरकारें वहाँ सत्ता में बैठती रहीं। क्यूबा में अमेरिका-परस्त तानाशाह बतिस्ता के ख़िलाफ़ क्रान्ति का नेतृत्व फ़िदेल कास्त्रो, चे ग्वेरा व अन्य क्रान्तिकारी नेताओं ने किया। समूचे लातिन अमेरिका की ही तरह क्यूबा की जनता में ज़बर्दस्त साम्राज्यवाद-विरोधी भावना मौजूद रही है। क्यूबा में बतिस्ता की अमेरिका-परस्त तानाशाह सरकार के ख़िलाफ़ जनता में ग़ुस्सा मौजूद था। 1953 में 26 जुलाई आन्दोलन से शुरू हुई बग़ावत 1959 की क्रान्ति में परिणत हुई। क्रान्ति के बाद फ़िदेल कास्त्रो और चे ग्वेरा ने 1961 में ‘बे ऑफ़ पिग्स’ जनता को हथियारबन्द कर संघर्ष किया और साम्राज्यवादी हस्तक्षेप का मुँहतोड़ जवाब दिया। सामाजिक साम्राज्यवादी सोवियत रूस ने क्यूबा को शीत युद्ध में रणनीतिक संश्रय में शामिल किया। 1965 में क्यूबा में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई और तत्कालीन सरकार ने समाजवादी संक्रमण की ओर बढ़ने का आह्वान किया। परन्तु कम्युनिस्ट पार्टी मार्क्सवादी-लेनिनवादी नहीं थी बल्कि व्यवहारवादी थी और विचारधारात्मक तौर पर कहें तो संशोधनवादी थी। इतिहास के ख़ास दौर और ख़ास परिस्थितियों में अस्तित्व में आयी यह व्यवस्था समाजवाद की ओर झुकाव वाली कल्याणकारी राज्य व्यवस्था थी।
क्यूबा की सरकार ने चीनी पर निर्भरता को ख़त्म कर अपनी अर्थव्यवस्था को वैविध्यपूर्ण बनाने का प्रयास किया परन्तु यह सीमित संसाधनों की वजह से बेहद मुश्किल था। 1990 तक क्यूबा को अमेरिका के आर्थिक प्रतिबन्धों को वहन कर पाने में सोवियत संघ की मदद मिलती रही। मसलन तेल के लिए क्यूबा सोवियत संघ पर ही निर्भर था व चीनी की बिक्री भी मुख्यत: सोवियत रूस को ही होती रही। परन्तु सोवियत संघ के बिखरने के बाद तेल के लिए क्यूबा को ख़ुद ही नये इन्तज़ाम करने थे। 1994 में शुरू हुए विरोध का कारण भी आर्थिक संकट ही था जिसे क्यूबा ने अपनी अर्थव्यवस्था को अधिक खुला करके पूरा किया। ऐतिहासिक परिस्थितियों की विशिष्टता के चलते ही क्यूबा में राजकीय फ़ार्म व राज्य के नियंत्रण में चल रही फ़ैक्टरियाँ अस्तित्व में आयीं। यह विशेष क़िस्म का कल्याणकारी मॉडल था जो कि केवल उस काल में ही अस्तित्व में आ सकता था। इसके पीछे एक साम्राज्यवादी-विरोधी और समाजवाद के प्रति रुझान रखने वाली पार्टी का होना, साम्राज्यवाद के विरुद्ध जनता के भीतर गहरी घृणा की मौजूदगी, और अन्तरराष्ट्रीय राजनीतिक समीकरणों की एक अहम भूमिका थी। पार्टी का नेतृत्व ईमानदारी के बावजूद मार्क्सवाद-लेनिनवाद की सैद्धान्तिकी से दूर था। यही कारण था कि जब सोवियत संघ ख्रुश्चेव के नेतृत्व में संशोधनवाद की राह पर चल पड़ा और ‘महान बहस’ के दौरान माओ के नेतृत्व में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ने उसके संशोधनवाद की कठोर आलोचना पेश की, तो क्यूबा की पार्टी ने सोवियत संघ की संशोधनवादी पार्टी का पक्ष लिया। समाजवादी निर्माण के विषय में सही मार्क्सवादी समझदारी और समाजवादी समाज के दौरान जारी वर्ग संघर्ष के विषय में उसकी कोई सुसंगत समझदारी नहीं थी और विचारधारात्मक व राजनीतिक तौर पर उसके संशोधनवाद के कारण उसमें हो भी नहीं सकती थी। कुछ दशकों में ही क्यूबा में खुले पूँजीवाद की पुर्नस्थापना आन्तरिक तौर पर होने लगी। सोवियत यूनियन के पतन के साथ ही क्यूबा का अल्पजीवी अनोखा प्रयोग और तेज़ी से बिखरने लगा। यह सच है कि क्यूबा के समाजवाद के प्रति रुझान रखने वाले कल्याणकारी राजकीय पूँजीवाद के मॉडल के टिक पाने में कई वस्तुगत बाधाएँ थीं। लेकिन यह भी सच है कि इन परिस्थितियों में कोई क्रान्तिकारी कम्युनिस्ट पार्टी ही इन बाधाओं से सही तरीक़े से निपट सकती थी, जिसके पास एक सही वैज्ञानिक समझदारी हो और एक क्रान्तिकारी जनदिशा हो। लेकिन क्यूबा की कम्युनिस्ट पार्टी शुरू से ही विचारधारात्मक तौर पर कमज़ोर थी और संशोधनवाद (यानी नाम से समाजवादी लेकिन असल में पूँजीवादी) के साथ जुड़ गयी थी।
1990 के बाद से ही डॉलर के निर्यात को क्यूबा में इजाज़त मिली व निजी सम्पत्ति की इजाज़त भी मिली। मुख्य रूप से अमेरिका में रह रहे प्रवासी क्यूबाई लोगों द्वारा क्यूबा में रह रहे रिश्तेदारों को पैसा भेज निवेश किया गया जिससे अन्तत: पूँजीवादी सम्बन्धों का विकास हुआ और आर्थिक असमानता बढ़ी। विश्व बाज़ार के लिए दवा क्षेत्र में अनुसन्धान और कृषि में ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग का कार्य किया जा रहा था। नयी सहस्राब्दि के शुरू होने के बाद बराक ओबामा और राउल कास्त्रो की मुलाकात क्यूबा के साम्राज्यवादी अमेरिका के साथ सम्बन्धों को सुधारने व अर्थव्यवस्था को और अधिक खुला करने की तरफ़ बढ़ा हुआ क़दम था। 2018 के अन्त में सरकार ने उत्पादन के साधनों का निजीकरण करने का बड़ा क़दम उठाया। विशिष्ट परिस्थितियों में पैदा हुआ समाजवादी तत्वों वाला कल्याणकारी क्यूबन मॉडल खुले पूँजीवाद के रूप में धीरे-धीरे परिवर्तित हो रहा था। यह प्रक्रिया 1990 में सोवियत रूस के विघटन के बाद बेहद तेज़ी से आगे बढ़ी। इक्कीसवीं सदी में आते-आते क्यूबा की अर्थव्यवस्था काफ़ी खुल चुकी थी और देश में शासन करने वाली नौकरशाह बुर्जुआज़ी के बरक्स अमेरिका-परस्त पूँजीपति वर्ग का धड़ा पैदा हुआ है। 1990 के बाद से ही बाज़ार के लिए धीरे-धीरे खुलती अर्थव्यवस्था तेज़ी से निजीकरण की ओर अग्रसर है। 2018 के अन्त में ही क्यूबा ने निजीकरण की तरफ़ क़दम और आगे बढ़ाये थे जिसके अर्न्तगत राजकीय कम्पनियों को भी निजी हाथों में बेचने की छूट मिल गयी है। क्यूबा के समाजवाद के प्रति रुझान रखने वाले कल्याणकारी राजकीय पूँजीवाद के मॉडल की इस नियति का कारण वस्तुगत बाधाओं और चुनौतियों के बावजूद मुख्य रूप से वहाँ की राज्यसत्ता में क़ाबिज़ पार्टी का राजनीतिक और विचारधारात्मक चरित्र है। यह पार्टी अपने साम्राज्यवाद-विरोध के बावजूद शुरू से ही सच्चे मायनों में कोई मार्क्सवादी-लेनिनवादी पार्टी नहीं रही है, बल्कि विचारधारात्मक रूप से बेहद कमज़ोर संशोधनवादी पार्टी रही है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था में जुड़ चुकी क्यूबा की अर्थव्यवस्था भी कोविड संकट के कारण गहराये वैश्विक आर्थिक संकट में डांवाडोल हो गयी। परन्तु इस सबके बावजूद क्यूबा की सरकार अमेरिकी साम्राज्यवाद को चुनौती देती रही है। अमेरिका ने आर्थिक-सामरिक-राजनीतिक तरीक़ों से क्यूबा की स्वतंत्र जनता को अपने मातहत करने की बार-बार नाकाम कोशिश की है। भले ही क्यूबा में कम्युनिस्ट सत्ता और सही मायने में समाजवादी व्यवस्था मौजूद नहीं है लेकिन क्यूबा में अभी भी जनता की क्रान्तिकारी ऊर्जा के बूते किये गये क्रान्तिकारी प्रयोगों के अवशेष बचे हैं। लोगों के पास अन्य देशों के मुक़ाबले अधिक जनवादी अधिकार हासिल हैं और साम्राज्यवाद के प्रति उनकी नफ़रत आज भी उतनी ही गहरी है जितनी कि हमेशा से रही है।
अमेरिका ने हर हमेशा क्यूबा की साम्राज्यवाद-विरोधी सरकार को कुचलने की कोशिश की है। सीआईए ने फ़िदेल कास्त्रो को अनेक बार मारने का प्रयास किया। हर बार किसी अमेरिका-परस्त नेता को ‘तानाशाही के ख़िलाफ़’ और कम्युनिज़्म विरोध के नारों के साथ पश्चिमी मीडिया में मदद मिलती रही है। मौजूदा विरोध में भी ‘मातृभूमि और जि़न्दगी’, ‘कम्युनिज़्म मुर्दाबाद’ तथा ‘तानाशाही मुर्दाबाद’ के नारे मूलत: क्यूबा के विपक्षी नेता के समूह द्वारा उछाले गये। मौजूदा प्रदर्शन में आम मेहनतकश जनता के रोष का इस्तेमाल अमेरिकापरस्त विपक्ष द्वारा किया जा रहा है। ‘क्यूबा की आज़ादी’ और अमेरिका से दख़ल की माँग के ख़िलाफ़ क्यूबा की सत्तारूढ़ पार्टी ने भी अपने देश की व्यवस्था को बचाने का आह्वान किया है। साम्राज्यवादी अमेरिका ने इसपर क्यूबा की सरकार की आलोचना की है कि जनता को विरोध प्रदर्शन करने का हक़ है! यह वही अमेरिका है जिसने ढाई सौ से भी ज़्यादा वर्षों से अपने देश में काले लोगों, प्रवासियों, मज़दूरों व ग़रीब श्वेत लोगों तक को बुनियादी जनवादी अधिकारों तक से वंचित रखा है! अमेरिका के तमाम पूँजीवादी राजनीतिज्ञों ने बाइडेन से समूचे लातिन अमेरिका पर अमेरिका के साम्राज्यवादी नियंत्रण की बात करने वाले ‘मुनरो सिद्धान्त’ को फिर से लागू करने की माँग उठाते हुए क्यूबा में अमेरिकी हस्तक्षेप करने की माँग की है। कई नेता तो अमेरिका द्वारा क्यूबा को नेस्तनाबूद करने तक की माँग उठा रहे हैं!

मज़दूरों का पक्ष

हम मज़दूरों का इसमें क्या पक्ष हो? निश्चित ही आज क्यूबा में सही मायने में एक क्रान्तिकारी सर्वहारा वर्ग का हिरावल सत्ता में नहीं है। परन्तु आज क्यूबा में जो हो रहा है वह केवल आन्तरिक वर्ग संघर्ष का नतीजा नहीं है बल्कि अमेरिकी साम्राज्यवादी हस्तक्षेप की वजह से भी है। क्यूबाई आम मेहनतकश जनता के अपनी सरकार के विरोध करने और प्रदर्शन करने के हक़ का समर्थन करते हुए हमें अमेरिकी और किसी भी साम्राज्यवादी हस्तक्षेप का विरोध करना होगा। हमें क्यूबा के भीतर जारी वर्ग संघर्ष में किसी भी साम्राज्यवादी हस्तक्षेप का विरोध करना चाहिए। क्यूबा में समाजवाद की ओर रुझान रखने वाले कल्याणकारी राजकीय पूँजीवाद के आन्तरिक संकट का जो भी नतीजा हो, क्यूबाई पार्टी की जो भी विचारधारात्मक व राजनीतिक कमज़ोरियाँ हों, यह किसी भी साम्राज्यवादी शक्ति को क्यूबा में हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं देतीं और हम मज़दूरों को इस प्रकार के किसी भी हस्तक्षेप का पुरज़ोर विरोध करना चाहिए।

मज़दूर बिगुल, नवम्बर 2021


 

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