कारख़ाना इलाक़ों से
हज़ारों कारख़ाने, लाखों मज़दूर, मगर शोषण जारी बदस्तूर

सावित्री देवी, बादली, दिल्ली

मैं समयपुर औद्यौगिक क्षेत्र की एक कुकर फ़ैक्‍ट्री में काम करती हूँ। यह बहुत बड़ा रिहायशी इलाका है जिसमें यादवनगर, लिबासपुर, सिरसपुर, राणा पार्क, जीवन पार्क, भगतसिंह पार्क, संजय कालोनी आदि आते हैं। मगर यहाँ पर फ़ैक्ट्रियों की तादाद भी बहुत बड़ी है। इनमें घरों में मशीन लगाकर 4 लोगों से काम कराने वानी  से लेकर बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ तक हैं जिनमें कि 400 तक वर्कर काम करते हैं। सब मिलाकर इस इलाके में लगभग 25-30 हजार फ़ैक्ट्रियां होंगी जिनमें ढाई-तीन लाख मज़दूर काम करते होंगे। फ़ैक्ट्रियों की इतनी बड़ी तादाद को देखते हुए अभी दो साल पहले इस इलाके को समयपुर औद्योगिक क्षेत्र घोषित किया गया। यहाँ के तमाम इकाइयों में खुलेआम ग़ैरकानूनी तरीके  से मज़दूरों का शोषण होता है।

लगभग 100 गज के प्लॉट में बनी मेरी फ़ैक्‍ट्री में चार दीवारों के ऊपर टीन की छत पड़ी है, जिससे सर्दी, गर्मी, बरसात हर मौसम में बुरा हाल रहता है। इसमें कुल 22 लोग काम करते हैं, 4 महिलाएँ, 18 पुरुष। मालिक ने सारा काम ठेकेदार को सौंप रखा है। इसमें एल्‍युमिनियम के सर्किल बने बनाये आते हैं। उनको पहले मशीन से गोल भगौने जैसा बनाते हैं, उसके बाद गोल घूमने वाली मशीन में मुड़ाई करते हैं। उसके बाद सुराख होता है। उसके बाद बफिंग के लिए जाते हैं चमकने के लिए। फिर बाहर आकर कूकर के अन्दर सफ़ाई के लिए रेगमाल लगाया जाता है। उसके बार फिर बफिंग होती है। फिर रेगमाल लगाकर पेंदी, उसके बाद हैण्डिल लगाते हैं। फिर ढक्कन लगाकर कुकर तैयार हो जाता है। यहाँ रोज़ाना लगभग 500 कुकर तैयार होते हैं। कम्पनी में 15 ”हेल्पर” हैं जिनकी तनख्वाह 3500 रुपये है। बाकी 7 लोगों में 2 पीस रेट पर हैं, 3 बफ अड्डे पर काम करने वाले और 2 कारीगर। किसी को भी क़ानून के अनुसार वाजिब तनख्वाह नहीं मिलती।

कुकर की घिसाई (बफिंग)  के कारण बहुत ज़्यादा गर्दा उड़ता है। हमने सुना है कि प्रदूषण वाली फ़ैक्‍ट्री में हर मज़दूर को रोज़ाना 100 ग्राम गुड़ व 250 मिली दूध देने का क़ानून है। मगर यहाँ तो ड्यूटी के समय में किसी को एक कप चाय तक नहीं मिलती। रोज़ कम-से-कम दो घण्टा ओवरटाइम लगाना ज़रूरी है जिसका पैसा सिंगल रेट से ही मिलता है। मैंने पिछले महीने काम छोड़ दिया क्योंकि प्रदूषण बहुत ज़्यादा होता है। मुझे लगातार खाँसी आने लगी थी। 50 से ऊपर की उम्र में मेरे लिए इस तरह का काम करना कठिन हो रहा था। मैंने ठेकेदार से हिसाब करने को कहा तो कहता है कि जो हमें खड़े-खड़े जवाब देता है, उसके लिए यही नियम है कि हिसाब अगले महीने लेना। यानी अपनी महीने भर की मज़दूरी लेने के लिए भी मुझे चक्कर लगाने पड़ेंगे। लेकिन इस इलाके  में सभी मज़दूरों के साथ ऐसा ही होता है। कोई एकजुट होकर बोलता नहीं है इसलिए मालिकों और ठेकेदारों की मनमानी पर कोई रोक-टोक नहीं है।

 

मज़दूर बिगुल, जून 2012

 


 

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