गौतम नवलखा जैसे मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर बन्दिश लगाकर भारत सरकार कश्मीर की सच्चाई को छुपा नहीं सकती

भारत सरकार कश्मीर में जनता के दमन और उत्पीड़न की सच्चाई को देश की जनता से छुपाने की लगातार कोशिश करती है। सेना और अर्द्धसैनिक बलों द्वारा मानवाधिकारों के उल्लंघन के हज़ारों मामले राष्ट्र की सुरक्षा के नाम पर दबा दिये जाते हैं। अवैध गिरफ्तारियाँ, फर्ज़ी मुठभेड़ों में नौजवानों की हत्याएँ, सैनिकों द्वारा बलात्कार, अपहरण की न जाने कितनी घटनाएँ सामने लायी जा चुकी हैं लेकिन किसी भी मामले में जनता को इंसाफ़ नहीं मिला। पिछले कुछ महीनों से सरकार कश्मीरी लोगों के साथ वार्ताओं का एक नाटक चला रही है लेकिन सच तो यह है कि कश्मीर में सेना और पुलिस के दम पर जनता का गला घोंटकर रखा गया है जो वहाँ के आम लोगों और नौजवानों में भारत के ख़िलाफ नफरत को और तेज़ करने का ही काम कर रहा है। मुख्यमन्त्री उमर अब्दुल्ला की सरकार पूरी तरह जनता से कट चुकी है और राज्य को एक ऐसी जेल में तब्दील कर दिया है जहाँ अत्याचारों के ख़िलाफ आवाज़ उठाने की कोई गुंजाइश नहीं है।

Gautam navlakhaजाने-माने मानवाधिकार कर्मी और प्रसिद्ध पत्रिका ‘इकोनॉमिक एण्ड पॉलिटिकल वीकली’ के सम्पादकीय सलाहकार गौतम नवलखा को भी 28 मई को श्रीनगर हवाई अड्डे पर हिरासत में ले लिया गया और उन्हें श्रीनगर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गयी। श्री नवलखा पिछले दो दशकों के दौरान अनेक बार कश्मीर की यात्रा पर गये हैं और वहाँ सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों को मुखरता से उठाते रहे हैं। हालाँकि इस बार वे अपनी मित्र के साथ निजी यात्रा पर कश्मीर जा रहे थे। श्रीनगर पहुँचने पर विमान से उतरते ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया और उन्हें वापस दिल्ली जाने के लिए कहा गया। उस दिन कोई फ्लाइट नहीं होने के कारण उन्हें पुलिस हिरासत में रखा गया और किसी को उनसे मिलने की इजाज़त नहीं दी गयी। अगले दिन उन्हें वापस दिल्ली भेज दिया गया।

श्री नवलखा कश्मीर में भारी संख्या में सशस्त्र बलों की मौजूदगी का विरोध करते रहे हैं। वह निरंकुश सशस्त्र बल विशेषाधिकार क़ानून को वापस लेने के अभियान में अग्रिम मोर्चे पर रहे हैं। यह क़ानून सशस्त्र बलों को किसी को भी गिरफ्तार करने और जान से मार देने तक के मनमाने अधिकार देता है। पिछले पाँच दशकों में कश्मीर और उत्तर-पूर्व के राज्यों में इसका बड़े पैमाने पर दुरुपयोग किया गया है और इन राज्यों की आम जनता इस क़ानून का कड़ा विरोध करती रही है। मणिपुर की इरोम शर्मिला पिछले 11 वर्ष से इसी क़ानून के ख़िलाफ भूख हड़ताल पर हैं।

राज्य सरकार ने गौतम नवलखा को कश्मीर में प्रवेश की अनुमति देने से इंकार को सही ठहराते हुए कहा कि उनके जाने से शान्ति-व्यवस्था के लिए ख़तरा हो सकता था। सच है। जब सत्ता झूठ पर टिकी हो तो सच्चाई सामने लाने वालों से शान्ति-व्यवस्था को ख़तरा तो होगा ही। यह कार्रवाई साबित करती है कि सभी दमनकारी राज्यों को सबसे ज़्यादा ख़तरा ‘सच्चाई’ से होता है।

गौतम नवलखा जैसे विख्यात बुद्धिजीवी व एक्टिविस्ट के साथ इस तरह का सुलूक बताता है कि आम कश्मीरी अवाम को वास्तव में कितनी आज़ादी हासिल है।

 

मज़दूर बिगुल, मई-जून 2011

 


 

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