लुधियाना में टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन का स्थापना सम्मेलन

बिगुल संवाददाता

बिना जनवाद लागू किए कोई भी जनसंगठन सच्चे मायनों में जनसंगठन नहीं हो सकता। जनवाद जनसंगठन की जान होता है। सम्मेलन जनसंगठन में जनवाद का सर्वोच्च मंच होता है। किसी भी जनसंगठन के लिए सम्मेलन करने की स्थिति में पहुँचना एक महत्वपूर्ण मुकाम होता है। वर्ष  2010 में लुधियाना के पावरलूम मज़दूरों की लम्बी चली हड़तालों के बाद अस्तित्व में आयी टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन ने पिछले 4 अगस्त को अपना स्थापना सम्मेलन किया।

टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन का प्रथम सम्मेलन जो कि यूनियन का स्थापना सम्मेलन भी था, लुधियाना के मनजीत नगर की धर्मशाला में हुआ। सम्मेलन में लगभग 67 कारख़ानों से चुनकर भेजे गये 106 डेलीगेट शामिल हुए। दो वर्ष से संचालन समिति के नेतृत्व में काम कर रहे इस मज़दूर संगठन के स्थापना सम्मेलन में 13 सदस्यीय नेतृत्वकारी समिति का चुनाव किया गया। राजविन्दर (अध्यक्ष), विश्वनाथ (जनरल सेक्रेटरी), ताज मोहम्मद (उपाधयक्ष), विशाल (सेक्रेटरी), गोपाल (खजांची), घनश्याम पाल (प्रचार सेक्रेटरी), हीरामन, रामजतन, रामकरण, सुरेन्दर, छोटेलाल, प्रेमनाथ और रविन्दर मण्डल इस 13 सदस्यीय समिति के तौर पर चुने गये। कमेटी के चुनाव से पहले संचालन समिति की ओर से  संचालक साथी राजविन्दर द्वारा राजनीतिक और सांगठनिक रिपोर्ट पढ़ी गयी और संविधान का मसविदा पेश किया गया। प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति के साथ दोनों दस्तावेज पास किये। काले क़ानूनों के ख़िलाफ, मारूती सुज़ूकी के मज़दूरों के हक में, देशभर में जबरन जमीन अधिग्रहण करने की सरकारी नीति के ख़िलाफ, स्पेन के खदान मज़दूरों के जुझारू संघर्ष के हक़ में और लुधियाना के टेक्सटाइल मज़दूरों की लम्बित माँगों और तोड़े गये समझौते लागू करवाने के लिए पाँच प्रस्ताव भी पेश किये गये जो सर्वसम्मति से पास हुए।

सम्मेलन में पेश की गयी राजनीतिक व सांगठनिक रिपोर्ट में कहा गया है कि आज विश्व पूँजीवादी व्यवस्था जिस भीषण मन्दी का सामना कर रही है उससे भारतीय अर्थव्यवस्था और यहाँ के मज़दूर भी अछूते नहीं रह सकते। दूसरे विश्व युद्ध के बाद पश्चिमी देशों के मज़दूर वर्ग को जो सुख-सुविधाएँ हासिल हुई थीं, वे अब छीनी जा रही हैं। पश्चिम का मज़दूर वर्ग भी अब संघर्ष का झण्डा उठाने को मज़बूर हुआ है। सन् 2011 की शुरुआत में तानाशाह सत्ताओं के ख़िलाफ जनउभार में मज़दूर वर्ग की अग्रणी भूमिका थी। यूनान में 2008 से शुरू हुआ सिलसिला रुक नहीं रहा। चीन के संशोधानवादी हुक्मरान लम्बे समय से जनाक्रोश का सामना कर रहे हैं। इस पूरी स्थिति के दुखद पहलू पर बात करते हुए इस दस्तावेज़ में कहा गया है कि जगह-जगह उठ रहे मज़दूर संघर्षो में ऐसा नेतृत्व या तो कमज़ोर है या ग़ैरहाज़िर है, जो मज़दूर वर्ग को सम्पूर्ण मुक्ति की राह पर ले जाये। लेकिन पूँजीवादी व्यवस्था अपनी उम्र पूरी कर चुकी है। यह केवल इसलिए जिन्दा है क्योंकि मज़दूर वर्ग की ताक़त बिखरी है, नेतृत्व कमजोर है। लेकिन विश्व पूँजीवाद का लाइलाज संकट, इसके विरुद्ध बढ़ता जा रहा जनाक्रोश, सारे विश्व में पूँजीवाद से मुक्ति के लिए जन्म ले रही जन अकांक्षाएँ दिखाती है कि आने वाले दिनों में हालात बदलेंगे, मज़दूर वर्ग का मुक्ति कारवाँ आगे बढ़ेगा। भारत के हुक्मरान विश्व पूँजीवादी संकट के भारत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों से लगातार इंकार करते रहे लेकिन अब वे भी मानने लगे हैं कि देश मुश्किल हालात से गुज़र रहा है। देश के हुक्मरान संकट का सारा बोझ मज़दूरों-मेहनतकशों पर डालना चाहते हैं। आने वाले दिनों में अमीरी-ग़रीबी की खाई और अधिक तेज़ी से और अधिक गहरी और चौड़ी होगी। हुक्मरान जनाक्रोश से निपटने के लिए नये काले क़ानून और एजेंसियाँ बनाने की तैयारी कर रहे हैं। एन.सी.टी.सी. नाम की नयी ख़ुफिया एजेंसी बनाने की तैयारी इसकी एक बड़ी मिसाल है। साम्प्रदायिक फासीवाद जो कि पूँजीवादी हुक्मरानों का संकट से निपटने का एक महत्वपूर्ण हथियार है और भी मज़बूत होता जा रहा है। हुक्मरानों के इन हमलों का सामना करना आज मज़दूर वर्ग के सामने बड़ी चुनौती है।

टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन के गठन और निर्माण की चर्चा करते हुए राजनीतिक और सांगठनिक रिपोर्ट में कहा गया कि ‘बिगुल’ से जुड़े साथियों द्वारा सन् 2000 के अंत में लुधियाना के मज़दूरों में मुख्यत: प्रचारात्मक तरीकों से कामों की शुरुआत हुई। अप्रैल 2007 में नौजवान भारत सभा के बैनर तले लुधियाना के मज़दूरों में कामों की शुरुआत हुई। 2008 में कारखाना मज़दूर यूनियन की स्थापना हुई। इस पूरे समय के दौरान अखबार, पर्चों, बेहड़ा (लॉज) मीटिंगों, नुक्कड़ सभाओं, विभिन्न दिवसों पर किये गये कार्यक्रमों आदि में सघन प्रचार अभियान संगठित किये गये। अनेकों संघर्षों में हिस्सा लिया गया और मज़दूरों की लामबन्दी की गयी। सन् 2010 में पावरलूम मज़दूरों की कारखाना मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में चली हड़तालों के बाद टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन की स्थापना हुई। इन दो वर्षों में टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन ने मज़दूरों में सघन प्रचार संगठित किया, अनेकों संघर्षों का नेतृत्व किया। पहले कारखाना मज़दूर यूनियन तथा फिर टेक्सटाइल मज़दूर यूनियन द्वारा भी गतिविधियाँ मुख्यत: तीन प्रकार की रहीं — पहली आन्दोलनात्मक, दूसरी शिक्षा तथा प्रचार से सम्बन्धिात गतिविधियाँ, तीसरी सुधार की गतिविधियाँ। राजनीतिक व सांगठनिक रिपोर्ट में संगठन की कई ग़म्भीर कमियों कमजोरियों की तरफ ध्यान दिलाया गया है। पूँजीवादी सरकार और राजनीतिक पार्टियों, मीडिया, न्याय व्यवस्था के मज़दूर आबादी में भण्डाफोड़ की दिशा में नाकाफी कोशिशें हुई हैं। घर-घर क्रान्तिकारी साहित्य का वितरण, पुस्तक प्रदर्शनियाँ, व्यक्तिगत बातचीत, साप्ताहिक बैठकें आदि मज़दूरों को राजनीतिक शिक्षा देने में महत्वपूर्ण साधान रहे हैं। इस दिशा में भी कोशिशें नाकाफी हैं। सुधार कार्यों में भी कुछ अधिक नहीं किया जा पाया है। यूनियन संगठन टेक्सटाइल और होजरी मज़दूरों के एक छोटे से हिस्से तक ही सीमित है। पुरुषों के मुकाबले स्त्रियों की भागीदारी नाममात्र है। यूनियन के सभी सदस्य साप्ताहिक मीटिंगों या अन्य कार्यक्रमों में शामिल नहीं होते। सभी सदस्य चन्दा नहीं देते। सक्रिय कार्यकर्ताओं की एक बड़ी टीम की कमी है।

राजनीतिक और सांगठनिक रिपोर्ट के मुताबिक देश के मज़दूर वर्ग के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपना जुझारू देशव्यापी संगठन खड़ा करना है और आन्दोलन को अर्थवाद- सुधारवाद की चौहद्दी से बाहर लाना है। रिपोर्ट में संगठन को अधिक से अधिक फैलाने का आह्वान किया गया है और न सिर्फ लुधियाना बल्कि भविष्य में पूरे देश स्तर पर मज़दूरों के जुझारू संगठन क़ायम करने की ज़रूरत, शहरों-गाँवों के सभी मज़दूरों और अन्य काम धन्धों में लगे मेहनतकशों के साथ एकजुटता क़ायम करने की तरफ आगे बढ़ने पर ज़ोर दिया गया है।

 

मज़दूर बिगुल, अगस्त-सितम्बर 2012

 


 

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