अदम्‍य बोल्‍शेविक – नताशा एक संक्षिप्त जीवनी (आठवीं किश्त)
मजदूर स्त्रियों के बीच काम का एक नया तरीका सोचा गया – स्त्री मजदूर कार्यकर्ताओं का सम्मेलन बुलाना

एल. काताशेवा
अनुवाद : विजयप्रकाश सिंह

रूस की अक्टूबर क्रान्ति के लिए मज़दूरों को संगठित, शिक्षित और प्रशिक्षित करने के लिए हज़ारों बोल्शेविक कार्यकर्ताओं ने बरसों तक बेहद कठिन हालात में, ज़बरदस्त कुर्बानियों से भरा जीवन जीते हुए काम किया। उनमें बहुत बड़ी संख्या में महिला बोल्शेविक कार्यकर्ता भी थीं। ऐसी ही एक बोल्शेविक मज़दूर संगठनकर्ता थीं नताशा समोइलोवा जो आखि़री साँस तक मज़दूरों के बीच काम करती रहीं। हम ‘बिगुल’ के पाठकों के लिए उनकी एक संक्षिप्त जीवनी का धारावाहिक प्रकाशन कर रहे हैं। हमें विश्वास है कि आम मज़दूरों और मज़दूर कार्यकर्ताओं को इससे बहुत कुछ सीखने को मिलेगा। – सम्पादक

1918। लेनिन ख़तरे से आगाह करते हैं ”अन्तरराष्ट्रीय साम्राज्यवाद ने रूस पर हमला कर दिया है। वह हमारे देश को लूट रहा है।”
यह हस्तक्षेप की शुरुआत थी, गृह युद्ध की शुरुआत थी। नयी समस्याएँ उठ खड़ी हुईं, मसलन दुश्मन का मुकाबला करने के लिए स्त्री मज़दूरों को कैसे प्रोत्साहित, संगठित और आन्दोलित किया जाये। ये समस्याएँ हल कर ली गयीं। अक्टूबर क्रान्ति के दौरान हुए पेत्रोग्राद महिला सम्मेलन की याद उसके आयोजकों के दिमाग़ में अभी तक ताज़ा थी। उन्होंने समूचे युवा रूसी गणराज्य की स्त्री मज़दूरों का ग़ैरपार्टी सम्मेलन बुलाने का निर्णय लिया। आगे चलकर इस सम्मेलन में न केवल स्त्री मज़दूरों बल्कि किसान स्त्रियों को भी शामिल करने के लिए इसके दायरे को और विस्तारित किया गया। इसकी शुरुआत करने वालों में निस्सन्देह समोइलोवा भी थीं।
कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति ने, अपने सचिव स्वेर्दलोव के ज़रिये, इस प्रस्ताव का समर्थन किया। उन्होंने न केवल इसका समर्थन किया बल्कि इसे भारी मदद भी दी। उन्होंने इस नये और कठिन काम में कई ठोस उपाय सुझाये। इलाके की पार्टी कमेटियों से उन्होंने सहयोग का आह्नान किया। इस अधिवेशन की तैयारी के लिए एक आयोजक समूह का गठन किया गया। उसके सदस्य अधिवेशन के लिए आन्दोलन चलाने, क्रान्ति की कगार पर खड़े उस विशाल देश के सभी हिस्सों से अधिवेशन के लिए प्रतिनिधियों का चुनाव कराने निकल पड़े जो ख़ुद अपने अस्तित्व के लिए अन्तरराष्ट्रीय साम्राज्यवाद के ख़िलाफ संघर्ष कर रहा था। हर तरफ युद्ध का मोर्चा खुला हुआ था, ज़िले के ज़िले तबाह-बर्बाद हो रहे थे, मार-काट मची हुई थी।
समोइलोवा ने सांगठनिक समस्याओं पर काम किया और ‘कम्युनिस्ट पार्टी और स्त्री मज़दूर’ पर एक रिपोर्ट तैयार की। सोवियत सत्ता के संघर्ष और इस सत्ता को सुदृढ़ करने के संघर्ष के इतिहास में इस अधिवेशन का विशिष्ट स्थान है। लेनिन ने इस कांग्रेस में बोलते हुए इसके महत्व को यदि रेखांकित किया, तो ऐसा करने का पर्याप्त कारण उनके पास मौजूद था।
इस अधिवेशन में आये प्रतिनिधियों के प्रामाणिक काग़ज़ात, जो अभिलेखागारों में सुरक्षित रखे हुए हैं, बताते हैं कि इसके आयोजन के लिए किस हद तक जाकर काम किया गया था और कितनी बड़ी तादाद में स्त्री मज़दूर इसमें शामिल हुई थीं। उस समय जब देश में गृहयुद्ध चल रहा था, जब अन्तरराष्ट्रीय पूँजीपति वर्ग के दलाल मेहनतकशों के नवजात गणराज्य का जन्मते ही गला घोंटने की कोशिशों में लगे हुए थे, कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति के आह्नान पर हर जगह फैक्टरियों में पुरुष और स्त्री मज़दूर संघर्ष के लिए कार्यकर्ताओं की नयी कतार में शामिल होने के लिए आगे आये। समूची पार्टी और सभी फैक्टरियों ने इस आह्नान का जवाब दिया और इसकी अहमियत को समझा था।
उदाहरण के लिए, उन प्रामाणिक काग़ज़ातों के घुँधले पड़े पन्ने पलटने पर हम देखते हैं कि किस प्रकार कपड़ा उद्योग के मज़दूर कार्यकर्ताओं की कतार में शामिल हो गये थे। उनमें अधिकांश स्त्रियाँ कपड़ा मज़दूर थीं। फैक्टरियों में पुराने नामों के साथ-साथ, जो पूँजीवादियों के ख़िलाफ पहले के संघर्षों के चलते जाने जा चुके थे, नये नाम भी दिखायी पड़े। इस प्रकार, ओरेखोवो जुएवो स्थित मोरोज़ोव फैक्टरी ने, जिसमें 16,214 महिला मज़दूर थीं, कांग्रेस में अपने प्रतिनिधि भेजे; उनके बाद ताम्बोव गुबेर्निया स्थित रेजोरोनोव, वाखरोमेयेव, देदोव और रेज्काजोव फैक्टरियों की प्रतिनिधियाँ आयीं। पर्म और समारा से कई प्रतिनिधियों को भेजा गया। फैक्टरियों के पुराने नामों के अलावा नये क्रान्तिकारी नाम भी देखने को मिलते हैं, जैसेकि दी रशियन रिपब्लिक फैक्टरी, दी फिफ्थ पीपुल्स टोबैको वर्क्‍स। पार्टी संगठनों, फैक्टरी कमेटियों, ट्रेडयूनियनों, ज़िला कार्यकारी समितियों द्वारा प्रामाणिक काग़ज़ात जारी किये गये हैं। सभी मज़दूर स्त्रियाँ हैं, सिर्फ एक स्कूल अध्यापिका और एक किसान औरत पेलेजेया पर्फिल्येवा के अपवाद को छोड़कर, जो कोसिलोवो गाँव की है और ग़रीब किसानों की कमेटी का प्रतिनिधित्व करती है। आगे चलकर मास्को में स्त्रियों के कांग्रेस की ख़बर पाकर किसान औरतें स्वेच्छा से आयीं।
इस अधिवेशन ने, जिसमें यातायात सुविधाओं की भारी किल्लत के बावजूद विभिन्न ज़िलों से थोड़े समय में ही ग्यारह सौ महिला प्रतिनिधि आ पहुँची थीं, संगठन और शिक्षा के महान और जुझारू काम को अंजाम दिया। इसने क्रान्तिकारी अनुभवों के आदान-प्रदान में पहल की। दूर-दराज के इलाकों की मज़दूरों ने जाना कि पेत्रोग्राद की मज़दूर स्त्रियाँ किस प्रकार एक नयी जीवनशैली का आगाज़ कर रही हैं। इसने संघर्ष और निर्माण कार्य के लिए उन्हें प्रोत्साहित किया। समोइलोवा लिखती हैं : ”इस अधिवेशन ने सक्रिय मेहनतकश औरतों के बीच कई कार्यकर्ताओं को पैदा किया।”
लेनिन ने, जो अभी भी अपनी चोटों के चलते अस्वस्थ थे, इस अधिवेशन को सम्बोधित किया और इस दायरे में काम करने के बुनियादी सिद्धान्त प्रस्तुत किये। वह वहाँ उस समय पहुँचे जब एक खेतिहर स्त्री मज़दूर कुलक (धनी किसान) द्वारा शोषण की परेशानियों का ज़िक्र कर रही थी। उस खेत मज़दूर को यह अहसास हो चुका था कि शोषकों के ख़िलाफ संघर्ष के लिए सभी मेहनतकशों के साथ संगठित होकर ही जीवन की कठिनाइयों से निजात पाया जा सकता है। उसने इस बात का ऐलान किया कि अनपढ़ होने के बावजूद वह समझ गयी है कि उसके इर्द-गिर्द क्या चल रहा है, और ज़रूरत पड़ी तो वह बन्दूक उठाकर मोर्चे पर जा पहुँचेगी। उसने कहा कि ”जिनके दिल कमज़ोर हैं और जो बन्दूक नहीं उठा सकतीं, उन्हें नर्सों की हैसियत से जाना चाहिए और अपनी बातों से साथियों का हौसला बढ़ाना चाहिए।”
लेनिन ने इशारा किया कि उसे बीच में न टोका जाये। वे तब तक उसकी बात सुनते रहे जब तक कि वह बोलती रही। उन्होंने अधिवेशन का अपना स्वागत भाषण इस तरह तैयार किया कि इस किसान औरत की बातों का जवाब दिया जा सके। उन्होंने कहा कि पिछली क्रान्तियाँ इसलिए पराजित हो गयीं क्योंकि गाँवों ने कस्बों का साथ नहीं दिया था। लेकिन अगर एक बार गाँवों के ग़रीब शहरी मज़दूरों का साथ दें और कुलकों के ख़िलाफ ख़ुद को संगठित कर लें, तो हम सच्ची समाजवादी क्रान्ति के नये दौर में पहुँच जायेंगे। कुलकों के ख़िलाफ चलने वाला संघर्ष किसान औरतों को भी आकर्षित करेगा।
”साथियो”, उन्होंने कहा, ”कुछ अर्थों में सर्वहारा सेना की स्त्री आबादी का यह अधिवेशन विशेष रूप से अत्यन्त महत्वपूर्ण इसलिए है, क्योंकि अन्य सभी देशों की स्त्रियाँ बड़ी ही मुश्किल से सक्रिय होती हैं। तमाम मुक्ति आन्दोलनों का अनुभव यह बताता है कि उनकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि उनमें औरतें किस हद तक भाग लेती हैं। सोवियत सत्ता यह सुनिश्चित करने की हर चन्द कोशिश कर रही है कि स्त्रियाँ अपने सर्वहारा समाजवादी कार्य को स्वतन्त्रतापूर्वक अंजाम दे सकें।
”मेहनकश औरतों के बड़े हिस्से की व्यापक भागीदारी के बिना कोई भी समाजवादी क्रान्ति नहीं हो सकती।
”अभी तक कोई भी गणतन्त्र स्त्री को मुक्त नहीं कर सका है। सोवियत सत्ता उसकी मदद करेगी। हमारा लक्ष्य अपराजेय है क्योंकि सभी देशों में एक अपराजेय मज़दूर वर्ग आन्दोलित हो रहा है। इस आन्दोलन का अर्थ है अपराजेय समाजवादी क्रान्ति का उदय।
”हमें अवश्य याद रखना चाहिए”, उन्होंने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, ”कि क्रान्ति की सफलता इस बात पर निर्भर है कि उसमें स्त्रियाँ किस हद तक भागीदारी करती हैं। चूँकि वे सिर्फ अपनी मुक्ति के लिए ही नहीं बल्कि समाजवाद (समाजवादी अर्थव्यवस्था) के लिए भी संघर्ष में उतरने लगी हैं, इसलिए समाजवादी क्रान्ति का लक्ष्य हासिल करने के बारे में हम आश्वस्त हो सकते हैं।”
अन्त में उन्होंने कहा :
”स्त्रियाँ जाग रही हैं, समाजवाद की जीत सुनिश्चित है।”
आगे चलकर लेनिन के विचार अख़बारों और स्त्रियों के अन्य सम्मेलनों, जैसेकि 1919 में मास्को में आयोजित हुए सम्मेलन, में विस्तार से रखे गये। उन्हें नारों के रूप में देशभर में प्रचारित-प्रसारित किया गया, जिससे और स्त्रियाँ भी प्रेरित हुईं। क्रान्तिकारी कामों और राजनीतिक जीवन में अपनी भूमिका तय करने के लिए लेनिन ने उनका आह्नान किया था।
समोइलोवा ने बार-बार अपने लेखों में इस अधिवेशन की चर्चा की है। उन्होंने इस पर अलग से एक पुस्तिका लिखी। और उन्हीं की पहल पर 1920 में इस अधिवेशन के प्रस्तावों को खारकोव में पुन: प्रकाशित किया गया। बाद में जब किसान औरतों के बीच काम करने का सवाल आया, तो उनकी स्मृति में उस किसान औरत की जीती-जागती तस्वीर उभर आयी जिसने युद्ध में अपना पति खो दिया था और यह सुनकर कि स्त्री और पुरुष मज़दूर गाँवों में ग़रीबों की मदद के लिए जा रहे हैं, उसने घोषणा की थी कि वह अपने बच्चों को छोड़ जायेगी और बन्दूक उठाकर इन तमाम ”ज़मीन हड़पने वालों” के ख़िलाफ लड़ने जायेगी।
इस अधिवेशन का प्रभाव सिर्फ उन ग्यारह सौ प्रतिनिधियों पर ही नहीं पड़ा जो इसमें शामिल हुई थीं बल्कि उन दसियों हज़ार और कई जगह तो सैकड़ों हज़ार मज़दूरों पर भी पड़ा जिन्होंने उन्हें भेजा था।
कांग्रेस में समोइलोवा ने सांगठनिक सवालों पर चर्चा की। प्रतिनिधियों के साथ उनकी अनगिनत बार बातचीत हुई और उन्होंने उनके सामने स्पष्ट किया कि महिला मज़दूरों और किसानों को किस तरह निर्माण-कार्य में भाग लेना चाहिए। कांग्रेस में उपलब्ध प्रचुर सामग्री के आधार पर उन्होंने स्त्रियों के बीच उन बहुआयामी कामों की शुरुआत की जिससे हमारी पार्टी मज़बूत हुई और जनकार्य के उसके तौर-तरीकों का विकास हुआ। अधिवेशन की समाप्ति के बाद रूसी कम्युनिस्ट पार्टी की केन्द्रीय समिति ने स्त्रियों के बीच काम करने के लिए केन्द्रीय समिति और सभी स्थानीय पार्टी संगठनों, दोनों, के मार्गदशर्न में विशेष मशीनरी संगठित करने का निर्णय लिया।
इस अधिवेशन के परिणाम क्या रहे? इसे सोवियत सत्ता के इतिहास से जाना जा सकता है, उसके निर्माण-कार्य के उस सर्वतोमुखी विकास से जाना जा सकता है जो गृहयुद्ध के बावजूद जारी था, जो उन तमाम मोर्चों के खुल जाने के बावजूद जारी था जिनकी हिफाज़त की जानी थी – पूरब में, उत्तर में, दक्षिण में और साइबेरिया में, यूराल्स में और काकेसस में, जबकि यूदेनिच पेत्रोग्राद के और देनीकिन ओरेल के ऐन दरवाज़े पर आ पहुँचा था। हर जगह महिला मज़दूरों और किसान औरतों ने सोवियत सत्ता के लिए संघर्ष किया, ख़ुद को निर्माण-कार्यों में झोंक दिया और उस समय चल रहे संगठन के महान काम में भागीदारी की।
लाल सेना की मदद करने के लिए लाल नर्सों के प्रशिक्षण के पाठयक्रम आयोजित किये गये थे (लाल सेना के कितने ही जवान अपने जीवन के लिए इन औरतों की निष्ठा के प्रति ऋणी हैं।) लाल सेना और मज़दूरों को रसद पहुँचाने में मदद के लिए स्त्रियों ने उन रसद टुकड़ियों में काम किया जिन्हें खाद्यान्न और दूसरे उत्पादों के कोटे में जमा करने के लिए भेजा गया था। परन्तु इन सबसे बढ़कर वे मज़दूर स्त्रियाँ थीं, जिन्हें बच्चों की देखभाल करने, नर्सरियाँ और बाल गृह चलाने, स्कूलों में गर्म भोजन की व्यवस्था करने, सिलाई केन्द्रों का संचालन आदि करने के लिए भेजा गया था। आज की युवा पीढ़ी जो दूसरी पंचवर्षीय योजना के तहत समाजवाद का निर्माण कर रही है, अपने जीवन और अपनी ऊर्जा के लिए पहले महिला अधिवेशन की सक्रिय कार्यकर्ताओं की ऋणी है।
स्त्रियों ने सिर्फ पीछे के मोर्चे पर रहकर, सिर्फ चिकित्सीय दल का काम करके ही लाल सेना की मदद नहीं की थी। सोवियत सत्ता के पहले तीन साल का संक्षिप्त ब्योरा देते हुए कोम्मुनिस्तका (”वूमन कम्युनिस्ट”) नामक पत्रिका साहस से भरपूर उन पलों का उल्लेख करती है जब देश की रक्षा के लिए मज़दूर स्त्रियों ने युद्ध में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जैसे 1919 में लुगांस्क, और तुला का युद्ध, जब मज़दूर स्त्रियों ने यह कसम खायी थी कि अगर रेनिकिन तुला के रास्ते मास्को पहुँचना चाहता है, तो वह उनकी लाशों पर से गुज़रकर ही वहाँ पहुँच पायेगा। और अन्त में लेनिनग्राद की वे मज़दूर स्त्रियाँ थीं जिन्होंने पुरुषों के कन्‍धे से कन्धा मिलाकर अपने क्रान्तिकारी केन्द्र की हिफाज़त की।

बिगुल, अगस्‍त 2009

 


 

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