समर तो शेष है

शशि प्रकाश

नये संकल्प लें फिर से
नये नारे गढें फ़िर से
उठो संग्रामियो! जागो!
नयी शुरुआत करने का समय फिर आ रहा है
कि जीवन को चटख गुलनार करने का
समय फिर आ रहा है !

चलो, अब इक नये अभियान के पदचाप गूँजें
मौत की सुनसान सूनी वादियों में फिर।
कि नूतन सर्जना के राग भर दें
शोकगीतों से भरी इन घाटियों में फिर।
दरकती हिमशिलाएँ, सर्दियों के बाद हरदम ही
बसन्त आता रहा है, यह प्रकृति की गति रही है।
अँधेरे गर्भ में ही रौशनी पलती रही है,
पराजय झेलने पर भी
शिविर में न्याय के हरदम मशालें जीत की
जलती रही हैं।
पराजय आज का सच है
समर तो शेष है फिर भी
उठो ओ सर्जको!
नवजागरण के सूत्र रचने का
समय फिर आ रहा है
कि जीवन को चटख गुलनार करने का
समय फिर आ रहा है।

गुलामों की नई फौजें सजेंगी, हिल उठेगी
रोम की ताकत और आतंक पिघलेगा।
महल वर्साय का फिर धूल में मिल जायेगा,
गतिरोध टूटेगा, महाविद्रोह उट्ठेगा।
कम्यूनार्ड पेरिस के उठेंगे हर नगर में,
अव्रोरा जलपोत से फिर तोप गरजेंगे।
लातिनी अमेरिका, एशिया में, अफ्रीका में
क्रान्तियों के रक्तवर्णी मेघ बरसेंगे।
न उनकी जीत अन्तिम है
न अपनी हार अन्तिम है
उठो ओ नौजवानो!
इन्क़लाबों के नये संस्करण रचने का
समय फिर आ रहा है
कि जीवन को चटख गुलनार करने का
समय फिर आ रहा है।

हर शहर से एक शिकागो उठ खड़ा हो
सोच कर आगे बढ़ें हम फिर।
मई दिवस बन जाये हर दिन साल का
यह सोच कर तैयारियाँ करने लगें हम फिर।
सुनो इतिहास कहता है, पराजय झेलकर ही
क्रान्तियाँ परवान चढ़ती हैं, नया इतिहास बनता है।
अँधेरा आज गहरा है, श्रमिक जन मुक्त होंगे
एक दिन निश्चित, समय का ज्ञान कहता है।
सजेंगे फिर नये लश्कर
मचेगा रण महाभीषण
उठो ओ शिल्पियो!
नवयुद्ध के उपकरण गढ़ने का
समय फिर आ रहा है
कि जीवन को चटख गुलनार करने का
समय फिर आ रहा है।

गीत का वीडियो


 

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