नरेगा की अनियमितताओं के खिलाफ लड़ाई फैलती जा रही है

बिगुल संवाददाता

मर्यादपुर। देहाती मजदूर यूनियन और नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में मर्यादपुर के नरेगा मजदूर और गरीबों द्वारा शुरु किया गया संघर्ष धीरे-धीरे क्षेत्र के दूसरे गाँव में फैलता जा रहा है। दरअसल दोनों संगठनों के कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे को व्यापक बनाने के लिए जगह-जगह नुक्कड़ सभाएं करनी शुरू कर दी है। इन सभाओं में आम मजदूरों की काफी भागीदारी दिखायी दे रही है। शेखपुर (अलीपुर), लखनौर, ताजपुर, जवाहरपुर गोठाबाड़ी, रामपुर, नेमडाड, कटघरा, लऊआ सात और अनेक दूसरे गाँवों में भी सभाओं में मजदूर भारी संख्या में पहुँचे। उन्होंने खुल कर अपनी समस्याएँ सामने रखी। शेखपुर के मजदूरों ने बताया कि अव्वल तो जरूरतमंदों के कार्ड बने ही नहीं है और जिनके बने भी हैं, उनके जॉब कार्ड प्रधान ने अपने पास रखे हैं। इस गाँव में मजदूरों को साल भर में बमुश्किल 5-6 दिन ही रोजगार मिला। लखनौर ग्राम सभा में भी ऐसा ही हाल मिला। वहाँ के एक नरेगा मजदूर जगरनाथ ने बताया कि काम के दौरान उनके पाँव में गम्भीर चोट लगी थी, लेकिन उन्हें बिना किसी दवा इलाज के यूँ ही छोड़ दिया गया। बाद में घाव पक गया और वे साल भर तक उसका इलाज का खर्च उठाते रहे। महिलायें आमतौर पर यह शिकायत कर रही थीं कि उनके रोजगार कार्ड बनाये ही नहीं जा रहे हैं। उन्हें बताया जाता है कि घर की औरतें बाहर का काम कैसे करेंगी। रामपुर के मजदूरों को तो साल भर पहले किये गये काम का मेहनताना तक नहीं दिया गया है। कमोबेश हर गाँव के मजदूरों की यह शिकायत थी कि नरेगा में रोजगार न के बराबर है और बेरोजगारी भत्ता दिया ही नहीं जाता है।

25 फरवरी 2006 को मर्यादपुर के 30 मजदूरों ने काम के लिये आवेदन किया था। 22 दिन बीत जाने के बाद जब काम नहीं मिला तो बी.डी.ओ. से बेरोजगारी भत्ते की मांग की गयी। इसपर ‘‘बी.डी.ओ. साहब’’ का कहना था कि चूँकि रोजगार के लिए आवेदन हमारे कार्यकाल में नहीं किया गया है इसलिए बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलेगा। प्रशासन के रवैये से खिन्न 19 मजदूरों ने 22 मार्च को पुनः रोजगार के लिए आवेदन किया। कार्यलय के कर्मचारी व अधिकारी आवेदन के प्राप्ति रसीद देने में आनाकानी करने लगे। अन्त में बड़े बाबू ने मजबूर होकर बी.डी.ओ. से रोजगार आवेदन पत्र पर दस्तखत करने को कहा तो ‘‘बी.डी.ओ. साहब’’ कह उठे – अरे, अगर हम रोजगार नहीं दे पाये तो ये लोग फिर से बेरोजगारी भत्ता मांगने आ जायेंगे। अपने आपको चारों ओर से घिरा हुआ पाकर ब्लॉक प्रशासन ने मजबूरन मर्यादपुर में एक खड़ंजा निर्माण कार्य नरेगा के तहत शुरु करवा दिया। इसमें 16 मजदूरों को रोजगार मिला है। साइट पर देहाती मजदूर यूनियन के कार्यकर्ताओं को भी बुलवाया गया। यहाँ पर भी ‘‘बी.डी.ओ. साहब’’ मोल-तोल करने से बाज नहीं आये। उन्होंने देहाती मजदूर यूनियन के डॉ. दूधनाथ से प्रस्ताव किया कि ‘‘हमने आपकी एक बात मान ली है, रोजगार दिलवा दिया है, अब आपलोग भी हमारी एक बात मान लें। आप मजदूरों से कहें कि वे बेरोजगारी भत्ते की मांग वापिस ले लें।’’

स्पष्ट है कि खाते-पीते धनिक तबकों से आने वाले अफसर और कर्मचारी इस पूंजीवादी व्यवस्था के पहरेदार हैं। यहीं लोग आज भारत में शासन व्यवस्था की बागडोर सम्भाले हुये हैं और इन्हीं लोगों पर जिम्मेदारी डाली गयी है कि वे जनकल्याणकारी योजनाओं से लेकर देश में हर स्तर पर गरीबों को न्याय दिलवायेंगे। इससे भी महत्वपूर्ण समझने वाली बात यह है कि वास्तव में गरीबों द्वारा नियंत्रित शासन व्यवस्था ही जनकल्याणकारी योजनाओं को पूरी दृढ़ता के साथ लागू कर सकती है और इसके लिए स्वयं मजदूरों का राजकाल स्थापित करना होगा। फिलहाल जहां तक वर्तमान संघर्ष की बात है तो गांव के मजदूर और गरीब धीरे-धीरे समझने लगे हैं कि उनके सामने अपने अधिकारों को पाने के लिए संगठित संघर्ष के अलावा अन्य कोई रास्ता ही नहीं है। 20 अप्रैल से क्षेत्र के मजदूरों ने देहाती मजदूर यूनियन और नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में अनशन की घोषणा की है और मांग न माने जाने पर अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल की तैयारियाँ की जा रही हैं।

ग्राम सभा मर्यादपुर में जाँच टोली द्वारा कुल 146 नरेगा मज़दूरों से पूछे गये सवाल और उनके जवाब

क्रम         विवरण   संख्या

1. बिल्कुल काम नहीं मिला       30.82%

2. औसतन 15 से 20 दिन का रोज़गार मिला                69.17%

3. काम मिला लेकिन दो महीने बाद भी मज़दूरी नहीं मिली       33.66%

4. बैक खाता नहीं खुला       22.00%

5. बैंक खाता का फार्म भरा लेकिन बैंक मैनेजर खाता नम्बर नहीं दे रहा है             08.21%

6. बेरोज़गारी भत्ता नहीं मिला            100%

7. पंचायत की ओर से नरेगा जागरूकता के लिए कभी कुछ नहीं किया गया            100%

 

बिगुल, अप्रैल 2009

 


 

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