मालिकों के मुनाफ़े की हवस में अपाहिज हो रहे हैं मज़दूर

बिगुल संवाददाता

अर्जुन कुमार

अर्जुन कुमार

अर्जुन कुमार की उम्र बड़ी मुश्किल से 18-19 साल की है। मूल रूप में सहरसा, बिहार का रहने वाला है। परिवार में पाँच बहन-भाइयों में से दूसरे नम्बर पर है। परिवार की मदद करने के लिए पढ़ाई बीच में छोड़कर पैसा कमाने लुधियाना आया था। पहले अमृतसर में लक्ष्मी स्पिनिंग, डायमण्ड धागा मिल में कुछ समय काम किया, फिर अपनी जान-पहचान के लोगों के पास लुधियाना के मेहरबान इलाक़े में रहने लगा और बाजड़ा रोड पर स्थित के.डी.एम. धागा फ़ैक्टरी में काम करने लगा। फ़ैक्टरी में काम करते हुए अर्जुन को 8 महीने हो गये थे, लेकिन 18 नवम्बर 2013 को दिन के समय अचानक मशीन पर काम करते समय अर्जुन का दाहिना हाथ कार्ड मशीन में आकर कट गया। तड़पते हुए अर्जुन को फ़ैक्टरी के साथियों ने कालड़ा अस्पताल पहुँचाया, मालिक भी अस्पताल पहुँच गया। उसने अर्जुन से कहा कि बेटे घबराना नहीं, मैं तुम्हारा ई.एस.आई. कार्ड बना देता हूँ, तुम्हारा मुफ़्त इलाज होगा। तुझे एक लाख रुपया दूँगा और तेरी पेंशन भी लगा दूँगा। ज़ख़्म ठीक होने पर तू फ़ैक्टरी में काम पर आने लग जाना। जो तू कर सकेगा, वही काम करने के लिए दूँगा, लेकिन कोई मुक़द्दमा न करो।

इस तरह अर्जुन का इलाज हुआ, ज़ख़्म ठीक होने तक एक बार मालिक ने कुछ पैसा ख़र्च भी किया, परन्तु बाक़ी खाने-पीने का सारा ख़र्च अर्जुन के साथियों ने ही किया। जब अर्जुन काम करने के लिए फ़ैक्टरी गया तो गेट पर उसे कह दिया गया कि उसे काम पर नहीं रखा जायेगा। जब अर्जुन ने मालिक के किये वायदे की बात की और मालिक से मिलने की ज़िद की तो उसे मालिक के दफ़्तर भेज दिया गया। मालिक ने भी उसको वही कुछ कहा जो गेटमैन ने कहा था। लेकिन इतनी बात मालिक ने और जोड़ दी कि तुझे कोई पैसा नहीं मिलेगा, बस जो कर दिया बहुत है। परन्तु जब अर्जुन ने ई.एस.आई. द्वारा छुट्टियों के पैसे मिलने की बात की तो मालिक ने फ़ार्म पर दस्तख़त करने से भी मना कर दिया और धमकाकर फ़ैक्टरी से भगा दिया और कहा कि जहाँ मर्जी चला जा, तुझे एक पैसा भी नहीं दूँगा। उधर कालड़ा अस्पताल से उसे इलाज के काग़ज़ नहीं मिल रहे, क्योंकि मालिक ने अस्पताल वालों को मना कर दिया है, जिससे वह आगे कार्यवाही न कर सके।

अर्जुन ने बताया कि जिस फ़ैक्टरी में वह काम करता था, उसमें 35-40 लोग काम करते हैं, परन्तु उस फ़ैक्टरी में ई.एस.आई., ई.पी.एफ़, हाज़िरी रजिस्टर, हाज़िरी कार्ड, फ़ैक्टरी पहचान पत्र, सालाना छुट्टियाँ, सालाना बोनस आदि कोई भी सुविधा नहीं मिलती। और तो और सुरक्षा का आलम यह है कि जिस कार्ड मशीन में आकर उसका हाथ कटा, उसका सुरक्षा कवर तक मालिक ने हटवा दिया है। कार्ड मशीन में अलग-अलग तरह की रुई मिलाकर मोटी पूनी बनायी जाती है, जिससे आगे वाली मशीन में धागा बनता है। इस मशीन के रूलों में रुई जमा हो जाती है, जिसके चलते उसे साफ़ करना पड़ता है। यदि कवर लगा हो तो कवर उतारने में समय लगता है। इसलिए समय बचाने के लिए अक्सर मालिक कवर हटवा देते हैं और अर्जुन जैसे मज़दूर अक्सर ही अपाहिज होकर ठोकरें खाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। यह सिलसिला बदस्तूर जारी है। अब अर्जुन भविष्य के प्रति चिन्तित है कि उसका दाहिना हाथ कट जाने के बाद कोई मालिक उसे काम नहीं देगा। जिस मालिक की मुनाफ़े की हवस के कारण वह अपाहिज हुआ, वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं।

ओम प्रकाश

ओम प्रकाश

ऐसी ही एक और घटना ओम प्रकाश के साथ घटी। ओम प्रकाश की भी दाहिने हाथ की सबसे छोटी उँगली समेत साथ लगती तीन उँगलियाँ कार्ड मशीन में कट गयीं। मूल रूप से ओम प्रकाश आरा, बिहार का रहने वाला है। उम्र मुश्किल से कोई 25-26 साल है। ओम प्रकाश विवाहित है। उसके पिता की मौत हो चुकी है, बड़ा भाई मन्दबुद्धि है। इसलिए घर में कमाने वाला ओम प्रकाश ही था। लगभग दस साल पहले वह लुधियाना आया था। उसने शक्ति स्पिनिंग मिल्ज, बाजड़ा रोड, एन.बी.आर. सीड़ा रोड, बी.आर. सीड़ा रोड, कुन्दन धागा मिल, ट्रांसपोर्ट नगर जैसे कई कारख़ानों में काम किया है और अब श्रीनाथ स्पिनिंग मिल प्राइवेट लिमिटेड, बाजड़ा रोड में काम कर रहा था। इस फ़ैक्टरी में भी धागा बनता है और लगभग 50 आदमी काम करते हैं। बाक़ी फ़ैक्टरियों की ही तरह इस फ़ैक्टरी में भी कोई श्रम क़ानून लागू नहीं है। रुई से पूनी बनाने वाली कार्ड मशीन में आने की वजह से ही ओम प्रकाश की उँगलियाँ कट गयी थीं। यहाँ भी सुरक्षा कवर न होने के कारण ही ओम प्रकाश का हाथ रूले में चला गया।

ज़ख़्मी हालत में ओम प्रकाश को पाहवा अस्पताल, गिल रोड में दाखि़ल करवाया गया, साथ की साथ मालिक ने ई.एस.आई. कार्ड बनवाकर ई.एस.आई. से इलाज चालू करवा दिया। ओम प्रकाश को भरोसा दिलाया कि उसे काम के अलावा पेंशन और हर्जाने के तौर पर 1 लाख रुपये भी दिये जायेंगे, लेकिन वह कोई मुक़द्दमा न करे। ऑपरेशन के दौरान दोनों जाँघों से माँस निकालकर हाथ की सर्जरी की गयी, कुछ दिनों बाद उसे पाहवा अस्पताल से छुट्टी मिल गयी। ई.एस.आई. ने छुट्टी काटकर आराम के लिए भी कह दिया। इन दिनों में छुट्टी का पैसा ई.एस.आई. विभाग ने देना था। पन्द्रह दिनों बाद मालिक ने सन्देश भेजकर ओम प्रकाश को फ़ैक्टरी काम करने के लिए बुलाया। जिस पर ओम प्रकाश ने जाकर बताया कि उसके जाँघों और हाथ के ज़ख़्म हरे हैं, वह काम नहीं कर सकेगा। इस पर मालिक नहीं माना और उसे चौकीदारी करने के लिए कहा, जैसे-तैसे कर उसने 10 दिन ड्यूटी की। जब उसने मालिक से पैसे माँगे तो मालिक ने हिसाब करके उसे 810 रुपये दे दिये और कहा कि तुम्हारा 10 दिनों का यही बनता है। अगर काम करना है तो इतना ही मिलेगा। इसके बाद ओम प्रकाश ने पेंशन, छुट्टियों के पैसे निकलवाने के लिए और हर्जाना के पैसों की बात की तो उसे लुधियाना के कारख़ाना मालिकों का स्थापित डायलॉग सुना दिया गया कि “जिसके पास जाना है चला जा, जो करना है कर ले, अब तुझे कुछ भी नहीं मिलेगा।” अब ओम प्रकाश कभी ई.एस.आई. के मुख्य दफ़्तर, भारत नगर का चक्कर लगाता है, कभी उप-दफ़्तर राहों रोड जाता है। कभी मालिक के ‘ख़ास’ बन्दों (मैनेजरों-सुपरवाइज़रों) की मिन्नतें करता फिरता है।

ये कुछ ऐसी घटनाएँ हैं जो सामने आ गयी हैं। लेकिन अक्सर ही फ़ैक्टरियों में हादसे होते हैं, मौतों के अलावा अंग कटने की घटनाएँ आम घटती हैं। लेकिन किसी अख़बार या टी.वी. चैनल की सुर्खी नहीं बनती। यहाँ का श्रम विभाग और ई.एस.आई. विभाग अपाहिज, लाचार, मज़दूरों की सुनवाई करके ज़ख़्मों पर मरहम लगाने की जगह उनको चक्कर लगवा-लगवाकर दुखी कर देता है। ऐसा क्यों है? क्योंकि इनकी कोई जवाबदेही नहीं। मज़दूरों में संगठन की कमी है और फ़ैक्टरी मालिक ऊपर तक पहुँच वाले हैं।

 

मज़दूर बिगुल, मार्च-अप्रैल 2014

 


 

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