हिटलर के तम्बू में

नागार्जुन

आदमखोर ये यहां भी हो सकता है!

आदमखोर
ये यहां भी हो सकता है!

अब तक छिपे हुए थे उनके दाँत और नाख़ून ।

संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून ।

छाँट रहे थे अब तक बस वे बड़े-बड़े क़ानून ।

नहीं किसी को दिखता था दूधिया वस्‍त्र पर ख़ून ।

अब तक छिपे हुए थे उनके दाँत और नाख़ून ।

संस्कृति की भट्ठी में कच्चा गोश्त रहे थे भून ।

 

मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मन्द ।

तक्षक ने सिखलाए उनको ‘सर्प नृत्य’ के छन्द ।

अजी, समझ लो उनका अपना नेता था जयचन्द ।

हिटलर के तम्बू में अब वे लगा रहे पैबन्द ।

मायावी हैं, बड़े घाघ हैं, उन्हें न समझो मन्द ।

Fir se lotenge bhediye

पहले वे आये कम्युनिस्टों के लिए

और मैं कुछ नहीं बोला

क्योंकि मैं कम्युनिस्ट नहीं था।

फिर वे आये ट्रेड यूनियन वालों के लिए

और मैं कुछ नहीं बोला

क्योंकि मैं ट्रेड यूनियन में नहीं था।

फिर वे आये यहूदियों के लिए

और मैं कुछ नहीं बोला

क्योंकि मैं यहूदी नहीं था।

फिर वे मेरे लिए आये

और तब तक कोई नहीं बचा था

जो मेरे लिए बोलता।

पास्टर निमोलर

(हिटलर के शासनकाल के एक कवि और फासीवाद विरोधी कार्यकर्ता)

मज़दूर बिगुल, मई 2014

 


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments