दिल्ली में बादाम मज़दूर एक बार फिर हड़ताल की राह पर!

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के करावलनगर इलाक़े में हजारों बादाम मज़दूर अपनी माँगों को लेकर 19 जून से हड़ताल पर हैं। 60 से ज्यादा गोदामों पर मज़दूरों की हड़ताल के बाद से छँटाई नहीं हो रही है। मालिको के गोदाम पर मशीन से टूटा बादाम भरा पड़ा है। हड़ताल में महिला मज़दूरों की अग्रणी भूमिका रही है जिन्होंने मालिको से लेकर पुलिस का डटकर सामना किया है। करावल नगर के मज़दूरों ने खुलकर इलाकाई आधार पर अपने पेशे से अलग पेशे में जुडे़ बादाम मज़दूरों का साथ दिया है। करावल नगर मज़दूर यूनियन के नेतृत्व में चल रही इस हड़ताल में पेपर प्लेट मज़दूर, वाकर फैक्टरी के मज़दूर, कुकर फैक्टरी के मज़दूर और निर्माण क्षेत्र से जुडे़ मज़दूर शामिल हैं। हड़ताल ने पूरे इलाके को मज़दूर और मालिक-पुलिस गठजोड़ के संघर्ष का मंच बना दिया है। यह हड़ताल बादाम मज़दूरों के संघर्ष की उस कड़ी से जुड़ती है जहाँ से करावल नगर के मज़दूरों ने पहली बार अपनी माँगो को लेकर संगठित हो लड़ना शुरू किया था। बादाम मज़दूर की 2009 की हड़ताल के बाद ही मज़दूर बादाम मज़दूर यूनियन में संगठित हुए और 2010 में यह इलाकाई यूनियन करावलनगर मज़दूर यूनियन में विकसित हुयी।

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आर्थिक मन्दी की लहर से जूझ रहे पूँजीवाद का सारा बोझ मज़दूरों को ही उठाना पड़ता है। महँगाई, छँटनी भुखमरी मज़दूरों के हिस्से में आते हैं। करावलनगर में भी मज़दूरों के रहने के दड़बेनुमा कमरों के किराए, राशन, कपड़े का खर्च लगभग दुगना हो चुका है परन्तु पिछले 3 सालों से बादाम छँटाई और टूटने का रेट मालिकों ने नहीं बढ़ाया है। यह बादाम कैलिफोर्निया और आस्ट्रेलिया से आयात कर दिल्ली में खारी बावली तक लाया जाता है और फिर निचले स्तर पर करावलनगर में टूटने, छँटाई और पैक होने के बाद बादाम स्थानीय और अन्तररराष्टीय बाज़ार में भेजा जाता है। बादाम के मूल्य में तो पिछले 3 सालों में भारी बढ़ोतरी हुई है और इस क्षेत्र से जुड़े सभी मालिकों ने (भारत से लेकर विदेश तक) करोड़ों-अरबों का कारोबार खड़ा किया है पर बादाम मज़दूर 12-14 घण्टे गोदामों में अमानवीय हालात में काम करने के बाद भी अपने खाने भर के लिए नहीं जुटा पा रहे हैं। कानून के अनुसार इन मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी, रोजगार व मज़दूरी कार्ड आदि मिलना चाहिए, जोकि मज़दूर की पहचान और प्रमाण होता है। लेकिन बादाम तोड़ने के उद्योग में तो अधिकांश ठेकेदार खुद ही ग़ैर-कानूनी तौर पर बिना लाईसेंस के काम करवा रहे हैं, तो मज़दूरों को क्यों मज़दूर होने का प्रमाण देने लगे? नतीजतन, बादाम तोड़ने वाले मज़दूरों के साथ कोई भी अन्याय होता है तो उनके पास कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए कोई प्रमाण नहीं होता। वैसे देश में मज़दूरों के लिए 260 से ज्यादा श्रम कानून मौजूद हैं मगर पुलिस, विधायक से लेकर श्रम विभाग तक की जानकारी में मज़दूरों का भंयकर शोषण होता रहता है। सभी इस पर चुप्पी साधे रहते हैं। इसके चलते ही बादाम मज़दूरों ने करावलनगर मज़दूर यूनियन के तहत हड़ताल की शुरुआत की और मालिकों को अपना मागँपत्रक सौंपा।

मज़दूरों की माँगें:

1. बादाम मज़दूरों को बादाम की छँटाई का रेट 3 रुपये प्रति किलो दिया जाये, साथ ही भुगतान हर माह के पहले सप्ताह में किया जाये। बाकी इलाके के सभी मज़दूरों को न्यूनतम मज़दूरी दी जाये।

2. हर बादाम मज़दूर को पहचान के तौर पर कानूनन दो चीजें मिलनी चाहिए – पहला,  पहचान कार्ड और दूसरा, मज़दूरी कार्ड। यही इस बात का प्रमाण होता है कि वह मज़दूर है और उसने कितनी मज़दूरी की है। साथ ही ठेकेदार को गोदाम में मस्टर रोल रखना होगा जिसमें हाज़िरी, मज़दूरी तथा काम का हिसाब दर्ज होता है।

3. सभी बादाम गोदामों में पीने के साफ पानी, शौचालय और सुरक्षा उपकरण होने चाहिए।

4. सभी बादाम गोदामों का फैक्टरी एक्ट 1948 के तहत पंजीकरण होना चाहिए।

हड़ताल के दौरान बादाम मज़दूर पिछली हड़ताल के बाद से हड़ताल चौक के नाम से प्रचलित जगह पर खूँटा गाड़कर बैठे हैं और सांस्कृतिक कार्यक्रमों जैसे क्रान्तिकारी गीतों और फ़िल्म शो और मज़दूर वर्ग के इतिहास पर वक्तव्य भी आयोजित किये। जिस भी गोदाम पर हड़ताल के दौरान काम जारी था वहाँ महिला मज़दूरों की टोली पहुँचकर काम रुकवा रही हैं। हर हमेशा पुलिस मालिकों के साथ खड़ी है। इस हड़ताल में भी मालिक पुलिस के साथ मिलकर हड़ताल को तोड़ने के भरसक प्रयास कर रही है, कभी मज़दूरों को डरा-धमका और पीटकर तो कभी यूनियन के नेतृत्व को गिरफ़्तार करने की कोशिश कर, परन्तु बादाम मज़दूरों ने एकजुट हो हरबार इन्हें कामयाब नहीं होने दिया है। मज़दूरों ने इस लड़ाई को और अधिक व्यापक और राजनीतिक बनाते हुए इलाके के विधायक के घर का घेराव भी किया और अपनी माँगो और इलाके के मज़दूरों की माँगों वाला एक ज्ञापन सौंपने की कोशिश की लेकिन भाजपा विधायक मोहन सिंह बिष्ट पहले सूचना मिलने के बावजूद अपने घर से नदारद थे। इस रिपोर्ट के लिखे जाने तक हड़ताल के पाँचवे दिन मज़दूरों ने अपनी हड़ताल को और मज़बूत बनाने के लिए पूरे इलाके से एक मज़दूर संघर्ष रैली निकाली और करावलनगर के नागरिकों और मज़दूरों से अपनी  हड़ताल में समर्थन माँगा।

करावलनगर में बादाम मज़दूरों का संघर्षः स्त्री मज़दूरों के जुझारूपन की मिसाल

करावलनगर में 19 जून से चल रहा बादाम मज़दूरों का संघर्ष स्त्री मज़दूरों के जुझारूपन का उदाहरण प्रस्तुत करता है। ज्ञात हो कि दिल्ली के इस क्षेत्र में गै़रकानूनी बादाम प्रसंस्करण उद्योग चलाये जा रहे हैं। ये उद्योग फैक्ट्री एक्ट 1948 के अंतर्गत पंजीकृत नहीं हैं। यहाँ से प्रसंस्करित बादाम घरेलू एवं अंतर्राष्‍ट्र्रीय बाज़ारों (अमेरिका एवं आस्ट्रेलिया जैसे देशों) में भेजा जाता है। इन उद्योगों का काम महिला कामगारों के बूते ही चलता है। 19 जून से इन्होंने बादाम छँटाई की दर में वृद्धि के साथ-साथ बेहतर कार्य अवस्थाओं की माँग के लिए अपनी हड़ताल जारी रखी है। इस पूरे संघर्ष को महिला मज़दूरों ने करावलनगर मज़दूर यूनियन के बैनर तले बड़े ही सुनियोजित तरीके और रणनीतिक कुशलता से आगे बढ़ाया है। इस लड़ाई के दौरान इन लोगों ने पुलिस प्रशासन की “सक्रियता” का मुँहतोड़ जवाब देते हुए जीवट और बहादुरी का परिचय दिया है। मालिकों की समन्वय और समझौता नीति की धज्जियाँ उड़ाकर उनकी नींदें हराम कर दी हैं। किसी भी हालत में वे अपनी माँगों से डिगना नहीं चाहतीं और अपने तीखे तेवर के साथ संघर्ष में जुटी हैं। इतिहास बताता है कि विश्व में जहाँ भी बड़ी और जुझारू लड़ाइयाँ लड़ी गयीं सभी में महिला मज़दूरों ने अग्रणी भूमिका निभायी। सर्वहारा वर्ग की विजय अपनी इस आधी आबादी को साथ लिये बिना सम्भव नहीं। करावलनगर की स्त्री मज़दूरों का संघर्ष ज़िंदाबाद!

 

मज़दूर बिगुलजून  2013

 


 

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