आपस की बात
मज़दूरों को दूसरों के भरोसे रहना छोड़कर ख़ुद पर भरोसा करना होगा!

खालिद, खजूरी, दिल्ली

मेरा नाम खालिद है और मैं जिला सम्भल, उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ। मैं कई साल से खजूरी में रह रहा हूँ और मैं दिल्ली किराना हाउस,खारी बावली में देशी जड़ी-बूटियों की दुकान में सेल्समैन का काम करता हूँ। मेरा वेतन 7000 रु. है–महँगाई के दौर में इन पैसों की कीमत कुल 700 रु. के बराबर है। मेरे काम में मुझे बैठने का मौका ही नहीं मिलता है। मेरी दुकान छह मंजिला है और हर मंजिल पर बोरियों के ढेर होते हैं और मुझे ये निकालकर देने पड़ते हैं। इस मार्किट में सेल्समैन से लेकर चौकीदार, रिक्शा-ठेले वाले सभी मज़दूर दिन-भर बड़ी मेहनत से काम करते हैं–मगर हमारी मेहनत को बड़ी बेशर्मी से लूटा जा रहा है। यहाँ न तो लेबर-इंस्पेक्टर आता है और न ही कभी कोई श्रम-अधिकारी आता है। हम मज़दूर जब कभी अपने हक़ के लिए आवाज़ उठाते हैं तो तुरन्त पुलिस को बुला लिया जाता है और किसी भी मामले को दस-पन्द्रह मिनट से ज़्यादा नहीं चलने दिया जाता है। इधर जब से मैनें ‘मज़दूर बिगुल’ अख़बार पढ़ना शुरू किया है, मेरी चेतना काफी बढ़ गई है। मौजूदा समाज में पूँजीपतियों से लेकर नेताओं तक ने जो जाल हम मज़दूरों का खून निचोड़चने के लिए बनाया हुआ है। उस जाल को तोड़ने का तरीका ‘मज़दूर बिगुल’ अखबार से सीखने को मिलता है। इन मालिकों से अपने हक़ के लिए लड़ने का तरीका भी इस अखबार से सीखने को मिला। बिगुल अखबार को पढ़कर मैने बहुत कुछ सीखा है_ जैसे अगर हम सब मज़दूर एक हो जाये तो पूरी सत्ता को पलट सकते हैं। जैसे हमें यहाँ मार्किट में एक होने की जरूरत है-चाहे सेल्स-मैन हो या चौकीदार, रिक्शा वाला, पल्लेदार, ठेला वाला हो या हिन्दू हो, मुस्लिम हो या सिख, ईसाई  मजदूर हो हमें मज़दूर भाईचारे के साथ अपनी एकता को बनाना होगा। हमें एक ऐसी ताकत बनानी होगी कि लूटेरे हमें जात-धर्म के नाम पर बाँट ही ना पाये। इसी तरह जब पल्लेदार के साथ कोई समस्या हो तो सेल्स मैन उनके साथ आये। जब भी किसी मज़दूर के साथ कोई भी परेशानी हो तो हम सबकी नींद हराम हो जाये। हमें जागना ही होगा-अपने हक़ के लिए, अपने अधिकार के लिए। हमारा धर्म है कि हम मेहनतकशों की जारी लूट के खिलाफ़ एकजुट होकर लड़े। दोस्तों, मेहनतकश साथियों  हमारे लिए कोई लड़ने नहीं आने वाला चाहे वो ‘आम आदमी पार्टी’ हो अन्ना हजारे या नरेन्द्र मोदी। दोस्तो हम मज़दूरों को ही अब अपने कदम बढ़ाने होंगे।  

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त 2014

 


 

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मज़दूरों के महान नेता लेनिन

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