जब मालिक ने मजदूरों से हाथ जोड़कर माफी माँगी

लुधियाना शहर मजदूरों की बर्बर लूट का प्रतीक बन चुका है। 12 घण्टे के काम के बदले 2,500-3,500 तक का वेतन साधारण हेल्पर वर्करों को दिया जाता है। और किसी भी तरह की कोई सहूलियत मजदूरों को नहीं दी जाती। यहाँ तक कि कारखाने में काम करने का कोई प्रमाणपत्र तक नहीं दिया जाता कि मजदूर यह दावा कर सके कि वह किस कारखाने में काम करता है। वेतन समय से न देना, जबरदस्ती ओवरटाइम, काम का बोझ बढ़ाते जाना जैसी धक्केशाहियों के अलावा अकसर मजदूरों को थप्पड़ मारकर, गालियाँ देकर बिना हिसाब किये मालिक कारखाने से बाहर निकाल देते हैं।

इसका सबूत लेबर कोर्ट में चल रहे हजारों केस हैं। सैकड़ों मजदूर इंसाफ की उम्मीद में रोज-रोज लेबर अधिकारियों के पास हाजिरी लगाते हैं। बहुत से मजदूर तो 10-10 वर्ष से इंसाफ की उम्मीद में भटक रहे हैं। ट्रेड यूनियन नेताओं की दलाली, मजदूरों में एकता की कमी, और लेबर कोर्ट के मालिक पक्षधर रवैये के कारण मजदूर, मालिकों की गुण्डागर्दी का शिकार हो रहे हैं।

ऐसी ही एक घटना हरगोबिन्द नगर में रहने वाले दो मजदूरों – दीपक और राज गुप्ता के साथ घटी। ये दोनों जनवरी 2010 से मक्कड़ कालोनी (ग्यासपुरा) स्थित लोहा प्लाण्ट कम्बोज इण्डस्ट्रीज नामक एक छोटे-से कारखाने में काम करते थे। इस कारखाने में लगभग 15 मजदूर काम करते थे। इसमें ट्रकों के एक्सल आदि बनते हैं। इस कारखाने में काम कर रहे मजदूरों का कोई रिकार्ड नहीं था। काम पीस रेट पर करवाया जाता था। कोई भी सहूलियत नहीं दी जाती थी। बताया जाता है कि मालिक अक्सर मजदूरों को गालियाँ देकर बिना पैसा दिये भगा देता था। मालिक सवरन सिंह और उसके बेटे ने दीपक और राज के साथ भी यही बर्ताव किया।

दीपक और राज दोनों ‘कारखाना मजदूर यूनियन’, लुधियाना के सदस्य थे। यह मसला यूनियन के पास आया। यूनियन के प्रतिनिधि लखविन्दर ने मालिक सवरन सिंह से फोन पर बात की और दोनों मजदूरों का हिसाब अदा करने की बात कही। मालिक ने वायदा किया कि 10 मार्च को शाम 6 बजे वह हिसाब कर देगा।

तय किये गये समय पर यूनियन के संयोजक राजविन्दर और दोनों मजदूर साथी कारखाना गेट पर पहुँचे। लेकिन मालिक ने न सिर्फ मिलने से इनकार कर दिया, बल्कि गालियाँ देते हुए कहा कि वह एक भी पैसा नहीं देगा।

साथी राजविन्दर मजदूर साथियों से बाद में मिलने का समय तय करके वहाँ से आ गये। दीपक और राज वहीं आसपास कुछ बातचीत करने लगे तो मालिक और उसके बेटे ने उन पर हमला कर दिया। राज तो किसी तरह वहाँ से बच निकला। दीपक पैर की बीमारी के कारण खुद को छुड़वा नहीं सका। मालिकों ने उसे बुरी तरह पीटा। उसका मोबाइल तोड़ दिया गया। उसे चोरी के इलजाम में फँसाने की धमकियाँ दी गयीं। किसी तरह दीपक वहाँ से जान बचाकर भागने में कामयाब हुआ। वह बहुत डरा हुआ और जख्मी था। यूनियन ने दोनों का मेडीकल करवाकर शेरपुर चौकी में शिकायत दर्ज करवायी। मालिक ने भी पुलिस में झूठी शिकायत पहले ही दर्ज करवा दी थी।

पुलिस ने पहले तो यूनियन को ही दोषी ठहराने की कोशिश की और मालिक को चौकी बुलाने की बात पर टालमटोल की। लेकिन यूनियन का सख्त रवैया देखकर 12 मार्च को 3 बजे मालिक को चौकी बुलाया। लगभग 50 स्त्री-पुरुष मजदूर इकट्ठा होकर चौकी पहुँचे।

मजदूरों के सख्त तेवर देखकर पुलिस और मालिक के होश उड़ गये। मालिक अपनी सफाई में कोई भी ठोस सबूत देकर खुद को सही साबित न कर सका। आखिर उसे अपनी गलती माननी पड़ी। उसने दोनों हाथ जोड़कर सभी मजदूरों के सामने दीपक और राज से माफी माँगी और उन्हें बकाया के अलावा तोड़े गये मोबाइल के पैसे, मेडीकल का खर्च देकर लिखित रूप में विश्वास दिलाया कि वह आगे से मजदूरों के साथ ऐसा नहीं करेगा।

यह छोटी सी घटना साबित करती है कि मजदूर एकजुट होकर लड़ें तो अपने अधिकार हासिल कर सकते हैं। यह भी मजदूरों द्वारा संगठित कोशिशों की एक छोटी-सी जीत थी। इस जीत ने मजदूरों में संगठन के प्रति विश्वास बढ़ाया और अन्य मजदूरों को कारखाना यूनियन से जुड़ने के लिए प्रेरित किया।

बिगुल, मार्च-अप्रैल 2010


 

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