शीला जी? आपको पता है, न्यूनतम मजदूरी कितने मजदूरों को मिलती है?

दिल्ली सरकार ने पिछले दिनों बड़ी धूमधाम के साथ दिल्ली में न्यूनतम मजदूरी की दर 33 प्रतिशत बढ़ाने का ऐलान कर दिया। अब कुशल मजदूर को 248 रुपये प्रतिदिन, अर्द्धकुशल मजदूर को 225 रुपये और अकुशल मजदूर को 203 रुपये प्रतिदिन की न्यूनतम मजदूरी मिलेगी! मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने तो यहाँ तक कह डाला कि महँगाई से अब लोगों को कोई खास परेशानी नहीं होगी क्योंकि सरकार ने उनकी तनख्वाह भी बढ़ा दी है।

दिल्ली में काम करने वाला हर मजदूर जानता है कि इससे बड़ा झूठ कुछ नहीं हो सकता। क्या दिल्ली सरकार नहीं जानती कि दिल्ली के 98 प्रतिशत मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी भी नहीं मिलती है। राजधनी के दो दर्जन से अधिक औद्योगिक क्षेत्रों में लाखों स्त्री-पुरुष मजदूर हर महीने 1500 से लेकर 3000 रुपये तक पर खटते हैं। उन्हें ईएसआई, जॉब कार्ड, साप्ताहिक छुट्टी जैसी बुनियादी सुविधएँ भी नहीं मिलती हैं। ”दिल्ली की शान” कहे जाने वाले मेट्रो तक में न्यूनतम मजदूरी माँगने पर मजदूरों से गुण्डागर्दी की जाती है।

ऐसे में ये सरकारी घोषणा दिल्ली के लाखों मजदूरों के साथ एक फूहड़ मजाक नहीं तो और क्या है? अगर सरकार को मजदूरों की वाकई चिन्ता है, तो सबसे पहले वह यहाँ के सारे कारखानों में न्यूनतम मजदूरी लागू करके दिखाये?

देशी-विदेशी धनपतियों की सेवा में लगी हुई मुख्यमंत्री फ्रांस की रानी की तरह बरताव कर रही हैं जिसने रोटी की माँग कर रहे लोगों पर हँसते हुए कहा था कि उन्हें रोटी नहीं मिलती तो वे केक क्यों नहीं खाते? अगर शीला जी ने इतिहास पढ़ा होगा तो उनको मालूम होगा कि उस आततायी रानी का क्या हश्र हुआ। फ्रांसीसी क्रान्ति में मेहनतकशों की बगावत ने उसे उठाकर इतिहास के कूड़ेदान में दफन कर दिया!

(नौजवान भारत सभा, बादली, दिल्ली की दीवाल पत्रिका ‘चिंगारी’ से)

 

बिगुल, मार्च-अप्रैल 2010


 

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