ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड
राजनीतिक शह प्राप्त गुण्डा गिरोह की दरिन्दगी की शिकार व जुल्मों के सामने हार न मानने वाली बहादुर शहनाज़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ के खि़लाफ़ विशाल लामबन्दी, जुझारू संघर्ष

लखविन्दर

2014-12-08-LDH-Protest agnst rape-2 2014-12-09-LDH-Protest agnst rape-3 2014-12-09-LDH-Protest agnst rape-4 2014-12-14-LDH-Protest agnst rape-2 2014-12-10-LDH-Protest agnst rape-3 2014-12-09-LDH-Protest agnst rape-12 2014-12-09-LDH-Protest agnst rape-9 2014-12-14-LDH-Protest agnst rape-4 2014-12-14-LDH-Protest agnst rape-10लुधियाना के ढण्डारी इलाक़े में एक साधारण परिवार की 16 वर्षीय बेटी और बारहवीं कक्षा की छात्र शहनाज़ को राजनीतिक शह प्राप्त गुण्डों द्वारा अगवा करके सामूहिक बलात्कार करने, मुक़दमा वापस लेने के लिए डराने-धमकाने, मारपीट और आखि़र घर में घुसकर दिन-दिहाड़े मिट्टी का तेल डालकर जलाये जाने के घटनाक्रम के खि़लाफ़ पिछले दिनों शहर के लोगों, ख़ासकर औद्योगिक मज़दूरों का आक्रोश फूट पड़ा। इंसाफ़पसन्द संगठनों के नेतृत्व में लामबन्द होकर लोगों ने ज़बरदस्त जुझारू आन्दोलन किया और दोषी गुण्डों को सज़ा दिलाने के लिए संघर्ष जारी है। शहनाज़ और उसके परिवार के साथ बीता यह दिल कँपा देनेवाला घटनाक्रम समाज में स्त्रियों और आम लोगों की बदतर हालत का एक प्रतिनिधि उदाहरण है। मामले को दबाने और अपराधियों को बचाने की पुलिस-प्रशासलन से लेकर पंजाब सरकार तक की तमाम कोशिशों    के बावजूद बिगुल मज़दूर दस्ता व अन्य जुझारू संगठनों के नेतृत्व में हज़ारों लोगों ने सड़कों पर उतरकर जुझारू लड़ी।

अगवा, बलात्कार व क़त्ल का दिल दहला देनेवाला घटनाक्रम

राजनीतिक शह प्राप्त एक गुण्डा गिरोह ने शहनाज़ को 25 अक्टूबर को स्कूल जाते समय अगवा किया था। जब उसके परिवार के लोग पुलिस के पास रिपोर्ट दर्ज करवाने गये तो उन्हें पुलिस के बेहद अमानवीय रवैये का सामना करना पड़ा। पुलिसवालों ने कहा कि रिपोर्ट दर्ज करवाकर क्यों बदनामी बटोरते हो, लड़की किसी के साथ भाग गयी होगी, अपने-आप वापस आ जायेगी। दो दिन बाद गुण्डों ने शहनाज़ को छोड़ दिया। सामूहिक बलात्कार का शिकार, शारीरिक और मानसिक तौर पर बहुत बुरी हालत में शहनाज़ 27 अक्टूबर की रात बारह बजे घर लौटी। अगले दिन माता-पिता शहनाज़ को लेकर पुलिस के पास गये तो फिर वही टालमटोल। एक चौकी इंचार्ज ने तो उनसे पचास हज़ार रुपये रिश्वत तक माँग ली। उन्हें एक चौकी से दूसरी चौकी दौड़ाया गया। बहुत भागदौड़ के बाद एफ़आईआर लिखी भी गयी तो बलात्कार की धारा नहीं लगायी गयी। शहनाज़ और उसके माता-पिता ने पुलिस से बहुत कहा कि उसका मेडिकल करवाया जाये। लेकिन पुलिस वाले आज-कल करते-करते टालते रहे और एक हफ्ता निकाल दिया। एक हफ्ऱते बाद हुए मेडिकल में बलात्कार होने की पुष्टि होने की सम्भावनाएँ बहुत कम रह जाती हैं। उनका वकील भी ख़रीद लिया गया। बहुत चालाकी के साथ जज के सामने शहनाज़ का बयान करवा दिया गया कि उसके साथ बलात्कार की कोशिश हुई है। वह यह नहीं समझ सकी “कोशिश” कहने से उसके बयान के अर्थ ही बदल जायेंगे। चार गुण्डों पर एफ़आईआर दर्ज हुई थी। तीन गिरफ्तार हुए। गुण्डा गिरोह के बाक़ी गुण्डों ने शहनाज़ और उसके परिवार को केस वापस लेने के लिए डराया-धमकाया। शहनाज़ जब 31 अक्टूबर को घर में अकेली थी तो गुण्डों ने घर में घुसकर उसके हाथ-पैर बाँधकर, मुँह में कपड़ा ठूँसकर पीटा। अठारह दिन जेल में रहने के बाद बलात्कार व अगवा के तीन दोषी भी जमानत पर रिहा कर दिये गये। शहनाज़ और उसके परिवार को जान से मारने की धमकियाँ दी जा रही थीं। लेकिन उन्होंने केस वापस नहीं लिया। वे पुलिस प्रशासन के पास सुरक्षा माँगने गये। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को चिट्ठी लिखकर मदद माँगी। विभिन्न राजनीतिक पार्टियों से मदद माँगी। लेकिन कहीं से मदद नहीं मिली। चार दिसम्बर को माता-पिता इस मसले के सम्बन्ध में कचहरी गये थे। इसी दौरान गुण्डों ने घर में घुसकर शहनाज़ को मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी।

इस बर्बर घटना के बाद भी पुलिस-प्रशासन दोषियों का साथ देता रहा। बुरी तरह जली शहनाज़ के माता-पिता उसे बाइक पर बिठाकर फ़ोकल प्वाइण्ट थाने ले गये। वहाँ पुलिस वालों ने उनकी कोई बात सुनने और मदद करने से इनकार कर दिया। माता-पिता को शहनाज़ को बाइक पर बिठाकर ही सरकारी अस्पताल पहुँचाना पड़ा। शहनाज़ ने अस्पताल में जज को दिये बयान में जलाये जाने के सम्बन्ध में सात लड़कों (अगवा-बलात्कार केस सहित कुल आठ दोषी हैं) का नाम लिया। चारों तरफ़ से थू-थू होने के बाद चार गुण्डों को पकड़ा गया। बाक़ी आज़ाद घूमते रहे। इलाज के लिए पुलिस-प्रशासन या सरकार ने ज़रा भी मदद नहीं की। 90 प्रतिशत जल चुकी शहनाज़ को लुधियाना से पटियाला के रिज़न्दरा अस्पताल रैफ़र कर दिया गया। वहाँ से चण्डीगढ़ के 32 सेक्टर अस्पताल भेज दिया गया। शहनाज़ को लुधियाना से सीधे प किसी अच्छे अस्पताल पहुँचाने और इलाज करवाने में परिवार की मदद की गयी होती तो शायद शहनाज़ बच जाती। चार दिन तक शहनाज़ मौत से जूझती रही। आठ दिसम्बर की रात उसकी मौत हो गयी। मौत से कुछ देर पहले उसने माता-पिता से कहा था – मुझे इंसाफ़ चाहिए…।

शहनाज़ – स्त्रियों पर अत्याचारों के खि़लाफ़ संघर्ष का एक प्रतीक

शहनाज़ स्त्रियों पर जुल्मों के खि़लाफ़ संघर्ष का एक प्रतीक बन गयी है। वह सभी स्त्रियों के सामने एक मिसाल क़ायम करके गयी है। अधिकतर स्त्रियाँ और उनके परिवार बलात्कार, अगवा, छेड़छाड़ आदि घटनाओं को सामाजिक बदनामी, मारपीट, जानलेवा हमले के डर, न्याय मिलने की नाउम्मीद आदि कारणों से छिपा जाते हैं। लेकिन हिम्मती ग़रीब परिवार और उनकी बहादुर बेटी शहनाज़ ने ऐेसा नहीं किया। वह डटी रही, लड़ती रही, हार कर चुप नहीं बैठी। सोलह वर्ष की वह बहादुर लड़की सभी स्त्रियों, उत्पीड़ितों, ग़रीबों, आम लोगों के सामने एक मिसाल है। शहनाज़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए गुण्डा- पुलिस-राजनीतिक गुण्डा गठजोड़ के खि़लाफ़ जुझारू संघर्ष लड़कर इंसाफ़पसन्द लोगों ने उसे एक सच्ची श्रद्धांजलि दी है।

गुण्डा-पुलिस-राजनीतिकों के नापाक गठजोड़ के खि़लाफ़ जुझारू संघर्ष, विशाल लामबन्दी

आठ दिसम्बर को कारख़ाना मज़दूर यूनियन, पंजाब ने प्रेम नगर, ढण्डारी ख़ुर्द में लोगों की बड़ी मीटिंग बुलायी और पीड़ित परिवार को इंसाफ़ दिलाने की लड़ाई का ऐलान किया। इस मीटिंग में लगभग एक हज़ार कारख़ाना मज़दूर, दुकानदार, रेहड़ी लगाने वाले आदि लोग शामिल थे। कारख़ाना मज़दूर यूनियन के नेताओं और मोहल्ले के कुछ लोगों को शामिल करके ‘ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी’ बनायी गयी। यह तय किया गया कि अगले दिन पुलिस कमिश्नर के कार्यालय पर बड़ा धरना-प्रदर्शन किया जाये और माँग की जाये कि सभी दोषियों को तुरन्त गिरफ्तार किया जाये, जल्द से जल्द चालान पेश करके केस फ़ास्ट ट्रेक कोर्ट में चलाया जाये। दोषियों को मौत की सज़ा हो। गुण्डा गिरोह की मदद करने के दोषी पुलिस अफ़सरों को जेल भेजा जाये और आपराधिक केस चलाकर सख्त से सख्त सज़ा दी जाये। पीड़ित परिवार को अधिक से अधिक मुआवज़ा दिया जाये। आम लोगों ख़ासकर स्त्रियों की सुरक्षा की गारण्टी की जाये। गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक के नापाक गठबन्धन को तोड़ा जाये।

उसी रात लगभग 1 बजे शहनाज़ की मौत हो गयी। अगले दिन पुलिस कमिश्नर के कार्यालय पर प्रदर्शन नहीं हो पाया, लेकिन शहनाज़ के घर पर ही हज़ारों लोगों को इकट्ठा किया गया। कारख़ाना मज़दूर यूनियन के साथ बिगुल मज़दूर दस्ता, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, नौजवान भारत सभा और पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन (ललकार) भी संघर्ष में आ गये। इलाक़े के लोगों से अपील की गयी कि मज़दूर काम पर न जायें, दुकानदार दुकानें बन्द रखें और इंसाफ़ के इस संघर्ष में शामिल हों। हज़ारों लोग प्रदर्शन में शामिल हुए। प्रशासन ने इलाक़े को पुलिस छावनी में बदल दिया। लोगों को प्रदर्शन बन्द करने के लिए कहा गया, लेकिन लोग डटे रहे। गली-गली में नाके लगाये खड़ी पुलिस ने बहुत बड़ी संख्या में मज़दूरों को प्रदर्शन-स्थल पर पहुँचने नहीं दिया। लेकिन बहुत मज़दूर, जिनमें स्त्रियाँ भी शामिल थीं, पुलिस से झगड़कर प्रदर्शन-स्थल पर पहुँचे। दहशत के ज़रिये प्रदर्शन को बिखराने में नाकाम रहने के बाद पुलिस ने चुनावी पार्टियों के दलाल नेताओं और दलाल धार्मिक नेताओं का सहारा लिया। दलालों का एक बड़ा झुण्ड प्रदर्शन ख़त्म करवाने की कोशिश में लगा रहा। इनका पूरा ज़ोर था कि लाश आने से पहले प्रदर्शन बन्द हो जाये। दलालों ने शहनाज़ की माँ को भरमाने की कोशिश की। कांग्रेस के एक मुस्लिम नेता ने इसे अपनी क़ौम का मसला बताकर शहनाज़ की माँ को प्रदर्शन बन्द करवाने के लिए कहा। लेकिन शहनाज़ की माँ ने उसे करारा जवाब दिया कि कि प्रदर्शन बन्द नहीं होगा। दलालों ने मज़दूर नेताओं को असामाजिक तत्व, आतंकवादी आदि कहकर बदनाम करने की कोशिश की। शहनाज़ की मौत के लिए पीड़ित परिवार को ही दोषी ठहराने की कोशिशें हुईं। इन दल्लों को मुँहतोड़ जवाब देते हुए लोग संघर्ष में डटे रहे।

लेकिन सरकार और पुलिस की दोषियों को बचाने की साजिशें बन्द नहीं हुईं। पंजाब के उपमुख्यमन्त्री और गृह मन्त्री सुखबीर बादल ने 12 दिसम्बर को मीडिया में बयान दिया कि “मामले की सच्चाई कुछ और है”। इस बयान का अर्थ है कि नब्बे प्रतिशत जल चुकी, ज़िन्दगी-मौत की लड़ाई लड़ रही शहनाज़ का जज के सामने दिया बयान झूठा है। डेढ़ महीने से सुरक्षा और इंसाफ़ के लिए जूझ रहे पीड़ित परिवार के ज़ख़्मों पर सुखबीर बादल के बयान ने नमक छिड़क दिया। स्पष्ट हो चुका था कि भ्रष्ट पंजाब सरकार मामले को ग़लत रंगत देकर, कातिल-बलात्कारी गुण्डा गिरोह और उसकी पीठ थपथपाने वाले नेताओं को बचाना चाहती है। सुखबीर बादल के बयान के खि़लाफ़ 14 दिसम्बर को लुधियाना के तीन हज़ार से अधिक लोगों ने, जिनमें मुख्य तौर पर मज़दूर शामिल थे, ने ‘संघर्ष कमेटी’ और मज़दूर-नौजवान-छात्र संगठनों के नेतृत्व में नेश्नल हाइवे-1 (जी-टी- रोड) को ढाई घण्टे तक पूरी तरह जाम कर दिया। ढण्डारी इलाक़ा पुलिस छावनी में बदल दिया गया। हथियारबन्द पुलिस दस्ते प्रदर्शन के सामने तैनात कर दिये गये। पुलिस दहशत के ज़रिये प्रदर्शन के बिखराना चाहती थी। लेकिन लोग हिले नहीं। प्रशासन द्वारा इंसाफ़ की गारण्टी देने के बाद ही नेश्नल हाइवे ख़ाली किया गया। यह सरकार, पुलिस-प्रशासन को एक चेतावनी थी। इसके बाद सरकार ने लीपापोती की कि सुखबीर बादल का बयान किसी अन्य मामले के बारे में था। इसके बाद आज़ाद घूम रहा एक और दोषी भी गिरफ्तार कर लिया गया। अब बिन्दर, अनवर, अमरजीत, नियाज़, बल्ली, शहजाद, बब्बू और विक्की जेल में हैं।

इनके अलावा दो और व्यक्ति गिरफ्तार किये गये हैं। पुलिस अब कह रही है कि इनमें से सुल्तान नाम का एक लड़का कह रहा है कि 25 से 27 अक्टूबर तक लड़की उसके साथ थी, न कि अगवा हुई थी। इस तरह गुण्डा-पुलिस-सियासी गठजोड़ अब झूठे गवाह खड़े कर रहा है। मसले को ग़लत रंगत देने की साजिशें जारी हैं। जाँच-पड़ताल दोषियों को बचाने की दिशा में चलायी जा रही है न कि उन्हें सज़ा करवाने के लिए। सरकार अपहरण, बलात्कार व क़त्ल के घटनाक्रम के प्रति लोगों का रोष कम करने के लिए इसे प्रेम कहानी बनाने की कोशिश कर रही है।

ऐसे हालात में कारख़ाना मज़दूर यूनियन, पंजाब ने टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन, बिगुल मज़दूर दस्ता, पंजाब स्टूडेण्ट्स यूनियन (ललकार) और नौजवान भारत सभा के साथ मिलकर ‘ढण्डारी बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी’ का पुनर्गठन किया। 28 दिसम्बर को शहनाज़ को समर्पित विशाल श्रद्धांजलि समागम करने का ऐलान किया गया। लुधियाना सहित पंजाब के अन्य ज़िलों के शहरों-गाँवों में सघन मुहिम चलाकर लोगों को लामबन्द किया गया। लगभग दस हज़ार लोग श्रद्धांजलि समागम में पहुँचे। इस दिन सरकार ने ढण्डारी इलाक़े में पहले से भी कहीं अधिक पुलिस लगाकर दहशत का माहौल खड़ा किया। लेकिन इन कोशिशों और कड़ाके की ठण्ड के बावजूद लोगों का विशाल हुजूम इकट्ठा हुआ।

संघर्ष की अहम उपलब्धियाँ

आज समाज में स्त्रियों पर अत्याचार बढ़ते ही जा रहे हैं। बलात्कार, क़त्ल, छेड़छाड़, मारपीट, तेज़ाब फेंकने, अगवा, आदि के कारण ख़ौफ़नाक हालात पैदा हो चुके हैं। स्त्री विरोधी वहशी मर्द मानसिकता हर क़दम पर स्त्रियों को शिकार बना रही है। विशेष तौर पर सियासी सरपरस्ती में पलने वाले बेख़ौफ़ गुण्डा गिरोह स्त्रियों को अपनी हवस का शिकार बना रहे हैं। गली-गली, मुहल्ले-मुहल्ले में, स्कूलों-कॉलेजों के गेटों पर, यह गुण्डा गिरोह दहशत फैला रहे हैं। ऐसे समय में स्त्रियों सहित सभी आम लोगों को अपनी रक्षा के लिए ख़ुद आगे आना होगा। एकजुट होकर हमें दमनकारी, जालिम हुक्मरानों और उनके पाले हुए गुण्डा गिरोहों को ललकारना होगा। संगठित और जुझारू लड़ाई लड़नी होगी। इन हालात में यह संघर्ष काफ़ी महत्व रखता है। बेइंसाफ़ी की बुनियाद पर टिकी इस लुटेरी पूँजीवादी व्यवस्था से लड़कर लोग शहनाज़ और उसके परिवार को किस हद तक इंसाफ़ दिला पाने में कामयाब होंगे, यह तो आने वाला समय ही बतायेगा। लेकिन इस संघर्ष ने अब तक कई अहम उपलब्धियाँ हासिल की हैं।

इस संघर्ष ने शहनाज़ के सभी बलात्कारियों-कातिलों को जेल भिजवाने में कामयाबी हासिल की है। पुलिस व सरकार को अपराधियों की खुलेआम मदद करने से पैर पीछे खींचने पर मज़बूर होना पड़ा है। वरना गिरफ्तार गुण्डे जल्द ही जमानत पर रिहा होकर बाहर आ जाते, पीड़ित परिवार पर फिर से कहर बरपाते। इस बात की पूरी सम्भावना थी कि पीड़ित परिवार को ही झूठे दोष लगाकर जेल में डाल दिया जाता।

इस संघर्ष ने इस घटनाक्रम की तरफ़ व्यापक जनता का ध्यान खींचा है। इस संघर्ष ने स्त्रियों पर होने वाले जुल्मों के मुद्दे को व्यापक स्तर पर उभारा है। इस संघर्ष ने गुण्डा-पुलिस-राजनीतिक गठजोड़ को जनता के सामने नंगा किया है और इसके खि़लाफ़ एकजुट होकर लड़ने की ज़रूरत को लोगों के मनों में स्थापित किया है।

इस संघर्ष की एक बेहद अहम उपलब्धि यह रही कि इसने लोगों में पुलिस और गुण्डों की दहशत को तोड़ दिया। जनता के दुश्मनों में जनता की एकता की दहशत पैदा हुई है। वैसे तो पूरे समाज में ही गुण्डों और पुलिस की दहशत है लेकिन औद्योगिक मज़दूर आबादी वाले ढण्डारी इलाक़े में पुलिस और गुण्डों की बहुत ज़्यादा दहशत बनी हुई थी। दिसम्बर 2010 में हुए ढण्डारी काण्ड के दौरान लोगों को गुण्डों और पुलिस के बर्बर दमन का सामना करना पड़ा था। लूट-पाट, छुरेबाज़ी, मार-पीट का शिकार आम जनता जब सड़कों पर उतरी तो पुलिस ने गुण्डों को साथ लेकर लोगों को गोलियों से भूना था, बर्बर लाठीचार्ज किया था। लाठियों-तलवारों से लैस गुण्डों ने मज़दूरों को मारा-काटा था। मज़दूरों के घर जला दिये गये थे। बड़ी संख्या में मज़दूरों को जेल में बन्द कर दिया गया था। ढण्डारी काण्ड-2010 के ज़ख़्म अभी भरे नहीं थे। पुलिस और गुण्डों की दहशत अभी गयी नहीं थी। ऐसे में शहनाज़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए गुण्डा-पुलिस-सियासी गठजोड़ के खि़लाफ़ संघर्ष शुरू हुआ और लोगों की विशाल लामबन्दी करने में कामयाबी मिली। संघर्ष का यह पहलू बहुत महत्व रखता है। विभिन्न चुनावी पार्टियों के दलाल नेताओं सहित संघर्ष में तोड़पफ़ोड़ करने की कोशिश करने वाली कई रंगों की ताक़तों की जनविरोधी साजिशों को नाकाम करने में भी कामयाबी मिली।

यह एकजुट संघर्ष बताता है कि जनता जब एकजुट होकर ईमानदार, जुझारू और समझदार नेतृत्व में योजनाबद्ध ढंग से लड़ती है तो बड़े से बड़े जन-शत्रुओं को धूल चटा सकती है। लोगों को शहनाज़ के बलात्कार व क़त्ल के दोषियों को सज़ा दिलाने के लिए तो जुझारू एकता क़ायम रखनी ही होगी, बल्कि स्त्रियों सहित तमाम जनता पर क़ायम गुण्डा राज से रक्षा और मुक्ति की लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए इस एकता को और विशाल व मज़बूत बनाना होगा।

इंसाफ़पसन्द लोगों की विशाल सभा ने दी बहादुर शहनाज़ को भावभीनी श्रद्धांजलि

2014-12-28-LDH-Protest agnst rape-39 2014-12-28-LDH-Protest agnst rape-24 2014-12-28-LDH-Protest agnst rape-22 ढण्डारी (लुधियाना) बलात्कार व क़त्ल काण्ड विरोधी संघर्ष कमेटी के आह्वान पर 28 दिसम्बर को कड़ाके की सर्दी व सरकार द्वारा पूरे ढण्डारी इलाक़े को पुलिस छावनी में बदलकर दहशत का माहौल खड़ा करने के बावजूद हज़ारों लोगों के विशाल हुजूम ने बलात्कार व हत्या की शिकार व गुण्डा गिरोह के खि़लाफ़ जूझती हुई मर-मिटने वाली बहादुर शहनाज़ को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की। शहनाज़ के पिता मोहम्मद इलियास, माँ हुशनियारा खातून और अन्य रिश्तेदारों सहित संघर्ष कमेटी के सदस्यों ने शहनाज़ की तस्वीर पर फूलों का हार पहनाकर श्रद्धांजलि समागम की शुरुआत की। लोगों ने शहनाज़ की याद में दो मिनट का मौन रखा और “बहादुर शहनाज़ अमर रहे”, “बलात्कारियों-कातिलों को फाँसी दो”, “लोक एकता ज़िन्दाबाद”, “गुण्डाराज मुर्दाबाद”, “पंजाब सरकार मुर्दाबाद” आदि गगनभेदी  नारों से गुण्डाराज को ललकारा।  शहनाज़ को इंसाफ़ दिलाने के लिए, संघर्ष जारी रखने और गुण्डागर्दी ख़ासकर राजनीतिक सरपरस्ती में पलने वाली गुण्डागर्दी को जड़ से मिटाने के लिए जनान्दोलन खड़ा करने का संकल्प लिया गया। क्रान्तिकारी सांस्कृतिक मंच ‘दस्तक’ ने शहनाज़ को समर्पित जुझारू गीत पेश किये।

वक्ताओं ने कहा कि शहनाज़ जुल्म के सामने घुटने न टेकने की एक मिसाल है। वह स्त्रियों पर अत्याचारों के खि़लाफ़ संघर्ष का एक प्रतीक है। वक्ताओं ने कहा कि हालाँकि सरकारी मशीनरी बलात्कारियों-कातिलों के बचाव में लगी हुई है लेकिन जनएकता के दम पर शहनाज़ और उसके परिवार को इंसाफ़ ज़रूर मिलेगा।

श्रद्धांजलि समागम को कारख़ाना मज़दूर यूनियन के अध्यक्ष लखविन्दर, टेक्सटाइल-हौज़री कामगार यूनियन के अध्यक्ष राजविन्दर, पंजाब स्टूडेण्टस यूनियन (ललकार) के संयोजक छिन्दरपाल, नौजवान भारत सभा के नेता कुलविन्दर, बिगुल मज़दूर दस्ता के विश्वनाथ व स्त्री मुक्ति लीग की नमिता ने सम्बोधित किया। इनके अलावा श्रद्धांजलि समागम को मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्ज़ यूनियन के अध्यक्ष हरजिन्दर सिंह, टेक्नीकल सर्विसिज़ यूनियन के जमीर, अखिल भारतीय नेपाली एकता मंच के विनोद कुमार, मोल्डर एण्ड स्टील वर्कर्ज़ यूनियन के अध्यक्ष विजय नारायण आदि ने सम्बोधित किया।

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मज़दूर बिगुल, जनवरी 2015

 


 

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