दमन-उत्पीड़न से नहीं कुचला जा सकता मेट्रो कर्मचारियों का आन्दोलन

बिगुल संवाददाता

‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ के नेतृत्व में मेट्रो भवन पर प्रदर्शन कर रहे मेट्रो के सफाईकर्मी और मेट्रो फीडर बससेवा के चालक और परिचालक

‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ के नेतृत्व में मेट्रो भवन पर प्रदर्शन कर रहे मेट्रो के सफाईकर्मी और मेट्रो फीडर बससेवा के चालक और परिचालक

दिल्ली मेट्रो की ट्रेनें, मॉल और दफ्तर जितने आलीशान हैं उसके कर्मचारियों की स्थिति उतनी ही बुरी है और मेट्रो प्रशासन का रवैया उतना ही तानाशाहीभरा। लेकिन दिल्ली मेट्रो रेल प्रशासन द्वारा कर्मचारियों के दमन-उत्पीड़न की हर कार्रवाई के साथ ही मेट्रो कर्मचारियों का आन्दोलन और ज़ोर पकड़ रहा है। सफाईकर्मियों से शुरू हुए इस आन्दोलन में अब मेट्रो फीडर सेवा के ड्राइवर-कण्डक्टर भी शामिल हो गये हैं। मेट्रो प्रशासन के तानाशाही रवैये और डीएमआरसी-ठेका कम्पनी गँठजोड़ ने अपनी हरकतों से ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों की एकजुटता को और मज़बूत कर दिया है।
मेट्रो प्रशासन – ठेका कम्पनी गँठजोड़ द्वारा शोषित-उत्पीड़ित मेट्रो के सफाईकर्मियों ने ‘मेट्रो कामगार संघर्ष समिति’ का गठन किया था और उसके नेतृत्व में लम्बे समय से न्यूनतम मज़दूरी व अन्य बुनियादी माँगों को लेकर वे संघर्षरत थे जिसकी रिपोर्ट ‘बिगुल’ के अंकों में दी जाती रही है। पिछले दिनों मेट्रो फीडर बस के चालक और परिचालक भी इस आन्दोलन में शामिल हो गये। 28 अप्रैल को मेट्रो कामगार संघर्ष समिति की अगुवाई में 59 चालकों व परिचालकों ने डी.एम.आर.सी. के प्रबन्ध निदेशक ई. श्रीधरन के नाम अपने हस्ताक्षरों से युक्त ज्ञापन दिया एवं इसकी प्रतिलिपि दिल्ली की मुख्यमन्त्री, केन्द्रीय श्रम मन्त्री व अन्य अधिकारियों को भेजी। राजस्थान बाम्बे ट्रांसपोर्ट (आर.बी.टी. नाम की प्राइवेट ठेका कम्पनी के तहत चलने वाली ये फीडर बसें डी.एम.आर.सी. से अनुबन्ध के तहत मेट्रो स्टेशन तक यात्रियों को लाती-ले जाती है। आर.बी.टी. कम्पनी की इन बसों में करीब 500 चालक व परिचालक कार्यरत हैं। लम्बी ड्यूटी के बावजूद इन्हें न तो न्यूनतम मज़दूरी दी जाती है, न ही ई.एस.आई. व पी.एफ. की सुविधा है। ऊपर से कम्पनी कई वाहियात नियमों से इनका शोषण कर रही है। जैसे किसी यात्री के बिना टिकट पाये जाने पर परिचालक को 10,000 रुपये का दण्ड और नौकरी से निकाले जाने का सामना करना पड़ सकता है। प्रत्येक चालक व परिचालक से क्रमशः 10,000 और 30,000 रुपये सिक्योरिटी जमा करायी जाती है जो नौकरी छोड़ने पर समय से नहीं दी जाती है। बस में तकनीकी ख़राबी का खर्चा भी इन कर्मियों के वेतन से काट लिया जाता है। इस ज्ञापन में मुख्य मांगे थीं – ठेका कानून के तहत न्यूनतम मज़दूरी लागू की जाये, ई.एस.आई., पी.एफ. की सुविधा दी जाये, आर्थिक दण्ड वाले नियम बदले जाये, सभी कर्मियों को स्थायी किया जाये और निकाले गये कर्मियों को नौकरी पर बहाल किया जाये।

मेट्रो के मज़दूरों को गिरफ्तार करके ले जाती हुई दिल्ली पुलिस

मेट्रो के मज़दूरों को गिरफ्तार करके ले जाती हुई दिल्ली पुलिस

इस ज्ञापन के बाद भी जब मेट्रो प्रशासन ने कोई ध्यान नहीं दिया तो 5 मई को सफाई कर्मचारियों के साथ फीडर सेवा के कर्मचारियों ने मेट्रो भवन के सामने प्रदर्शन का फैसला किया, जिसकी सूचना मेट्रो प्रशासन को पहले ही दे दी गयी थी। लेकिन 5 मई को कर्मचारियों के वहाँ पहुँचने के कुछ ही देर बाद मेट्रो प्रशासन के इशारे पर दिल्ली पुलिस ने मेट्रो कामगार संघर्ष समिति और उनका समर्थन कर रहे नौजवान भारत सभा और बिगुल मज़दूर दस्ता के कार्यकर्ताओं तथा मेट्रो कर्मचारियों सहित 46 लोगों को गिरफ्रतार कर लिया और गैर-ज़मानती धारा लगाकर तिहाड़ जेल भेज दिया।
दो दिन बाद सभी के ज़मानत पर रिहा होकर फिर से आन्दोलन के काम में जुट जाने से बौखलाये मेट्रो प्रशासन ने कर्मचारियों की कानूनी माँगों पर ध्यान देने के बजाय उनका उत्पीड़न और तेज़ कर दिया। 8 मई को जब वे काम पर पहुँचे तो प्रदर्शन में शामिल होने वाले मेट्रो फीडर सेवा के 30 कर्मचारियों के नामों की सूची डिपो के बाहर लगी थी और उन्हें ड्यूटी पर लेने से मना कर दिया गया। यही नहीं, जिन कर्मचारियों ने 5 मई को बाकायदा छुट्टी ली थी, उन पर 120 रुपये से लेकर 3000 हज़ार रुपये का जुर्माना लगा दिया गया।
लेकिन ‘दिल्ली मज़दूरों को रौंदो कारपोरेशन’ (डीएमआरसी) की शह पर हो रही इन तमाम दमनात्मक कार्रवाइयों से मज़दूरों का हौसला पस्त होने के बजाय और बढ़ा है। इन कदमों के ख़िलाफ कर्मचारियों ने क्षेत्रीय श्रम आयोग में शिकायत दर्ज कराके जुर्माना हटाने और नौकरी पर बहाल कराने की माँग की है। साथ ही, अपने संगठन को और व्यापक बनाने की कोशिशें भी तेज़ कर दी हैं। मज़दूर अपनी माँगों को लेकर लम्बी लड़ाई करने के लिए तैयार हैं।

मेट्रो कामगार संघर्ष समिति का कहना है ठेका मज़दूरों के अधिकारों को लेकर मेट्रो प्रशासन लगातार अपनी ज़िम्मेदारी से मुकर रहा है जबकि प्रधान नियोक्ता होने के नाते मज़दूरों के अधिकारों को सुनिश्चित करना उसी की मुख्य जिम्मेदारी है। संघर्ष समिति द्वारा आर.टी.आई. के तहत माँगी जानकारी के जवाब में मेट्रो प्रशासन ने कहा है कि उसके पास अपने ठेका कर्मचारियों के न तो वेतन रिकार्ड हैं और न ही मज़दूरों से सम्बन्धित अन्य कोई रिकार्ड हैं।
ऐसे में साफ है कि मेट्रो प्रशासन के वे सारे दावे झूठे हैं कि वह ठेका मज़दूरों के सभी रिकार्डों की जाँच करता है। संघर्ष समिति ने मेट्रो प्रशासन व ठेका कम्पनियों के गठजोड़ के खिलाफ कानूनी तथा आन्दोलन के रास्ते से संघर्ष को आगे बढ़ाने का आह्नान किया है।

 

बिगुल, मई 2009


 

‘मज़दूर बिगुल’ की सदस्‍यता लें!

 

वार्षिक सदस्यता - 125 रुपये

पाँच वर्ष की सदस्यता - 625 रुपये

आजीवन सदस्यता - 3000 रुपये

   
ऑनलाइन भुगतान के अतिरिक्‍त आप सदस्‍यता राशि मनीआर्डर से भी भेज सकते हैं या सीधे बैंक खाते में जमा करा सकते हैं। मनीऑर्डर के लिए पताः मज़दूर बिगुल, द्वारा जनचेतना, डी-68, निरालानगर, लखनऊ-226020 बैंक खाते का विवरणः Mazdoor Bigul खाता संख्याः 0762002109003787, IFSC: PUNB0185400 पंजाब नेशनल बैंक, निशातगंज शाखा, लखनऊ

आर्थिक सहयोग भी करें!

 
प्रिय पाठको, आपको बताने की ज़रूरत नहीं है कि ‘मज़दूर बिगुल’ लगातार आर्थिक समस्या के बीच ही निकालना होता है और इसे जारी रखने के लिए हमें आपके सहयोग की ज़रूरत है। अगर आपको इस अख़बार का प्रकाशन ज़रूरी लगता है तो हम आपसे अपील करेंगे कि आप नीचे दिये गए बटन पर क्लिक करके सदस्‍यता के अतिरिक्‍त आर्थिक सहयोग भी करें।
   
 

Lenin 1बुर्जुआ अख़बार पूँजी की विशाल राशियों के दम पर चलते हैं। मज़दूरों के अख़बार ख़ुद मज़दूरों द्वारा इकट्ठा किये गये पैसे से चलते हैं।

मज़दूरों के महान नेता लेनिन

Related Images:

Comments

comments