सँभलो, है लगने वाला ताला ज़बान पर!
सरकार के ख़ि‍लाफ़ बोलने पर पाबन्दी, ग़रीबों-अल्पसंख्यकों की दुर्गति और मेहनतकशों की लूट
यही है महाराष्ट्र सरकार के “अच्छे दिनों”  की सौगात

विराट

Maharashtraमहाराष्ट्र में भाजपा को सरकार बनाये हुए एक साल होने को आया है। केन्द्र में भाजपा सरकार को एक साल से अधिक हो चुका है। हर गली-मोहल्ले में सरकार को गालियों का सामना करना पड़ रहा है। हालत यह है कि जनता को ज़बरदस्ती ख़ामोश रखने के लिए सरकार को नये क़ानून भी लाने पड़ रहे हैं। भाजपा समर्थक जो चुनावों से पहले खूब गरजते थे आज वो बात करने से भी कतराने लगे हैं। काला धन, गुड गवर्नेन्स, अच्छे दिन, मज़बूत सरकार आदि सारे जुमले जो चुनावों से पहले भाजपा समर्थकों की जु़बान पर रहते थे आज वही उनके मुँह से बिल्कुल नहीं सुनाई देते। महंगाई और भ्रष्टाचार के लगभग सारे रिकॉर्ड टूट चुके हैं। 24 अगस्त को शेयर बाजार ने जो झटका दिया उसने भी बहुतों की नींद खोल दी है। 100 दिनों में ही देश का कायाकल्प करने चली भाजपा ने चुनाव में जितने वायदे किये थे उनमें से अब तक कितने पूरे हुए यह तो केवल चुटकुलों का विषय रह गया है। भाजपा समर्थक अब बस एक ही रट लगाए हुए हैं- “मोदी जी को अभी पूरे पाँच साल दो, कांग्रेस ने देश को 60 साल तक लूटा है!” पाँच साल तो जब होंगे तब होंगे लेकिन पिछले एक साल में भाजपा ने जो गुल खिलाए हैं वे ही यह दिखाने के लिए काफ़ी हैं कि सरकार के मंसूबे क्या हैं और “अच्छे दिन” किसके लिए आए हैं। महाराष्ट्र में भी मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडनवीस को युवा नेता और पता नहीं किन-किन उपाधियों से नवाज़ा गया था। 100 करोड़ से अधिक रुपये उनके शपथ ग्रहण समारोह में ही खर्च कर दिये गये थे और काफ़ी लोगों को उनसे बहुत सी उम्मीदें थीं। लेकिन पिछले एक साल में उन्होंने जो-जो किया है उससे पता चल रहा है कि फडनवीस भी अपने गुरू के ही नक्शे-कदम पर चल रहे हैं।

एक के बाद एक फ़ैसले जो महाराष्ट्र सरकार ले रही है उनसे पता चलता है कि सरकार किसके लिए काम कर रही है और किसकी दुश्मन है। बीफ़ पर प्रतिबन्ध और श्रम कानूनों में फेरबदल तो सरकार काफ़ी पहले ही कर चुकी है, अब सरकार ने 27 अगस्त को एक नया सर्कुलर जारी किया है जिसके तहत किसी को भी सरकार की आलोचना करने पर राजद्रोह का मुकदमा ठोककर जेल में डाला जा सकता है। जैन समुदाय के त्यौहार प्रयूषण पर भी सरकार ने हाल ही में मुम्बई में चार दिनों के लिए और मीरा रोड-भयंदर में आठ दिनों के लिए सभी तरह का मांस (मछली को छोड़कर) बेचने पर पाबन्दी लगाई है।

जो नया सर्कुलर महाराष्ट्र सरकार ने जारी किया है उसके तहत सरकारी अफसरों, नेता-मंत्रियों की आलोचना करने पर आपको भारतीय दण्ड संहिता की धारा 124 ए के अनुसार राजद्रोही क़रार देकर जेलों में ठूँसा जा सकता है। मिसाल के तौर पर अगर आप अब मोदी की हिटलर से तुलना करें, सरकारी अफसरों को भ्रष्ट कहें, नेताओं के कार्टून बनाएं, अखबार-पत्रिकाओं में सरकार को कोसें तो आपको ख़तरनाक अपराधी करार दिया जा सकता है! आपको अपनी जुबान खोलने की क़ीमत तीन साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास और साथ में जुर्माना भरने से चुकानी पड़ सकती है। सरकार की किसी लुटेरी नीति का विरोध करने के कारण आपकी नियति बदल सकती है! अभिव्यक्ति की आज़ादी पर ये नया हमला महाराष्ट्र सरकार की जनता को एक और “सौगात” है।

भाजपा सरकार सबका ख़याल रखती है! जैन समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस न पहुँचे इसके लिए सरकार ने उनके त्यौहार पर हर तरह के मांस (सिवाय मछली के) बेचने पर पाबन्दी लगाई है। उनका कहना है कि बाज़ारों में दुकानों पर लटकता मांस देखकर उन्हें घिन आती है इसलिए मांस की बिक्री पर पाबन्दी लगाना जरूरी है। सरकार के तर्क से चलें तो मछली की बिक्री पर भी पाबन्दी लगाई जानी थी। आखिर वह भी मांसाहार ही है और किसी को उससे भी घिन आ सकती है। असल में सरकार ने यह पाबन्दी बेहद सोच-समझकर और साम्प्रदायिकता की राजनीति के तहत लगाई है। अधिकतर मांस बेचने के काम में मुस्लिम आबादी ही लगी है और उसी को निशाने पर रखते हुए सरकार ने यह फैसला लिया है। मछली बेचने के काम में मुख्यतः महाराष्ट्र के कोली व आगरी समुदाय लगे हैं। सरकार अपना हिन्दू वोटबैंक खोने का खतरा नहीं उठा सकती इसीलिए मछली पर पाबन्दी नहीं लगाई गयी। सबसे बड़ी बात है कि इस तरह के प्रतिबन्ध का सबसे बड़ा असर ग़रीब मुसलमान आबादी पर पड़ता है। किसी खाद्य पदार्थ की बिक्री पर रोक लगाना और वह भी जब उसके ज़रिये एक बड़ी आबादी की रोज़ी-रोटी चलती हो, यह काम केवल फासीवादी ही कर सकते हैं। मोदी ने चुनावों से पहले लोगों से कहा था कि वो देश को एक मज़बूत सरकार देंगे। सरकार वाकई में बेहद “मज़बूत” है! जहाँ मांस बेचना भी “संगीन अपराध” हो वहाँ की सरकार जरूर ही बेहद “मज़बूत” होगी! अगले साल अगर इस त्यौहार पर धार्मिक भावनाओं का ख़याल रखते हुए प्याज़ और लहसुन बेचने को भी “संगीन अपराध” करार दे दिया जाय तो आश्चर्य नहीं होगा!

भाजपा का कहना था कि वह अपनी “मज़बूती” का प्रदर्शन दाऊद इब्राहिम को पकड़कर करेगी। दाऊद तो पता नहीं कहाँ है लेकिन अभी तक गोविन्द पानसरे और नरेन्द्र दाभोलकर के हत्यारों को भी गिरफ्तार नहीं किया जा सका है या और भी सटीकता से कहें तो उन्हें शह दी गयी है। दाभोलकर और पानसरे जैसे धार्मिक अन्धविश्वासों और हिन्दुत्ववादियों की विचारधारा को चुनौती देने वालों को कुचलने में भी सरकार ने काफ़ी “मज़बूती” दिखायी है। प्रगतिशील विचारों के ख़िलाफ़ यह “मज़बूती” आगे भी जारी रहेगी; कर्नाटक में प्रोफेसर कलबुर्गी की हत्या इसका नया सबूत है।

sambhaloभाजपा सरकार अपने जन्म के समय से ही साम्प्रदायिकता की राजनीति करती रही है या यह भी कहा जा सकता है कि साम्प्रदायिकता की राजनीति ने ही भाजपा को जन्म दिया है। यह किसी से छिपा नहीं है कि भाजपा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के इशारों पर काम करती है। कट्टर हिन्दुत्ववादी विचारधारा रखने वाला संघ अपने जन्म से ही बहुसंख्यक हिन्दू आबादी के मन में मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर घोलता आया है। इतने सालों की “मेहनत” के ज़रिये संघ ने बहुसंख्यक आबादी के बीच मुसलमानों को लेकर अनेकों पूर्वाग्रह पैदा किये हैं, उनके मन में असुरक्षा की भावना और डर पैदा किया है। भाजपा इसी डर का फ़ायदा उठाते हुए सत्ता में आयी है। बीफ़ पर पाबन्दी और अन्य मांस उत्पादों पर पाबन्दी से सरकार पूर्वाग्रहों से ग्रसित बहुसंख्यक आबादी का तुष्टीकरण करके अपनी चमड़ी बचाने में लगी है। दूसरी बात यह है कि संघ की विचारधारा के अनुसार मुसलमानों को देश में दोयम दर्जे का नागरिक बना देना चाहिए, इस विचारधारा को भी सरकार कदम-ब-कदम साथ लेकर चल रही है और इसलिए मुसलमानों पर एक के बाद एक हमलें कर रही है।

इस विचारधारा का वाहक संघ एक फासीवादी संगठन है और फासीवादियों के सबसे बड़े दुश्मन प्रगतिशील विचार होते हैं। इसी लिए सरकार ऐसे क़ानून लाना चाहती है जो लोगों से विरोध करने की आज़ादी छीन लें। ऐसे क़ानूनों का निशाना कौन हो रहे हैं और होगें? ज़ाहिर है अलग-अलग पार्टियों के भ्रष्ट नेता जो एक दूसरे को गालियाँ देते रहते हैं और नंगा-नंगा करते हैं उन्हें इन क़ानूनों से कोई नुकसान नहीं पहुँचेगा! शिव सैनिकों और ए.बी.वी.पी. के गुण्डों पर भी ये क़ानून लागू नहीं होंगे। इन क़ानूनों का निशाना धार्मिक अल्पसंख्यकों, दलितों, प्रगतिशील विचार रखने वाले बुद्धिजीवियों और कलाकारों तथा सबसे बढ़कर क्रान्तिकारी मज़दूर संगठनों को बनाया जायेगा। मज़दूर आन्दोलनों को और भी बेरहमी से कुचला जाएगा और लोगों की ज़ुबान पर ताले जड़ने के पुख़्ता इन्तज़ाम किये जायेंगे; देश को क़ैदखाने में तब्दील करने की कोशिशें की जायेंगी। ऐसे में हम मज़दूरों को क्या करना चाहिए? क्या हमारे लिए कार्ल मार्क्स की यह बात आज पहले से भी अधिक प्रासंगिक नहीं है? – “मज़दूरों के पास खोने के लिए अपनी बेड़ियों के सिवा कुछ नहीं है। जीतने के लिए उनके सामने सारी दुनिया है। दुनिया के मज़दूरो, एक हो!”

 

मज़दूर बिगुल, अगस्‍त-सितम्‍बर 2015


 

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