केजरीवाल  सरकार का “आम आदमी” चेहरा एक बार फिर बेनकाब
विधायकों का वेतन 4 गुना तक बढ़ाया!

अमित

arvind kejriwal cartoonदिल्ली सरकार द्वारा बनायी गयी एक कमेटी ने उनके “आम आदमी” विधायकों के वेतन को 4 गुने तक बढ़ाने की सिफारिश की है। कुछ दिन पहले इनके विधायकों ने जो कि अपने आप को आम आदमी का प्रतिनिधि कहते हैं माँग की थी कि इनका मासिक वेतन (जो कि भत्ता सहित कुल 88000 से भी ज्यादा है!) इनके परिवार के भरण पोषण व ऑफिस के ख़र्च के लिए पर्याप्त नहीं है, इसलिए इसे कम से कम 4 गुना तक बढ़ाया जाये। ‘आम आदमी’ की सरकार ने अपने विधायकों की माँग पर जल्द सुनवाई करते हुए एक 3 सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया और अब उस कमेटी की सिफारिश भी आ गयी है। इस सिफारिश के अनुसार विधायकों के कुल वेतन भत्ते को 88,000 रुपए से बढ़ाकर 2.35 लाख तक कर दिया जायेगा! इसमें से उनका वेतन 12,000 रुपए प्रतिमाह से बढ़ कर 50,000 रुपए, क्षेत्र में घूमने का भत्ता 18,000 रुपए से बढ़ा कर 50,000, ऑफिस खर्च 30,000 से बढ़ कर 70,000 , ऑफिस किराया 25,000, संचार भत्ता 8000 से बढ़ा कर 10,000 तक, यातायात भत्ता 6000 से बढ़ा कर 30,000, दैनिक भत्ता 1000 से बढ़ा कर 2000 और ऑफिस फ़र्नीशिंग भत्ता 1 लाख तक करने की बात है।
एक तरफ खज़ाना खाली होने का बहाना बनाकर केजरीवाल सरकार जनता से किये हुए एक एक वादों से मुकरती नज़र आ रही हैं वहीं दूसरी ओर अपने प्रचार के लिए बजट को करीब 21 गुना तक बढ़ा कर 526 करोड़ तक कर दिया है और अपने “ईमानदार” विधायकों का वेतन 4 गुना तक बढ़ाने का बेशर्मी से फैसला करने जा रही है। दरअसल इस बहरूपिये का यही असली रंग है जो अब जनता के सामने आ रहा है। दिल्ली में करीब 80 लाख ठेका मज़दूर-कर्मचारी आबादी है जिनका न्यूनतम वेतन 9000 से 11000 तक कागजों में है जो कि कहीं भी लागू नहीं होता है। सरकार के हिसाब से उनके परिवार के भरण पोषण के लिए यह रकम काफ़ी है लेकिन इनके विधायकों के लिए 88,000 हज़ार रुपए भी कम हैं! वेतन बढ़ोत्तरी पर इनके एक प्रवक्ता ने तो यह तक कह डाला कि चूँकि इनके विधायक ईमानदार हैं इसलिए इनके वेतन में बढ़ोत्तरी की जानी चाहिए। तो इसका क्या मतलब है कि आम मेहनतकश जनता जो 5000-6000 में 12 से 15 घंटे हाड़-मांस गलाती है वो ईमानदार नहीं है ! ये न सिर्फ़ बेशर्मी की हद है बल्कि दिल्ली की आम मेहनतकश जनता का घोर आपमान भी है।
चुनाव से पहले खुद अरविन्द केजरीवाल दूसरी पार्टियों पर ये आरोप लगाते थे कि अपना वेतन बढ़ाने के मुद्दे पर ये सभी एकमत को जाते हैं पर लोकपल पर इनकी सहमति नहीं बनती है। इन्होंने घोषणा की थी कि ये आम आदमी की तरह जीवन बितायेंगेे, 25 हज़ार से ज्यादा कोई वेतन नहीं लेगा, कोई बड़ा बंगला नहीं लेंगे, ज़रूरत पड़ने पर छोटा सरकारी घर लेंगे, कोई पुलिस सुरक्षा नहीं लेंगे, सादा जीवन बिताएंगे आदि-आदि। हमेशा की तरह अपनी बात से पलटी खा कर ये “स्वराज” के पुजारी बाकी नेताओं की ही तरह जनता के पैसे पर जम कर आइयाशी कर रहे है।
चुनाव से पहले आम आदमी पार्टी व अरविन्द केजरीवाल ने जनता से बड़े बड़े वादे किये थे। कांग्रेस और भाजपा से त्रस्त जनता ने केजरीवाल पर भरोसा किया और 67 सीटों देकर भारी बहुमत से इनकी सरकार बनवाई। केजरीवाल ने वादा किया था कि ठेका प्रथा ख़त्म करेंगे, श्रम क़ानून सख्ती से लागू कराया जायेगा, झुग्गी के बदले 5 लाख पक्के मकान दिये जायेंगे, 500 स्कूल खोले जायेंगे, 20 नए कॉलेज खोले जायेंगे आदि । लेकिन 6 महीने बीत जाने के बावजूद इन वादों पर अमल होने के आसार दूर दूर तक नहीं दिख रहे है। अब श्रीमान सुथरे केजरीवाल बड़े बेशर्मी से कहते हुए नज़र आते हैं कि अगर इनमे से 20-30 फीसदी वादे भी पूरे हो गए तो बहुत है। ज़ाहिर है कि ये 20 फीसदी वादे जो केजरीवाल ने दिल्ली के व्यापारियों, मालिकों से किये वो ज़रूर पूरा करेंगे और कर भी रहे है, जैसे कि वैट को आसान बनाना, व्यापारियों की टैक्स चोरी पर छापे बंद करवाना आदि। लेकिन जब मज़दूर और कर्मचारी अपनी माँगों को लेकर दिल्ली सचिवालय जाते हैं तो उनपर बर्बर लाठीचार्ज करवाया जाता है और जेल भेजा जाता है। ये है इस बहरूपिया का असली चेहरा।
पिछले दिनों दिल्ली के आँगनवाड़ी कर्मचारियों की हड़ताल हुई, कर्मचारी अपने वेतन बढ़ाने व दूसरी जायज़ माँगें कर रहे थे, जिस पर सरकार को अन्त में झुकना पड़ा, लेकिन जब इसे लागू करने की बात आयी तो ये खजाना खाली होने का रोना रोने लगे और कहा कि सरकार के पास इतना बजट नहीं। लेकिन अपने ‘सदाचारी’ व ‘ईमानदार’ ‘आम आदमी’ के प्रतिनिधियों के लिए सरकार का खज़ाना कुबेर के ख़जाने की तरफ भरा है और सरकार उन पर खुले दिल से मेहरबान है।
मेहनतकशों को भ्रम के जाल में फँसाने वाले इस बहरूपिये की असलियत आज आम जनता के सामने आ रही है और आज हमें ये समझाना पड़ेगा कि किसी और चुनावी मदारी की तरह ही ये भी आम मेहनतकश जनता और मज़दूरों का उतना ही बड़ा दुश्मन है और सही मायने में उनसे ज्यादा ख़तरनाक है क्योंकि ये आम आदमी का मुखौटा लगाकर हमारी पीठ में छुरा घोंप रहा है।

मज़दूर बिगुल, अक्‍टूबर-नवम्‍बर 2015


 

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