मोदी सरकार का मज़दूर विरोधी चेहरा और असंगठित मज़दूरों के आन्दोलन की चुनौतियाँ

मज़दूर साथियो!
पिछले डेढ़ सालों में विकास का ढोल काफी बज चुका है! नयी बनी मोदी सरकार पिछली सरकार से भी आगे निकलते हुए हमें निचोड़ लेने के लिए लगातार हमले किये जा रही है। एक के बाद एक सभी महत्वपूर्ण श्रम कानूनों में “सुधार” किये जा रहे हैं। जो भी श्रम कानून मज़दूरों को लूटने के लिए मालिकों की राह में रोड़ा बनते हैं, उन्हें लगातार मालिकों के पक्ष में किया जा रहा है। दुनिया भर में घूम-घूम कर नरेंन्द्र मोदी विदेशी लुटेरों को भी सस्ती दरों पर भारत के मज़दूरों को लूटने का आमन्त्रण देते हुए घूम रहे हैं। मेक इन इण्डिया से मोदी का यही मतलब है कि -‘आओ लुटेरों हमारे देश के मज़दूरों को भी लूटो, श्रम कानूनों की फिक्र न करो, हम तुम्हारी राह की सभी बाधाओं को हटा देंगे!’ अगर सवाल किया जाय कि मोदी सरकार ने पिछले डेढ़ वर्षों में मज़दूरों के लिए क्या किया है तो हम देखते हैं कि हमें लूटने की नीतियाँ बनाने के अलावा उसने कुछ भी नहीं किया है। असली मुद्दों से हमें भटकाने के लिए भाजपा सरकार आज साम्प्रदायिकता की राजनीति कर रही है और देशभर में फासीवादी माहौल बना रही है। सच यह है कि वह इसके अलावा और कुछ कर भी नहीं सकती। देशी-विदेशी पूँजीपतियों ने भाजपा को जिताने के लिए हज़ारों करोड़ रुपये इसीलिए खर्च किये हैं ताकि सत्ता में आने पर वह उनकी जमकर सेवा कर सके।

भाजपा और नरेन्द्र मोदी आज पूंजीपति वर्ग की ज़रूरत है। आज विश्वभर में आर्थिक मन्दी छायी हुई है जिसके कारण मालिकों का मुनाफा लगातार गिरता जा रहा है। ऐसे में मालिकों को ऐसी ही सरकार की ज़रूरत है जो मन्दी के दौर में डण्डे के ज़ोर से मज़दूरों को निचोड़ने में उनके वफादार सेवक का काम करे और मज़दूरों की एकता को तोड़े। यही कारण है कि मोदी सरकार पूरी मेहनत और लगन से अपने मालिकों की सेवा करने में लगी हुई है। परिणामस्वरूप बेरोज़गारी भयंकर रूप से बढ़ती जा रही है और जिनके पास रोज़गार है उनके शोषण में भी इज़ाफ़ा होता जा रहा है व छँटनी का ख़तरा लगातार सिर पर मँडरा रहा है। इसके अलावा महंगाई बेतहाशा बढ़ती जा रही है; स्कूल-कॉलेजों की फीस, इलाज का खर्च भी बढ़ता जा रहा है। हमारी जेबों को झाड़ने के लिए लगातार टैक्स बढ़ाये जा रहे हैं और बुनियादी सुविधाओं में कटौती की जा रही है। जनता के गुस्से को शान्त रखने के लिए जनता को धर्म के नाम पर बाँटने की साजिशें की जा रही है। दलितों और अल्पसंख्यकों पर भयंकर जुल्म ढाये जा रहे हैं। कुल मिलाकर मोदी सरकार के “अच्छे दिन” ऐसे ही हैं।

Modi labor reformsऐसे में सवाल उठता है कि मज़दूर आन्दोलन मोदी सरकार के हमलों का जवाब कैसे दे? केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघों की पहुँच भारत के संगठित क्षेत्र के मज़दूरों (बैंक, बीमा, पोस्टल व टेलीग्राफ़, रेलवे के मज़दूरों के एक हिस्से) से आगे नहीं जाती है। 93 प्रतिशत असंगठित मज़दूर इनकी पहुँच से बाहर हैं। विभिन्न चुनावी पार्टियों से जुड़ी इन केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों ने वास्तव में असंगठित, ठेका, दिहाड़ी, कैजुअल व अनौपचारिक मज़दूरों की लड़ाई को एक प्रकार से छोड़ दिया है। सर्वाधिक शोषित इन मज़दूरों की माँगें कहने के लिए तो इन केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघों के माँगपत्रक में कहीं नीचे जगह पा जाती हैं और साथ ही अपनी रैलियों का संख्या बल बढ़ाने के लिए केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघ इनका इस्तेमाल भी कर लेते हैं; मगर वास्तव में इन मज़दूरों की लड़ाई को इन यूनियनों ने छोड़ दिया है। यह मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था के साथ इन केन्द्रीय ट्रेड यूनियनों का अनकहा समझौता है। कुछ तथ्यों से ही यह बात साफ़ हो जाती है। क्या ये यूनियनें मोदी सरकार का कारगर विरोध और मज़दूरों के हितों के लिए जुझारू लड़ाइयाँ लड़ रही हैं? जब मोदी सरकार एक-एक करके सभी श्रम कानूनों को बर्बाद कर रही है तब ये यूनियनें कहाँ होती हैं? ये हर साल केवल एक या दो दिनों की रस्मी हड़ताल क्यों करती हैं? ये मोदी सरकार की मज़दूर-विरोधी नीतियों के विरुद्ध अनिश्चितकालीन आम हड़ताल का आह्वान क्यों नहीं करतीं? ये सिर्फ़ कुछ औपचारिक प्रस्ताव, जुबानी जमाख़र्च और एक-एक दो-दो दिनों की रस्मी हड़तालें व प्रदर्शन ही क्यों करती रहती हैं? वास्तव में इन यूनियनों का काम मज़दूरों के एक बेहद छोटे से हिस्से यानी कि औपचारिक क्षेत्र के संगठित मज़दूरों तक ही है। मोदी सरकार जब लगातार श्रम कानूनों को बर्बाद कर रही है तब इन यूनियनों की मुख्य नाराज़गी इस बात पर है कि श्रम कानून को बदलने के लिए पहले इनसे परामर्श नहीं लिया जा रहा! संघर्ष के रास्ते से इनका दूर-दूर का नाता नहीं रह गया है। कुल मिलाकर ये मुनाफाखोर व्यवस्था की सेवा ही करती हैं और इस व्यवस्था को बचाने के लिए एक सुरक्षा पंक्ति का काम करती है। स्पष्ट है मज़दूरों की मुक्ति की लड़ाई को इनके भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता।

मज़दूर वर्ग की मुक्ति की लड़ाई आज गतिरोध की शिकार है और हमें इस गतिरोध को तोड़ने के चुनौतीपूर्ण काम को अपने हाथों में लेना होगा। साथियो! जहाँ शोषण और उत्पीड़न सबसे ज़्यादा होता है, प्रतिरोध भी वहीं से खड़ा होता है। आज देश का सबसे शोषित मज़दूर असंगठित क्षेत्र का ठेका, दिहाड़ी व कैजुअल मज़दूर है। लगातार दमन भी वही झेल रहा है। यही कारण है कि गुड़गाँव से लेकर चेन्नई और केरल तक वही लड़ भी रहा है। लेकिन करोड़ों की संख्या में मौजूद यह असंगठित मज़दूर वर्ग बिखरा हुआ है। मज़दूरों के इस हिस्से को कोई भी सामाजिक सुरक्षा प्राप्त नहीं है। इसमें घरेलू मज़दूरों, कारखानों के ठेका व दिहाड़ी मज़दूरों से लेकर लेबर चौक या नाके पर खड़े होने वाले सभी मज़दूर शामिल हैं। मुख्य उत्पादन का काम आज ठेका-दिहाड़ी-कैजुअल मज़दूरों द्वारा किया जाता है। फैक्टरियों-कारखानो-वर्कशॉपों का आकार छोटा हुआ है और एक-एक फैक्टरी-वर्कशॉप में बहुत कम संख्या में मज़दूर काम करते हैं। वे अपनी कोई यूनियन भी बनाते हैं तो उसकी ताकत बेहद सीमित रहती है। ठेके-दिहाड़ी पर काम करने के कारण मज़दूर का मालिक भी बदलता रहता है। ऐसे में हम अपने संघर्षों को किस तरह से संगठित करें यह एक चुनौती है। क्या हम हिम्मत हार जायें बिल्कुल नहीं! आज हमें सेक्टरगत और इलाकाई आधार पर अपनी यूनियनें बनानी होंगी। आज जिन बस्तियों में हम रहते हैं, जिधर भी आँख उठाकर देखते हैं हमारे जैसे ही हमारे मज़दूर भाई-बहन हमें दिखायी देते हैं। हमें इन सभी अनौपचारिक-असंगठित क्षेत्र के मज़दूरों की स्वतन्त्र व क्रान्तिकारी सेक्टरगत व इलाकाई यूनियनें खड़ी करनी होंगी। केवल और केवल तभी हम शासक वर्ग के हमलों के ख़ि‍लाफ़ कारगार तरीके से लड़ सकते हैं। उनके पास पूँजी की ताक़त है, मगर हमारे पास अपार संख्याबल है। अगर हम केन्द्रीय ट्रेड यूनियन संघों की भ्रमजाल और रस्मी कवायदों से मुक्त होकर ऐसी जुझारू यूनियनों में संगठित होते हैं तो निश्चय ही विजय हमारी होगी।

आज ज़रूरत है कि हम अपने अधिकारों की लड़ाई को तेज़ करें और सरकार की लुटेरी नीतियों के साथ ही सभी रंग-बिरंगी सौदेबाज़ यूनियनों के खिलाफ भी एकजुट हों। हमारी लड़ाई केवल अपनी बुनियादी माँगों पर ही खत्म नहीं हो जाती। हमारी असली लड़ाई इस समूची पूँजीवादी व्यवस्था से है जिसमें हमारा और हमारे बच्चों का भविष्य अन्धकार में ही रहेगा। इस दमघोंटू व्यवस्था के खत्म होने से पहले हमें खामोश नहीं होना होगा!

इंक़लाबी अभिवादन के साथ,

उठो मज़दूरो, आगे आओ! लड़कर नया समाज बनाओ!!

दुनिया के मज़दूरो, एक हो!

बिगुल मज़दूर दस्ता

सम्पर्कः रूम न 103, बिल्डिंग 61-ए, लल्लुभाई कम्पाउण्ड, मानखुर्द (वेस्ट), विराट 9619039793, नारायण 9764594057

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