लहर

मर्ज़ि‍एह ऑस्‍कोई (ईरानी क्रान्तिकारी कवयित्री जिनकी शाह-ईरान के एजेंटों ने हत्‍या कर दी थी)

मैं हुआ करती थी एक ठंडी, पतली धारा
बहती हुई जंगलों,
पर्वतों और वादियों में
मैंने जाना कि
ठहरा हुआ पानी भीतर से मर जाता है
मैने जाना कि
समुद्र की लहरों से मिलना
नन्‍ही धाराओं को नयी जिन्‍दगी देना है
न तो लम्‍बा रास्‍ता, न तो लम्‍बा खड्ड
न रूक जाने का लालच
रोक सके मुझे बहते जाने से
अब मैं जा मिली हूँ अन्‍तहीन लहरों से
संघर्ष में मेरा अस्तित्‍व है
और मेरा आराम है – मेरी मौत


 

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