Category Archives: अर्थनीति : राष्‍ट्रीय-अन्‍तर्राष्‍ट्रीय

‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ का दूसरा चरण : समाहार रपट

3 मार्च को दिल्ली में यात्रा के समापन के तौर पर होने वाले विशाल प्रदर्शन को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया, बवाना औद्योगिक क्षेत्र में यात्रा के समर्थन में हुई हड़ताल को कुचलने के लिए गिरफ्तारियाँ और हिरासत में यातना तक का सहारा लिया, जन्तर-मन्तर से कई लहरों में हज़ारों लोगों को बार-बार हिरासत में लिया और शहर में जगह-जगह जत्थों में आ रहे मज़दूरों, मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं को रोकने की कोशिश की और जन्तर-मन्तर पर कई दफ़ा लाठी चार्ज तक किया। लेकिन इससे भी वह प्रदर्शन को रोकने में कामयाब नहीं हो पायी। जन्तर-मन्तर पर तो बार-बार प्रदर्शन हुए ही, दिल्ली के करीब आधा दर्जन पुलिस थानों में भी प्रदर्शन होते रहे। प्रदर्शन का सन्देश सीमित होने के बजाय पूरे शहर में और भी ज़्यादा व्यापकता के साथ फैला।

भीषण आर्थिक व राजनीतिक संकट से जूझता बंगलादेश लेकिन क्रान्तिकारी विकल्प की ग़ैर-मौजूदगी में शासक वर्ग का दबदबा क़ायम

आने वाले दिनों में बंगलादेश में आर्थिक संकट और गहराने ही वाला है क्योंकि चालू खाते का घाटा बढ़ता जा रहा है और भुगतान सन्तुलन की हालत खस्ता है। पूँजीपतियों द्वारा क़र्ज़ों की अदायगी न करने की सूरत में बैंकिंग क्षेत्र का संकट भी और बढ़ने वाला ही है। विश्व बाज़ार में उछाल की सम्भावना कम होने की वजह से निर्यात पर टिकी अर्थव्यवस्था के सामने संकट से उबरने की वस्तुगत सीमाएँ हैं। ऐसे में लोगों के जीवन में बेहतरी और उनकी आमदनी बढ़ने की कोई सम्भावना नहीं दिखती है। इस गहराते आर्थिक संकट की अभिव्यक्ति राजनीतिक संकट के गहराने के रूप में सामने आयेगी क्योंकि सत्ता में बने रहने के लिए और जन आक्रोश को कुचलने के लिए शेख़ हसीना की अवामी लीग सरकार का दमनतंत्र ज़्यादा से ज़्यादा निरंकुश होता जायेगा।

चुनाव नज़दीक आते ही मोदी सरकार द्वारा रसोई गैस की क़ीमत घटाने के मायने

मोदी सरकार के नौ सालों में जनता ने कमरतोड़ महँगाई का सामना किया है। बढ़ती क़ीमतों ने देश की मेहनतकश आबादी का जीना दूभर कर दिया है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं मोदी सरकार द्वारा जनता का “हितैषी” बनने का ढोंग शुरू हो गया है। पिछले नौ सालों में जनता के मुद्दों के हर मोर्चे पर बुरी तरह विफल रहने के बाद, फ़ासीवादी मोदी सरकार को 2024 के लोकसभा चुनाव में हार का भूत अभी से डराने लगा है। इसका ताज़ा उदाहरण अभी मोदी सरकार द्वारा 2024 के चुनाव से ठीक पहले रसोई गैस की क़ीमत में दो सौ रूपए की “कटौती” करना है।

कब तक अमीरों की अय्याशी का बोझ हम मज़दूर-मेहनतकश उठायेंगे!

जी-20 शिखर सम्मेलन से ठीक पहले दिल्ली में हरे रंग के पर्दे और फ्लेक्स को झुग्गी-झोपड़ियों के सामने लगा दिया गया ताकि भारत की ग़रीबी पर पर्दा डाला जा सके। लेकिन जी-20 के लिए दिल्ली में जो ‘सौंदर्यीकरण’ का अभियान चला, उसके तहत ये सब होना केवल एक ही पहलू है जिससे झुग्गी में रहने वाले लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा। मोदी सरकार ने जी-20 के नाम पर ग़रीबों के ख़िलाफ़ खुलकर काम किया। दिल्ली में ही कई सारी झुग्गी बस्तियों को तोड़ दिया गया। इस दौरान धौला कुआँ, मूलचन्द बस्ती, यमुना बढ़ क्षेत्र के आस-पास की झुग्गियों, महरौली, तुगलकाबाद के इलाक़े में झुग्गियों को तोड़ा गया। इससे क़रीब 2 लाख 61 हज़ार लोग प्रभावित हुए। साथ ही जिन झुग्गियों को तोड़ नहीं पाये, उन्हें हरे पर्दे से ढक दिया गया, ताकि जी-20 के प्रतिनिधियों को भारत की ग़रीबी न दिखे।

 मोदी सरकार के घोटालों की पोल खोलती नियन्त्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) की हालिया रिपोर्ट

एक के बाद एक ऐसे घोटालों के सामने आने के बाद भी मोदी राज में बेलगाम होते भ्रष्टाचार पर गोदी मीडिया चूँ तक नहीं कर रहा है। प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी आज भी ख़ुद को पाक-साफ़ और देशभक्त बताने में जी जान से जुटे हैं। कैग की रिपोर्ट इनकी कथनी और करनी के दोमुँहेपन को लोगों के सामने लाता है।

यूक्रेन युद्ध: तबाही और बर्बादी के 500 दिन

यूक्रेन युद्ध में आम लोगों की भले ही कितने भी बड़े पैमाने पर तबाही और बर्बादी हो रही हो, लेकिन मुनाफ़े की होड़ की वजह से पैदा होने वाला युद्ध अपने आप में अकूत मुनाफ़ा कूटने का ज़रिया भी बन रहा है। सबसे ज़्यादा फ़ायदा अमेरिका के मिलिटरी औद्योगिक कॉम्पलेक्स को हो रहा है। लॉकहीड मार्टिन, रेथियॉन और बोइंग जैसी अमेरिकी सैन्य कम्पनियाँ यूक्रेन युद्ध की वजह से सैन्य हथियारों के उत्पादन के पुराने कीर्तिमान तोड़ रही हैं और इस प्रक्रिया में दौरान अभूतपूर्व मुनाफ़ा कमा रही है। इन कम्पनियों के शेयर्स की क़ीमतों में भी ज़बर्दस्त उछाल देखने को आ रहा है।

आम जनता की बदहाली और दमन के बीच जी-20 का हो-हल्ला

जी-20 शिखर सम्मेलन की आड़ में मोदी सरकार सस्ती लोकप्रियता हासिल करने की कोशिश क्यों कर रही है? इसका जवाब पूरी तरह तरह स्पष्ट है। अगले वर्ष 2024 में लोकसभा के चुनाव होने हैं और केन्द्र सरकार के जनता विरोधी रवैये के कारण नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता लगातार गिरती जा रही है। मोदी सरकार 2014 में “अच्छे दिन आने वाले हैं” की बात करते हुए आयी थी लेकिन अच्छे दिन मालिकों-पूँजीपतियों-अमीरों के आये, मज़दूरों के बुरे दिन चल रहे थे वह और बुरे हो गये।

बढ़ते आर्थिक संकट के बीच बड़ी कम्पनियों से लेकर स्टार्टअप तक छँटनी का सिलसिला जारी

भारत में काम कर रहे ट्विटर के 80 फ़ीसदी कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया जा चुका है। हाल ही में अमेज़न ने अपने 18000 और एचपी ने 6000 से ज़्यादा कर्मचारियों को निकालने की बात कही है।  अमेज़न के नोएडा, गुड़गाँव स्थित कार्यालयों में छँटनी की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है। जुलाई 2022 से अब तक माइक्रोसॉफ़्ट तीन बार और नेटफ़्लिक्स दो बार छँटनी कर चुका है। हार्डड्राइव निर्माता सीगेट 3000 से ज़्यादा लोगों की छँटनी कर चुका है और आने वाले दिनों में इससे भी बड़े पैमाने पर छँटनी की बात कर रहा है। आईबीएम 3900 कर्मचारियों को बाहर कर चुका है। हालिया रिपोर्ट के मुताबिक बेरोज़गार हुए लोगों में से 10 फ़ीसदी लोगों को भी दुबारा काम नहीं मिल पा रहा है।

बजट 2023-24 : मोदी सरकार की पूँजीपरस्ती का बेशर्म दस्तावेज़

इस साल के बजट का एक संक्षिप्त विश्लेषण या उस पर एक सरसरी निगाह ही इस बात को दिखला देती है कि मोदी सरकार की प्राथमिकताएँ एक पूँजीवादी सरकार और विशेष तौर पर नवउदारवाद के दौर की फ़ासीवादी सरकार के तौर पर क्या हैं। नवउदारवाद के पूरे दौर में और विशेष तौर पर मोदी सरकार के दौर में भारत के पूँजीवादी विकास की पूरी कहानी वास्तव में मज़दूर वर्ग और व्यापक मेहनतकश आबादी की औसत मज़दूरी को कम करने पर आधारित है।

हिण्डेनबर्ग रिपार्ट से उजागर हुआ कॉरपोरेट इतिहास का सबसे बड़ा घोटाला

उनकी कामयाबी के पीछे भाँति-भाँति की लूट-खसोट छिपी होती है। बैंकों व वित्तीय संस्थाओं में जमा जनता की बचत को ये क़र्ज़ों के रूप में इस्तेमाल करते हुए अपनी पूँजी बढ़ाते हैं। इस पूँजी से कच्चा माल, मशीनें और श्रम-शक्ति ख़रीदते हैं। सरकार से अपनी क़रीबी का फ़ायदा उठाते हुए ये औने-पौने दामों पर ज़मीन, लाइसेंस व विभिन्न प्रकार के ठेके हासिल करते हैं। उत्पादन की प्रक्रिया के दौरान मज़दूरों के श्रम को लूटकर ये मुनाफ़ा कमाते हैं। उसके बाद जब कर देने की बारी आती है तो सरकार पर दबाव बनाकर करों में ज़बर्दस्त छूट हासिल करते हैं जिससे आम मेहनतकश जनता पर बोझ बढ़ता है और उसकी आमदनी और जीवन की गुणवत्ता में गिरावट होती है। इस अपार लूट से भी जब इन लुटेरों को सन्तोष नहीं होता तो वे भाँति-भाँति की तिकड़मों के ज़रिए स्टॉक क़ीमतों व बही-खाते में हेराफेरी करके अपनी लूट के पहाड़ को और ऊँचा करने से भी नहीं चूकते हैं।