लगातार होती छँटनी और गहराता आर्थिक संकट
एक तरफ़ देश के पूँजीपतियों की दौलत अनन्त गति से बढ़ रही है वहीं दूसरी तरफ़ जनता छँटनी और बेरोज़गारी के रसातल में धँसती चली जा रही है। 2008 की विश्वव्यापी मन्दी से उबरने के लिए पूँजीवादी नीम हकीमों और हुक्मरानों ने जो उपाय दिये थे उसी के गर्भ में आनेवाले समय के भीषण संकट का बुलबुला पल रहा था। आज यह बुलबुला बड़ा होकर अपनी सन्तृप्ति तक पहुँच चुका है और यह अब फूटने के कगार पर खड़ा है। दुनियाभर की तमाम बड़ी कम्पनियों ने बड़े पैमाने पर छँटनी का ऐलान किया है।