Category Archives: सुधारवाद / एनजीओ

“सादगीपसन्द” और “परोपकारी” पूँजीपतियों की असलियत

भारत में अम्बानी और अदानी जैसे पूँजीपतियों के लुटेरे चरित्र के बारे में सभी जानते हैं और यहाँ तक कि पूँजीवादी मीडिया में भी ऐसे पूँजीपतियों के भ्रष्ट व अनैतिक आचरण के बारे में तमाम ख़बरें प्रकाशित हो चुकी हैं। परन्तु नारायण मूर्ति व अज़ीम प्रेमजी जैसे पूँजीपतियों की छवि न सिर्फ़ नौकरियाँ पैदा करके समाज का उद्धार करने वालों के रूप में स्थापित है बल्कि उनकी सादगी, दयालुता, परोपकार व नैतिकता के तमाम क़िस्से समाज में प्रचलित हैं और मीडिया में भी अक्सर उनकी शान में क़सीदे पढ़े जाते हैं।

अभिजीत बनर्जी को नोबल पुरस्कार और ग़रीबी दूर करने की पूँजीवादी चिन्ताओं की हक़ीक़त

चाहे अमर्त्य सेन हों या अभिजीत बनर्जी, ये कभी निजीकरण-उदारीकरण की उन नीतियों के बारे में नहीं बोलते जिनके विनाशकारी परिणाम पूरी दुनिया में ज़ाहिर हो चुके हैं। अर्थशास्त्र के प्रकाण्ड पण्डित होने के बावजूद इन्हें यह नंगी सच्चाई नज़र नहीं आती कि पूँजीवादी व्यवस्था के टिके रहने की शर्त है मज़दूरों का शोषण और इसका अनिवार्य नतीजा है समाज के एक सिरे पर बेहिसाब दौलत और दूसरे सिरे पर बेहिसाब ग़रीबी। वे ग़रीबी के बुनियादी कारणों पर कभी चोट नहीं करते, वे पूँजीवाद और साम्राज्यवाद की लूट पर कभी सवाल नहीं उठाते। वे केवल ग़रीबी और उससे पैदा होने वाले असन्तोष की आँच कम करने के लिए ‘‘कल्याणकारी’’ योजनाओं की फुहार छोड़ने के के उपाय सुझाते रहते हैं।

बिल गेट्स की चैरिटी – आम लोगों का स्वास्थ्य ख़राब करके कमाई करने का एक और तरीक़ा

इस फ़ाउण्डेशन द्वारा समय-समय पर नये-नये टीके (vaccine) अलग-अलग बीमारियों के लिए, प्राइवेट कम्पनियों से बनवाये जाते हैं जैसे कि पोलियो के लिए (oral vaccine) काली खाँसी के लिए, निमोनिया के लिए, बच्चेदानी के कैंसर के लिए आदि और फिर इसका इस्तेमाल करने के लिए प्रचार चलाया जाता है। इसके लिए देश के नामी चेहरों को पैसे देकर ख़रीदा जाता है और तथाकथित मानवता की भलाई का डंका हर टीवी चैनल पर पीटा जाता है। पोलियो बूँदों के प्रचार के दौरान अमिताभ बच्चन ने अपनी अदाकारी के जोहर दिखाते हुए इस मुहिम काे सहयोग किया। बिल गेट्स की इस मानवता की भलाई वाली भावना का दूसरा हिस्सा भी है, जो छुपा लिया जाता है। यह दूसरा हिस्सा सिद्ध करता है कि यह भलाई आम लोगों के लिए असल में कैसे दुख और मौत लेकर आती है।

मज़दूर वर्ग का नया शत्रु और पूँजीवाद का नया दलाल – अरविन्द केजरीवाल

अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की राजनीति और विचारधारा और साथ ही उसकी सरकार के मज़दूर-विरोधी चरित्र को हर क़दम पर बेनक़ाब करना होगा और स्पष्ट करना होगा कि अरविन्द केजरीवाल पूँजीवाद का नया दलाल है और मज़दूर वर्ग और आम मेहनतक़श जनता के साथ इसका कुछ भी साझा नहीं है। दिल्ली की मेहनतक़श जनता को बार-बार उसकी ठोस माँगों और ‘आप’ सरकार के वायदों की पूर्ति के प्रश्न पर जागृत, गोलबन्द और संगठित करना होगा। यह समझने की ज़रूरत है कि अरविन्द केजरीवाल और ‘आम आदमी पार्टी’ एक अलग तौर पर पूँजीवाद की आख़ि‍री सुरक्षा पंक्तियों में से एक है। आख़ि‍री पंक्ति की भूमिका में संसदीय वामपंथ देश के पैमाने पर अस्थायी रूप से थोड़ा अप्रासंगिक हो गया है। व्यवस्था को एक नयी सुरक्षा पंक्ति की ज़रूरत थी और ‘आम आदमी पार्टी’ ने कम-से-कम अस्थायी तौर पर पूँजीवादी व्यवस्था की इस ज़रूरत को पूरा किया है और जनता का भ्रम व्यवस्था में बनाये रखने का काम किया है।

भ्रष्टाचार-मुक्त सन्त पूँजीवाद के भ्रम को फैलाने का बेहद बचकाना और मज़ाकिया प्रयास

जब-जब पूँजीवादी व्यवस्था अपनी नंगई और बेशरमी की हदों का अतिक्रमण करती हैं, तो उसे केजरीवाल और अण्णा हज़ारे जैसे लोगों की ज़रूरत होती है, तो ज़ोर-ज़ोर से खूब गरम दिखने वाली बातें करते हैं, और इस प्रक्रिया में उस मूल चीज़ को सवालों के दायरे से बाहर कर देते हैं, जिस पर वास्तव में सवाल उठाया जाना चाहिए। यानी कि पूरी पूँजीवादी व्यवस्था। आम आदमी पार्टी का घोषणापत्र भी यही काम करता है। यह मार्क्स की उसी उक्ति को सत्यापित करता है जो उन्होंने ‘कम्युनिस्ट घोषणापत्र’ में कही थी। मार्क्स ने लिखा था कि पूँजीपति वर्ग का एक हिस्सा हमेशा समाज में सुधार और धर्मार्थ कार्य करता है, ताकि पूँजीवादी व्यवस्था बरक़रार रहे।

सुधार के नीमहकीमी नुस्ख़े बनाम क्रान्तिकारी बदलाव की बुनियादी सोच

”भ्रष्टाचार मुक्त” पूँजीवाद भी सामाजिक असमानता मिटा नहीं सकता और सबको समान अवसर नहीं दे सकता। दूसरी बात यह कि पूँजीवाद कभी भ्रष्टाचारमुक्त हो ही नहीं सकता। जब भ्रष्टाचार का रोग नियन्त्रण से बाहर होकर पूँजीवादी शोषण-शासन की आर्थिक प्रणाली के लिए और पूँजीवादी जनवाद की राजनीतिक प्रणाली के लिए सिरदर्द बन जाता है, तो स्वयं पूँजीपति और पूँजीवादी नीति निर्माता ही इसपर नियन्त्रण के उपाय करते हैं। तमाम किस्म के राजनीतिक सुधारवादियों की जमातें बिना क्रान्तिकारी बदलाव के, व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ”भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन” करने लगती हैं। यह पूँजीवादी व्यवस्था की ‘नियन्त्रण एवं सन्तुलन’ की आन्तरिक यान्त्रिकी है। सुधारवादी सिद्धान्तकारों का शीर्षस्थ हिस्सा तो पूँजीवादी व्यवस्था के घाघ संरक्षकों का गिरोह होता है। उनके नीचे एक बहुत बड़ी नीमहकीमी जमात होती है जो पूरी सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था की कार्यप्रणाली का अध्ययन किये बिना कुछ यूटोपियाई हवाई नुस्ख़े सुझाती रहती है और जनता को दिग्भ्रमित करती रहती है। ऐसे लोगों की नीयत चाहे जो हो, वे पूँजीवाद के फटे चोंगे को रफू करने, उसके पुराने जूते की मरम्मत करने और उसके घोड़े की नाल ठोंकने का ही काम करते रहते हैं।

लूटो-भकोसो और झूठन आम जनता के ”हित” में दान कर दो

इन अरबपतियों की व्यक्तिगत सम्पत्ति का इनके लिए कोई विशेष महत्त्‍व नहीं होता है। क्योंकि वास्तविक सम्पत्ति वित्तीय एकाधिकारी पूँजीवाद के इस दौर में शेयरों और हिस्सेदारियों में निहित होती है। इसलिए वे अपनी पूरी व्यक्तिगत सम्पत्ति भी दान कर दें तो इससे उनका परमार्थ नहीं झलकता है। यह रहस्य छिपा रहे इसीलिए 2009 में जिस बैठक में गेट्स और बुफे ने इस चैरिटी का प्रस्ताव रखा, उसे पूरी तरह से गुप्त रखा गया। साफ है, ये वे अरबपति हैं जो विश्व पूँजीवाद के शीर्ष पर बैठे कारपोरेशनों के मालिक हैं और दुनिया की दुर्गति के लिए वे ही ज़िम्मेदार हैं। यह दुर्गति उन्होंने अनजाने में नहीं की है कि ईसा मसीह की तरह बोला जा सके, ‘हे पिता! इन्हें माफ करना, ये नहीं जानते ये क्या कर रहे हैं।’ ये लुटेरे अच्छी तरह से जानते हैं कि इस दुनिया के मेहनतकश अवाम के साथ वे क्या करते रहे हैं और अब अगर उनके दिल में चैरिटी माता प्रकट हो गयी हैं तो भी समझा जा सकता है कि ऐसा क्यों है।

नयी दुनिया निठल्ले चिन्तन से नहीं, जन महासमर से बनेगी! – डब्ल्यूएसएफ का मुम्बई महातमाशा सम्पन्न

ये ‘बेहतरीन दिमाग’ भूमण्डलव्यापी अन्याय, असमानता और शोषण के अनेकानेक रूपों पर अलग–अलग चर्चा ही इसलिए करना और कराना चाहते हैं ताकि वर्गीय शोषण, अन्याय और असमानता, जिसकी बुनियाद पर अन्य सभी प्रकार की सामाजिक असमानताएं जनमती हैं, पर पर्दा डाला जा सके। डब्ल्यू एस एफ के उस्ताद दिमाग भूमण्डलव्यापी शोषण–उत्पीड़न, अन्याय–असमानता की सच्चाई को जानबूझकर लोगों को उस तरह दिखाना चाहते हैं जैसे किसी अंधे को हाथी दिखायी देता हैं। सूंड पकड़ में आये तो पाइप जैसा, पैर पकड़ में आये तो खम्भे जैसा और कान पकड़ में आये तो सूप जैसा।