Category Archives: सम्‍पादकीय

“अच्छे दिनों” की असलियत पहचानने में क्या अब भी कोई कसर बाक़ी है?

16 मई को सत्ता में आने के ठीक पहले अपने ख़र्चीले चुनाव प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा का नारा था, “बहुत हुई महँगाई की मार–अबकी बार मोदी सरकार!” उस नारे का क्या हुआ? दुनिया भर में तेल की कीमतों में आयी भारी गिरावट के बावजूद पहले तो मोदी सरकार ने उस अनुपात में तेल की कीमतों में कमी नहीं की; और जो थोड़ी-बहुत कमी की थी अब उससे कहीं ज़्यादा बढ़ोत्तरी कर दी है। नतीजतन, हर बुनियादी ज़रूरत की चीज़ महँगी हो गयी है। आम ग़रीब आदमी के लिए दो वक़्त का खाना जुटाना भी मुश्किल हो रहा है। मोदी सरकार का नारा था कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्त कर दिया जायेगा! लेकिन मोदी सरकार ने सत्ता में आते ही भ्रष्टाचार के अब तक के कीर्तिमानों को ध्वस्त कर दिया! ऐसे तमाम टूटे हुए वायदों की लम्बी सूची तैयार की जा सकती है जो अब चुटकुलों में तब्दील हो चुके हैं और लोग उस पर हँस रहे हैं। नरेन्द्र मोदी के मुँह से “मित्रों…” निकलते ही बच्चों की भी हंसी निकल जाती है। लेकिन यह भी सोचने की बात है कि ऐसे धोखेबाज़, भ्रष्ट मदारियों को देश की जनता ने किस प्रकार चुन लिया?

“सामाजिक न्याय” के अलमबरदारों का अवसरवादी गँठजोड़ फ़ासीवादी राजनीति का कोई विकल्प नहीं दे सकता

पिछले साल जब जनता पार्टी से छिटके कई दलों के नेता भाजपा के विरुद्ध गठबन्धन बनाने के मकसद से दिल्ली में जुटे थे तभी से इतना तो तय था कि बुनियादी तौर पर एक ही नस्ल का होने के बावजूद अलग-अलग रंगों वाले ये परिन्दे बहुत लम्बे समय तक साथ-साथ नहीं उड़ सकते। फिलहाल अस्तित्व का संकट उन्हें एक साथ आने के लिए भले ही प्रेरित कर रहा हो, लेकिन इनकी एकता बन पाना मुश्किल है। इन छोटे बुर्जुआ दलों की नियति है कि ये केन्द्र में कांग्रेसनीत या भाजपानीत गठबन्धनों के पुछल्ले बनकर सत्ता-सुख में थोड़ा हिस्सा पाते रहें और कुछ अलग-अलग राज्यों में जोड़-तोड़ कर सरकारें चलाते रहें। पुरानी जनता पार्टी फिर से बन नहीं सकती और बन भी जाये तो बहुत दिनों तक बनी नहीं रह सकती। काठ की हाँड़ी सिर्फ़ एक ही बार चढ़ सकती है। सबसे बड़ी बात यह कि नवउदारवादी नीतियों पर आम सहमति के साझीदार ये सभी दल भी हैं और इनका साम्प्रदायिकता-विरोध चुनावी शतरंज की बिसात पर चली गयी महज़ एक चाल से अधिक कुछ भी नहीं है।

श्रम सुधारों के नाम पर मोदी सरकार का मज़दूरों पर हमला तेज़

सच तो यह है कि छोटे-छोटे प्लाण्टों से लेकर घरेलू वर्कशॉपों तक ठेका, उपठेका और पीसरेट पर उत्पादन के काम को इस तरह बाँट दिया गया है कि उनमें काम करने वाले अधिकांश मज़दूरों का कोई रेकार्ड नहीं रखा जाता। ठेका, कैजुअल या अप्रेण्टिस मज़दूर को मिलने वाले क़ानूनी हक़ भी उन्हें हासिल नहीं होते। व्यवहारतः वे दिहाड़ी मज़दूर होते हैं जो सरकार और श्रम विभाग के लिए अदृश्य होते हैं। नये श्रम सुधारों द्वारा श्रम विभागों को एकदम निष्प्रभावी बनाकर इस किस्म के अनौपचारिकीकरण को अब ज़्यादा से ज़्यादा बढ़ावा दिया जा रहा है ताकि विदेशी कम्पनियाँ और देश के छोटे-बड़े सभी पूँजीपति खुले हाथों से और मनमाने ढंग से अतिलाभ निचोड़ सके। मोदी द्वारा ‘मेक इन इण्डिया’ को रफ्तार देने के लिए प्रस्तावित श्रम सुधारों की यह वास्तव में महज़ शुरुआत भर है। यह तो महज़ ट्रेलर है, पूरी पिक्चर अगले दो-तीन वर्षों में सामने आ जायेगी।

मज़दूर वर्ग का नया शत्रु और पूँजीवाद का नया दलाल – अरविन्द केजरीवाल

अरविन्द केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की राजनीति और विचारधारा और साथ ही उसकी सरकार के मज़दूर-विरोधी चरित्र को हर क़दम पर बेनक़ाब करना होगा और स्पष्ट करना होगा कि अरविन्द केजरीवाल पूँजीवाद का नया दलाल है और मज़दूर वर्ग और आम मेहनतक़श जनता के साथ इसका कुछ भी साझा नहीं है। दिल्ली की मेहनतक़श जनता को बार-बार उसकी ठोस माँगों और ‘आप’ सरकार के वायदों की पूर्ति के प्रश्न पर जागृत, गोलबन्द और संगठित करना होगा। यह समझने की ज़रूरत है कि अरविन्द केजरीवाल और ‘आम आदमी पार्टी’ एक अलग तौर पर पूँजीवाद की आख़ि‍री सुरक्षा पंक्तियों में से एक है। आख़ि‍री पंक्ति की भूमिका में संसदीय वामपंथ देश के पैमाने पर अस्थायी रूप से थोड़ा अप्रासंगिक हो गया है। व्यवस्था को एक नयी सुरक्षा पंक्ति की ज़रूरत थी और ‘आम आदमी पार्टी’ ने कम-से-कम अस्थायी तौर पर पूँजीवादी व्यवस्था की इस ज़रूरत को पूरा किया है और जनता का भ्रम व्यवस्था में बनाये रखने का काम किया है।

केन्द्रीय बजट 2015-2016: जनता की बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने की जि‍‍म्मेदारी से पल्ला झाड़कर थैलीशाहों की थैलियाँ भरने का पूरा इंतज़ाम

कॉरपोरेट घरानों पर करों में छूट की भरपाई करने के लिए आम जनता पर करों का बोझ लादने के अलावा भी सरकार ने कई ऐसे कड़े क़दम उठाये जिनकी गाज आम मेहनतकश आबादी पर गिरेगी। इस बजट में सरकार ने कुल योजना ख़र्च में 20 प्रतिशत यानी 1.14 करोड़ रुपये की कटौती की जो खाद्य सुरक्षा, शिक्षा, परिवार कल्याण, आवास, स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों से भी हाथ खींचने में मोदी सरकार की नवउदारवादी प्रतिबद्धता को दर्शाता है। सर्व शिक्षा अभियान, मिड-डे मील स्कीम, नेशनल हेल्थ मिशन जैसी स्कीमों के ज़रिये शासक वर्गों की जो थोड़ी-बहुत जूठन जनता तक पहुँचती है उसमें भी इस बजट में भारी कटौती की घोषणा की गई है।

दिल्ली में ‘आम आदमी पार्टी’ की अभूतपूर्व विजय और मज़दूर आन्दोलन के लिए कुछ सबक

इस पार्टी ने जो वायदे हमसे किये हैं, तो उनमें से एक को भी पूरा करवाने के लिए हम मज़दूरों को अपने स्वतन्त्र आन्दोलन के ज़रिये केजरीवाल सरकार पर दबाव बनाना चाहिए, न कि उनकी पूँछ पकड़कर चलना चाहिए। अगर हमने चौकसी खोई, अगर हमने अपने स्वतन्त्र और स्वायत्त मज़दूर वर्गीय आन्दोलन को कमज़ोर होने दिया, तो आने वाले समय में हमें सिर्फ़ धोखा मिलेगा। चूँकि केजरीवाल सरकार ने हम मज़दूरों से बड़े-बड़े वायदे किये हैं इसलिए हमें अपने स्वतन्त्र मज़दूर वर्गीय आन्दोलन के बूते इनकी छाती पर सवार रहना होगा और इन्हें अपने वायदों से मुकरने का मौका नहीं देना होगा।

पूँजीवादी नंगी लूट के विरोध को बाँटने-तोड़ने के लिए साम्प्रदायिक खेल शुरू!

गुजरात में आयोजित इन दोनों सम्मेलनों में पूँजीपतियों को लुभाने के लिए मोदी ने उनके सामने ललचाने वाले व्यंजनों से भरा पूरा थाल बिछा दिया – आओ जी, खाओ जी! श्रम क़ानूनों में मालिकों के मनमाफिक बदलाव, पूँजीपतियों के तमाम प्रोजेक्टों के लिए किसानों-आदिवासियों से ज़मीन हड़पने का पूरा इन्तज़ाम, कारख़ाने लगाने के लिए पर्यावरण मंज़ूरी फटाफट और बेरोकटोक करने की सुविधा, तमाम तरह की सरकारी बन्दिशों और जाँच-पड़ताल से पूरी छूट, सस्ते से सस्ता बैंक ऋण और टैक्सों में छूट। यानी ‘ईज़ ऑफ़ बिज़नेस’ (बिज़नेस करने की आसानी)!

साम्राज्यवादी संकट के समय में सरमायेदारी के सरदारों की साज़िशें और सौदेबाज़ियाँ और मज़दूर वर्ग के लिए सबक

आपके मन में यह प्रश्न उठना लाज़िमी है कि भारत से लगभग 10 हज़ार मील दूर ऑस्ट्रेलिया देश के ब्रिस्बेन शहर में अगर दुनिया की 20 बड़ी आर्थिक ताक़तों के मुखिया इकट्ठा हुए हों तो हम इसके बारे में क्यों सोचें? हम तो अपनी ज़िन्दगी के रोज़मर्रा की जद्दोजहद में ही ख़र्च हो जाते हैं। तो फिर नरेन्द्र मोदी दुनिया के बाक़ी 19 बड़े देशों के मुखियाओं के साथ क्या गुल खिला रहा है, हम क्यों मगजमारी करें? लेकिन यहीं पर हम सबसे बड़ी भूल करते हैं। वास्तव में, हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में हमें जिन परेशानियों का सामना करना पड़ता है, वे वास्तव में यहाँ से 10 हज़ार मील दूर बैठे विश्व के पूँजीपतियों के 20 बड़े नेताओं की आपसी उठा-पटक से करीबी से जुड़ी हुई हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि नरेन्द्र मोदी द्वारा श्रम क़ानूनों को बरबाद किये जाने का कुछ रिश्ता दुनिया के साम्राज्यवादियों की इस बैठक से भी हो सकता है? क्या आपने सोचा है कि अगर कल को आपको आटा, चावल, दाल, तेल, सब्ज़ि‍याँ दुगुनी महँगी मिलती हैं, तो इसका कारण जी20 सम्मेलन में इकट्ठा हुए पूँजी के सरदारों की आपसी चर्चाओं में छिपा हो सकता है? क्या आपको इस बात का अहसास है कि अगर कल सरकारी स्कूल बन्द होते हैं या उनकी फ़ीसें हमारी जेब से बड़ी हो जाती हैं तो इसके पीछे का रहस्य जी20 में बैठे सरमायेदारों के सरदारों की साज़िशों में हो सकता है? क्या हमने कभी सोचा था कि अगर कल बचा-खुचा स्थायी रोज़गार भी ख़त्म हो जाता है और मालिकों और प्रबन्धन को हमें जब चाहे काम पर रखने और काम से निकाल बाहर करने का हक़ मिल जाता है तो इसमें जी20 में लुटेरों की बैठक का कोई योगदान हो सकता है? सुनने में चाहे जितना अजीब लगे, मगर यह सच है!

मेहनतकश साथियो! धार्मिक जुनून की धूल उड़ाकर हक़ों पर डाका मत डालने दो!

तेज विकास की राह पर देश को सरपट दौड़ाने के तमाम दावों का मतलब होता है मज़दूरों की लूट-खसोट में और बढ़ोत्तरी। ऐसे ‘विकास’ के रथ के पहिए हमेशा ही मेहनतकशों और गरीबों के ख़ून से लथपथ होते हैं। लेकिन इतिहास इस बात का भी गवाह है कि हर फासिस्ट तानाशाह को धूल में मिलाने का काम भी मज़दूर वर्ग की लौह मुट्ठी ने ही किया है!

दोनों हाथ मज़दूर को लूटो, बोलो ‘श्रमेव जयते’!

मोदी सरकार झूठ और पाखण्ड के भी सारे रिकॉर्ड तोड़ देने पर आमादा है। बेशर्मी से आँखों में धूल झोंकने की नयी कोशिश में अब इसने नारा दिया है ‘श्रमेव जयते’। चुनाव से पहले देशी पूँजीपतियों से और सत्ता में आने के बाद दुनिया में घूम-घूमकर विदेशी लुटेरों से नरेन्द्र मोदी यही वादे करते रहे हैं कि उनकी पूँजी लगाने और बेरोकटोक मुनाफ़ा पीटने के रास्ते की सभी बाधाओं को उनकी सरकार दूर करेगी। ‘मेक इन इण्डिया’ के नारे का मतलब ही है, आइये, हमारे भारत देश के कच्चे माल और सस्ते श्रम को जमकर लूटिये। कोई अड़चन आये, कोई आवाज़ उठाये, तो हमें बताइये – उसे पीट-पाटकर पटरा करने के लिए आपका यह सेवक हमेशा तैयार रहेगा।