Category Archives: शिक्षा और रोज़गार

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा – चलो जन्तर-मन्तर! – 3 मार्च 2024

हिन्दू-मुस्लिम-सिख-ईसाई, सबको मार रही महँगाई!
जाति-धर्म के झगड़े छोड़ो, सही लड़ाई से नाता जोड़ो!!

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा : फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ बुनियादी सवालों पर मेहनतकश जन समुदाय को जगाने और संगठित करने की मुहिम

आज देश की मेहनतकश जनता को इन माँगों पर अपने जुझारू जनान्दोलन खड़े करने होंगे, मौजूदा जनविरोधी सरकार को सबक सिखाना होगा और अपने जुझारू आन्दोलन के बूते यह सुनिश्चित करना होगा कि 2024 में आने वाली कोई भी सरकार हमारी इन माँगों को नज़रन्दाज़ न कर सके। शहीदे-आज़म भगतसिंह ने कहा था कि जो सरकार जनता को उसके बुनियादी अधिकारों से वंचित रखे, उसे उखाड़ फेंकना उसका अधिकार ही नहीं उसका कर्तव्य है। आज शहीदे-आज़म के इस सन्देश पर अमल करने का वक़्त है। आइये, हमारी इस मुहिम में, हमारे इस आन्दोलन में शामिल हों और एक बेहतर भविष्य के लिए संघर्ष का हिस्सा बनें।

बढ़ती बेरोज़गारी के ताज़ा आँकड़े और उसकी वजह

अक्टूबर 2023 के लिए सीएमआईई के आँकड़े बेरोज़गारी की एक भयावह तस्वीर पेश करते हैं। इतनी ख़राब परिभाषा के आधार पर भी अक्टूबर 2023 में भारत में बेरोज़गारी दर 10.05 प्रतिशत थी। इसमें ग्रामीण बेरोज़गारी दर 10.82 प्रतिशत थी, जबकि शहरी बेरोज़गारी दर 8.44 प्रतिशत थी। ज़ाहिर है, अगर बेरोज़गारी की परिभाषा में पक्की नौकरी के सवाल को जोड़ा जाये तो यह संख्या 40 प्रतिशत के पार जा सकती है। लेकिन अभी हम इसी परिभाषा को लेकर चलें तो भी भारत की करीब 53 करोड़ श्रमशक्ति (काम करने योग्य जनसंख्या) में से करीब 5.4 करोड़ के पास किसी प्रकार का रोज़गार नहीं है, न दिहाड़ी, न ठेके वाला, न कोई अपना छोटा-मोटा धन्धा…यानी कुछ भी नहीं! ज़ाहिर है, इसमें अनौपचारिक क्षेत्र के दिहाड़ी, ठेका व कैजुअल मज़दूरों की एक बड़ी संख्या को जोड़ दें, जिनके पास कोई रोज़गार सुरक्षा नहीं है, तो यह आँकड़ा 30 करोड़ के ऊपर चला जायेगा। लेकिन बेहद कमज़ोर परिभाषा के आधार पर भी देखें, तो बेरोज़गारी दर भयंकर है।

निराशा, अवसाद और पस्तहिम्मती छात्रों को आत्महत्या  की तरफ धकेल रही है

सरकार में आने से पहले इन्होने वायदे किए थे कि ‘हर साल दो करोड़ नौकरी देंगे’, मगर फासीवादी मोदी सरकार ने सत्ता में आने के बाद निजीकरण-उदारीकरण की नीतियों को जिस गति से लागू किया है, उसकी आज़ाद भारत के इतिहास में कोई मिसाल नहीं है। रेलवे के निजीकरण, ओएनजीसी के निजीकरण, एयर इण्डिया के निजीकरण, बीएसएनएल के निजीकरण, बैंक व बीमा क्षेत्र में देशी-विदेशी पूँजी को हर प्रकार के विनियमन से छुटकारा, पूंजीपतियों को श्रम कानूनों, पर्यावरणीय कानूनों व अन्‍य सभी विनियमनकारी औद्योगिक कानूनों से छुटकारा, मज़दूर वर्ग के संगठन के अधिकार को एक-एक करके छीनना लगातार जारी है। यह सारी नीतियाँ भी छात्रों- युवाओं में निराशा और अवसाद पैदा करने के लिए प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष तौर पर उतने ही ज़िम्मेदार है।

ग्रामीण आजीविका मिशन : ग्रामीण महिलाओं और बेरोज़गार नौजवानों के श्रम को लूटने का मिशन

केन्द्र सरकार का यह मिशन ग्रामीण महिलाओं और आम बेरोज़गार नौजवानों के शोषण-उत्पीड़न का मिशन है। दरअसल मौजूदा पूँजीवादी व्यवस्था की आन्तरिक गति ही ऐसी है कि अपने उत्तरोत्तर विकास के साथ यह एक बड़ी आबादी को तबाही-बर्बादी की तरफ ढकेलती है। जिसकी वजह से जनाक्रोश फूटने का डर हमेशा बना रहता है। पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा सताये हुये आम लोगों के आक्रोश को ठंडा करने के लिए हुक्मरान बीच-बीच में ऐसी योजनाएँ पेश कर जनता की आँख में धूल झोकने का काम करते हैं।

आपस में नहीं सबके रोज़गार की गारण्टी के लिए लड़ो!

जब सरकारी प्राथमिक विद्यालय रहेंगे ही नहीं तो क्या सारे बीटीसी वालों को नौकरी दी जा सकती है? या अगर बीएड अभ्यर्थियों को योग्य मान भी लिया जाय तो सभी को रोज़गार दिया जा सकता है? दरअसल आज नौकरियाँ ही तेजी से सिमटती जा रही है। निजीकरण छात्रों-नौजवानों के भविष्य पर भारी पड़ता जा रहा है। रेलवे, बिजली, कोल, संचार आदि सभी विभागों को तेज़ी से धनपशुओं के हवाले किया जा रहा है। अगर इस स्थिति के ख़िलाफ़ कोई देशव्यापी जुझारू आन्दोलन नहीं खड़ा होगा तो यह स्थिति और ख़राब होने वाली है। इसलिए ज़रूरी है कि आपस में लड़ने की जगह रोज़गार गारण्टी की लड़ाई के लिए कमर कसी जाये।

लगातार घटती हुई सरकारी नौकरियाँ – 2010 से अब तक सबसे कम

मोदी सरकार हर साल 2 करोड़ रोज़गार देने का जुमला उछालकर 2014 में सत्ता में आयी थी। लेकिन रोज़गार देने की बात तो दूर, पिछले नौ सालों में सरकारी विभागों, सार्वजनिक क्षेत्रों, निगमों से लेकर प्राइवेट सेक्टर तक में अभूतपूर्व रूप से छँटनी हुई है। जुलाई 2022 में केन्द्रीय कार्मिक राज्य मन्त्री जितेन्द्र सिंह ने लोकसभा में बताया कि मोदी सरकार के 8 वर्षों के कार्यकाल में लगभग 22 करोड़ लोगों ने नौकरी के आवेदन किये थे, जिसमें से केवल 7.22 लाख लोगों को ही नौकरी मिल पायी है।

मज़दूर वर्ग को आरएसएस द्वारा इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान को विकृत करने का विरोध क्यों करना चाहिए? 

डार्विन का सिद्धान्त जीवन और मानव के उद्भव के बारे में किसी पारलौकिक हस्तक्षेप को खत्म कर जीवन जगत को उतनी ही इहलौकिक प्रक्रिया के रूप में स्थापित करता है जैसे फसलों का उगना, फै़क्ट्री में बर्तन या एक ऑटोमोबाइल बनना। यह जीवन के भौतिकवादी आधार तथा उसकी परिवर्तनशीलता को सिद्ध करता है। यह विचार ही शासक वर्ग के निशाने पर है। संघ अपनी हिन्दुत्व फ़ासीवादी विचारधारा से देशकाल की जो समझदारी पेश करना चाहता है उसके लिए उसे जनता की धार्मिक मान्यताओं पर सवाल खड़ा करने वाले हर तार्किक विचार से उसे ख़तरा है। जनता के बीच धार्मिक पूर्वाग्रहों को मज़बूत बनाकर ही देश को साम्प्रदायिक राजनीति की आग में धकेला जा सकता है।

शिक्षा का घटता बजट और बढ़ता निजीकरण

एक ओर तो सरकारी शिक्षा संस्थानों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों की फ़ीस बढ़ायी जा रही है और दूसरी ओर नये शिक्षकों की भर्ती न के बराबर हो रही है। शिक्षकों और कर्मचारियों को ठेके पर रखा जा रहा है। सरकार धीरे-धीरे शिक्षा की अपनी ज़िम्मेदारियों से पल्ला झाड़ रही है और पूँजीपति यहाँ भी खुलकर मुनाफ़ा पीट सकें, इसके लिए शिक्षा को उनके हवाले कर रही है। नयी शिक्षा नीति लागू होने से उच्च शिक्षा में निजीकरण की रफ़्तार और तेज़ गति से आगे बढ़ेगी और विदेशी पूँजीपतियों को भी शिक्षा के क्षेत्र में मुनाफ़ा कमाने के लिए आमन्त्रित किया जायेगा। मज़दूर-मेहनतकश आबादी तो वैसे भी उच्च शिक्षा से कोसों दूर है पर अब मध्य वर्ग के लिए भी शिक्षा हासिल करना कठिन हो जायेगा। हमारे देश में अच्छी प्राथमिक-माध्यमिक और उच्च-माध्यमिक शिक्षा पहले ही निजी हाथों में थी अब उच्च शिक्षा भी निजी हाथों में चली जायेगी और जा रही है।

उत्तराखण्ड में रोज़गार का हक माँगने पर मिलीं लाठियाँ और जेल

देश के बाकी राज्यों की तरह उत्तराखण्ड में भी बेरोज़गारी के भयंकर हालात हैं। पहाड़ में रोज़गार और बुनियादी सुविधाओं की कमी की वजह से एक बड़ी आबादी पलायन करके मैदानी इलाक़ों में आ रही है। कोरोना काल के बाद से यहाँ हालात और भी बदतर हुए हैं। सेंटर फ़ॉर मॉनिटरिंग इण्डियन इकॉनमी (सीएमआईई) के अनुसार साल 2021-22 में भले ही उत्तराखण्ड में बेरोज़गारी दर राष्ट्रीय औसत से कम रही हो लेकिन यहाँ 20 से 29 वर्ष आयु वर्ग में बेरोज़गारी की दर 56.41% देखी गयी है जो देश के 20 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में 27.63% बेरोज़गारी से दोगुनी से भी ज़्यादा है।