Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

देश के निर्माण मज़दूरों की भयावह हालत, एक क्रान्तिकारी बैनर तले संगठित एकजुटता ही इसका इलाज

निर्माण कार्य में लगे मज़दूर असंगठित मज़दूर होते हैं। आज देश में लगभग 45 करोड़ संख्या इन्हीं असंगठित मज़दूरों की है, जो कुल मज़दूरों की आबादी का 90% के क़रीब है। लेकिन देश में बैठी मोदी सरकार ने आज पूरा इन्तज़ाम कर लिया है कि मज़दूरों का खून चूसने में कोई असर न छोड़ा जाये। आपको पता हो कि अभी पहले से मौजूद श्रम क़ानून इतने काफ़ी नहीं थे जो पूर्ण रूप से मज़दूरों के हकों और अधिकारों की बात कर सके, और किसी भी तरह की दुर्घटना होने पर उनके लिए किसी भी तरह की त्वरित कार्रवाई करे। अभी कहने को सही, कागज़ पर कुछ श्रम क़ानून मौजूद होते हैं। थोड़ा हाथ-पैर मारने पर और श्रम विभाग के कुछ चक्कर काटने पर गाहे-बगाहे कुछ लड़ाइयाँ मज़दूर जीत जाते हैं। साल में एक या दो बार श्रम विभाग के अधिकारी भी सुरक्षा जाँच के लिए (जो बस रस्मअदायगी ही होती है) निकल जाते हैं। लेकिन अम्बानी-अडानी जैसे पूँजीपतियों के मुनाफ़े को और बढ़ाने के लिए सरकार पुराने सारे श्रम क़ानूनों को खत्म करके चार लेबर कोड लाने की तैयारी में है।

आपस की बात – वेल्डिंग कम्पनी के मजदूरों के हालात

मैं जहाँ काम करता हूं उसमें केबल की रबर बनाने में पाउडर (मिट्टी) का इस्तेमाल होता है। मिट्टी इतनी सूखी और हल्की होती है कि हमेशा उड़ती रहती हहै। आँखों से उतना दिखाई तो नहीं देता लेकिन शाम को जब अपने शरीर की हालत देखते हैं तो पूरा शरीर और सिर मिट्टी से भरा होता है। नाक, मुंह के जरिये फेफड़ों तक जाता है। इस कारण मजदूरों को हमेशा टी.बी., कैंसर, पथरी जैसी गम्भीर बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। जो पाउडर केबल के रबर के ऊपर लगाया जाता है उससे तो हाथ पर काला-काल हो जाता है। जलन एवं खुजली होती रहती है। इन सबसे सुरक्षा के लिए सरकार ने जो नियम बना रखे हैं वे पूरे दिखावटी हैं।

हिन्दुस्तान यूनीलीवर, हरिद्वार में मज़दूरों का शोषण

इस बेरोज़गारी के माहौल में मज़दूर काम पाने के लिए ठेकेदारों की शर्तों पर भर्ती तो हो जाता है। मगर कम्पनी में एक बार काम पकड़ लेने के बाद उनके साथ ज्यादतियाँ चालू हो जाती हैं। जैसे कम्पनी तो आठ-आठ घण्टे की तीन शिफ्टों में चलती है लेकिन ठेका मज़दूरों को अपनी आठ घण्टे की शिफ्ट खत्म करने के बाद भी जबरन काम करने के लिए मज़बूर किया जाता है। जिससे बहुत सारे मज़़दूर बीमार पड़ जाते हैं। अगर बीमारी के दौरान छुट्टियाँ ज्यादा हो गयीं तो भी काम से हाथ धोना पड़ता है। काम से निकाले जाने और दूसरी जगह जल्दी काम न मिलने के कारण मज़़दूर सोलह-सोलह घण्टे काम करने को मजबूर होते हैं। इस कम्पनी में ठेका मज़दूरों से कभी भी कोई भी काम लिया जा सकता है। उससे लोडिंग-अनलोडिंग से लेकर मशीन पर, पैकिंग में या असेम्बली लाइन पर लगाया जा सकता है। इस कंपनी में आठ प्लाण्ट हैं, जिनमें किसी भी प्लाण्ट में ठेका मज़दूरों को कभी भी भेजा जा सकता है। ज्यादातर ठेका मज़दूरों को तीन-चार दिन बाद एक काम छोड़कर दूसरे काम या प्लाण्ट में भेज दिया जाता है।

धागा बनाने वाली कम्पनी के मजदूर की आपबीती

इस काम को करने वाले मजदूरों को अधिकतर तमाम प्रकार की बीमारियाँ हो जाती हैं। दमा और टी.बी. जैसी बीमारी अधिकतर होती है क्योंकि काम ही कुछ ऐसा है। एसीड-कास्टिक और फैक्ट्री से निकलने वाले धुआँ से और नमक सार में हाथ और पैर खराब होते हैं। सोडा नमक एसिड, और तमाम कैमिकलों का पानी हाथ पैरों में लगता रहता है। ये अकेली कम्पनी नहीं है, ऐसी लाखों कम्पनियाँ हैं। इनमें करोड़ों लोगो की जिन्दगी नर्क कुण्ड में झुलस रही है।

अम्बेडकरनगर के गाँवों के कारख़ानों में खटते मज़दूरों के हालात

कुछ समय पहले तक हमारे गाँवों में मिट्टी के बर्तनों को कुम्हार अपने परिवार वालों के साथ मिलकर चाक पर बनाया करते थे। अब आप जिन कुल्हड़ों में शहरों में, ढाबों पर चाय पीते हैं वह कुम्हार के चाक पर नहीं, बल्कि कारख़ानों में बने होते हैं। अम्बेडकरनगर के ग्रामीण इलाकों में भी ऐसे कई कारख़ाने खुल चुके हैं। लेकिन इन कारख़ानों में चाक की जगह उन्नत मशीनों पर काम करने के बावजूद लोगों का काम आसान होने के बजाय मुश्किल हो गया है क्योंकि मालिकों ने मशीनों का प्रयोग लोगों के काम को सरल बनाने के लिए नहीं बल्कि मुनाफ़ा कमाने के लिए किया है। पहले जब हाथों से चाक पर मिट्टी का बर्तन बनाया जाता था तो उत्पादन कम होता था। परन्तु मशीन का प्रयोग करने से उत्पादन ज़्यादा होता है जिससे मालिकों का मुनाफ़ा बढ़ता जाता है।

फ़ॉक्सकॉन की फ़ैक्ट्री में मज़दूरों के आन्दोलन का दमन : संक्षिप्त रिपोर्ट

वर्तमान चीन जहाँ नाम के लिए समाजवादी व्यवस्था स्थापित है, या फिर मज़दूर वर्ग के ग़द्दार देङ शियाओ पिङ के शब्दों में ‘बाज़ार समाजवाद’ स्थापित है, वह चीन आज दुनियाभर में श्रम के पूँजी द्वारा शोषण की सबसे बड़ी मण्डी बन चुका है। इस माह के मध्य में अन्तर्रराष्ट्रीय समाचारपत्रों व अन्य माध्यमों से कुछ तस्वीरें सामने आयीं, जिसमे हैज़मेट सूट पहने और हाथों में बैट लिये सुरक्षाकर्मी, प्रदर्शन कर रहे मज़दूरों का दमन कर रहे हैं। ‘द गार्जियन’ में 23 नवम्बर को छपी ख़बर के अनुसार चीन के झेंगझू शहर में कुछ दिनों से फ़ॉक्सकॉन कम्पनी में काम करने वाले मज़दूर प्रदर्शनरत हैं।

‘आधुनिक रोम’ में ग़ुलामों की तरह खटते मज़दूर

गुड़गाँव के इफ़्को चौक मेट्रो स्टेशन से गुड़गाँव शहर (या भाजपा द्वारा किये नामकरण के अनुसार गुरुग्राम) को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि आप किसी जादुई नगरी में आ गये हों। आधुनिक स्थापत्यकला (तकनीकी भाषा में कहें तो ‘उत्तरआधुनिक स्थापत्यकला’) के एक से एक नमूनों में शीशे-सी जगमगाती मीनारों की आड़ी-तिरछी आकृतियों से शहर की रंगत अलग ही लगती है। पर इस जगमग शहर की सड़कों पर मज़दूरों को अपने परिवारों के साथ घूमने की इजाज़त नहीं, इस शहर के पार्कों में हम जा नहीं सकते, भले ही सड़कों को चमकाने और पार्कों को सुन्दर बनाने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर ही आती हो।

सिडकुल, हरिद्वार के प्लास्टिक उत्पाद के उद्योग की एक फ़ैक्टरी की रिपोर्ट

हरिद्वार सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में प्लास्टिक उत्पाद के उद्योग की कई कम्पनियाँ हैं जैसे टीपैक पैकेजिंग इण्डिया प्राइवेट लिमिटेड, एपेक्स इण्डस्ट्रीज, ट्रू ब्लू , फ़्रेश पेट आदि। कई कम्पनियाँ हैं जहाँ मज़दूरों की काम की स्थिति बेहद कठिन और थकाऊ है। यहाँ रोज़गार की सुरक्षा, श्रम अधिकार, कार्यस्थल पर सुरक्षा और बुनियादी सुविधाओं तक का भयंकर अभाव है।

सनबीम (गुड़गाँव) कम्पनी में ग़ैर-क़ानूनी बर्ख़ास्तगी, छँटनी, वेतन कटौती, ग़ैर-क़ानूनी ठेका प्रथा, श्रम क़ानूनों के उल्लंघन के ख़िलाफ़ संघर्ष की सम्भावनाएँ

सनबीम लाईटवेटिंग सोल्यूशन्स प्रा० लि० (गुड़गाँव) फ़ैक्टरी के ठेका मज़दूरों की 16 नवम्बर (बुधवार) 2022 को कम्पनी प्रबन्धन द्वारा बढ़ती बर्ख़ास्तगी, छँटनी, वेतन कटौती, ज़बरन ओवर टाइम जैसी अन्यायपूर्ण गतिविधियों के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा आख़िर फूट ही गया। मज़दूरों ने क़रीब 500-600 ठेका मज़दूरों की सफल रैली और अपनी एकजुटता से इस अन्याय के ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल बजा दिया है। संघर्ष की शुरुआत 27 सितम्बर 2022 को पाँच साथियों के अचानक बर्ख़ास्त (टर्मिनेट) कर देने से हो गयी थी।

हरिद्वार स्थित सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र में हर साल बढ़ती बेरोज़गारी – क्या कर रही है सरकार?

हरिद्वार स्थित सिडकुल (SIIDCUL) औद्योगिक क्षेत्र का लेबर चौक दिहाड़ी मज़दूरों के रोज़गार पाने का अड्डा है। इस औद्योगिक क्षेत्र में दो लेबर चौक हैं जहाँ पर आसपास की मज़दूर बस्तियों से मज़दूर काम की तलाश में आते हैं। इन लेबर चौक पर कई प्रकार के काम करने वाले मज़दूर इकट्ठा होते हैं। मशीन चलाने वाले कुशल मज़दूर, फ़ैक्टरी में हेल्पर के तौर पर काम करने वाले, लोडिंग-अनलोडिंग करने वाले, फ़ैक्टरी के कैण्टीन में काम करने वाले, फ़ैक्टरी में सफ़ाई करने वाले, निर्माण मज़दूर, बेलदारी करने वाले मज़दूर। ठेकेदार इन्हीं लेबर चौक पर सस्ती श्रमशक्ति ख़रीदने आते हैं।