Category Archives: कारख़ाना इलाक़ों से

बरगदवाँ, गोरखपुर के मज़दूर मालिकों की मनमानी के विरुद्ध फिर आन्दोलन की राह पर

मोदी सरकार द्वारा चार लेबर कोड लाये जाने के बाद से देश भर में फ़ैक्ट्रियों-कारख़ानों के मालिकों के हौसले और बुलन्द हुए हैं। गोरखपुर के बरगदवाँ औद्योगिक क्षेत्र में स्थित वीएन डायर्स प्रोसेसर्स प्राइवेट लिमिटेड (कपड़ा मिल) में पिछले दिनों तीन मज़दूरों को ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से बाहर निकाल दिया गया।

ओखला औद्योगिक क्षेत्र : मज़दूरों के काम और जीवन पर एक आरम्भिक रिपोर्ट

चौड़ी-चौड़ी सड़कों के दोनों तरफ़ मकानों की तरह बने कारख़ाने एक बार को देख कर लगता है कि कहीं यह औद्योगिक क्षेत्र की जगह रिहायशी क्षेत्र तो नहीं। कई कारख़ाने तो हरे-हरे फूलदार गमलों से सज़े इतने ख़ूबसूरत मकान से दिखते हैं कि वहम होता है शायद यह किसी का घर तो नहीं। लेकिन नहीं ओखला फेज़ 1 और ओखला फेज़ 2 के मकान जैसे दिखने वाले कारख़ाने और कारख़ानों जैसे दिखने वाले कारख़ाने, सभी एक समान मज़दूरों का ख़ून निचोड़ते हैं…

होण्डा मानेसर प्लाण्ट में परमानेंट मज़दूरों की वी.आर.एस. के नाम पर छँटनी का नोटिस जारी!

इस बार जापान की ऑटोमोबाइल निर्माता कम्पनी होण्डा मोटर साईकिल व स्कूटर इण्डिया (एच.एम. एस. आई.) ने मानेसर प्लाण्ट में भी तथाकथित वी.आर.एस.(सवैच्छिक सेवानिवृत्ति योजना) के नाम पर छँटनी का नोटिस चिपका दिया गया है।

विस्ट्रॉन आईफ़ोन प्लाण्ट हिंसा : अमानवीय हालात के ख़ि‍लाफ़ मज़दूरों का विद्रोह!

देश के औद्योगिक क्षेत्रों में मज़दूरों को मुनाफ़े की चक्की में जिस क़दर पेरा जाता है, उनके सभी गिले-शिकवों को कम्पनी प्रबन्धन से लेकर सरकारी प्रशासन तक जिस तरह से अनसुना करता है, ऐसी स्थिति में अगर लम्बे समय से इकट्ठा हो रहा उनका ग़ुस्सा लावा बनकर हिंसक विद्रोह में फूट पड़ता रहा है, तो इसमें हैरानी कैसी! पिछले 15-20 सालों में ऐसी कितनी ही घटनाएँ घट चुकी हैं जब मज़दूरों का ग़ुस्सा हिंसक विद्रोह में तब्दील हो गया, चाहे वह 2005 की होण्डा गुडगाँव प्लाण्ट की घटना हो, 2008 में ग्रेटर नोएडा में ग्राज़ि‍यानो की घटना हो, मारुति-सुज़ुकी मानेसर प्लाण्ट की 2012 की घटना हो, 2013 की नोएडा की दो दिवसीय प्रतीकात्मक हड़ताल के समय की घटना हो या ऐसी अन्य ढेरों घटनाएँ हों। ऐपल कम्पनी के आईफ़ोन असेम्बल करने वाली कम्पनी विस्ट्रॉन इन्फ़ोकॉम के कोलार प्लाण्ट में पिछले महीने हुआ हिंसक विद्रोह भी इन्हीं घटनाओं की अगली कड़ी है।

नोएडा के शोषण-उत्पीड़न झेलते दसियों लाख मज़दूर, पर एकजुट संघर्ष और आन्दोलन का अभाव

उत्तर प्रदेश औद्योगिक क्षेत्र विकास क़ानून नोएडा में 1976 में आपातकाल के दौर में से अस्तित्व में आया। नोएडा भारतीय पूँजीवादी व्यवस्था की महत्वाकांक्षी परियोजना दिल्ली-मुम्बई इण्डस्ट्रियल कॉरीडोर का प्रमुख बिन्दु बनता है। आज नोएडा में भारत की सबसे उन्नत मैन्युफ़ैक्चरिंग इकाइयों के साथ ही सॉफ़्टवेयर उद्योग, प्राइवेट कॉलेज, यूनिवर्सिटी और हरे-भरे पार्कों के बीच बसी गगनचुम्बी ऑफ़िसों की इमारतें और अपार्टमेण्ट स्थित हैं। दूसरी तरफ़ दादरी, कुलेसरा, भंगेल सरीखे़ गाँवों में औद्योगिक क्षेत्र के बीचों-बीच और किनारे मज़दूर आबादी ठसाठस लॉजों और दड़बेनुमा मकानों में रहती है।

जारी है रिको ऑटो इंडस्ट्रीज़ के मज़दूरों का संघर्ष

जारी है रिको ऑटो इंडस्ट्रीज़ के मज़दूरों का संघर्ष – शाम मूर्ति राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के धारूहेड़ा में रिको के मज़दूरों का संघर्ष पिछले चार महीने से जारी है। छँटनी…

सिडकुल (हरिद्वार) के कारख़ानों में मज़दूरों के बीच फैलता कोरोना, काम के बिगड़े हालात

जिस तरह मोदी सरकार द्वारा बिना किसी योजना के लॉकडाउन करने के कारण सबसे ज़्यादा संकट का सामना मज़दूरों को करना पड़ा उसी तरह बिना किसी योजना के लॉकडाउन खोलने के कारण सबसे ज़्यादा मज़दूरों की ही ज़िन्दगी ख़तरे में है। देश के अन्य औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाली मज़दूर आबादी की ही तरह सिडकुल औद्योगिक क्षेत्र के मज़दूरों को भी मोदी सरकार द्वारा योजनाविहीन लॉकडाउन और अनलॉक की वजह से संकट का सामना करना पड़ रहा है।

लॉकडाउन में दिल्ली के मज़दूर : नौकरी जा चुकी है, घर में राशन है नहीं, घर जा नहीं सकते

पिछले 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लागू करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 24 मार्च को अचानक पूरे देश में 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित कर दिया। दिल्‍ली में बड़ी संख्या में मेहनतकश ग़रीब आबादी रहती है जिसकी रोज़ की कमाई तय करती है कि शाम को घर में चूल्हा जलेगा कि नहीं। फै़क्ट्री मज़दूर, रेहड़ी-खोमचा लगाने वाले व निम्न मध्यवर्ग की आबादी जो कुल मिलाकर देश की 80 फीसदी आबादी है, उसपर लॉकडाउन क़हर बन कर टूटा है।

लॉकडाउन में गुड़गाँव के मज़दूरों की स्थिति

गुड़गाँव के सेक्टर 53 में, ऊँची-ऊँची इमारतों वाली हाउसिंग सोसायटियों के बीच मज़दूरों की चॉल है। छोटे से क्षेत्र में दो से तीन हज़ार मज़दूर छोटे-छोटे कमरों में अपने परिवार के साथ रहते हैं। उसी चॉल में अपने परिवार को भूख, गर्मी, बीमारी से परेशानहाल देख मुकेश ने खु़दकुशी कर ली। तीस वर्षीय मुकेश बिहार के रहने वाले थे, और यहाँ पुताई का काम करते थे। लॉकडाउन का पहला चरण किसी तरह खींचने के बाद जब दूसरा चरण शुरू हुआ तो मुकेश की हिम्मत जवाब दे गयी।

शिवम ऑटोटेक के मज़दूरों की जीत मगर होण्‍डा के मज़दूरों का संघर्ष 80 दिन बाद भी जारी

शिवम ऑटोटेक लिमिटेड, बिनोला के मज़दूरों व प्रबन्धन के बीच बीती 17 जनवरी की रात उप श्रमआयुक्त की मध्यस्थता में समझौता हो गया। कारख़ाना प्रबन्धन तबादला व निलम्बित किये गये 18 श्रमिकों को काम पर वापस लेने के लिए तैयार हो गया।