Category Archives: स्‍वास्‍थ्‍य

आपस की बात – वेल्डिंग कम्पनी के मजदूरों के हालात

मैं जहाँ काम करता हूं उसमें केबल की रबर बनाने में पाउडर (मिट्टी) का इस्तेमाल होता है। मिट्टी इतनी सूखी और हल्की होती है कि हमेशा उड़ती रहती हहै। आँखों से उतना दिखाई तो नहीं देता लेकिन शाम को जब अपने शरीर की हालत देखते हैं तो पूरा शरीर और सिर मिट्टी से भरा होता है। नाक, मुंह के जरिये फेफड़ों तक जाता है। इस कारण मजदूरों को हमेशा टी.बी., कैंसर, पथरी जैसी गम्भीर बीमारियां होने का खतरा बना रहता है। जो पाउडर केबल के रबर के ऊपर लगाया जाता है उससे तो हाथ पर काला-काल हो जाता है। जलन एवं खुजली होती रहती है। इन सबसे सुरक्षा के लिए सरकार ने जो नियम बना रखे हैं वे पूरे दिखावटी हैं।

अम्बेडकरनगर के ग्रामीण इलाक़ों में बदहाल चिकित्सा व्यवस्था

प्राइवेट अस्पतालों का पूरा कारोबार ही सरकारी अस्पतालों की बर्बादी-बदहाली पर फलता-फूलता है जहाँ पर पैसे के बिना दवा-इलाज के बारे में सोचना भी गुनाह है। आये दिन अस्पतालों में पैसा न दे पाने की वजह से लाश को रोक लेने, इलाज रोक देने, गहना-गिरवी रखने आदि की घटनाएँ सामने आती रहती हैं। इनकी लूट का एक हिस्सा चन्दे के रूप में नेताओं, मन्त्रियों की जेबों में भी जाता है, और उनकी शह पर लूट का यह कारोबार बेरोकटोक चलता रहता है। इलाके में टीबी, कैंसर, शुगर, किडनी, मानसिक रोग ,साँप काटने, पेट दर्द और बुख़ार तक से आये दिन बच्चों, महिलाओं, नौजवानों, नागरिकों की मौतें होती रहती हैं।

गाम्बिया में कफ़ सिरप से 69 बच्चों की मौत

मरियम कुयतेह, मरियम सिसावो, इसातु चाम गाम्बिया में रहने वाले उन कुछ लोगों के नाम हैं, जिन्होंने अपने मासूम बच्चों को ख़राब गुणवत्ता की दवा के कारण खो दिया। बीते माह पश्चिमी अफ़्रीका के देश गाम्बिया में 69 मासूम बच्चों की मौत की ख़बर आयी, मरने वाले बच्चों में 70 फ़ीसदी बच्चे 2 साल से कम उम्र के थे। सर्दी-ज़ुकाम की शिकायत के उपरान्त इन तमाम अभिभावकों ने अपने बच्चों को वहाँ के बाज़ारों मे उपलब्ध भारत में निर्मित कफ़ सिरप दिये थे, जिसके सेवन के बाद बच्चों की तबीयत और भी बिगड़ने लग गयी व उनकी मौत हो गयी।

योगी के रामराज्य में इलाज बिना मरते मेहनतकश

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार हर ज़िले में मेडिकल कॉलेज खोलने जैसे बड़े-बड़े दावे कर रही है लेकिन वहाँ स्वास्थ्य सुविधाओं की हालत इतनी ख़राब है कि ग़रीब आदमी बीमारी की तकलीफ़ से मुक्ति पाने के लिए मौत चुनने पर मजबूर हो जाये। बात सुनने में भयानक लगेगी लेकिन योगी के “रामराज्य” का सच यही है।

‘फ़्रण्ट लाइन वर्करों’ के नाम पर प्रधानमंत्री मोदी की नयी जुमलेबाज़ी!

15 अगस्त को लाल क़िले की प्राचीर से प्रधान “सेवक” महोदय उर्फ़ नरेन्द्र मोदी ने कोरोना महामारी के दौरान कार्यरत ‘फ़्रण्ट लाइन वर्कर्स’ की जमकर “सराहना” की। इस दफ़े लाल क़िले पर आँगनवाड़ीकर्मियों, आशाकर्मियों व एनएचएम कर्मचारियों को बतौर विशेष “अतिथि” आमंत्रित भी किया गया था। लेकिन प्रधानमंत्री महोदय जी भूल गये कि कौड़ियों के दाम ठेके पर दे दिये गये लाल क़िले पर चढ़कर की गयी ऐसी हवबाज़ी से फ़्रण्टलाइन वर्करों का गुज़ारा नहीं चलता! और न ही थालियों-तालियों, धूप-अगरबत्ती की नौटंकी से ही हम लाखों कामगारों को कुछ हासिल हुआ था।

मोदी सरकार के निकम्मेपन और लापरवाही ने भारत में 47 लाख लोगों की जान ली

विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट के अनुसार कोविड महामारी के कारण दुनियाभर में क़रीब डेढ़ करोड़ लोगों की मौत हुई। इनमें से एक तिहाई, यानी 47.4 लाख लोग अकेले भारत में मरे। भारत के आम लोग अभी वह दिल तोड़ देने वाला दृश्य भूले नहीं हैं, जिसमें नदियों में गुमनाम लाशें बह रही थीं, कुत्ते और सियार इन लाशों को खा रहे थे और श्मशान घाटों व विद्युत शवदाहगृहों के बाहर लोग मरने वाले अपने प्रियजनों की लाशें लिये लाइनों में खड़े थे।

मेहनतकशों पर कोरोना की तीसरी लहर की मार

कोरोना की तीसरी लहर की शुरुआत हो चुकी है। देश के कई राज्यों में कोरोना केसों की संख्या कम हो रही है और कई राज्यों में इसका अधिकतम उभार आना अभी बाक़ी है। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता जैसे शहरों में केस अब कम हो रहे हैं। वहीं कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु, बेंगलुरु में अभी भी फैलना जारी है। 23 जनवरी तक पूरे देश मे 3,06,064 कोरोना केस आ चुके हैं और प्रतिदिन औसतन 500-600 मौतें हो रही हैं। इस बार पिछले वर्ष की तरह मौतें नहीं हो रहीं, पर इसके बावजूद यह बड़े पैमाने पर फैल रहा है। कोरोना का नया वेरियेण्ट ओमिक्रॉन उतना घातक नहीं है। यह फैलता ज़्यादा तेज़ है, लेकिन इसके कारण मृत्यु दर अभी काफ़ी कम ही है।

गंगासागर मेले में फिर से कोरोना फैलाने की इजाज़त

पिछले वर्ष जब हज़ारों लोग कोरोना और सरकार की लापरवाही के कारण मर रहे थे, तब भाजपा सरकार ने कुम्भ मेले का आयोजन किया था, जहाँ लाखों की तादाद में भीड़ इकट्ठा हुई थी और यह भी उस दौरान कोरोना के फैलने का एक कारण था। इसी राह पर चलते हुए पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने गंगासागर मेले का आयोजन कराया। यह मेला हर वर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर 8-16 जनवरी के बीच लगता है। ज्ञात हो कि इस मेले में लाखों की संख्या में पूरे देश से लोग आते हैं। इस समय यह बीमारी फैलने का एक बड़ा स्थल बन सकता था।

अम्बेडकरनगर की जर्जर चिकित्सा व्यवस्था हर साल बनती है सैकड़ों मौतों की वजह

आज़ादी के सात दशक से ज़्यादा का वक़्त बीत चुका है। इन वर्षों में तमाम चुनावबाज़ पार्टियाँ सत्ता में आ चुकी हैं और सभी ने अपनी और अपने आक़ाओं – बड़े-बड़े अमीरज़ादों की तिजोरियाँ भरने का काम किया है। हर बार नये-नये नारों और वायदों के बीच हमारी असली समस्याओं जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, रोज़गार, मज़दूरी आदि को ग़ायब कर दिया जाता है और जाति-धर्म का खेल खेला जाता है। केन्द्र और राज्य की सत्ता में बैठी फ़ासीवादी भाजपा कभी राष्ट्रवाद का जुमला उछालकर तो कभी रामराज्य के नाम पर वोट वैंक की राजनीति करती है।

स्वास्थ्य के अधिकार के बिना जीने का अधिकार बेमानी है! जागो, एकजुट हो, आवाज़ उठाओ!

कहते हैं कि जब रोम जल रहा था तब वहाँ का राजा नीरो बाँसुरी बजा रहा था। भविष्य में हमारे देश के बारे में कहा जायेगा कि जब भारत कोरोना महामारी की आग में जल रहा था तो मोदी सरकार ऊपर से और तेल छिड़कने का काम कर रही थी। कोरोना महामारी की दूसरी लहर ने लाखों लोगों को निगल गया। बीमारी से ज़्यादा लोग बेरहम सरकार की बदइन्तज़ामी और लापरवाही से मारे गये। अप्रैल और मई में सरकारी आँकड़ों के मुताबिक रोज़ाना 4000 से ज़्यादा लोग इस बीमारी से जान गँवा रहे थे, लेकिन असल में इससे कई गुना ज़्यादा मौतें हुई हैं। शहरों की ग़रीब बस्तियों में और गाँव-गाँव में होने वाली मौतों की तो गिनती ही नहीं हुई है।