Category Archives: महान मज़दूर नेता

फ़्रेडरिक एंगेल्स – सागर जैसा हृदय, आलोकित शिखरों जैसी मेधा, तूफ़ानों जैसा जीवन

मार्क्सवादी दर्शन में एंगेल्स का अपना योगदान विशाल है। ‘लुडविग फायरबाख़ और क्लासिकी जर्मन दर्शन का अन्त’, ‘ड्यूहरिंग मत-खण्डन’, ‘प्रकृति की द्वंद्वात्मकता’ तथा ‘परिवार, निजी सम्पत्ति और राज्यसत्ता की उत्पत्ति’ जैसी कृतियाँ मार्क्सवादी दर्शन और ऐतिहासिक भौतिकवाद के सार एवं महत्व की क्लासिकी प्रस्तुतियाँ हैं। एंगेल्स का बहुत बड़ा योगदान यह था कि द्वंद्वात्मक भौतिकवाद को उन्होंने प्राकृतिक विज्ञानों पर लागू किया। वर्ग, शोषण और जेण्डर-विभेद के नृतत्वशास्त्रीय मूल की उनकी विवेचना अत्यंत महत्वपूर्ण है। उनके सर्वतोमुखी ज्ञान ने उनके लिए पदार्थ की गति के वस्तुगत रूपों को विद्याओं के विभेदीकरण का आधार बनाते हुए विज्ञानों के वर्गीकरण की सामंजस्यपूर्ण प्रणाली का विशदीकरण करना सम्भव बनाया। दार्शनिक वाद-विवादों में, वैज्ञानिक और आर्थिक नियतत्ववाद तथा अज्ञेयवाद की आलोचना करते हुए एंगेल्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद की आधारभूत प्रस्थापनाओं का विकास किया।

चिंगारी से भड़केंगी ज्वालाएँ (लेनिन के कुछ रोचक संस्मरण)

रूसी क्रान्ति के नेता लेनिन के कुछ रोचक संस्मरण, मज़दूर संघर्षों को एक सूत्र में पिरोने वाले इन्क़लाबी अख़बार ‘ईस्क्रा’ की तैयारी के सम्बन्ध में

वे हमारे नेताओं की हत्या कर सकते हैं पर उनके विचारों को कभी नहीं मिटा सकते!

महान कम्युनिस्ट नेत्री और सिद्धान्तकार रोज़ा ने दूसरे इण्टरनेशनल के काउत्स्कीपंथी संशोधनवादियों और अन्ध-राष्ट्रवादियों के विरुद्ध जमकर सैद्धान्तिक-राजनीतिक संघर्ष किया और मार्क्सवाद की क्रान्तिकारी अन्तर्वस्तु की हिफ़ाज़त की। साम्राज्यवाद की सैद्धान्तिक समझ बनाने में उनसे कुछ चूकें हुईं और बोल्शेविक पार्टी-सिद्धान्तों और सर्वहारा सत्ता की संरचना और कार्य-प्रणाली पर भी लेनिन से उनके कुछ मतभेद थे (जिनमें से अधिकांश बाद में सुलझ चुके थे और रोज़ा अपनी गलती समझ चुकी थीं), लेकिन रोज़ा अपनी सैद्धांतिक चूकों के बावजूद, अपने युग की एक महान कम्युनिस्ट क्रान्तिकारी नेत्री थीं।

मौजूदा आर्थिक संकट और मार्क्स की ‘पूँजी’

यह बात तो आज सबके सामने स्पष्ट है कि अर्थव्यवस्था एक बेहद गहन संकट की शिकार है। वर्तमान सत्ताधारी दल के घोर समर्थक भी अब इससे इंकार कर पाने में असमर्थ हैं, क्योंकि भयंकर रूप से बढ़ती बेरोज़गारी, घटती मज़दूरी, आसमान छूती महँगाई, अधिसंख्य जनता के लिए पोषक भोजन का अभाव, शिक्षा-स्वास्थ्य-आवास आदि सुविधाओं से वंचित होते अधिकांश लोग, कृषि में संकट और बढ़ती आत्महत्याएँ – ये सब ऐसे तथ्य हैं जिन्हें झुठलाना अब किसी के बस में नहीं। अभी बहस का मुद्दा इस संकट की वजह और इसके समाधान का रास्ता है। बीजेपी, कांग्रेस, आदि बुर्जुआ पार्टियाँ और उनके समर्थक इसके लिए एक-दूसरे की नीतियों को जि़म्मेदार ठहराते और ख़ुद की सरकार द्वारा इससे निजात दिलाने के बड़े-बड़े गलाफाड़ू दावे करते देखे जा सकते हैं, लेकिन सरकार कोई भी रहे, आम मेहनतकश जनता के जीवन में संकट है कि कम होने के बजाय बढ़ता ही जाता है।

अन्तरराष्ट्रीय मज़दूर दिवस पर पूँजीवादी शोषण के खि़लाफ़ संघर्ष जारी रखने का संकल्प लिया

इस वक़्त पूरी दुनिया में मज़दूर सहित अन्य तमाम मेहनतकश लोगों का पूँजीपतियों-साम्राज्यवादियों द्वारा लुट-शोषण पहले से भी बहुत बढ़ गया है। वक्ताओं ने कहा कि भारत में तो हालात और भी बदतर हैं। मज़दूरों को हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी इतनी आमदनी भी नहीं है कि अच्छा भोजन, रिहायश, स्वास्थ्य, शिक्षा, आदि ज़रूरतें भी पूरी हो सकें। भाजपा, कांग्रेस, अकाली दल, आप, सपा, बसपा सहित तमाम पूँजीवादी पार्टियों की उदारीकरण-निजीकरण-भूमण्डलीकरण की नीतियों के तहत आठ घण्टे दिहाड़ी, वेतन, हादसों व बीमारियों से सुरक्षा के इन्तज़ाम, पीएफ़, बोनस, छुट्टियाँ, काम की गारण्टी, यूनियन बनाने आदि सहित तमाम श्रम अधिकारों का हनन हो रहा है। काले क़ानून लागू करके जनवादी अधिकारों को कुचला जा रहा है।

पुस्‍तकों की पीडीएफ : कार्ल मार्क्‍स : जीवन और शिक्षाएं

मार्क्स और उनके अभिन्न मित्र एंगेल्स ने सर्वहारा वर्ग के शोषण और पूँजीवादी उत्पादन प्रणाली में अन्तर्निहित अराजकता एवं अन्तरविरोधों को उजागर करते हुए यह दिखलाया कि किस तरह पूँजीपति द्वारा हड़पा जाने वाला अतिरिक्त मूल्य मज़दूरों के शोषण से आता है। उन्होंने राजनीति, साहित्य-कला-संस्कृति, सौन्दर्यशास्त्र, विधिशास्त्र, नीतिशास्त्र – सभी क्षेत्रों में चिन्तन एवं विश्लेषण की द्वन्द्वात्मक भौतिकवादी पद्धति को स्थापित करके वैज्ञानिक समाजवाद के विचार को समृद्ध किया। मार्क्स और एंगेल्स ने अपने समय की पूँजीवादी क्रान्तियों, सर्वहारा संघर्षों और उपनिवेशों में जारी प्रतिरोध संघर्षों एवं राष्ट्रीय मुक्तियुद्धों का सार-संकलन किया, मज़दूर आन्दोलन को सिर्फ़ सुधारों तक सीमित रखकर मूल लक्ष्य से च्युत कर देने के अवसरवादियों के प्रयासों की धज्जियाँ उड़ा दीं, पूँजीवादी बुद्धिजीवियों और भितरघातियों की संयुक्त बौद्धिक शक्ति का मुक़ाबला करते हुए राज्य और क्रान्ति के बारे में मूल मार्क्सवादी स्थापनाओं को निरूपित किया और सर्वहारा वर्ग के दर्शन को समृद्ध करने के साथ ही उसे रणनीति एवं रणकौशलों की एक मंजूषा भी प्रदान की।

कविता : लेनिन की मृत्यु पर कैंटाटा / बेर्टोल्ट ब्रेष्ट Poem : Cantata on the day of Lenin’s death / Bertolt Brecht

जिस दिन लेनिन नहीं रहे
कहते हैं, शव की निगरानी में तैनात एक सैनिक ने
अपने साथियों को बताया: मैं
यक़ीन नहीं करना चाहता था इस पर।
मैं भीतर गया और उनके कान में चिल्लाया: ‘इलिच
शोषक आ रहे हैं।’ वह हिले भी नहीं।
तब मैं जान गया कि वो जा चुके हैं।

लेनिन की कविता की कुछ पक्तियाँ

पैरों से रौंदे गये आज़ादी के फूल

आज नष्ट हो गये हैं

अँधेरे की दुनिया के स्वामी

रोशनी की दुनिया का खौफ़ देख ख़ुश हैं

मगर उस फूल के फल ने पनाह ली है

स्मृति में प्रेरणा, विचारों में दिशा : तीसरे इण्टरनेशनल, मास्को के अध्यक्ष को तार

“लेनिन-दिवस के अवसर पर हम सोवियत रूस में हो रहे महान अनुभव और साथी लेनिन की सफलता को आगे बढ़ाने के लिए अपनी दिली मुबारक़बाद भेजते हैं। हम अपने को विश्व-क्रान्तिकारी आन्दोलन से जोड़ना चाहते हैं। मज़दूर-राज की जीत हो। सरमायादारी का नाश हो।

पहला पार्टी स्कूल

लेनिन का स्कूल, जो लोंजूमो की सड़क के दूसरे छोर पर था, एक निराले तरह का स्कूल था, देखने में भी वह और स्कूलों की तरह नहीं था। पहले यहाँ एक सराय हुआ करती थी। पेरिस जाते हुए डाकगाड़ियाँ यहाँ रुका करती थीं। गाड़ीवान आराम करते थे, घोड़ों को दाना-पानी देते थे। मगर यह बहुत पहले की बात थी…