Category Archives: औद्योगिक दुर्घटनाएँ

सिलक्यारा सुरंग हादसा : मुनाफे की अँधी हवस की सुरंग

ये हादसे और आपदाएँ आज हिमालय की नियति बनते जा रहे हैं। मुनाफ़े की अन्धी हवस में जिन परियोजनाओं को लागू किया जा रहा है उससे होने वाले नुकसान को केवल हिमालय ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर भारत को भुगतना पड़ सकता है। हिमालय में बड़े-बड़े बाँधों से लेकर चार धाम परियोजना, ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना, पंचेश्वर बाँध परियोजना आदि ने पूरे हिमालय को तबाह करके रख दिया है। इसके परिणाम भी लगातार देखने को मिल रहे हैं।

मालिकों की मुनाफ़े की हवस ले रही मज़दूरों की जान!

यह सब महज़ दुर्घटनाएँ नहीं मालिकों व इस पूँजीवादी व्यवस्था द्वारा की जाने वाली निर्मम हत्याएँ हैं। आये-दिन कीड़े-मकौड़ों की तरह कारख़ानों में मज़दूरों को मरने के लिए पूँजीपति मज़बूर करते हैं। श्रम मन्त्रालय की एक रिपोर्ट बताती है कि बीते पाँच वर्षो में 6500 मज़दूर फैक्ट्री, खदानों, निर्माण कार्य में हुए हादसों में अपनी जान गवाँ चुके हैं। इसमें से 80 प्रतिशत हादसे कारखानों में हुए। 2017-2018 कारखाने में होने वाली मौतों में 20 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। साल 2017 और 2020 के बीच, भारत के पंजीकृत कारखानों में दुर्घटनाओं के कारण हर दिन औसतन तीन मज़दूरों की मौत हुई और 11 घायल हुए। 2018 और 2020 के बीच कम से कम 3,331 मौतें दर्ज़ की गयी। आँकड़ों के मुताबिक, फैक्ट्री अधिनियम, 1948 की धारा 92 (अपराधों के लिए सामान्य दण्ड) और 96ए (ख़तरनाक प्रक्रिया से सम्बन्धित प्रावधानों के उल्लंघन के लिए दण्ड) के तहत 14,710 लोगों को दोषी ठहराया गया, लेकिन आँकड़ों से पता चलता है कि 2018 और 2020 के बीच सिर्फ़ 14 लोगों को फैक्ट्री अधिनियम, 1948 के तहत अपराधों के लिए सज़ा दी गयी। यह आँकड़े सिर्फ़ पंजीकृत फैक्ट्रियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जबकि दिल्ली और पूरे देश में लगभग 90 फ़ीसदी श्रमिक अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े हैं और अनौपचारिक क्षेत्र में होने वाले हादसों के बारे में कोई पुख़्ता आँकड़े नहीं हैं।

उड़ीसा का ट्रेन हादसा : लोगों की जान से खेलती मोदी सरकार

नवउदारवादी नीतियों के लागू होने के बाद के 32 वर्षों में और ख़ास तौर पर मोदी सरकार के पिछले 9 वर्षों में, रेलवे में नौकरियों को घटाया जा रहा है, जो नौकरियाँ हैं उनका ठेकाकरण और कैज़ुअलीकरण कर दिया गया है। नतीजतन, ड्राइवरों पर काम का भयंकर बोझ है। कई जगहों पर ड्राइवरों को गाड़ियाँ रोककर झपकियाँ लेनी पड़ रही हैं क्योंकि 18-18, 20-20 घण्टे लगातार गाड़ी चलाने के बाद बिना सोये दुर्घटना की सम्भावना बढ़ जाती है।

मुण्डका (दिल्ली) की फैक्ट्री में लगी आग: कौन है इन 31 मौतों का ज़िम्मेदार?

बीते दिनों मुण्डका औद्योगिक क्षेत्र में जो हुआ वह महज़ हादसा नहीं है। इससे पहले भी दिल्ली और देश के अलग-अलग फैक्ट्री इलाकों में मज़दूरों की मौत की घटनाएँ सामने आती रहीं हैं और इसके बाद भी थ जारी है। मुण्डका में जिस फैक्टरी में आगजनी की यह भयानक घटना हुई उसमें चार्जर और राउटर बनाने का काम होता था। इस काम के लिए ज्यादा संख्या में महिला मज़दूरों को रखा गया था। आधिकारिक तौर पर 31 मज़दूरों की मौत हुई है, पर कई मज़दूर अभी तक लापता हैं।

हैदराबाद में कबाड़ गोदाम में लगी आग में झुलसकर 11 मज़दूरों की मौत, एक की हालत गम्भीर

गत 23 मार्च को हैदराबाद के भोईगुड़ा इलाक़े में एक कबाड़ गोदाम में भोर के क़रीब 3 बजे आग लग गयी जिसमें झुलसकर 11 मज़दूरों की मौत हो गयी। एक अन्य मज़दूर अपनी जान बचाने के लिए गोदाम की पहली मंज़िल पर स्थित कमरे से नीचे कूद गया और उसे बेहद गम्भीर हालत में अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बताया जा रहा है कि आग इलेक्ट्रिक शॉर्ट-सर्किट की वजह से लगी थी। गोदाम में आसानी से आग पकड़ने वाली तमाम ज्वलनशील चीज़ें (जैसे केबल, अख़बार, प्लास्टिक आदि) पड़ी हुई थीं जिसकी वजह से आग जल्द ही पूरी इमारत में फैल गयी। बिहार के कटिहार और छपरा ज़िले से आकर गोदाम में काम करने वाले 12 मज़दूर गोदाम की पहली मंज़िल पर एक छोटे-से कमरे में रहते थे।

बंगलादेश में एक बार फिर मुनाफे़ की आग की बलि चढ़े 52 मज़दूर

भारत हो या बंगलादेश या कोई अन्य पूँजीवादी देश, मालिकों के लिए मज़दूरों की अहमियत कीड़े-मकोड़ों से ज़्यादा नहीं होती। बीते 8 जुलाई को बंगलादेश में ढाका के नारायणगंज क्षेत्र में जूस के कारख़ाने में भीषण आग लगी, जिसमें 52 मज़दूरों की जान चली गयी और कई घायल हुए।

दिल्ली के उद्योग नगर में मज़दूरों के हत्याकाण्ड का ज़िम्मेदार कौन?

एक बार फिर ये साबित हो गया कि पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों की अहमियत कीड़े-मकोड़ों से ज़्यादा नहीं है। बीते 21 जून को दिल्ली के पीरागढ़ी स्थित उद्योग नगर औद्योगिक क्षेत्र में जूता कारख़ाने में भीषण आग लग गयी, जिसमें 6 मज़दूरों की जानें चली गयीं। सरकार और मालिक की लापरवाही का आलम यह है कि उन मज़दूरों की लाशों को सात-आठ दिन बीतने के बाद धीरे-धीरे निकाला गया।

‘मैं बड़े ब्रांडों के लिए बैग सिलता हूँ पर मुश्किल से पेट भरने लायक़ कमा पाता हूँ’ – अनाज मण्‍डी की जली फ़ैक्टरी में 10 साल तक काम करने वाले दर्ज़ी की दास्‍तान

दास ने कहा कि सुबह की धुँधली रोशनी में उसने अपनी खिड़की से देखकर गिना कि 56 मज़दूरों को उठाकर एम्‍बुलेंस में ले जाया गया था। इनमें से कई उसके दोस्‍त और ऐसे लोग थे जिनके साथ उसने काम किया था। फ़ैक्टरी के ताले खुलने के बाद कुछ लोग बाहर आये जो सिर्फ़ अन्‍दर के कपड़े पहने हुए थे। हमने उन्‍हें अपने कपड़े और जूते-चप्‍पल दिये।

अनाज मण्डी अग्नि-काण्ड में 43 मज़दूरों की मौत! ये मुनाफ़े के लिए की गयी ठण्डी हत्याएँ हैं!

हर साल इन फ़ैक्टरियों में गुमनाम तरीक़े से मज़दूर मारे जाते हैं परन्तु इस पर कोई बवाल नहीं होता है। ये मौतें ठण्डी मौतें हैं जिनका हिसाब अनाज मण्डी के मालिक भी लगाकर रखते हैं। इन मौतों की क़ीमत श्रम विभाग के कर्मचारियों, पुलिस, बिजली विभाग, अग्निशमन विभाग और लाइसेंस देने वाली म्युनिस्पेलिटी को पहले ही अदा की जा चुकी होती है। श्रम विभाग द्वारा इन फ़ैक्टरियों की कोई जाँच नहीं होती है।

वज़ीरपुर की एक और फ़ैक्टरी में करण्ट से एक मज़दूर की मौत! फिर भी ख़ामोशी!

इन मौतों के दोषी वज़ीरपुर के मालिक हैं जो अपने मुनाफ़े को बचाने के लिए हमारी सुरक्षा के इन्तज़ाम पर सौ रुपये तक भी ख़र्च नहीं करते हैं। अपने दाँतों से सिक्के दबाकर बैठे इन मालिकों की हवस ने ही हमारे मज़दूर साथी की जान ली है। और साथ ही श्रम विभाग और सरकार भी उतनी ही जि़म्मेदार है क्योंकि बिना इनकी मिलीभगत के ये मालिक ऐसी हरकत नहीं कर सकते और ये इन पर किसी प्रकार की कार्रवाई भी नहीं होती है। इस बात को समझने के लिए हमें श्रम क़ानूनों और उनको लागू करने की प्रक्रिया को देख लेना चाहिए।