Category Archives: ग़रीबी / कुपोषण

वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट-2022 : मोदी के “रामराज्य” में भूखा सोता हिन्दुस्तान

हाल ही में आयी वैश्विक भूख सूचकांक रिपोर्ट-2022 ने एक बार फिर मोदी सरकार के विकास के दावे से पर्दा उठा दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक़ भुखमरी के मामले में दुनियाभर के 121 देशों में भारत 107वें पायदान पर है। भारत को उन देशों की सूची में शामिल किया गया है जहाँ भुखमरी की समस्या बेहद गम्भीर है। भारत की रैंकिंग साउथ एशिया के देशों में केवल अफ़ग़ानिस्तान से बेहतर है, जो तालिबानी क़हर झेल रहा है। उभरती हुई अर्थव्यवस्था, 5 ट्रिलियन इकॉनामी आदि के कानफाड़ू शोर के पीछे की असली सच्चाई यह है कि भुखमरी और कुपोषण के मामले में भारत अपने पड़ोसी देश श्रीलंका, पाकिस्तान, नेपाल से तुलनात्मक रूप से बेहद ख़राब स्थिति में है।

आज़ादी के अमृत महोत्सव में सड़कों पर तिरंगा बेचती ग़रीब जनता

इस बार आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर अमृत महोत्सव मनाया गया। यह दीगर बात है कि पिछले 75 वर्षों में देश की व्यापक मेहनतकश जनता के सामने यह बात अधिक से अधिक स्पष्ट होती गयी है कि यह वास्तव में देश के पूँजीपति वर्ग और धनिक वर्गों की आज़ादी है, जबकि व्यापक मेहनतकश जनता को आज़ादी के नाम पर सीमित अधिकार ही हासिल हुए हैं। दाग़दार आज़ादी का उजाला हमारे सामने अँधेरा बनकर मँडरा रहा है। बढ़ती महँगाई, बेरोज़गारी ने तो पहले ही हमारा दम निकाल रखा है। तो सबसे पहले तो यही सोचना चाहिए कि ये महोत्सव किसके लिए है?

आज़ादी का (अ)मृत महोत्सव : अडानियों-अम्बानियों की बढ़ती सम्पत्ति, आम जनता की बेहाल स्थिति

मेहनतकश साथियों, इस साल हमारा देश आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ मना रहा है। हर बार की तरह मोदीजी फिर इस बार लाल क़िले पर चढ़कर लम्बे-लम्बे भाषण देंगे। बड़े-बड़े वायदे करेंगे, जो हर बार की तरह पूरे नहीं होने वाले। इसका कारण भी है क्योंकि मोदी जी के लिए देश का मतलब आम जनता नहीं बल्कि देश के पूँजीपति हैं, इसलिए धन्नासेठों से किये सारे वायदे पूरे होते हैं और जनता को दिये जाते हैं बस जुमले। इस बार ये सरकार आज़ादी का मृत महोत्सव, माफ़ कीजिएगा, “अमृत महोत्सव” मना रही है। पर सवाल है किसके लिए आज़ादी?

बेहिसाब बढ़ती महँगाई यानी ग़रीबों के ख़िलाफ़ सरकार का लुटेरा युद्ध!

‘बहुत हुई महँगाई की मार, अबकी बार मोदी सरकार’ के लुभावने नारे से जनता के एक हिस्से को भरमाकर उसके वोट बटोरने के बाद भाजपा की अपनी महँगाई तो दूर हो गयी, मगर आम लोगों पर महँगी क़ीमतों का क़हर टूट पड़ा है। पिछले कुछ वर्षों से ही खाने-पीने और बुनियादी ज़रूरतों की चीज़ों की महँगाई बेरोकटोक बढ़ रही थी। लेकिन पिछले डेढ़ वर्षों में कोरोना महामारी के दौरान उछाले गये मोदी के नारे “आपदा में अवसर” का लाभ उठाकर उद्योगपतियों-व्यापारियों-जमाख़ोरों ने दाम बढ़ाने के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिये हैं।

आपदा कैसी भी हो, उसकी मार सबसे ज़्यादा मज़दूर वर्ग पर ही पड़ती है

तालकटोरा इण्डस्ट्रियल एरिया में स्थित रेलवे के पुर्जे़ बनाने वाली फ़ैक्ट्री ‘प्राग’ में काम करने वाले सौरभ ने ‘मज़दूर बिगुल’ के वितरण अभियान के दौरान हमें बताया कि उन्हें लॉकडाउन के बाद फिर से खुली फ़ैक्ट्री में दोबारा बुला तो लिया गया लेकिन नये जूते और पोशाक नहीं दी गयी। और अब वे लोहा ढोने का काम करने के जोखिमों को उठाकर फटे जूतों के साथ ही अपना काम जैसे-तैसे चला रहे हैं।
साथ ही कम्पनी ने एक नया नियम यह लगाया कि किसी भी मज़दूर की उपस्थिति बिना स्मार्टफ़ोन के दर्ज नहीं हो सकेगी। और इसलिए उन्होंने क़िस्तों पर एक नया मोबाइल फ़ोन ख़रीदा।

महामारी और संकट के बीच पूँजीपतियों के मुनाफ़े में हो गयी 13 लाख करोड़ की बढ़ोत्तरी!

कोरोना महामारी की वजह से आजकल सभी काम-धन्धे बन्द हुए मालूम पड़ते हैं। लगभग हर गली-मोहल्ले में तो ही रोज़गार का अकाल ही पड़ा हुआ है। वहीं, दूसरी तरफ़, कोरोना काल में अम्बानी-अडानी आदि थैलीशाहों के चेहरे पहले से भी ज़्यादा खिले हुए हैं। करोड़ों-करोड़ का मुनाफ़ा खसोटकर वे अपनी महँगी पार्टियों में जश्न मना रहे हैं।

भूख और कुपोषण के साये में जीता हिन्दुस्तान

हर गुजरते दिन के साथ मानवद्रोही पूँजीवादी व्यवस्था बेनकाब होती जा रही है। भूख-कुपोषण, मँहगाई, बेरोज़गारी आदि से परेशानहाल जनता को ‘अच्छे दिन आएंगे’ का सपना बेचकर सत्ता में पहुंची फ़ासीवादी मोदी सरकार की हर नीति आम जनता पर कहर बनकर टूट रही है। कोरोना महामारी में मोदी सरकार का कुप्रबंधन हज़ारों मेहनतकशों की ज़िन्दगी पर भारी पड़ा और समय गुजरने के साथ हर नया आंकड़ा मेहनतकशों के बर्बादी का हाल बयान कर रहा है।

लाखों दिहाड़ी व कैज़ुअल मज़दूरों के लिए अब भी हैं लॉकडाउन जैसे ही हालात

कोरोना नियंत्रण के नाम पर बिना किसी योजना के किये गये लॉकडाउन के बाद अनलॉक करने के भी कई दौर निकल चुके हैं और देश के अधिकांश हिस्सों में ऊपरी तौर पर लॉकडाउन जैसे हालात नज़र नहीं आ रहे हैं। बाज़ारों में भीड़ बढ़ रही है। आबोहवा में प्रदूषण और नदियों में गन्दगी फिर से लौट आयी है। धार्मिक स्थल भी खुल चुके हैं और सरकार की सरपरस्ती में त्योहारों के नाम पर करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाने की परम्परा को भी धड़ल्ले से आगे बढ़ाया जा रहा है।

कोरोना काल में आसमान छूती महँगाई और ग़रीबों-मज़दूरों के जीवन की दशा

सेठों-व्यापारियों और समाज के उच्‍च वर्ग के लिए महँगाई मुनाफ़ा कूटने का मौक़ा होती है, मध्‍यवर्ग के लिए महँगाई अपनी ग़ैर-ज़रूरी ख़र्च में कटौती का सबब होती है और अर्थशास्त्रियों के लिए महँगाई विश्‍लेषण करने के लिए महज़ एक आँकड़ा होती है। लेकिन मेहनत-मजूरी करने वाली आम आबादी के लिए तो बढ़ती महँगाई का मतलब होता है उन्‍हें मौत की खाई की ओर ढकेल दिया जाना। वैसे तो देश की मेहनतकश जनता को हर साल महँगाई का दंश झेलना पड़ता है लेकिन कोरोना काल में उसके सिर पर महामारी और महँगाई की दुधारी तलवार लटक रही है।

वैश्विक भूख सूचकांक : भारत में भूख से जूझता मेहनतकश

जहाँ एक तरफ़ तो भारत में हर साल अरबपतियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है वहीं दूसरी तरफ़ ग़रीब और भी ग़रीब होता जा रहा है। बेरोज़गारी लगातार बढ़ती जा रही है। कोरोना-काल में एक तरफ़ इस देश के मज़दूर आबादी ने अभूतपूर्व विपत्तियों को झेला, दाने-दाने को मोहताज़ हुई वहीं फ़ोर्ब्स पत्रिका द्वारा 2020 के अरबपतियों की सूची में भारत के 9 नये नाम और जुड़ गये हैं। कोरोना-काल में जहाँ पूरे देश में आर्थिक मन्दी छायी रही; मज़दूर और ग़रीब आदमी की आमदनी ठप्प हो गयी, उसके रोज़गार छिन गये; वहीं देश के सबसे बड़े पूँजीपति मुकेश अम्बानी की आमदनी में 73 प्रतिशत का और गौतम अडानी की सम्पत्ति में 61 प्रतिशत का इज़ाफ़ा हुआ।