Category Archives: धर्म

लोकसभा चुनाव से ठीक पहले राम रहीम की पैरोल पर रिहाई के मायने

एक तरफ़ देश की जेल में राजनीतिक कैदियों के साथ दुर्व्यवहार किया जाता है, एक पैरोल की बात तो दूर उन्हें रहने-खाने बुनियादी सुविधाओं से भी महरूम रखा जाता है, दूसरी तरफ़ बलात्कारी बाबाओं को पैरोल पर पैरोल मिली जाती है। जनता के हक़ की बात करने वाले तमाम बुद्धजीवी और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को बिना चार्ज़शीट के भी सालों साल जेल में रखा जाता है और बीमार पड़ने पर भी बेल नहीं दी जाती। स्टेन स्वामी को आप भूले नहीं होंगे, जिन्हें झूठा आरोप लगा कर यू.ए.पी.ए लगा दिया गया था। जेल की बद्तर परिस्थितियों में रहने के कारण ही उनकी मौत हुई। वहीं राम रहीम जैसा बलात्कार व हत्या का आरोपी खुलेआम समाज में घूमकर भाजपा का प्रचार कर रहा है। सहज़ ही समझा जा सकता है कि फ़ासीवादी हिन्दुत्ववादी भाजपा का ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ का नारा महज़ एक ढकोसला है, बल्कि इनका असली नारा है ‘बलात्कारियों के सम्मान में भाजपा मैदान में’।

राम मन्दिर के ज़रिये साम्प्रदायिक लहर पर सवार हो फिर सत्ता पाने की फ़िराक़ में मोदी सरकार

यह कोई धार्मिक नहीं, बल्कि एक राजनीतिक कार्यक्रम है। महँगाई को क़ाबू करने, बेरोज़गारी पर लगाम कसने, भ्रष्टाचार पर रोक लगाने, मज़दूरों-मेहनतकशों को रोज़गार-सुरक्षा, बेहतर काम और जीवन के हालात, बेहतर मज़दूरी, व अन्य श्रम अधिकार मुहैया कराने में बुरी तरह से नाकाम मोदी सरकार वही रणनीति अपना रही है, जो जनता की धार्मिक भावनाओं का शोषण कर उसे बेवकूफ़ बनाने के लिए भारतीय जनता पार्टी और उसका आका संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हमेशा से अपनाते रहे हैं। चूँकि मोदी सरकार के पास पिछले 10 वर्षों में जनता के सामने पेश करने को कुछ भी नहीं है, इसलिए वह रामभरोसे सत्ता में पहुँचने का जुगाड़ करने में लगी हुई है। इसके लिए मोदी-शाह की जोड़ी के पास तीन प्रमुख हथियार हैं : पहला, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का देशव्यापी सांगठनिक काडर ढाँचा; दूसरा, भारत के पूँजीपति वर्ग की तरफ़ से अकूत धन-दौलत का समर्थन; और तीसरा, कोठे के दलालों जितनी नैतिकता से भी वंचित हो चुका भारत का गोदी मीडिया, जो खुलेआम साम्प्रदायिक दंगाई का काम कर रहा है और भाजपा व संघ परिवार की गोद में बैठा हुआ है।

उत्तराखण्ड : हिन्दुत्व की नई प्रयोगशाला

मुसलमानों को निशाना बनाकर यहाँ तथाकथित ‘’लव जिहाद’’, ‘’लैण्ड जिहाद”, “व्यापार जिहाद” के साथ ही “जनसंख्या जिहाद” का मामला खूब उछाला जा रहा है। संघियों के इन झूठे प्रचारों को हवा देने में गोदी मीडिया से लेकर सोशल मीडिया तक के प्लेटफ़ॉर्म लगे हुए हैं। यहाँ भाजपा की धामी सरकार मुसलमानों के ख़िलाफ़ लगातार कोई न कोई अभियान छेड़े हुए है। आरएसएस का मुखपत्र ‘पांचजन्य’ रोज कहीं न कहीं से “लैंड जिहाद”, ‘’लव जिहाद’’ और उत्तराखण्ड में “मुसलमानों की आबादी में बेतहाशा बढ़ोत्तरी” की झूठी और बेबुनियाद ख़बरें लाता रहता है। इन झूठे प्रचार अभियानों की निरन्तरता और तेजी इस कारण से भी ज़्यादा बढ़ी है क्योंकि राज्य का मुख्यमंत्री तक “लव जिहाद’’ और ‘लैण्ड जिहाद” पर लगातार भाषणबाजी करता रहता है। ऐसा लगता है कि जबसे यह संविधान और धर्मनिरपेक्षता की शपथ खाकर कुर्सी पर बैठा है, तबसे इसने संघी कुत्सा प्रचारों को प्रमाणित और उसे सिद्ध करने का ठेका ले लिया है।

धर्म के बाज़ार में एक और नया पाखण्डी – धीरेन्द्र शास्त्री

पूँजीवादी समाज में धर्म एक धन्धा और व्यापार ही होता है। जब यह बुर्जुआ राजनीति के साथ मिलता है तो प्रतिक्रियावाद के सबसे घिनौने रूपों को जन्म देता है। आज पूँजीवादी राज्यसत्ता अपने वर्चस्व को बनाए रखने के लिए धार्मिक कुरीति, अन्धविश्वास और “चमत्कारी बाबाओं” को बढ़ावा दे रही है ताकि पूँजीवादी व्यवस्था के तमाम “तोहफ़ों” जैसे सामाजिक-आर्थिक असुरक्षा, बेरोज़गारी, महँगाई, भुखमरी, ग़रीबी को ‘किस्मत का लेखा’, ‘रेखाओं का खेल’, ‘पूर्वजन्म के पाप’ आदि के रूप में प्रस्तुत किया जा सके और जनता को ‘जाहि बिधी रखे राम ताहि बिधी रहना’ पर भरोसा रखकर हर अन्याय और शोषण-उत्पीड़न को स्वीकार करने और ‘सन्तोषम् परम सुखम’ की नसीहत मानने के लिए राज़ी किया जा सके।

मज़दूर वर्ग को आरएसएस द्वारा इतिहास और प्राकृतिक विज्ञान को विकृत करने का विरोध क्यों करना चाहिए? 

डार्विन का सिद्धान्त जीवन और मानव के उद्भव के बारे में किसी पारलौकिक हस्तक्षेप को खत्म कर जीवन जगत को उतनी ही इहलौकिक प्रक्रिया के रूप में स्थापित करता है जैसे फसलों का उगना, फै़क्ट्री में बर्तन या एक ऑटोमोबाइल बनना। यह जीवन के भौतिकवादी आधार तथा उसकी परिवर्तनशीलता को सिद्ध करता है। यह विचार ही शासक वर्ग के निशाने पर है। संघ अपनी हिन्दुत्व फ़ासीवादी विचारधारा से देशकाल की जो समझदारी पेश करना चाहता है उसके लिए उसे जनता की धार्मिक मान्यताओं पर सवाल खड़ा करने वाले हर तार्किक विचार से उसे ख़तरा है। जनता के बीच धार्मिक पूर्वाग्रहों को मज़बूत बनाकर ही देश को साम्प्रदायिक राजनीति की आग में धकेला जा सकता है।

समान नागरिक संहिता पर मज़दूर वर्ग का नज़रिया क्या होना चाहिए?

समान नागरिक संहिता (यूनिफ़ॉर्म सिविल कोड) का मामला एक बार फिर सुर्ख़ियों में है। गत 9 दिसम्बर को भाजपा नेता किरोड़ी लाल मीना ने राज्यसभा में एक प्राइवेट मेम्बर बिल प्रस्तुत किया जिसमें पूरे देश के स्तर पर समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए एक कमेटी बनाने की बात कही गयी है। इससे पहले नवम्बर-दिसम्बर के विधानसभा चुनावों के पहले गुजरात, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखण्ड की भाजपा सरकारों ने भी अपने-अपने राज्यों में समान नागरिक संहिता लाने की मंशा ज़ाहिर की थी। इसमें कोई दो राय नहीं है कि भाजपा जैसी फ़ासिस्ट पार्टी द्वारा समान नागरिक संहिता की वकालत करने के पीछे विभिन्न धर्म की महिलाओं को बराबरी का दर्जा दिलाने की मंशा नहीं बल्कि उसकी मुस्लिम-विरोधी साम्प्रदायिक फ़ासीवादी राजनीतिक चाल काम कर रही है।

ज्ञानव्यापी विवाद और फ़ासिस्टों की चालें

आज पूरे देश में बेरोजगारी अपने चरम पर है। महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ दी है। आर्थिक संकट लगातार गहराता जा रहा है। मज़दूरों को लगातार तालाबंदी और छँटनी का सामना करना पड़ रहा है। मेहनतकश लोगों की जिंदगी बदहाली में गुजर रही है। ठीक इसी समय भाजपा एवं आरएसएस ने अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से पूरे देश में सांप्रदायिक उन्माद फैलाने की कोशिशें तेज कर दी हैं। जबसे इन फासीवादियों ने सत्ता संभाली है तब से तमाम ऐसे छोटे-छोटे धार्मिक त्योहारों, पर्वों को बड़े पैमाने पर मनवाया जा रहा है, जिन्हें आम तौर पर नहीं मनाया जाता था, एवं उनका इस्तेमाल धार्मिक रूप से अल्पसंख्यक मुसलमानों के खिलाफ सांप्रदायिक उन्माद फैलाने के लिए किया जा रहा है।

गंगासागर मेले में फिर से कोरोना फैलाने की इजाज़त

पिछले वर्ष जब हज़ारों लोग कोरोना और सरकार की लापरवाही के कारण मर रहे थे, तब भाजपा सरकार ने कुम्भ मेले का आयोजन किया था, जहाँ लाखों की तादाद में भीड़ इकट्ठा हुई थी और यह भी उस दौरान कोरोना के फैलने का एक कारण था। इसी राह पर चलते हुए पश्चिम बंगाल की ममता सरकार ने गंगासागर मेले का आयोजन कराया। यह मेला हर वर्ष मकर संक्रान्ति के अवसर पर 8-16 जनवरी के बीच लगता है। ज्ञात हो कि इस मेले में लाखों की संख्या में पूरे देश से लोग आते हैं। इस समय यह बीमारी फैलने का एक बड़ा स्थल बन सकता था।

पंजाब में धार्मिक चिह्नों की “बेअदबी” के नाम पर मॉब लिंचिंग की बढ़ती घटनाएँ

पंजाब में सिख धार्मिक चिह्नों की तथाकथित बेअदबी और “बेअदबी” करने वालों की धार्मिक कट्टरपन्थियों द्वारा सरेआम हत्याओं के एक के बाद एक मामले सामने आ रहे हैं। हाल ही में घटी एक वारदात में स्वर्ण मन्दिर, अमृतसर में एक युवक की इसी “बेअदबी” के नाम पर उन्मादी भीड़ द्वारा हत्या कर दी गयी। एक अन्य घटना में कपूरथला में सिख धर्म के प्रतीक निशान साहिब का “अपमान” करने के नाम पर एक और युवक की कट्टरपन्थियों द्वारा पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी।

अयोध्‍या फ़ैसला : क़ानून नहीं, आस्‍था के नाम पर बहुसंख्‍यकवाद की जीत

जब सुप्रीम कोर्ट ने अचानक अयोध्‍या मामले की रोज़ाना सुनवाई करना शुरू किया था तभी से यह लगने लगा था कि फ़ैसला किस तरह का होने वाला है। न्‍यायपालिका पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से मोदी सरकार की चाकर की तरह के रूप में काम कर रही है, उसे देखते हुए भी समझदार लोगों को किसी निष्‍पक्ष फ़ैसले की उम्‍मीद नहीं थी।