Category Archives: संघर्षरत जनता

ऐतिहासिक अन्याय, विश्वासघात और षड्यंत्र के ख़िलाफ़ जारी है फ़िलिस्तीनी जनता का संघर्ष!

गाज़ा में चल रहा युद्ध ऐतिहासिक अन्याय, विश्वासघात और षड्यंत्र के ख़िलाफ़ है। गाज़ा की जनता अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रही है। हम मज़दूरों मेहनतकशों को इस युद्ध में गाज़ा और फ़िलिस्तीन की जनता का साथ देना चाहिए। मज़दूर वर्ग और आम मेहनतकश जनता हमेशा शोषकों-उत्पीड़कों के ख़िलाफ़ होती है और अन्याय और शोषण के विरुद्ध लड़ रहे मज़दूरों-मेहनतकशों के साथ खड़ी होती है, चाहे वे दुनिया के किसी भी हिस्से में क्यों न लड़ रहे हों। फिलिस्तीन का मसला आज हर न्यायप्रिय व्यक्ति का मसला है। इसलिए भी क्योंकि फिलिस्तीन का सवाल आज साम्राज्यवाद के सबसे प्रमुख अन्तरविरोधों में से एक बना हुआ है और इसका विकास साम्राज्यवाद के संकट को और भी बढ़ाने वाला है।

दिल्ली के करावल नगर में जारी बादाम मज़दूरों का जुझारू संघर्ष : एक रिपोर्ट

हड़ताल मज़दूरों को सिखाती है कि मालिकों की शक्ति तथा मज़दूरों की शक्ति किसमें निहित होती है; वह उन्हें केवल अपने मालिक और केवल अपने साथियों के बारे में ही नहीं, वरन तमाम मालिकों, पूँजीपतियों के पूरे वर्ग, मज़दूरों के पूरे वर्ग के बारे में सोचना सिखाती है। जब किसी फ़ैक्टरी का मालिक, जिसने मज़दूरों की कई पीढ़ियों के परिश्रम के बल पर करोड़ों की धनराशि जमा की है, मज़दूरी में मामूली वृद्धि करने से इन्कार करता है, यही नहीं, उसे घटाने का प्रयत्न तक करता है और मज़दूरों द्वारा प्रतिरोध किये जाने की दशा में हज़ारों भूखे परिवारों को सड़कों पर धकेल देता है, तो मज़दूरों के सामने यह सर्वथा स्पष्ट हो जाता है कि पूँजीपति वर्ग समग्र रूप में समग्र मज़दूर वर्ग का दुश्मन है और मज़दूर केवल अपने ऊपर और अपनी संयुक्त कार्रवाई पर ही भरोसा कर सकते हैं।

बवाना औद्योगिक क्षेत्र में हड़ताली मज़दूरों का दमन

श्रम क़ानूनों को लागू करने, फैक्ट्रियों में सुरक्षा के पुख़्ता इन्तज़ाम करने जैसी बुनियादी माँगों को लेकर मज़दूर हड़ताल पर गये थे। 3 मार्च के दिन सुबह से ही हड़ताली टोलियाँ पूरे बवाना इलाक़े में मज़दूरों को एकजुट कर काम बन्द करके हड़ताल में शामिल होने की अपील कर रही थीं। हड़ताल का असर ख़ासतौर पर सेक्टर-5 में था, जहाँ 90 प्रतिशत कारख़ाने बन्द थे और हज़ारों मज़दूर हड़ताल रैली में शामिल थे। अन्य सेक्टर में हड़ताल आंशिक तौर पर सफल रही। इसी सफलता ने मालिकों के अन्दर ख़ौफ़ पैदा किया और तुरन्त पुलिस हड़ताल को रोकने के लिए हरकत में आ गयी। सबसे पहले सेक्टर-3 में पुलिस ने मज़दूरों को रैली निकालने से रोका और जब मज़दूर जन्तर-मन्तर जाने के लिए निकल रहे थे, गाड़ी को रोककर उन्हें इलाक़े से बाहर जाने के लिए मना कर दिया गया। इसके बाद मज़दूरों ने सेक्टर-3 में ही हड़ताल सभा शुरू कर दी।

‘भगतसिंह जनअधिकार यात्रा’ का दूसरा चरण : समाहार रपट

3 मार्च को दिल्ली में यात्रा के समापन के तौर पर होने वाले विशाल प्रदर्शन को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस ने एड़ी-चोटी का पसीना एक कर दिया, बवाना औद्योगिक क्षेत्र में यात्रा के समर्थन में हुई हड़ताल को कुचलने के लिए गिरफ्तारियाँ और हिरासत में यातना तक का सहारा लिया, जन्तर-मन्तर से कई लहरों में हज़ारों लोगों को बार-बार हिरासत में लिया और शहर में जगह-जगह जत्थों में आ रहे मज़दूरों, मेहनतकशों, छात्रों-युवाओं को रोकने की कोशिश की और जन्तर-मन्तर पर कई दफ़ा लाठी चार्ज तक किया। लेकिन इससे भी वह प्रदर्शन को रोकने में कामयाब नहीं हो पायी। जन्तर-मन्तर पर तो बार-बार प्रदर्शन हुए ही, दिल्ली के करीब आधा दर्जन पुलिस थानों में भी प्रदर्शन होते रहे। प्रदर्शन का सन्देश सीमित होने के बजाय पूरे शहर में और भी ज़्यादा व्यापकता के साथ फैला।

फ़ासिस्ट दमन के गहराते अँधेरे में चंद बातें जो शायद आपको भी ज़रूरी लगें

आज के अनुभव ने सिद्ध कर दिया है कि मोदी-शाह की फ़ासिस्ट सत्ता किसी भी जुझारू जन-उभार की संभावना से थरथर काँप रही है। इसीलिए, देश के किसी भी कोने में होने वाले किसी जनांदोलन को कुचलने के लिए वह पुलिस और अर्धसैनिक बलों की पूरी ताक़त झोंक दे रही है, जेनुइन जनांदोलनों के नेताओं पर आतंकवाद और देशद्रोह आदि की धाराएँ लगाकर फर्जी मुकदमे ठोंक रही है और उनके ज़मानत तक नहीं होने दे रही है। लेकिन जैसाकि हमेशा होता है, किसी भी सत्ता का जनता से भय जितना अधिक बढ़ता जाता है, वह उतना ही नग्न-निरंकुश दमनकारी होती जाती है। जनता को डराने की एक हद जब पार हो जाती है तो फिर जनता धीरे-धीरे डरना बंद कर देती है। इतिहास के अध्येता जानते हैं कि जीना मुहाल होने पर और अपने सारे अधिकारों के छिनते जाने पर जनता सड़कों पर उतरती ही है। शुरूआती दौरों में सत्ता के दमन और आतंक के प्रभाव से वह दब और बिखर जाती है। लेकिन शोषण, उत्पीड़न और भ्रष्टाचार के विरुद्ध वह फिर -फिर सड़कों पर उतरती है। फिर सत्ता तंत्र का दमन भी बढ़ता जाता है और फिर ऐसा दौर आता है कि जनता डरना बंद कर देती है। सभी आततायी शासक उसी दिन के बारे में सोचकर भयाक्रांत हो जाते हैं।

नगर निगम गुड़गाँव के ठेका ड्राइवरों को हड़ताल की बदौलत आंशिक जीत हासिल हुई

वेतन और पी.एफ. के भुगतान न होने के चलते न सिर्फ़ ठेका ड्राइवर बल्कि ठेके पर काम करने वाले सफ़ाई, सिक्योरिटी गार्ड, मैकेनिक सभी हड़ताल में शामिल हुए थे। वैसे तो इस इकोग्रीन कम्पनी द्वारा ठेके पर कार्यरत मज़दूरों के श्रम कानूनों के सभी अधिकारों की जिस तरह से खुलेआम धज्जियाँ नगर निगम गुड़गाव की नाक के नीचे उड़ाई जा रहीं है। ज़ाहिर है, यह बिना प्रशासन, सरकार और ठेकेदार की मिलीभगत के सम्भव नहीं है। इसके लिए ठेका ड्राइवरों को इस सच्चाई को समझना होगा और आने वाले दिनों में इसके लिए कमर कसनी होगी। साथ ही विभिन्न सेक्टर के मज़दूरों के साथ इस मुद्दे पर एकता बढ़ाकर आगे बढ़ना होगा।

भीषण आर्थिक व राजनीतिक संकट से जूझता बंगलादेश लेकिन क्रान्तिकारी विकल्प की ग़ैर-मौजूदगी में शासक वर्ग का दबदबा क़ायम

आने वाले दिनों में बंगलादेश में आर्थिक संकट और गहराने ही वाला है क्योंकि चालू खाते का घाटा बढ़ता जा रहा है और भुगतान सन्तुलन की हालत खस्ता है। पूँजीपतियों द्वारा क़र्ज़ों की अदायगी न करने की सूरत में बैंकिंग क्षेत्र का संकट भी और बढ़ने वाला ही है। विश्व बाज़ार में उछाल की सम्भावना कम होने की वजह से निर्यात पर टिकी अर्थव्यवस्था के सामने संकट से उबरने की वस्तुगत सीमाएँ हैं। ऐसे में लोगों के जीवन में बेहतरी और उनकी आमदनी बढ़ने की कोई सम्भावना नहीं दिखती है। इस गहराते आर्थिक संकट की अभिव्यक्ति राजनीतिक संकट के गहराने के रूप में सामने आयेगी क्योंकि सत्ता में बने रहने के लिए और जन आक्रोश को कुचलने के लिए शेख़ हसीना की अवामी लीग सरकार का दमनतंत्र ज़्यादा से ज़्यादा निरंकुश होता जायेगा।

भगतसिंह जनअधिकार यात्रा (दूसरा चरण : 10 दिसम्बर से 3 मार्च) – एक संक्षिप्त रिपोर्ट

जनता के बीच सरकार की नीतियों के खिलाफ़ भयंकर असन्तोष और गुस्सा है। भाजपा के पक्ष में आज 15 से 20 फ़ीसदी वही आबादी बोल रही है जिसका फ़ासीवादियों ने व्यवस्थित रूप से साम्प्रदायीकरण किया है बाक़ी एक बड़ी आबादी वो है जो इनकी असलियत से वाकिफ़ हो चुकी है और इसलिए ही इस बार 2024 के चुनाव से पहले ये बेहद की आक्रामक तरीके से हिन्दू-मुसलमान, मन्दिर-मस्जिद का खेल खेल रहे हैं। महँगाई और बेरोज़गारी के मुद्दे पर फ़ेल मोदी सरकार अब आम जनता को बता रही है कि यह सब तो ईश्वर का प्रकोप है, रामलला आयेंगे और सब ठीक हो जाएगा!

गुड़गाँव नगर निगम के ठेका ड्राइवर व अन्य मज़दूर अपनी माँगों के लेकर संघर्ष की राह पर!

गुड़गाँव नगर निगम के ड्राइवर ठेका कम्पनी इकोग्रीन एनर्जी गुड़गाँव-फ़रीदाबाद प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी के तहत कई सालों से कार्यरत हैं, जिन्हें पिछले चार महीने से वेतन न मिलने की वजह से हड़ताल पर जाने के लिए मज़बूर होना पड़ा। लम्बे समय बर्दाश्त करने के बाद, कमरे का किराया, राशन का ख़र्चा, उनके बच्चों स्कूल की फ़ीस न दे पाने व दवा-इलाज की समस्याएँ बहुत बढ़ जाने के बाद मज़दूरों को हड़ताल का रास्ता चुनना पड़ा।

‘एस्मा’ को तत्काल वापस लो! आँगनवाड़ीकर्मियों की माँगों को पूरा करो!!

क़ानूनन तो यह केवल सरकारी कर्मचारियों पर ही लगाया जा सकता है और आँगनवाड़ीकर्मियों को तो सरकार कर्मचारी मानती नहीं है फिर उनपर इसका इस्तेमाल क्या दिखलाता है!? और अगर आँगनवाड़ीकर्मियों द्वारा दी जा रहीं सेवाएँ आवश्यक सेवाएँ हैं, तो फिर उन्हें कर्मचारी का दर्जा क्यों नहीं दिया जा रहा??