Category Archives: संघर्षरत जनता

किसी भी रूप में बलात्कार का समर्थन करने वालाें के लिए इस समाज में कोई जगह नहीं होनी चाहिए!

दिल्ली के संसद मार्ग पर कठुआ और उन्नाव के दोषियों को सज़ा दिलाने और बढ़ते स्त्री विरोधी अपराधों के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाते हुए सैकड़ों की संख्या में आम नागरिक, छात्र, युवा इकट्ठे हुए। स्त्री मुक्ति लीग, नौजवान भारत सभा और दिशा छात्र संगठन ने भी इस प्रदर्शन में हिस्सेदारी की और कहा कि कठुआ और उन्नाव में हुए बलात्कारों की बर्बरता और इन अपराधों के दोषियों को सत्ता में बैठे नेता-मंत्रियों द्वारा बचाने की कवायद बेहद ही शर्मनाक है। मोदी सरकार द्वारा ‘न्यू इंडिया’ का जो गुब्बारा फुलाया जा रहा है उसकी सच्चाई को वास्तव में बढ़ते हुए स्त्री विरोधी, दलित और अल्पसंख्यक विरोधी, आम मेहनतकश अवाम और मज़दूर विरोधी घटनाओं से बखूबी समझा जा सकता है। इस प्रदर्शन के माध्यम से प्रदर्शनकारियों ने बलात्कारियों को सख़्त सज़ा देने की माँग को उठाया।

महाराष्ट्र में किसानों और आदिवासियों का ‘लाँग मार्च’ : आन्दोलन के मुद्दे, नतीजे और सबक़

पिछले दिनों महाराष्ट्र में किसानों और आदिवासियों का बड़ा आन्दोलन हुआ हालाँकि इसके प्रचार में व साथ ही नामकरण में आदिवासियों का अलग से नाम नहीं था। उत्तरी महाराष्ट्र के नासिक से हज़ारों लोग 9 मार्च को विधानसभा घेराव के लिए पैदल मार्च करते हुए चलना शुरू हुए, पैदल जत्थे में बच्चे-बूढ़े-महिलाएँ और जवान सभी शामिल थे। मुम्बई पहुँचने तक रास्ते से जत्थे में और लोग भी जुड़ते चले गये। 12 तारीख़ को किसान और आदिवासी मुम्बई के ऐतिहासिक ‘आज़ाद मैदान’ पहुँचे।

हरियाणा में आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों का आन्दोलन : सीटू और अन्य संशोधनवादी ट्रेड यूनियनों की इसमें भागीदारी या फिर इस आन्दोलन से गद्दारी?!

12 फ़रवरी से हड़ताल पर बैठी हरियाणा की आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों की माँग थी कि उनका मानदेय बढ़ाया जाये और उन्हें कर्मचारी का दर्ज़ा दिया जाये। समेकित बाल विकास विभाग और आँगनवाड़ी की देशभर में खस्ता हालत से शायद ही कोई अनजान होगा। हरियाणा की आँगनवाड़ी भी अव्यवस्था से अछूती नहीं है। आँगनवाड़ियों में खाने की गुणवत्ता का निम्न स्तर, राशन की आपूर्ति में देरी के साथ-साथ तमाम समस्याएँ सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े करती हैं। आँगनवाड़ी महिलाकर्मियों पर काम का दबाव निश्चय ही योजना को प्रभावित करता है।

एल.जी. के मज़दूरों का संघर्ष ज़िन्दाबाद!

एलजी कम्पनी के मज़दूर अपनी माँगों को लेकर पिछले 2 सालों से संघर्षरत है। “लाइफ़ गुड्स” का दावा करने वाली यह बहुराष्ट्रीय कम्पनी अपने ही मज़दूरों की ज़िन्दगी के बदतर हालातों पर ध्यान नहीं दे रही। एलजी के मज़दूरों के संघर्ष की शुरुआत हुई जनवरी 2016 में जब अपने कार्य की नारकीय स्थिति के विरुद्ध मज़दूरों का वर्षों से दबा गुस्सा फूट पड़ा। जिसके बाद उन्होंने यूनियन बनाने की माँग पर ज़ोर देते हुए अपने संघर्ष को तेज़ किया।

देश के विभिन्न राज्यों में ज़ोरों-शोरों से चलाया जा रहा है ‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ अभियान

देश-भर के नौजवानों के सामने बेरोज़गारी की समस्या आज मुँहबाए खड़ी है। इसकी ज़िम्मेदारी सरकार को लेनी ही होगी। इस मक़सद से ही बसनेगा अभियान का बिगुल फूँका गया है। बसनेगा अभियान की मुख्य माँगों में संविधान में संशोधन करके रोज़गार को मूलभूत अधिकारों में शामिल करने और हर नागरिक को रोज़गार की गारण्टी देने की माँग शामिल हैं। रोज़गार की गारण्टी न दे पाने की सूरत में 10,000 रुपये प्रति माह बेरोज़गारी भत्ता, ठेका प्रथा तत्काल प्रभाव से समाप्त करने, रिक्त पदों की जल्द से जल्द भर्ती करने आदि की माँगों को लेकर बसनेगा अभियान पूरी सघनता से देश के कई शहरों में चलाया जा रहा है।

गवर्नमेण्ट प्रेस, इलाहाबाद के अप्रेण्टिस कर्मचारी आन्दोलन की राह पर

पिछले कई वर्षों से गवर्नमेण्ट प्रेस की फ़ैक्टरी में अप्रेण्टिस की ट्रेनिंग पूरी करके जॉइनिंग का इन्तज़ार कर रहे अभ्यर्थी आन्दोलनरत हैं। इनमें से कई ऐसे भी हैं जो पिछले 20 वर्षों से अप्रेण्टिस करके बैठे हुए हैं। दूसरी ओर गवर्नमेण्ट प्रेस की फ़ैक्टरी में लगभग 2200 पद रिक्त पड़े हुए हैं। हाईकोर्ट की ओर से इन रिक्त पदों को भरे जाने और अप्रेण्टिस पूरी कर चुके मज़दूरों को प्राथमिकता देने का आदेश होने के बावजूद प्रशासन पर कोई असर नहीं पड़ा है। इस वज़ह से एक बार फिर से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके अप्रेण्टिस भूख हड़ताल करने को मजबूर हो गये हैं।

रिहायशी मसलों के हल के लिए एलआईजी कालोनी (लुधियाना) के लोगों के संघर्ष की आंशिक जीत

एलआईजी कालोनी, जमालपुर, लुधियाना के निवासियों ने नौजवान भारत सभा के नेतृत्व में साफ़-सफ़ाई, सीवरेज जाम, एक पार्क ठीक न करने व दूसरा पार्क बनाने, पक्का ट्यूबवैल ऑपरेटर रखने, ट्यूबवैल का बक्सा ठीक ढंग से लगाने, स्ट्रीट लाइटें लगाने आदि मसलों पर एकजुट संघर्ष की शुरुआत की है। नौभास के कार्यकर्ताओं ने कालोनी के लोगों की समस्याओं के बारे में एक पर्चा कालोनी में वितरित किया। नगर निगम द्वारा कालोनी की समस्याओं की अनदेखी के मसले पर एक मीटिंग 21 जनवरी को की गयी। मीटिंग में विचार-चर्चा के बाद लोगों ने समस्याओं के हल के लिए ज़ोरदार संघर्ष का ऐलान किया।

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के हॉस्टल मैस कर्मचारियों का संघर्ष जि़न्दाबाद!

40-40 साल से काम करने वाले ये कर्मचारी आज भी 5-5 हज़ार पर काम करने के लिए मजबूर हैं। इतने सालों के दौरान काम करते-करते बहुत साथियों की मृत्यु भी हो चुकी है और बहुत साथी आज भी यहाँ इतनी कम तनख्वाह पर काम कर रहे हैं। इन मैस कर्मचारियों ने अपनी यूनियन के तहत 2007 में लेबर कोर्ट में केस डाला कि हम इतने दिनों से विश्वविद्यालय में काम कर रहे हैं तो हमें विश्वविद्यालय का कर्मचारी घोषित किया जाये और हमें यहाँ काम पर पक्का किया जाये। अन्ततः 2010 में लेबर कोर्ट ने हॉस्टल मैस कर्मचारियों के हक़ में फ़ैसला सुना दिया।

धरना-प्रदर्शनों पर रोक व काले क़ानूनों के खि़लाफ़ लुधियाना के जनवादी जनसंगठन सड़कों पर उतरे

वक्ताओं ने कहा कि केन्द्र व राज्य सरकारें काले क़ानूनों के ज़रिये जनता के जनवादी अधिकारों, नागरिक अाज़ादियों को कुचलने की राह पर तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं। देश के पूँजीवादी-साम्राज्यवादी हुक्मरानों द्वारा जनता के खि़लाफ़ तीखा आर्थिक हमला छेड़ा हुआ है। अमीरी-ग़रीबी की खाई बहुत बढ़ चुकी है। महँगाई, बेरोज़गारी, बदहाली, गुण्डागर्दी, स्त्रियों, दलित, अल्पसंख्यकों पर जुल्म बढ़ते जा रहे हैं। इसके चलते लोगों में तीखा रोष है। जनसंघर्षों से घबराये हुक्मरान काले क़ानूनों, दमन, अत्याचार के ज़रिये जनता की अधिकारपूर्ण आवाज़ दबाने का भ्रम पाल रहे हैं। लेकिन जनता इन काले क़ानूनों, तानाशाह फ़रमानों से घबराकर पीछे नहीं हटने वाली। ये तानाशाह फ़रमान, काले क़ानून हुक्मरानों की मज़बूती का नहीं कमज़ोरी का सूचक हैं। लोग न सिर्फ़ अपने आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक अधिकारों के लिए संघर्ष जारी रखेंगे बल्कि इन दमनकारी फ़रमानों/काले क़ानूनों को भी वापिस करवाकर रहेंगे।

‘भगतसिंह राष्ट्रीय रोज़गार गारण्टी क़ानून’ अभियान

राज्यसभा में कैबिनेट राज्यमन्त्री जितेन्द्र प्रसाद ने ख़ुद माना था कि कुल 4,20,547 पद अकेले केन्द्र में ख़ाली पड़े हैं। देश भर में प्राइमरी-अपर-प्राइमरी अध्यापकों के क़रीब 10 लाख पद, पुलिस विभाग में 5,49,025 पद, ख़ाली पड़े हैं। केन्द्र और राज्यों के स्तर पर क़रीब बीसियों लाख पद ख़ाली हैं। तो ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि इन रिक्त पदों पर नियुक्तियाँ क्यों नहीं की जातीं? एक ओर बेरोज़गारी की भीषण आग में झुलसती जनता है, वहीं दूसरी ओर नेताओं और पूँजीपतियों की सम्पत्ति दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ रही है।